सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..

२६ दिसंबर की सुबह अपने एक रात के ठिकाने कानन देवन हिल्स क्लब से निकल हम इरवीकुलम राष्ट्रीय उद्यान (Ervikulam National Park) की ओर चल पड़े।


करीब दस बजे मुन्नार शहर से तीस चालिस मिनट की यात्रा कर जब हम वहाँ के फॉरेस्ट चेक प्वाइंट पर पहुँचे तो वहाँ पर्यटकों की २०० मीटर लंबी पंक्ति हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। चेक प्वाइंट से तीन चार बसें यात्रियों को अंदर पहुँचाती और दो घंटे बाद वापस ले आती हैं। करीब सवा घंटे प्रतीक्षा करने के बाद हमारा क्रम आया। जंगल के अंदर लेडीज पर्स के आलावा वन कर्मी कुछ भी ले जाने नहीं देते जो पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से उचित कदम है।

मिनी बस में खिड़की से हम इस राष्ट्रीय उद्यान की सैर पर निकले। एक ओर पहाड़ियाँ तो दूसरी ओर चाय बागानों से पटी हरी भरी राजमलई (Rajamalai Hills) की पहाड़ियाँ। ये राष्ट्रीय उद्यान करीब ९७ वर्ग किमी में फैला है और इस उद्यान से आप दक्षिण भारत की सबसे ऊँची पहाड़ी अनामुदी (Anamudi) ऊँचाई २६९५ मीटर को देख सकते हैं। बस की यात्रा २० मिनट में खत्म हो जाती है और फिर आगे का सफ़र पैदल तय करना पड़ता है। पर इस सफ़र की खास बात है सड़क के नीचे की और दिखते घाटी के दृश्य। चाय बागानों को एक ऊँचाई से देखना एक अद्भुत मंजर पेश करता है। ऐसा लगता है मानो भगवन ने विशाल हरे कैनवस पर पगडंडियों की आड़ी तिरछें लकीरें खींच दी हों। कहते हैं कि हर बारह सालों पर यहाँ नीलाकुरिंजी (Neelakurinji) के फूल खिल कर पूरी पहाड़ी को नीला कर देते हैं। अगली बार ये फूल २०१८ में खिलेंगे तब के लिए तैयार हैं ना आप ?

अब अगर आप राष्ट्रीय उद्यान में बहुतेरे पशु पक्षियों को देखने की तमन्ना लगाए बैठे हों तो आपको निराशा हाथ लगेगी क्योंकि पूरे रास्ते में सुंदर दृश्यों के साथ-साथ बस एक जानवर आपको दिखाई देगा और वो है यहाँ का मशहूर नीलगिरि त्हार (Neelgiri Tahr)। नीलगिरि त्हार पहाड़ी बकरियों की एक लुप्तप्राय प्रजाति है जिसे इस उद्यान में आप बहुतायत पाएँगे। इनके खतरनाक सींगों की तरफ न जाइएगा, ये स्वभाव से आक्रामक नहीं हैं। पहाड़ी के शिखर के पास पहुँचने के बाद आगे का रास्ता पर्यटकों के लिए बंद है इसलिए ट्रेकिंग का शौक रखने वालों को अपना मन मार कर लौटना पड़ता है।


दिन का भोजन करते समय मुन्नार शहर में रुके तो एक धार्मिक जुलूस दिखाई दिया। ढोल नगाड़ों के बीच स्थानीय निवासी तरह तरह के करतब दिखा रहे थे। लोहे की छड़ों को गाल के पास दोनों ओर छेद कर श्रृद्धालु चल रहे थे जिसे देख कर मन हैरत में पड़ गया। भगवान को प्रसन्न करने के लिए भक्त कितनी कठिन चुनौतियों को स्वीकार कर लेते हैं ये भी उसका ही एक नमूना लगा। वैसे सवाल ये भी उठता है कि ऍसा करने से क्या ऊपरवाला वाकई गदगद हो पाता है ?



करीब दो बजे हम मुन्नार से थेक्कड़ी(Thekkady) की ओर चल पड़े। कुछ देर तो पहले ही की तरह सड़क के दोनों ओर चाय बागानों वाला अति मनोरम दृश्य दिखता रहा। इसके बाद शुरु हुआ घुमावदार रास्तों का जाल। चाय बागानों की जगह अब हमें इलायची के जंगल नज़र आने लगे। मन हुआ कि अब केरल आए हैं तो इनके पौधों को जरा करीब से देखा जाए और लगे हाथ इलायची के हरे दानों पर भी हाथ साफ किया जाए। बगल के चित्र में आप हरी इलायची को जड़ के पास फला देख सकते हैं।

जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए जंगलों की सघनता बढ़ती गई। यहाँ तक की साफ आकाश में धूप भी पेड़ों के बीच से छनकर थोड़ी बहुत आ पा रही थी। एक नई बात और हुई। जैसे ही हम मदुरई राष्ट्रीय मार्ग छोड़ दक्षिण की ओर थेक्कड़ी जाने वाले रास्ते में मुड़े, पहली बार गढ्ढेदार रास्तों से पाला पड़ा। रास्तों के झटकों से ध्यान तब हटा जब हमने पहली बार कॉफी के पौधों को देखा। इन पौधों को छाया की ज्यादा आवश्यकता होती है, इसलिए ये बड़े बड़े पेड़ो के बीच में अपनी जगह बना लेते हैं।

शाम पाँच बजे तक हम 'मसालों के शहर' कुमली पहुँच गए थे। कुमली तमिलनाडु और केरल की सीमा पर स्थित एक कस्बा है जहाँ से थेक्कड़ी का पेरियार राष्ट्रीय उद्यान पाँच किमी की दूरी पर है।

होटल खोजने में तो दिक्कत नहीं हुई पर असली समस्या थी अगली सुबह पेरियार झील में सैर करने के लिए टिकटों का जुगाड़ करने की। क्या हम अपनी इस मुहिम में सफल हो पाए ये ब्योरा इस वृत्तांत की अगली किश्त में।


अरे ये देखकर आपका मन ये नहीं कहने को हुआ कि सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं...
देखो देखो ये है मेरा जलवा...:)

पौधा इलायची का जिसके नीचे डंठल से निकलती है इलायची..


इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !

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