शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

किस्से हैदराबाद के भाग 1 : मई की गर्मी और वो हैदराबादी शादी !

पिछले साल की बात है। गर्मियाँ अपने पूरे शबाब पर थीं। मई का महिना और उसमें पड़ी एक हैदराबादी शादी। हफ्ते भर पहले से खबर आने लगीं कि हैदराबाद का तापमान उफान पर है। शादी में तौ ख़ैर शिरकत करनी ही थी पर हमने अपना कार्यक्रम दो दिन बढ़ा लिया था कि इतनी दूर जा रहे हैं तो थोड़ा घूम वूम लेंगे। पर बढ़ते पारे ने जाने के पहले ही उत्साह ठंडा सा कर दिया था। वापसी का टिकट अब इतने कम समय में परिवर्तित भी नहीं किया जा सकता था। सूर्य देव की कृपा की आशा में हम अपने सफ़र पर निकल पड़े।

वैसे भी राँची से हैदराबाद का सीधा संपर्क नहीं है। सो आधा रास्ता ट्रेन से (भुवनेश्वर तक का) और फिर आधा हवाई जहाज से तय किया गया। 21 मई की शाम को हम राँची से चले और अगली शाम हम हैदराबाद में थे। हैदराबाद का नया हवाई अड्डा मार्च 2008 में बना है। ये हवाई अड्डा शहर से 22 किमी दूर शमशाबाद इलाके में स्थित है और भव्यता में बैंगलूरू और दिल्ली हवाई अड्डों से कम नहीं है।


हैदराबाद हवाई अड्डे से निकलते निकलते रात के नौ बजे गए। शादी के घर में अतिथियों की भीड़ पहले से ही जमा थी। हम लोग ही सबसे अंत में आए थे। बारात की अगवानी के लिए अगले दिन किस तरह सब लोग खासकर महिलाएँ समय पर तैयार हो पाएँगे इसके लिए योजना बनाई जा रही थी। वैसे ये चिंता मुझे भी सता रही थी कि या यूँ कहूँ कि किसी भी उत्तर भारतीय को जरूर सताएगी जिसे इस  परिस्थिति का अनुभव ना हो। चलिए चिंता की वज़ह का खुलासा कर दूँ।

हमारे यहाँ की शादियों में बारात रात आठ बजे के पहले तो दूर कभी कभी आधी रात तक पहुँचती है, वहीं आंध्र में शादी की मुख्य रस्म सुबह में ही हो जाया करती हैं। वर पक्ष की तरफ से शुभ मुहूर्त जब सात बजे के आस पास का बताया गया तो हमारी तरफ़ के लोगों के पसीने छूट गए । बड़ी मुश्लिल से पंडित जी को 'सेट (set)' करके साढ़े आठ का नया मुहूर्त निर्धारित हुआ। अब आप तो जानते ही हैं कि उत्तर भारत में शादी के लिए सज सँवर के लोग रात आठ बजे ही तैयार हो पाते हैं पर यहाँ तो घड़ी की सुई बारह घंटे पहले ही खिसका दी गई थी। ऊपर से हैदराबाद में उस गर्मी में पानी की किल्लत अलग से। इसीलिए इस समस्या पर इतनी गंभीरता से विचार किया जा रहा था।

ख़ैर अगली सुबह की आपाधापी में दुल्हन समेत खास लोगों का जत्था आठ बजे ही समारोह स्थल पर पहुँच गया। फूलों से सजा गेट ....


....और विवाह के लिए सुसज्जित मंडप सबका स्वागत कर रहा था।


लोग माने या ना माने पर जबसे प्रेम के बाद व्यवस्थित विवाह का प्रचलन बढ़ा है तबसे देश के लोगों को एक दूसरे की संस्कृति और रीति रिवाज़ों को जानने समझने का मौका मिला है। पहली भिन्नता तब पता चली जब बारात अचानक से ही आ गई और वो भी बिना बैंड बाजे के साथ। अब बताइए हमारे यहाँ बैंड बाजे और बारात में चोली दामन का संबंध है। एक के बिना दूसरे का होना संभव नहीं। यहाँ तक कि अब तो मुंबई वालों ने इक फिल्म ही बना डाली है इस नाम से। पर यहाँ ना ढोल ना नगाड़ा। ना ही वर के दोस्तों को वधू पक्ष की कन्याओं के सामने ढोल की थाप पर अपने ठुमके दिखाने का कोई अवसर। पूरी शालीनता से दूल्हे राजा गाड़ी से आए और बढ़ चले मंडप की ओर।

पर ये ना सोच लीजिएगा की इस शादी के समारोह में संगीत नदारद था। संगीत था पर ढोल नगाड़े के साथ हुल्लड़ मचाने वाला फिल्म संगीत नहीं बल्कि विशुद्ध पारंपरिक संगीत जो इन शुभ अवसरों पर दक्षिण भारत में बजाया जाता है। जो काम हमारी तरफ की शादी में 'शहनाई' किया करती है वह यहाँ 'नादस्वरम' कर रहा था। दो वादक नादस्वरम बजा रहे थे और दो उनकी संगत में ढोलक जैसे दिखने वाले वाद्य यंत्र 'थाविल (Thavil)' को ले कर बैठे थे। दिखने में थाविल भले ही ढोलक जैसा हो पर बजाने के तरीके में बिल्कुल अलग है। थाविल वादक सामान्यतः अपनी दाहिने हाथ में अगूठियाँ पहने रहते हैं जबकि उनके बाएँ हाथ में एक छोटी पर मोटी छड़ी रहती है।


मजे की बात ये है कि शादी के विधि विधानों के पीछे लगातार ये संगीत नहीं बजता बल्कि कुछ निर्धारित रस्मों की अदाएगी के बाद बजाया जाता है। हम लोग तो इन नए रीति रिवाज़ों से अपने आपको परिचित करने में इतने मशगूल थे कि हमें पता ही नहीं चला कि हमारे पीछे की कुर्सियाँ अतिथियों से भर चली हैं। थोड़ी देर बाद चित्र खींचने के लिए मुड़ा तो देखा पीछे श्वेत वस्त्र धारियों की कपड़ों की सफेदी सुपररिन की चमकार को मात कर रही थी। जहाँ अधिकांश पुरुष अतिथि सफेद या हल्के रंग के वस्त्रों में आए थे वहीं महिलाएँ रंग बिरंगे परिधानों और आभूषणों से लैस थीं।

तेलगु शादी में एक रोचक रिवाज़ ये भी है कि जैसे ही शादी की रस्में खत्म होती हैं सारे अतिथिगण एक पंक्ति में कतार बाँध कर आशीर्वाद स्वरूप अन्न के दाने वर व वधू पर छिड़कते चलते हैं। ये भी एक दर्शनीय नज़ारा होता है।
दस बजे तक शादी की रस्में खत्म हो गयीं और लोग भोजन करने की ओर चल पड़े। सारे व्यंजनों में चावल चिकन  लोगों में बड़ा लोकप्रिय लगा। इस वक़्त भोजन करने की आदत तो नहीं पर हमने भी माहौल के अनुरूप अपने आप को ढाला। स्टेज पर पारंपरिक वादकों का स्थान तेलगु फिल्म संगीत ने ले लिया था। जो धुन बज रही थी वो तो अब सारे भारत में मशहूर है तो आप भी सुनिए ना..



चूंकि समय ज्यादा नहीं हुआ था इसलिए निर्णय लिया गया कि आज ही चारमीनार का रुख किया जाए और साथ ही वहाँ के मशहूर मोतियों के बाजार की सैर भी की जाए। चारमीनार यात्रा के विवरण के लिए इंतज़ार कीजिए इस श्रृंखला के अगले भाग का..
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बिना जाए हैदाराबादी शादी का आंनद उठा लिया। इधर दिल्ली में तो बिना शौर के....शुक्रिया।

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  2. Good pictures, and Indian weddings always make for a good subject!

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  3. हमेशा की तरह गज़ब का वर्णन...लगा जैसे हम भी आपके साथ ही शादी का मज़ा ले रहे हैं....आपकी लेखनी कमाल की है...
    नीरज

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  4. आप हैदराबाद आए और मिले बिना ही चले गए। कम से कम एक मेल करते तो भी मैं आपको खोज लेता।
    वैसे हैदराबाद में किस जगह रुके थे आप?
    अगली बार आएं तो एक मेल अवश्य करें। मुझे खुशी होगी।

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  5. मेल तो नहीं कर पाया था पर फेसबुक पर स्टेटस अपडेट पर अवश्य सूचना दी थी सागर भाई। दो परिवार साथ चल रहे थे। हमारा सारा समय शादी और प्रीतिभोज के कार्यक्रमों में शिरकत करने और घूमने फिरने में ही कट गया।

    हम लोग हैदराबाद की CRPF छावनी में रुके थे जो संभवतः Chandrayana Gutta में है।

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  6. वाह...इस ब्लॉग पर तो पहली बार आना हुआ... हैदराबादी शादी के किस्से को पढ़ कर लगा कि हम भी वहीं मौजूद थे...

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  7. Nice description of South India marriage. I use to visit Hydrabad very frequently for official purpose. Hydrabad Airport is better than Bangalore Airport. Have you enjoyed the Hydrabadi Biryani from Babarchi. Looking forward to see your next post.

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  8. बिना 'ये देश है वीर जवानों का' और 'जिमी-जिमी' के ही शादी हो गयी :)

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  9. nicely written...hindi mein bohot dino baad kuch padha...achha laga

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  10. शादी की फोटो तो हमेशा ही तड़क भड़क वाली होती हैं, और कोई भी शादी हो मज़ा बहुत आता है |

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  11. सुशील, मृदुला, निशा, महेश, नीरज जी पोस्ट पसंद करने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार

    महेश व राहुल जी : हैदराबादी बिरयानी इस दफ़े तो नहीं खा पाए। बावर्ची के बारे में बताने का शुक्रिया

    अभिषेक : हाँ सब कुछ बिना बैंड बाजे के।

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