सोमवार, 27 जून 2011

रामोजी मूवी मैजिक : जहाँ आप भी बन सकती हैं शोले की बसंती !

हैदराबाद यात्रा से जुड़ी इस आख़िरी पोस्ट में आपको ले चलूँगा कृपालु गुफ़ा, भूकंप क्षेत्र और रामोजी मूवी मैजिक की सैर पर। पर फिल्म सिटी पर लिखी गई ये पोस्ट अन्य पोस्टों से कुछ अलग है। रामोजी फिल्म सिटी के बाकी हिस्सों में मनोरंजन हुआ पर मूवी मेजिक देख कर मुझे इस बात का उत्तर मिला कि एक पर्यटक को यहाँ क्यूँ आना चाहिए ?

रामोजी फिल्म सिटी में यूँ तो बस से एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं। पर फिल्म सिटी वाले इस बात पर नज़र रखते हैं कि आप सही जगह उनके बताए रास्ते से जा रहे हैं या नहीं। बस आपको जहाँ छोड़ती है वहीं से वापस नहीं ले जाती। यानि अगर आप किसी जगह जाने की इच्छा ना रहकर ये सोंचे कि यहीं बैठकर थोड़ा सुस्ता लें तो ऐसा रामोजी फिल्म सिटी वाले होने नहीं देंगे। जहाँ बस के बजाए सिर्फ पैदल जाना है वहाँ भी किसी शो को देखने और देखकर निकलने के निर्दिष्ट रास्ते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आप घूमने की जगहों के आस पास बने व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के अंदर से होकर गुजरें और अगर गुजरेंगे तो दस बीस फीसदी ही सही कुछ लोग तो अपनी जेबें और हल्की करेंगे ही।
हवा महल से नीचे उतरते ही कुछ खूबसूरत शिल्प आपका इंतज़ार करते हैं।

थोड़ी दूर ढलान पर जापानी उद्यान है। वहाँ नृत्य का कार्यक्रम चल रहा था। पर गर्मी अब अपना असर दिखाने लगी थी। ढलती दोपहरी में पहले प्यास से व्याकुल गले को तर करने की इच्छा हो रही थी इसलिए हमने नृत्य देखने में कोई ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। उद्यान से आगे बढ़ने पर बस स्टाप दिखाई पड़ा और साथ ही शीतल पेय की दुकान भी। दो तीन बोतलें आनन फानन में खत्म कर हम बस में चढ़े। बस की यात्रा बस पाँच मिनट की रही। कृपालु की गुफाओं का रास्ता दिखाकर बस वाला चलता बना। आधा किमी पैदल चलने के बाद इस गुफा के दर्शन हुए। गुफ़ा तक जाने वाले रास्ते में ये दृश्य दिखाई देता है।

अंदर गुफा में चट्टानों को काटकर मुखाकृतियाँ बनाई गयी हैं। अंदर बच्चों को तब मजा आता है जब नाग बाबा अपने कमाल दिखलाते हैं।
गुफ़ा से निकल कर हम एक दूसरे बस पड़ाव तक पहुँचे। पास ही बने इस फव्वारे के साथ घोटकों की ये अदा मन को मोहित कर रही थी।

बस हमें वापस फंडूस्तान के पास ले गई जहाँ से हमने अपनी यात्रा शुरु की थी। भूकंप क्षेत्र (Earthquake Zone)में आखिरी शो चल रहा है। हम डरते डरते घुसते हैं। पर्दे पर एक थ्री डी फिल्म शुरु होती है। ऐसा लगता है कि हम जहाज में बैठे हैं और रामोजी फिल्म सिटी से उठाकर हमें इसकी सबसे ऊँची इमारत में ले जाया जा रहा है। ऊपर से फिल्म सिटी का नयनाभिराम दृश्य दिख ही रहा है कि अचानक हॉल में अँधेरा छा जाता है। तड़तड़ाहट की आवाज़ आती है और ऐसा लगता हे कि जिस इमारत में हमें ले जाया गया था वो भरभराकर गिर रही है। टूटती दीवार के दृश्य, तरह तरह की आवाजैं, अगल बगल से निकलते पानी के छींटे इस अहसास को और पुख्ता करते हैं। कुछ मिनटों  में जब ये तिलिस्म खत्म होता हे तो हम थोड़ी देर पहले की अपनी मनोदशा को सोचकर ठठाकर हँस पाते हैं।

अगला पड़ाव रामोजी मूवी मैजिक भी है जो रामोजी फिल्म सिटी का सबसे यादगार हिस्सा है। यहाँ आपको सबसे पहले फिल्म सिटी के इतिहास के बारे में बताया जाता है। दूसरे हिस्से में फिल्मों के दौरान घोड़ों की टाप, बिजली की गर्जना , डरावना संगीत जैसी सुनाई देने वाली तमाम आवाज़ों को जुगाड़ के माध्यम से चुटकियों में कैसे पैदा किया जाता है, ये दिखाया जाता है। अब इन जुगाड़ों का रहस्य को वहीं जाकर देखिएगा। 

मूवी मैजिक के अगले भाग में दर्शकों में से ही एक लड़के और एक लड़की को चुन  लिया जाता है। लड़की को बताया जाता है कि तुमको शोले की वसंती का रोल करना है। हमें लगा कि लड़के से अब ये धर्मेंद्र वाला रोल कराएँगे। पर पता चला कि उस दृश्य में हीरो का कोई काम ही नहीं है। फिर लड़के को क्यूँ लिया है?

सेट पर एक घोड़ा गाड़ी है पर उसमें घोड़ा नहीं है। लड़की यानि वसंती को घोड़ागाड़ी में बिठाकर एक चाबुक हाथ में पकड़ा दिया जाता है। लड़के का काम है पीछे खड़े होकर घोड़ागाड़ी को जोर जोर से हिलाना। लड़के पर कैमरे का फोकस नहीं है। फोकस है वसंती यानि लडकी पर जिसे सिर्फ थोड़ी थोड़ी देर पर चाबुक लहराते हुए कहना है भाग धन्नो भाग और चिंतित मुद्रा में पीछे की ओर देखना है। यहाँ पीछे ना डाकू हैं ना उनके घोड़े। इसी वज़ह से लड़की घबराने के बजाए हँसती चली जा रही है। उधर लड़के के गाड़ी हिलाते हिलाते पसीने छूट रहे हैं। दृश्य रिकार्ड कर लिया गया है और हम दर्शकों को तीसरे कक्ष की ओर जाने का संकेत दे दिया गया है।

असली मैजिक अब शुरु हो रहा है। यहाँ पहले कक्ष में पहले से रिकार्ड की गई ध्वनियों और दृश्यों को दूसरे कक्ष में रिकार्ड की गई फिल्म पर सुपरइम्पोज कर दिया गया है। आकाश में बिजली चमक रही है। पीछे से बादलों के गरज़ने की जुगाड़ वाली ध्वनि मन को दहला रही है। टक टकाक टक.. टक टकाक टक.. तीन डाकू घोड़ों के साथ धन्नों का पीछा करते दिख रहे हैं पर इस शॉट में वसंती कहीं नहीं  नज़र आ रही है। कुछ क्षणों में दृश्य बदलता है। ये क्या! अब वसंती के रूप में दर्शक दीर्घा में बगल में बैठी लड़की नज़र आ रही है। हाँ यहाँ धन्नो नदारद है पर माहौल शोले जैसा ही बनता दिख रहा है। दृश्य खत्म होता है । तालियों की गड़गड़ाहट स्वतःस्फूर्त है।

दर्शकों में से एक हल्के लहज़े में कहता है कि लड़के के साथ बेहद नाइंसाफ़ी हुई है। सारी मेहनत उस की पर पूरे शॉट में वो कहीं नहीं दिखता। उसकी बात सुनकर दर्शकगण ठहाके लगा रहे हैं। प्रस्तुतकर्ता हँसता है फिर गंभीर मुद्रा में कहता है ये शॉट आप लोगों को कुछ सोच समझकर ही दिखाया गया है। दरअसल हम ये बताना चाहते हैं कि फिल्म जगत की यही त्रासदी है मेहनत सब करते हैं पर उन तमाम कलाकारों कैमरामैन, साउंड इंजीनियर, मेकअप मैन, स्टंटमैन, वादकों ,फिल्म एडीटर की मेहनत छुपी रह जाती है। बात सीधे दिल पर लगती है। लगता है कि हाँ इतने पैसे खर्च कर के भी यहाँ आना सफल हुआ।

फंडूस्तान के पास कई भोजनालय हैं। वहीं जलपान कर हम अब वापसी का मन बना चुके हैं। हमारे साथ आए कुछ लोग अभी भी ओपन थिएटर की ओर जा रहे हैं जहाँ साढ़े सात तक संगीत और नृत्य का कार्यक्रम चलना है। निकलने के पहले अंतिम तस्वीर खींचते वक़्त मेरी तस्वीर या कहें मेरे कैमरे की तस्वीर खींच ली जाती है।
हैदराबाद की मेरी इस यात्रा की ये आखिरी कड़ी थी। आपको मेरे व मेरे कैमरे का साथ बिताया ये सफ़र कैसा लगा बताइएगा?
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपके यात्रा वृतांत और चित्रों को देख फैसला लिया गया है के अगली हैदराबाद यात्रा में इसे देखा जायेगा...

    नीरज

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  2. What a great narration of an exciting trip and the pics are so good.

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  3. It's a huge place. No wonder it takes more than a day to see it. Last time I missed it as I didn't have that much time.
    Photos are beautiful.

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  4. ये श्रृंखला आप सब को पसंद आई जान कर प्रसन्नता हुई ।

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  5. बरसों से तमन्ना थी जाने की वहां, आपके लेख पढ़कर इच्छा और बलवती हो गयी है।

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