शनिवार, 25 मई 2013

आइए चलें स्पेस वर्ल्ड की मनोरंजक दुनिया में.. Welcome to Space World, Kitakyushu !

जैसा कि मैंने आपको बताया था कि मोज़ीको (Mojiko) के बाद हमारा अगला सप्ताहांत बीता अंतरिक्ष संसार यानि स्पेस वर्ल्ड (Space World) में। कीटाक्यूशू शहर के याहाता वार्ड  से मोज़ीको जाने वाले रेल मार्ग में स्पेस वर्ल्ड पहला स्टेशन है। स्टेशन के प्लेटफार्म से ही आपको इस थीम पार्क के दर्शन हो जाएँगे। आज जिस जगह ये थीम पार्क बनाया गया है वहाँ कभी विश्व की अग्रणी स्टील कंपनी निप्पन स्टील (Nippon Steel) का कारखाना हुआ करता था। जब स्टील की खपत कम होने लगी तो कंपनी ने यहाँ अपनी ज़मीन पर ये अंतरिक्ष संसार बसा दिया।

जुलाई का पहला हफ्ता था। भारत की तरह जापान के लिए भी ये मौसम बारिश का होता है। सुबह से आकाश में घने बादल छाए थे।पर हफ्ते में पाँच दिन की थका देनी वाली ट्रेनिंग के बाद छुट्टी का कोई दिन हम व्यर्थ नहीं गँवाना चाहते थे। तो दर्जन भर भारतीयों की टोली चल पड़ी इस थीम पार्क का आनंद उठाने के लिए। 


इस अंतरिक्ष संसार में प्रवेश करने का टिकट था 4200 येन का। पर शाम तक हमें लगा कि हमने जितना खर्च किया उससे ज्यादा पैसे वसूल हो गए।



स्पेस वर्ल्ड की पहचान है  डिस्कवरी अंतरिक्ष यान का ये विशालकाय मॉडल। वैसे अपने नाम के अनुरूप ये थीम पार्क इच्छुक विद्यार्थियों को अंतरिक्ष में रहने की ट्रेनिंग भी देता है जिसे स्पेस कैंप (Space Camp) का नाम दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों को नासा (NASA) के अंतरिक्षयात्रियों जैसे ही उपकरण दिए जाते हैं ।


शनिवार, 18 मई 2013

इन गर्मियों में कहाँ जाएँ ? (Where to go this Summer ?)

मई में गर्मी और उमस जब हद से ज्यादा होने लगती है तो मन पहाड़ों की ओर जाने का करने लगता है। पर आज की तारीख़ में आप बिना पहले से योजना बनाकर कहीं निकल भी नहीं सकते, खासकर वो लोग जिनसे पहाड़ कोसों दूर हैं। अगर स्टेट बैंक के होम लोन के विज्ञापन की तरह (सच पूछिए तो मैं तो इस  विज्ञापन को देख कर बुरी तरह पक गया हूँ) आपके बच्चों ने भी गर्मी की छुट्टियों में घुमाने की जिद बाँध ली है तब तो आपको कुछ ना कुछ तो तैयारी करनी ही होगी। सबसे पहला सवाल आता है जगह के चुनाव का? अपने अनुभवों के आधार पर अगर मुझे भारत के  इन प्रमुख हिल स्टेशनो का मूल्यांकन करना पड़े तो मेरी राय कुछ यूँ होगी..

नैनीताल **



उत्तराखंड बनने के बाद नैनीताल का भी रूप बदला है पर यहाँ हालात मसूरी से बेहतर हैं। यहाँ की मुख्य झील नैनी झील की भीड़ भाड़ को छोड़ दें तो सातताल, नौकुचिया ताल और कुछ हद तक भीमताल की प्राकृतिक सुंदरता मन को बेहद सुकून देती है।

दार्जीलिंग   **

खूबसूरत चाय बागान, मदमस्त चाल से चलती टॉय ट्रेन , टाइगर हिल के सूर्योदय और कंचनजंघा दर्शन की वज़ह से ये कभी पूर्वी भारत का सबसे लोकप्रिय पर्वतीय स्थल हुआ करता था। पर आज स्थिति बिल्कुल उलट है। पटरियों के नीचे भू स्खलन की वज़ह से ट्रेन का रास्ता पहले से छोटा हो गया है। बदलते प्रशासन और राजनीतिक अस्थिरता का असर शहर के रखरखाव पर पड़ा है। आज दार्जीलिंग से लौटने वाले हर पर्यटक वहाँ की गंदगी की शिकायत करता है।

गंगतोक  ****



एक बार सिलीगुड़ी से पश्चिम बंगाल की सीमा पार कीजिए। फर्क साफ नज़र आएगा। गंगतोक एक साफ सुथरा और अनुशासन प्रिय शहर है। सुबह उठते ही कंचनजंघा की चोटियाँ आपका स्वागत करती दिखेंगी। बर्फ का आनंद उठाना हो तो नाथू ला की ओर निकल लीजिए। यही समय यहाँ के फूलों रोडोडेन्ड्रोन्स (Rhodendrons) के खिलने का है। बौद्ध मठों के साथ रोप वे का आकर्षण तो अलग है ही।

मंगलवार, 14 मई 2013

राँची का पहला IPL मैच : आइए ले चलें आपको JSCA क्रिकेट स्टेडियम के अंदर !

मुसाफ़िर हूँ यारों पर यूँ तो आप मेरे साथ किसी नई जगह पर हमेशा जाते ही रहते हैं। पर आज का हमारा सफ़र थोड़ा अलग है। चलिए आज आपको ले चलता हूँ राँची के जे. एस. सी. ए. इंटरनेशनल स्टेडियम ( JSCA International Stadium) में जो पिछले साल ही बन कर तैयार हुआ है। वैसे  क्रिकेट खेलना और कमेंट्री सुनना तो बचपन से ही मेरा प्रिय शगल रहा है। बात 1979 की है। भारत आस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट सीरीज़ चल रही थी। मैं उस वक़्त दशहरे की छुट्टियों में नानी के यहाँ कानपुर गया हुआ था। क्रिकेट के प्रति मेरे उत्साह को देखते हुए मुझे कानपुर के ग्रीन पार्क में टेस्ट मैच के तीसरे दिन का खेल देखने भेजा गया था।  घावरी की गेंदबाजी, रिक डार्लिंग का किरमानी द्वारा लिया असंभव सा कैच, दर्शकों द्वारा जब तब शीशे चमका कर विदेशी खिलाड़ियों को परेशान करना तीन दशकों के बाद भी स्मृतियों से बाहर नहीं गया है। इसीलिए जब पिछली बार राँची में हुए एक दिवसीय मैच को ना दिखा पाने की वज़ह से बेटे के चेहरे पर मायूसी दिखी तो अपना बचपन याद आ गया। यही वज़ह थी कि राँची में पहली बार जब IPL का मैच हुआ तो मई की गर्मी की परवाह ना करते हुए भी मैंने दो टिकट खरीद लिए।


मैच से एक दिन पहले तक राँची बुरी तरह तप रही थी। ग्यारह को तापमान 41-42 डिग्री के बीच डोल रहा था और बारह के लिए भी इसी तरह का पूर्वानुमान था। मैच वाले दिन मौसम ने अचानक करवट ली। धूप तो वैसी ही रही पर बीच बीच में हल्के बादल उसकी तपिश को कम करते रहे। तीन बजे तक मौसम बेहद सुहावना हो गया। यहाँ तक कि धूप भी नदारद ही हो गई। 

टेस्ट क्रिकेट के माहौल के बाद सीधे IPL  का मैच देखना एक बिल्कुल अलग तरह का अनुभव रहा। अब तक सुनता आया था कि IPL एक मनोरंजक सर्कस है।स्टेडियम में घुसते समझ भी आ गया कि ऐसा क्यूँ है? हाई डेसिबल पर बजता संगीत, रंग बिरंगे परिधानों में आए दर्शक, विज्ञापनों के साथ चमकती निओन लाइट्स, हर ओवर के बाद थिरकती चीयर लीडर्स और उनके बीच आतिशी क्रिकेट का रोमांच आपको मस्ती के मूड में ले तो आते ही हैं।

तो आइए आपको ले चलें इस खूबसूरत स्टेडियम के अंदर। इसका मुख्य द्वार नार्थ पैवेलियन के नाम से जाना जाता है। हमारी सीटें इसकी दायीं तरफ़ थीं।




रविवार, 5 मई 2013

मोज़ीको : जहाँ खाया हमने जापान में नॉन !(Eating Naan in Japan !)

जापान यात्रा से जुड़ी पिछली पोस्ट में मैंने जापानी लड़कियों के समूह की खिलखिलाती तसवीर दिखाकर ये पूछा था कि आख़िर ये हँस क्यूँ रही हैं? तो आइए आज जानते हैं इस राज को। दरअसल हमारे गाँव कस्बों में जिस तरह मदारी बंदर का नाच दिखाकर भीड़ जुटाया करते थे, वही काम जापान में सड़कों पर जादू दिखाने वाले जादूगर करते हैं। और हैरत की बात तो ये है कि इस विशु्द्ध मनोरंजन के लिए ये 'सड़किया' जादूगर कोई पैसे नहीं लेते।  


मोज़ीको रेट्रो टॉवर से हमारा समूह उतरा तो था भारतीय रेस्ट्राँ की तलाश में पर अचानक ही सबकी दिलचस्पी जादू के इस खेल में हो गई। इससे पहले कि जादूगर अपने स्टील ब्रीफकेस से जादू का नया खेल शुरु करता आसमान से बारिश की बूँदों का खेल शुरु हो गया।

जहाँ ये जादू का खेल चल रहा था उसके ठीक पीछे हल्के नीले रंग का एक पुल है जिसे यहाँ ब्लू मोज़ी (Blue Moji) के नाम से जाना जाता है। किसी मोटरबोट के आने पर ये पुल ऊपर की ओर उठ जाता है। बारिश धीरे धीरे प्रचंड रूप ले रही थी। गहरी काली घटाएँ और तड़तड़ाती बारिश की बूँदें ..आख़िरकार जापानी मौसमविदों की भविष्यवाणी सच ही साबित हुई थी। अब नौ लोग और तीन छतरियाँ लेकर हम भाग ही रहे थे कि अचानक मोज़ी का ये पुल ऊपर उठा। पार्श्व की कालिमा में इसका ये हल्का नीला रूप बेहद सुंदर लग रहा था..   बादलों के बीच मोजी के उठते हुए पुल की छवि शायद हमेशा हमारे स्मृतिपटल पर रहे।