बुधवार, 19 सितंबर 2012

जादू मानसून का : जब छत्तीसगढ़ ने ओढ़ी धानी चुनरिया ! Chhatisgath : Monsoon Magic !

जापान की हरियाली दिखाने के बाद वैसे तो मेरा इरादा आपको वहाँ के कंक्रीट जंगल दिखाने का था पर पिछले हफ्ते भिलाई के दौरे में कुछ ऐसे कमाल के दृश्य देखने को मिले कि वो कहते हैं ना कि "जी हरिया गया"। जिन दृश्यों को मैंने चलती ट्रेन से अपने मोबाइल कैमरे में क़ैद किया वो रेल से सफ़र के कुछ यादगार लमहों में से रहेंगे।

वैसे सामान्य व स्लीपर क्लॉस में यात्रा करते करते मेरा पूरा बचपन और छात्र जीवन बीता पर कार्यालय और पारिवारिक यात्राओं की वज़ह से विगत कई वर्षों से इन दर्जों में यात्रा ना के बराबर हो गई थी। पर भिलाई से राँची आते वक़्त जब किसी भी वातानुकूल दर्जे में आरक्षण नहीं मिला तो मैंने तत्काल की सुविधा को त्यागते हुए स्लीपर में आरक्षण करवा लिया। वैसे भी बचपन से खिड़की के बगल में बैठ कर चेहरे से टकराती तेज़ हवा के बीच खेत खलिहानों, नदी नालों, गाँवों कस्बों और छोटे बड़े स्टेशनों को गुजरता देखना मेरा प्रिय शगल रहता था। आज इतने दशकों बाद भी अपने इस खिड़की प्रेम से खुद को मुक्त नहीं कर पाया। भरी दोपहरी में जब हमारी ट्रेन दुर्ग स्टेशन पर पहुँची तो हल्की हल्की बूँदा बाँदी ज़ारी थी। साइड अपर बर्थ होने से खिड़की पर तब तक मेरी दावेदारी बनती थी जब तक रात ना हो जाए।



भिलाई से रायपुर होती हुई जैसे ही ट्रेन बिलासपुर की ओर बढ़ी बारिश में भीगे छत्तीसगढ़ के हरे भरे नज़ारों को देखकर सच कहूँ तो मन तृप्त हो गया। मानसून के समय चित्र लेने में सबसे ज्यादा आनंद तब आता है जब हरे भरे धान के खेतों के ऊपर काले मेघों का साया ऍसा हो कि उसके बीच से सूरज की रोशनी छन छन कर हरी भरी वनस्पति पर पड़ रही हो। यक़ीन मानिए जब ये तीनों बातें साथ होती हैं तो मानसूनी चित्र , चित्र नहीं रह जाते बल्कि मानसूनी मैजिक (Monsoon Magic) हो जाते हैं। तो चलिए जनाब आपको ले चलते हैं मानसून के इस जादुई तिलिस्मी संसार में । ज़रा देखूँ तो आप इसके जादू से सम्मोहित होने से कैसे बच पाते हैं ?


गुरुवार, 6 सितंबर 2012

मेरी जापान यात्रा : माउंट फूजी व हरे भरे खेत खलिहान !

चीन , अमेरिका, ब्राजील और भारत की तुलना में जापान एक छोटा सा देश है। एक ऐसा देश जहाँ की शहरी आबादी भारत के महानगरों को भी टक्कर दे सके। पर जापान के टोक्यो (Tokyo) और ओसाका (Osaka) जैसे महानगरों में दूर दूर तक दिखते कंक्रीट के जंगलों के परे भी एक दुनिया है जो दिखती तब है जब आप  इन शहरों से इतर जापान के अंदरुनी भागों का सफ़र करते है। अब आप ही बताइए जिस देश का अस्सी फीसदी इलाका छोटे बड़े पहाड़ों से घिरा हो वो भला प्रकृति की अनमोल छटा से कैसे विलग हो सकता है? हाँ ये जरूर है कि चार हजार द्वीपों के इस देश में विकास और नगरीकरण ने यहाँ की नैसर्गिक सुंदरता को चोट जरूर पहुँचाई है। पर पहाड़ों के रहने की वज़ह से अभी भी जापान के बहुत सारे इलाके इस प्रभाव से मुक्त रह पाए हैं।

पहाड़ों से सटी इन हरी भरी वादियों के बगल से जब भी हम गुजरे एक दृश्य हमें अपने मुल्क की याद बार बार दिलाता रहा । ये दृश्य था धान के लहलहाते खेतों का। दरअसल जून का महिना जापान में बारिश का होता है। ये बारिश मध्य जुलाई तक चलती है और इसी समय में धान की फसल भी बोई जाती है। 

दक्षिण और पूर्वी भारत की तरह ही जापान में चावल भोजन का अभिन्न अंग माना जाता है। चावल का शाब्दिक जापानी अनुवाद कोमे है। वैसे जापानी इसे ओ कोमे (o kome) और पकाने के बाद गो हान (go han) भी कहते हैं। वेसे 'ओ' और 'गो' उपसर्ग सम्मानसूचक हैं जिससे ये पता चलता है कि जापानी संस्कृति में शुरु से चावल को कितना महत्त्व दिया जाता रहा है। 

हवाई जहाज से जापान की इस हरियाली को देखने का अपना ही आनंद है। तोक्यो से जापान के दक्षिणी प्रदेश फुकोका की ओर जब हमारे विमान ने उड़ान भरी तो कंक्रीट के जंगलों की जगह जो दृश्य सबसे पहले दिखा था वो था हरे भरे जंगलों और धान के इन खूबसूरत खेतों का। तो चलिए ना आखिर इस हरियाली का आनंद उठाने से आप क्यूँ वंचित रहेंगे? 


बादल के पुलिंदे , बलखाती नदी , नदी के किनारे छोटे छोटे मकान और उनके पीछे  हरे भरे खेतों का काफ़िला... दिल नहीं करता आपका पंछी की तरह इन बादलों की संगत में मँडराने का...