रविवार, 29 जून 2008

आइए देखें लाइटहाउस के ऊपर से लिए हुए कोवलम के समुद्री तट के कुछ बेहतरीन दृश्य

कोवलम का अर्थ है नारियल के पेड़ों का झुंड। कहते हैं सबसे पहले १९३० में त्रावणकोर के राजा ने अपने यूरोपीय मेहमानों को मछुआरों के इस गाँव की सैर कराई थी। धीरे-धीरे विदेशी सैलानियों का यहाँ आना शुरु हुआ। सत्तर के दशक में ये जगह हिप्पियों में कॉफी लोकप्रिय हो गई। और आज भी यहाँ विदेशी पर्यटकों को काफी संख्या में देखा जा सकता है। पर जैसे-जैसे इस समुद्रतट की लोकप्रियता बढ़ी है वैसे- वैसे इस के चारों ओर बनने वाले होटलों और भोजनालय से होने वाला प्रदूषण भी बढ़ रहा है।

वैसे तो कोवलम के समुद्री तट पर अपने प्रवास के बारे में मैं यहाँ लिख चुका हूँ पर आज आपको दिखाता हूँ कोवलम के वे दृश्य जो लाइटहाउस के ऊपर चढ़ कर ही देखे जा सकते हैं। तो शुरुआत लाइटहाउस .. (lighthouse) से। ये लाइटहाउस करीब ३५ मीटर ऊँचा है। ये लाइटहाउस कुरुमकल (Kurumkal) के पहाड़ी टीले पर मुख्य समुद्र तट की दक्षिणी दिशा में बना है।


कोवलम का समुद्र तट तीन मुख्य भागों में बँटा है। सबसे उत्तर में है समुद्र बीच (Samudra Beach) जहाँ आम तौर पर पर्यटक नहीं जाते और उसका इस्तेमाल मछुआरे ज्यादा करते हैं। पर नीचे के चित्र को ध्यान से देखें। लाइटहाउस पर चढ़ कर जब आप उत्तर की दिशा की ओर देखें तो ये दृश्य आपको दिखाई देगा। ठीक नीचे है होटल, दुकानों और भोजनालय से घिरी लाइटहाउस बीच (Light house Beach)। उसके ठीक और उत्तर दिशा में दिख रही है हव्वा बीच (Eves Beach)
एक जमाना था जब ये ,बीच टॉपलेस बीच (Topless Beach) के रूप में यूरोपीय महिला पर्यटकों के बीच मशहूर थी। इसी लिए इसे लोग Eves Beach कहने लगे। अब इसकी अनुमति यहाँ नहीं है।


ये दृश्य है लॉइटहाउस की दक्षिणी दिशा से लिया हुआ...कोवलम के समुद्र तट पर चट्टानें कई जगह समुद्र की दिशा में आगे बढ़ी हुई सी दिखती हैं। इन हिस्सों से समुद्री लहरें जब टकराती हैं तो बेहद हसीन मंज़र देखने को मिलता है


और जैसा कि मैंने ऊपर बताया..कोवलम के नाम को सार्थक करते हुए लाइटहाउस के नीचे दिखते ये नारियल के झुंड...


ये सारे चित्र लिए गए मेरे कार्यालय के सहकर्मी पिनाकी भवाल के कैमरे से जो हमसे दो दिन पूर्व यहाँ पहुँचे थे ।

शुक्रवार, 20 जून 2008

केरल और पीने का पानी : पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ?

केरल के किसी भोजनालय में अगर आप पानी माँग रहे हों तो आपको ज़रा सजग रहना होगा। वेटर आप से पूछेगा कि आप ठंडा पानी पीना चाहेंगे या नार्मल। ठंडा कहा तब तो ठीक है पर अगर नार्मल कह दिया तो वो आपको हल्का गर्म पानी (जितना आप गार्गिल के लिए इस्तेमाल करते हैं) ही पेश करेगा। इन दोनों के बीच में भी पीने के पानी की वैरायटी होती है ये समझाने में हमें दो दिन लग गए।

खैर मामला यहीं खत्म हो जाता तो गनीमत थी। मुन्नार गए तो रिसार्ट के रेस्तराँ में सादे जल के साथ बगल वाले गिलास में एक हरे रंग का पेय दिखा। पूछने पर वेटर ने बताया कि ये पानी है। हमें लगा भाषा की दिक्कत की वज़ह से वो प्रश्न नहीं समझ पाया है। हम सब ने उस पेय को दूर से सलाम किया और चलते बने। दूसरे दिन कानन देवन के गेस्ट हाउस में ठहरे तो भी पानी में कुछ जीरे जैसा स्वाद लगा । रसोईये से पता चला कि ये हर्बल वाटर (Herbal Water) है। पर कोट्टायम में जब हम बैकवॉटर का मजा ले रहे थे तो फिर हल्का गर्म हर्बल वाटर पीने को मिला। इस बार इसका रंग हल्का लाल था।



हर्बल वाटर में किन पौधों की पत्तियों को उबाल कर बनाया जाता है ये तो हम नहीं जान सके पर हमारा मलयाली चालक ये जरूर बता गया कि केरल में खाने के साथ हरबल वॉटर पीने का प्रचलन वहाँ की प्राचीन आर्युर्वेदिक परंपरा की देन है। लोग कहते हैं कि गुनगुने हर्बल वॉटर को पीने से शरीर को पानी की व्याधियाँ नहीं छू पातीं।

कहिए है ना ये मज़ेदार दवा?

शनिवार, 14 जून 2008

आइए देखिए केरल के ग्राम्य जीवन की ये झांकी...

केरल के बैकवाटर (Backwaters of Kerala) भ्रमण का विस्तृत ब्योरा तो आज ही यहाँ पोस्ट किया है। बैकवाटर की प्राकृतिक सुंदरता की झलकियाँ आप वहाँ देख सकते हैं। पर नदियों, नहरों और समुद्री पार्श्व जल के बीच की गई इस यात्रा में हमें वहाँ के ग्रामीणों के रहन-सहन, रोज़ी-रोटी के साधनों और दैनिक दिनचर्या की झलक भी मिलती है। मेरी इस प्रविष्टि का उद्देश्य आपको चित्रों के माध्यम से केरल के इस परिवेश से परिचित कराना है।


यूँ तो इन गाँवों में उत्तर भारत के विपरीत सारे मकान पक्के होते हैं पर मकान की छत खपड़ैल की होती है। पूरी यात्रा में ये घर हम सबको बड़ा प्यारा लगा शायद इसके बाग में लगे लाल तने वाले पेड़ों के लिए

सामने बहता जल नहाने में भी प्रयुक्त होता है और दिन भर के कामों में भी...

स्कूटर या किसी अन्य वाहन का यहाँ कोई काम नहीं क्योंकि हर घर की पार्किंग में लगी रहती है ये नाव !


चल दिए मियाँ बीवी अपने काम धंधे पर..


एलेप्पी (Alleppy) हाउसबोट निर्माण का प्रमुख केंद्र है। देखिए कैसे जुटे हैं कारीगर इस हाउसबोट (Houseboat) को खूबसूरती से गढ़ने में..


और पूजास्थल भी तो होने चाहिए बगल में। तो ये रहा नहर के किनारे बना एक सुंदर सा गिरिजाघर (Church)


जहाँ धर्म की पैठ है वहाँ राजनीति कैसे पीछे रहेगी वो भी केरल जैसे सजग राज्य में ! केरल के इस भाग में ज्यादातर श्रमिक बहुल उद्योग हैं। चाहे वो धान की खेती हो या नारियल के रेशे का काम या फिर नाव निर्माण इन सभी में मुख्यतः मशीनों से ज्यादा कुशल हाथों की जरूरत होती है। और यही वज़ह है कि कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) इस इलाके में खासी लोकप्रिय है..




काम धाम तो होता रहेगा। दिसंबर की इस गर्मी में (जी हाँ आप सही पढ़ रहे हैं गर्मी में) बीच-बीच में गला तर करने की भी जरूरत है इसलिए नारियल के पेड़ से निकलने वाली ये टॉडी (Toddy) यहाँ के ग्रामीणों में बेहद लोकप्रिय है बहुत कुछ उत्तर भारत की ताड़ी की तरह !



और शाम हो गई तो पड़ोसन के घर का हाल-चाल लेना भी तो उतना ही जरूरी है :) !

तो बताइए कैसी लगी आपको केरल के ग्राम्य जीवन की ये झांकी ?

शुक्रवार, 6 जून 2008

देखें और बताएँ कि क्या सोचकर जोकों ने इन्हें बख्श दिया होगा ?

अपने चिट्ठे 'एक शाम मेरे नाम' पर मैंने आपको अभी पेरियार के जंगलों (Periyar Forest) में ट्रेकिंग के अनुभवों के बारे में बताया। जंगल में घुसने की पहली हिदायत ये थी कि मोजे के ऊपर से जोंक प्रतिरोधक वस्त्र (Leech Protection Gear) पहन लें। इस कपड़े को मोजे के ऊपर पहन कर घुटनों तक बाँध लेते हैं। यानि आपकी त्वचा तक पहुँचने के लिए जोंक को तिहरे सुरक्षा घेरे यानि जूते, फिर इस कपड़े और मोजे या ऊपर की पतलून को पार करना होगा।




सारे भारतीय पर्यटक तो यही करते दिख रहे थे पर जब हम पेरियार झील को पार कर रहे थे तो जंगल में Wild Camp से लौट रहा एक विदेशी दल दिखा। 'Wild Camp ' में दो तीन दिन जंगलों के बीच रह कर जानवरों को देखने की कोशिश की जाती है। पर इन विदेशी पर्यटकों को देख कर हमें अपनी सुरक्षा तैयारी पर हँसी आ गई।



बंदूकधारी सुरक्षा गार्डों से घिरी इस विदेशी कन्या की वेशभूषा को देखें और बताएँ कि क्या सोचकर जोकों ने इन्हें बख्श दिया होगा ? :)

रविवार, 1 जून 2008

यात्रा चर्चा : कहानी उस कुएँ की जो सूखा होने के कारण प्रसिद्ध है..

अक्सर ऍसा होता है कि हम जहाँ रहते हैं उसी इलाके की कई अनमोल विरासतों को देखने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाते। यात्रा चर्चा का ये अंक उन चिट्ठाकारों के नाम है जिन्होंने हमेशा अपने निवास स्थलों की आस पास की जगहों को हमारे सामने लाने का प्रयास किया है। इन चिट्ठाकारों में अग्रणी हैं ममता जी, जिन्होंने अपनी चिट्ठाकारी की शुरुआत अंडमान में बिताए गए अपने दिनों के बारे में लिख कर की थी। ममता जी फिलहाल गोवा की राजधानी पंजिम (Panjim) में रहती हैं। इस बार ममता जी ने लिखा गोवा की उन जगहों के बारे में जहाँ अमूमन एक आम पर्यटक नहीं जा पाता।

पहले वो ले गईं हमें परशुराम मन्दिर जो पंजिम (Panjim) से ८०-८५ कि.मी. की दूरी पर, पेंगिन (Painguinim) नामक गाँव में स्थित है। अगर आप परशुराम मंदिर की छवियाँ देखने के साथ साथ पौराणिक कथाओं में भी रुचि रखते हों और ये जानना चाहते हों कि परशुराम ने किस तरह गोवा की रचना की तो ये पोस्ट जरूर पढ़ें।


और पिछले हफ्ते जाना हमने उनसे पंजिम से बस ८-१० की.मी. की दूरी पर स्थित तोरदा (torda) के पास स्थित संग्रहालय सॉल्वाडोर दो मुन्डो (Salvador Do Mundo) के बारे में..। अक्सर जब हम संग्रहालयों में जाते हैं तो अपने इतिहास में रुचि रखने के बावजूद समय की कमी की वज़ह से वहाँ रखी वस्तुओं पर सरसरी निगाह दौड़ा कर निकल लेते हैं।



इसीलिए इस अनूठे आकार के संग्रहालय के बारे में ममता जी लिखती हैं

"......ये संग्रहालय तीन मंजिला है और इसकी छोटी और घुमावदार सीढियों से ऊपर चढ़कर जब पहली मंजिल पर पहुँचते है तो यहाँ पर पुराने समय के गोवा और आज के गोवा दोनों के चित्र देखने को मिलते हैं। उस समय के दरवाजे ,खिड़कियाँ, सोफे, कुर्सी, और भी बहुत कुछ यहाँ पर देखा जा सकता है। अगर इतिहास को जानने का शौक हो और समय की कमी ना हो तो
यहाँ पर आराम से एक-एक चीज को देखते पढ़ते हुए चलना चाहिए। यहां पर एक-दो जगहों पर हेड फ़ोन भी लगे है और बैठने के लिए कुर्सी भी बनी है तो यहां बैठकर आप गोअन संगीत का लुत्फ़ भी उठा सकते हैं।...
ममता जी की ही तरह जबलपुर के चिट्ठाकार महेंद्र मिश्रा आजकल हम सब को अपने शहर के आस पास के मंदिरों की सैर करा रहे हैं। इस सिलसिले में उन्होंने विवरण दिया जबलपुर के गोपालपुर और लक्ष्मीनारायण मंदिर का। गोपालपुर के मंदिर के बारे में वे लिखते हैं...

"....पूरे परिसर मे २१ शिवलिंग के दर्शन होते है। यहाँ भव्य मन्दिर के अलावा कई भग्नावशेष है जो पुरातत्व विभाग की अनदेखी के बावजूद अपने वैभव से आश्चर्यचकित कर देते हैं। गोपालपुर मन्दिर की बाहय छटा काफी सुंदर है। श्वेत आभा के कारण इस मन्दिर को दूर से पहचाना जा सकता है पास ही नर्मदा का तट होने के कारण यह दूर से और भी ख़ूबसूरत लगता है।...."
प्राचीन इमारतों की एक खूबी ये भी होती है कि वे अपने आप में कई अनूठी कहानियों को समेटे होते हैं। प्राचीन धरोहरों से जुड़ी ऍसी कई कहानियाँ मैंने वहाँ मौजूद गाइड या स्थानीय निवासियों के मुँह से सुनी हैं। इनमें कई कहानियों पर तो सहज विश्वास ही नहीं होता क्योंकि वो हमारी तार्किक क्षमता से परे किसी सत्य का उद्घाटन करती दिखती हैं। पर जब साक्ष्य भी सामने हो तो मन अचंभित जरूर होता है। अब इस झनझन बेरी के कुएँ की बात मिश्रा जी कुछ यूँ बताते हैं..

"....झनझन बेरी का कुआँ पानी के लिए नही बल्कि सूखा होने के कारण प्रसिद्ध है बताया गया है कि यह कुआँ सौ साल से अधिक पुराना है जो शुरू से ही सूखा है। गाँव वालो ने जानकारी देते हुए बताया कि यहाँ झनझन बेरी नाम बेड़नी रहती थी। नाच गाकर वह जो कमाती थी सारी कमाई वह कुएँ की खुदाई मे लगा देती थी पर काफी गहरे तक खुदाई करने पर भी उसमे पानी नही निकला। खुदाई करते समय कुएँ मे से मुर्गो की आवाजे आने लगी तो खुदाई बंद कर दी गई परन्तु आजतक उस कुएँ मे से पानी नही निकला है और आश्चर्य की बात है कि उस कुएँ के चारो तरफ़ बोरिंग कराने पर पानी निकल आता है।..."
भई अब तो जबलपुर जाने की इच्छा हो गई है। देखें कब मौका मिल पाता है? वैसे एक ब्लॉगर मीट cum सैर सपाटा जबलपुर का हो जाए तो कैसा रहे? जबलपुरियों सुन रहे हो ना... :)


वैसे जो लोग उत्तराखंड की धरती से अब तक रूबरू नहीं हुए हैं और होना चाहते हैं वो नवोदित चिट्ठाकार दीपांशु गोयल के चिट्ठे पर नज़र रखें। दीपांशु रहते तो हैं दिल्ली में पर ताल्लुक रखते हैं उत्तराखंड से। कुछ दिनों पहले दीपांशु ने हमें नैनीताल के कार्बेट पार्क वाले इलाके में कार्बेट झरने के दर्शन कराए थे।

आखिरी गन्तव्य तक पहुँचने के लिए किसी भी यात्री की समस्या होती है कि कौन सी गाड़ी ली जाए जो उसके बजट में भी समा जाए और जिसमें समूह के सदस्य भली भांति बैठ सकें। इसी समस्या को ध्यान में रख कर अपनी नई पोस्ट में दीपांशु दे रहे हैं, उत्तराखंड के चारों धामों में जाने के लिए इंडिका से लेकर इनोवा तक में जाने के लिए खर्चे की जानकारी।

केरल का मेरा यात्रा विवरण अपने मध्य में है। केरल में मुन्नार को अलविदा कर मैं आपको ले आया हूँ थेक्कड़ी (Thekkadi)। पेरियार झील की सुबह की भागमभाग और टिकट करे लिए हुई अफरातरफी की कहानी तो मैं आपको बता ही चुका। अगर आपने पेरियार के जंगलों (Periyar Forest) की झांकी अब तक ना देखी हो तो यहाँ देखें।