गुरुवार, 18 सितंबर 2008

मेरी उड़ीसा यात्रा - भाग २ : पुरी का समुद्र तट क्यूँ है इतना खास ?

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह राँची से राउरकेला होते हुए हम सुबह दस बजे पुरी पहुँचे। पुरी में उस दिन अच्छी खासी धूप निखरी हुई थी। हम जिस गेस्टहाउस में ठहरे थे वहाँ से समुद्र तट करीब ३०० -४०० मीटर दूर था। एक घंटे में गरमागरम इडलियाँ आ गईं और उन्हें निबटाने के बाद सब सीधे तट के पास पहुँच गए।

पुरी का समुद्री तट करीब एक किमी की लंबाई से थोड़ी अधिक दूर तक फैला है इसके ठीक सामने होटलों की लंबी कतार है। निरंतर नए-नए होटलों के खुलते जाने से बीच का विस्तार पिछले कई सालों में बढ़ता ही गया है। तट और इमारतों के बीच एक सड़क समानान्तर चलती है जिसे यहाँ लोग 'मेरीन ड्राइव' के नाम से जानते हैं। समुद्री तट पर सबसे ज्यादा भीड़ यहाँ के पुराने और मशहूर 'होटल पुरी' के सामने के इलाके में रहती है। सामान्यतः समुद्र की ओर रुख करने वाले कमरों के किराए ज्यादा होते हैं। इसी तरह अगर आपको बजट होटलों की तालाश हो तो समुद्र से थोड़ा दूर खिसकना होता है।



भीड़ से बचने के लिए हम आधा किमी आगे निकल आए। वहाँ समुद्र लहरों की गर्जना के आलावा कोई स्वर और नहीं सुनाई दे रहा था। बालू के ढ़ेर पर हमारे समूह ने अड्डा जमा लिया और हम सब कुछ देर के लिए समुद्र की उठती गिरती लहरों को अपलक निहारते रहे। पुरी का तट भारत के पूर्वीय तटों में सबसे खूबसूरत है। एक तो इसका फैलाव इतनी दूर तक है कि आप अपने लिए पर्याप्त एकांत ढूँढ पाते हैं और दूसरे यहाँ की लहरें जो दिखने में तो आम सी लगती हैं पर आम हैं नहीं। अगर आपने इनके साथ ज्यादा बेतक्कुलफी दिखाई तो ये अपनी जबरदस्त ताकत का अंदाजा कुछ ही घंटों में दिखला देती हैं। पर अगर सावधानी के साथ इन लहरों के साथ कूद फाँद की जाए तो आनंद भी खूब आता है।


नहाने के पहले कुछ देर बच्चे बालू के टीले बनाने में व्यस्त रहे। सच तो ये है कि मुझे भी बालू के बीच मे् बड़ी बड़ी पहाड़ियाँ और नदी नाले बनाने में छुटपन में क्या लुत्फ आया करता था। इसलिए बच्चों को वही करता देख पुरानी यादें ताजा हो गईं। और हमारे सुपुत्र जो उस वक़्त ४ साल के थे बालू में कैसे रमे वो आप इस छवि से ही समझ सकते हैं।




जैसा कि अमूमन सभी तटों पर होता है यहाँ भी बड़ी बड़ी ट्यूबों के साथ समुद्र में गोते लगाने की सुविधा थी। हम लोग इधर समुद्र मे् थोड़े अंदर घुसे तो पता चला कि उधर एक बड़ी लहर के साथ सुपुत्र की टी शर्ट सागर को समर्पित कर दी गई। लहरों को बहुत देर इंतजार किया कि शायद वापस फेंक दें पर वैसा कुछ नहीं हुआ।

मस्ती के दो तीन घंटों के बाद हम वापस विश्राम के लिए चल पड़े पर शाम को पुनः लौटे। शाम को तट का स्वरूप भिन्न था। पर्यटकों की तादाद जिसमें काफी संख्या नवविवाहित जोड़ों की थी एकदम से बढ़ गई थी। अब पर्यटक हों तो वहाँ मूंगफली, पापड़, चाय से लेकर मछली तक का इंतजाम भी आस पास में क्यूँ ना उपलब्ध हो। और जहाँ रेत का ही बोलबाला हो वहाँ ऊँट की सवारी का सुख क्यों नहीं मिले। आखिर इंडिया है भाई..

रात में तट के दूसरी ओर का सिरा भी प्रकाश से जगमगा रहा था। सुबह जल्दी उठने का कार्यक्रम था इसलिए हम जल्द ही वापस लौट गए। वैसे भी हमारे के मित्र जो कानपुर से आने वाले थे ट्रेन के दस बारह घंटे विलंब होने की वज़ह से दिन में दो बजे के बजाए रात्रि के दो बजे पहुँचने वाले थे।

हमने सोचा था कि एक दिन तो उसका ट्रेन की वज़ह से मिस हो गया पर अगली सुबह का सूर्योदय जरूर उसे दिखाएँगे। क्या हम अपनी मुहिम में कामयाब हो पाए ये जानेंगे इस वृत्तांत की अगली कड़ी में...

10 टिप्‍पणियां:

  1. दो बार पुरी गयीं हूँ आपका लिखा .पढ़ कर बहुत सी यादे ताजा हो गयीं ..मैंने अब तक जितने समुद्र देखे हैं मुझे उस में पुरी का समुन्द्र तट बहुत पसंद आता है ..शांत सा ..यहाँ अभी एक बार और जाने की इच्छा है ..

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  2. आपको पढ़कर अब मेरे भीतर भी समुंदर की लहरें गूँजने लगी है, जाने कब प्रोग्राम बने।

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  3. कभी जाना नहीं हुआ, पर तस्वीरें पहले भी देखी है... मेरे घर से कई लोगों का जाना हुआ. पुरी गए तो नंदन-कानन और कोणार्क वगैरह भी आगे आएगा ही ?

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  4. मुझे समंदर से इश्क है, कोल्कता के दीघा पर गई hun और इतनी paagal हो गई उसकी khoobsoorti पर कि बस वहीं रह जाने का मन किया था, mumbai भी गई hun..पर जो bat दीघा में थी वो नज़र नही आई, आपने उसी की yad दिला दी...आपके ब्लॉग पर aakar उदास मन bahal जाता है..सच

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  5. मजा आ रहा है लिखते रहिये। मैने भी एक बार समुद्र देखा है जब मुम्बई गया था। वहां के जुहू बीच पर घूमने का मजा भी अलग है।

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  6. रंजना जी पुरी का तट हमेशा शांत नहीं रहता। सुबह या फिर शाम में कभी कभी लहरें बेहद रौद्र रूप धारण कर लेती हैं पर आपने सही कहा इनकी बगल में बैठना मन को बेहद सुकून देता है।

    जितेंद्र जरूर बनाएँ कार्यक्रम पुरी के आसपास और भी बहुत कुछ है जिसका विवरण आगे आप तक पहुँचाऊँगा।

    अभिषेक बिल्कुल जी उस लिस्ट में चिलका और भुवनेश्वर को भी जोड़ें :)

    रख्शंदा दीघा मैं भी गया हूँ और वहाँ की शंकरपुर बीच बेहद खूबसूरत है कभी लिखूंगा उसके बारे में भी।

    दीपांशु शुक्रिया..मैं जूहू पर रात में गया हूँ इसलिए बहुत enjoy नहीं कर पाया।

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  7. अरे वाह क्या बात हे , मेने समुन्द्र तो बहुत देखे हे, ओर मीलो मील घुमे भी नंगे पावं, लेकिन पुरी नही देख पाये साथ मे पुरी का समुन्दर भी नही देख पाये, अब जरुर देखे गे आप ने जो इतना कुछ लिखा हे ओर फ़िर खुब सुरत ब्चित्र भी दिखाये.
    धन्यवाद

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  8. Dear Manish thanx for the treat. Incidentally , my last three posts are devoted to Puri only. see pictures taken by me n let me know ur views on them. ur views are crucial 'cos u too visited the place recentally.

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  9. एक ओर यात्रा व्रतांत सधे शब्दों में......सलाम आपकी निरंतरता को...

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