मंगलवार, 26 जून 2012

CONCLAY व जापान .... जब दो अच्छे अवसर मिले एक साथ !

हर साल गर्मियों में हम शायद ही कहीं निकलते हैं। अपनी राँची मुझे गर्मियों के लिहाज़ से सबसे अच्छी लगती रही है। पारा चालिस के ऊपर चढ़ा नहीं कि काली घटाएँ उमड़ घुमड़ कर जमीन और उस पर बने मकानों की गर्मी सोख लेती है। पर इस साल..इस साल तो मामला ही कुछ उलट हो गया  राँची में गर्मी की शुरुआत वैसी ही रही यानि थोड़ी गर्मी और फिर थोड़ी बारिश। पर जनाब दस मई के बाद से मौसम ने ऐसा मिज़ाज बदला कि हम  चालिस दिनों के लिए पानी की एक बूँद को तरस गए। बादल रोज़ तफ़रीह के लिए आते और OK TATA Bye Bye कह कर चले जाते। 

गर्मी की एक ऐसी ही निढ़ाल करने वाली दुपहरी में एक मेल आया कि क्या आप एक ब्लॉगर कैंप में आना चाहेंगे। बड़ी खुशी हुई कि चलो इस गर्मी से निजात मिलेगी। खुशी खुशी हामी भरी तो पता चला कि वो कैंप जून के आखिर में सिक्किम में है। मन ही मन सोचा कि गर्मियाँ तो अबकी भगवन राँची में ही कटवाएँगे। कैंप क्लब महिंद्रा वालों ने आयोजित किया था पूर्वी सिक्किम में पेलिंग के रास्ते में आने वाले अपने रिसार्ट में।


महिन्द्रा ने भारत में यात्रा से जुड़े कुछ खास हस्तियों को अपने खर्चे पर यहाँ आमंत्रित किया था। मुझे जब बाकी लोगों के नाम पता चले तो उनमें से एक तो नेट मित्र निकलीं। वहाँ भिन्न भिन्न परिवेश से जुड़े लोगों को यात्रा संबंधी अनुभवों को साझा करने के लिए क्लब महिंद्रा ने ये मंच प्रदान किया था। मैंने भी अपने लिए हिंदी में यात्रा ब्लागिंग विषय चुन रखा था। पर होनी को कुछ और मंजूर था। 

आफिस में छुट्टियाँ भी मिल गई थीं कि अचानक जून के अंतिम सप्ताह में जापान जाने के लिए सरकारी आदेश आ गया। तारीखें ऐसी कि दो में से एक ही जगह जाना संभव था। सो भरे मन से क्लब महिंद्रा के प्रस्ताव को ठुकराना पड़ा। पर उन्होंने मुझे इस सम्मान के क़ाबिल समझा इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। साथ ही इस बात का अफ़सोस रहेगा कि मैं इस Un conference में शामिल होने वाली विभूतियों से मिलने का अवसर गँवा बैठा।  अब तो शायद मृदुला से ही पता चले कि वहाँ क्या कुछ हुआ। Conclay में शामिल होने वाले सारे साथियों को मेरी तरफ से  यात्रा की अग्रिम शुभकामनाएँ। आशा है ये अनौपचारिक संवाद अपने मकसद में पूर्णतः सफल होगा।




आज मैं राँची की झमाझम बारिश के बीच मैं सिक्किम जाने वाले रास्ते पर सफ़र कर रहा होता। पर इस बार जब राँची में बारिश हो रही है तो दिल्ली में एक हफ्ते से डेरा डाले बैठा हूँ। आज ही जापान के लिए रवाना होना है। पिछले कुछ दिन दिल्ली में बीतने के बाद भी यहाँ अपने मित्रों से बात करने और मिलने का वक़्त नहीं निकाल पाया। कुछ तो  ये तपता झुलसाता मौसम और कुछ आफिस की भागादौड़ी इसकी वज़ह रही। नेपाल को छोड़ दें तो ये मेरी पहली विदेश यात्रा है! एक शाकाहारी जीव जापान में कैसे रह पाएगा ये भी अपने आप में एक समस्या है। ख़ैर नई जगह जाने का रोमांच भी है। देखें कैसी रहती है यात्रा ! अपने अनुभव तो इस ब्लॉग पर शेयर करूँगा ही। मुसाफिर हूँ यारों हिंदी का यात्रा ब्लॉग

मंगलवार, 5 जून 2012

रंगीलो राजस्थान : आइए करें माउंट आबू के बाजारों की सैर !

माउंट आबू का ये सफ़र अधूरा रहेगा अगर मैं आपको यहाँ के बाजारों की सैर ना कराऊँ। वैसे तो शिमला. मसूरी और दार्जीलिंग जैसे हिल स्टेशनों की तुलना में माउंट आबू के बाजारो में वो चमक दमक नहीं पर यहाँ की दुकानों में महिलाओं की भीड़ को देखकर आप ये जरूर अंदाजा लगा सकते हैं कि यहाँ उनके काम का सामान बहुतायत में  मिलता होगा। 

आबू का मुख्य बाजार यहाँ नक्की झील को जाने वाली सड़क पर लगता है। इसलिए यहाँ रात की चहल पहल का अंदाजा लगाने के लिए और अपनी भार्या का मूड सफ़र के अगले पड़ाव तक दुरुस्त रखने के लिए रोज़ शाम को एक चक्कर मार लिया करते थे। 

दरअसल मुख्य राजस्थान से ज्यादा गुजरात से पास होने का असर यहाँ की दुकानों पर साफ़ दिखाई देता है। यही वज़ह है कि यहाँ कि दुकानों में गुजरात की कढ़ाई और शीशे का काम राजस्थानी कला से कम नहीं दिखाई देता। तो चलिए ले चलते हैं आपको यहाँ के बाजारों में शापिंग कराने..

वैसे खरीददारी की शुरुआत अगर मुन्ना भाई की इस दुकान से की जाए तो कैसा रहे?
माउंट आबू के मुख्य माल पर पर्यटकों की भारी भीड़ रहती  है। लाज़िमी है कि इसमें सबसे ज्यादा हिस्सा गुजराती पर्यटकों का है। भीड़ के केंद्र में है चूड़ियों की दुकानें। ढेर सारी फ्लोरोसेंट लाइटों की जगमाहट के बीच जब किन्हीं हाथों में ये चूड़ियाँ उतरती हैं तो दुकान की चकमकाहट और भी बढ़ जाती है। दुकानदार एक बार जब अपना माल दिखाना शुरु कर दे तो रंग और चमक के इस दोहरे आकर्षण का जादू ऐसा कि शायद ही कोई ग्राहक खाली हाथ लौटे।