सोमवार, 29 जुलाई 2013

जापान और शाकाहार : कैसे फँसे शाकाहारी प्राणी जापान के चार सितारा होटल में?(Japan and Vegetarianism)

जापान और शाकाहार से जुड़ी पिछली दो कड़ियों में आपने सैर की जापान के सब्जी बाजार की और मेरे साथ स्वाद चखा जापानी शाकाहारी भोजन का। अपनी जापान यात्रा में खान पान से जुड़ी यादों के सिलसिले को और आगे बढ़ाते हुए आज आपको लिए चलते हैं फुकुओका प्रीफेक्चर (Fukuoka Prefecture) के मुख्यालय हकाता के चार सितारा होटल न्यू ओटानी (Hotel New Otani Hakata) में। आप भी सोच रहे होंगे कि एक ओर तो मैं भारतीय रुपये के हिसाब से जापानी मँहगाई का रोना रो रहा था तो फिर ये चार सितारा होटल की सैर कैसे संभव हुई ? 

इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। हमारे JICA ट्रेनिंग सेंटर में हर सप्ताहांत कुछ ना कुछ गतिविधियों का आयोजन होता था और इसकी सूचना सप्ताह के शुरु में ही दे दी जाती थी। सूचना पट्ट पर एक दिन सूचना आई कि अगले रविवार को वहाँ की एक संस्था प्रशिक्षणार्थियों को पास के महानगर फुकुओका में जूडो प्रतियोगिता दिखलाने ले जाएगी। जूडो, जापान में बेहद लोकप्रिय खेल है पर हमारी दिलचस्पी जूडो देखने से ज्यादा इसी बहाने फ्यूकोका शहर देखने की थी। हमने समूह ने सोचा कि कुछ देर जूडो देखने के बाद हम अपने से शहर देखने निकल पड़ेंगे। 

इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों और हम जैसे विदेशियों के बीच संपर्क और विचारों का आदान प्रदान बढ़ाना था। सुबह नौ बजे  हमें फ्यूकोका ले जाने के लिए बस तैयार खड़ी थी। बस में सात भारतीयों के आलावा 8-9 जापानी भी थे जिनमें ज्यादातर की उम्र पचास से ज्यादा की थी। रास्ते में छोटा मोटा परिचय हुआ। छोटा इसलिए कि जो हाल हमारा जापानी में था वो उनका अंग्रेजी में। अलबत्ता उनके समूह में दो लोग दोनों भाषाओं में प्रवीण थे। अधिकतर बातें उन्हीं के माध्यम से हो रही थीं।

कार्यक्रम के मुताबिक हमने पहले जूडो की प्रतियोगिता देखी वो भी बतौर मुख्य अतिथि और प्रेस संवाददाताओं के बीच पर वो कथा फिर कभी। हमारे कार्यक्रम में असली Twist in the tale तब आया जब हमने दो घंटे जूडो देखने के बाद अपने से आस पास की जगहों को घूमने की इच्छा ज़ाहिर की। जवाब में हमें बताया गया कि जूडो के कार्यक्रम के बाद हमें खिलाने के लिए वहाँ के एक चार सितारा होटल में ले जाया जाएगा। जुलाई का महिना था और जूडो स्टेडियम के बाहर काफी गर्मी थी। फुकुओका का बंदरगाह पास ही था पर उस गर्मी में वहाँ जाएँ कि ना जाएँ इस उधेड़बुन में हम थे ही कि ये प्रस्ताव हमारे सामने पेश कर दिया गया था। अब बंदरगाह की उष्णता के सामने चार सितारा होटल की शीतलता को भला कैसे ठुकराया जा सकता था सो हम सबने होटल जाने के लिए हामी भर दी।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

जापान और शाकाहार : आइए इक नज़र डालें जापानी शाकाहारी थाली पर (Japan and Vegetarianism)

पिछली पोस्ट में मैंने आपको बताया था कि अगर आप शाकाहारी हैं तो जापानी शहरों में निरामिष भोजन ढूँढने की अपेक्षा अपना भोजन ख़ुद बनाना सबसे बेहतर उपाय है। जापान में एक हफ्ते बिताने के बाद हम भारतीयों का समूह बड़ा चिंतित था। शाकाहारी तो छोड़िए हमारे समूह के सामिष यानि नॉन वेज खाने वाले अंडों से आगे बढ़ नहीं पा रहे थे। एक तो बीफ और पोर्क का डर और दूसरे जापानी सामिष व्यंजनो् के अलग स्वाद ने उनकी परेशानी बढ़ा दी थी। शुरु के दो हफ्तों तक तो हमें अपने तकनीकी प्रशिक्षण केंद्र यानि JICA Kitakyushu में रहना था पर उसके बाद तोक्यो , क्योटो और हिरोशिमा की यात्रा पर निकलना था। हमारी जापानी भाषा की शिक्षिका हमारे इस दुख दर्द से भली भाँति वाकिफ़ थीं। जब तक हम अपने ट्रेनिंग हॉस्टल में थे तब तक चावल,मोटी रोटी, फिंगर चिप्स एक भारतीय वेज करी (जो स्वाद में भारतीय छोड़ सब कुछ लगती थी), दूध,  जूस वैगेरह से हमारा गुजारा मजे में चल रहा था । 


पर अपने शहर से बाहर निकलने पर हमें ये खाद्य सुरक्षा नहीं मिलने वाली थी। सो मैडम ने हम सभी के लिए एक 'नेम प्लेट' बनाया था जिस पर लिखा था मैं सी फूड, माँस, बीफ,पोर्क और अंडा नहीं खाता। हम लोगों ने टोक्यो की ओर कूच करते वक़्त बड़े एहतियात से वो काग़ज़ अपने पास रख लिया था।

वैसे आपको बता दूँ कि अगर आप जापान जा रहे हैं तो जापानी भाषा के इन जुमलों को याद रखना बेहद जरूरी है। हमें तो वहाँ रहते रहते याद हो गए थे। जापान में माँस को 'नीकू' कहते है। Chicken, Pork और Beef  जापानी में इसी नीकू से निकल कर 'तोरीनीकू', 'बूतानीकू' और 'ग्यूनीकू' कहलाते हैं। वैसे अंग्रेजी प्रभाव के कारण चिकेन, पार्क और बीफ और शाकाहार के लिए लोग चिकिन, पोकू , बीफू, बेजीटेरियन जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगे हैं। अगर आपको कहना है कि "मैं माँस नहीं खाता" तो आपको जापानी में कहना पड़ेगा.... 


नीकू वा दामे देस:)

भाषा के इस लोचे के बावज़ूद पश्चिमी देशों की तरह ही जापान के भोजनालयों के सामने भोजन की रिप्लिका को थाली में परोस कर दिखाया जाता है। दूर से देखने पर आपको ये सचमुच का भोजन ही दिखाई पड़ेगा। यानि कुछ बोल ना भी सकें तो देखें परखें और खाएँ। जापानी शहरों में कई गैर भारतीय रेस्ट्राँ में हमने नॉन की उपलब्धता को इस तरह के 'डिस्पले' से ही पकड़ा।



फिर भी शुद्ध शाकाहारी भोजन की कल्पना करना जापान में ख़्वाब देखने जैसा है। दिक्कत ये है कि जापानी किसी भी भोजन में मीट के टुकड़े यूँ डालते हैं जैसे हमारे यहाँ लोग सब्जी बनाने के बाद धनिया डालते हैं।मीट से बच भी जाएँ तो समुद्री भोजन से बचना बेहद मुश्किल है। जापान में सबसे ज्यादा प्रचलित सूप 'मीशो सूप' (Misho Soup)  में भी सूखी मछलियों का प्रयोग होता है।

शनिवार, 13 जुलाई 2013

जापान और शाकाहार : आइए चलें जापान के सब्जी बाजार में ! (Japan and Vegetarianism)

जब भी परिचितों और मित्रों से जापान यात्रा के बारे में बात होती है तो एक प्रश्न ये जरूर होता है कि  एक शाकाहारी अपनी भोजन की प्रवृतियाँ ना बदलते हुए भी क्या वहाँ अपने उदर का ख़्याल रख सकता है ? अगर आप जापान की भौगोलिक संरचना को देखेंगे तो ये अनुमान लगाने में आपको कठिनाई नहीं होगी कि लगभग बारह करोड़ की आबादी वाले इस देश में जहाँ औद्योगिक विकास की वज़ह से तीव्र शहरीकरण हुआ है, खेती योग्य भूमि  पर्याप्त नहीं है। 

पर जापान के अधिकांश कस्बों और शहरों से भगवन की बनाई एक नियामत पास है और वो है समुद्र। यही कारण है कि जापान के पकवानों में समुद्री भोजन यानि Sea Food का बहुत बड़ा हिस्सा है और सब्जियाँ उसमें उसी तरह इस्तेमाल की जाती हैं जैसे हमारे यहाँ सब्जियों में 'टमाटर'।  भारतीय अर्थों में जो शाकाहारी भोजन होता है वो जापान में दुर्लभ है पर अगर आप ख़ुद शाकाहारी भोजन बनाना चाहें तो जापान के हर सुपरमार्केट में आपको वो सारी सब्जियाँ मिल जाएँगी जिनसे आप पूर्वपरिचित हैं। आपके बनाये भोजन को आपका पेट जरूर सराहेगा भले ही उसके पहले आपकी जेब कराह उठे। ऐसा क्यूँ है जानने के लिए चलिए आपको ले चलते हैं एक जापानी सुपरमार्केट में.. 

जापानी सुपर मार्केट में बिकती सब्जियाँ
वैसे इस बारिश में भुट्टे का स्वाद आप खूब उठा रहे होंगे। जापान में  एक भुट्टे की कीमत सत्तर रुपये की है। वैसे उत्तरी जापान में तोमोरोकोशी (Tomorokoshi) यानि मकई की खेती भी होती है पर माँग ज्यादा होने की वज़ह से ये  अमेरिका से आयात किया जाता है। बारिश के मौसम में इसे ग्रिल कर जापानी  लोग, मक्खन और सोया सॉस के साथ खाते हैं।

आजकल भारत में टमाटर चर्चा में हैं। ख़बरें आ रही हैं कि कहीं कहीं तो आठ रुपये में एक टमाटर बिक रहा है पर नीचे चित्र में देखिए जापान की इस दुकान में पाँच टमाटर दो सौ येन यानि एक सौ तीस रुपये में बिक रहा है, वो भी तब जबकि जापानी पकवानों में टमाटर का इस्तेमाल ना के बराबर होता है। जापान में टमाटर आपको सलाद या भोजन को सजाने का काम करता दिखेगा। 


ये नज़ारा है एक ख़ुदरा सब्जी विक्रेता के यहाँ का.. 

जापान की दुकानों में भिंडी देख कर मुझे कितनी प्रसन्नता हुई थी ये मैं बयाँ नहीं कर सकता। भिंडी मेरी प्रिय सब्जी है और जापान में पहुँचने के पहले ही दिन सुपरमार्केट में इसका दीदार होने पर ये विश्वास हो चला था कि अपने वतन से हजारों किमी दूर हमारी मेस में आने वाले दिनों में इसकी सब्जी खाने का सौभाग्य जरूर प्राप्त होगा। मेरे सपनों पर तुषारापात तब हुआ जब दो दिन बाद सुबह के नाश्ते में भिंडी, सब्जी के बजाए उबाल कर सलाद के रूप में रखी दिखी। जापान में भिंडी 'ओकुरा' (Okura) के नाम से जानी जाती है जो इसके अमेरिकी नाम Okra से मिलता जुलता है। आप तो भिंडी किलो के हिसाब से खरीदते होंगे पर जापान में आठ दस भिंडियाँ गुच्छों में अस्सी रुपये के भाव से बिकती हैं। वैसे भी सलाद में इससे ज्यादा भिंडियों का क्या काम :) ?

एक गुच्छा भिंडी  @138 Yen (1 Yen = 0.6Rs.)


रविवार, 7 जुलाई 2013

मिलिए जापान के इन गुड्डे गुड़ियों से ! (Kids in Japan )

बच्चे तो किसी के भी हों, कहीं के भी हों बड़े प्यारे होते हैं। पर जापान के नवजात जब अपने गोल गोल चेहरों और बटन सरीखी आँखों से आपको देखते हैं तो उनकी मासूमियत देखते ही बनती है। अपने जापान प्रवास में मुझे और मेरे मित्रों को जब भी मौका मिला हमने विभिन्न क्रियाकलापों में लगे बच्चों की तसवीर को कैमरे में क़ैद किया।

 ये गोलू मोलू महाशय मुझे हिरोशिमा के समुद्रतट से सटे एक मंदिर में दृष्टिगोचर हुए।


वैसे बच्चों से हमारा पहला साबका जापान में आने के एक हफ्ते बाद हुआ। शाम को हम अपने ट्रेनि्ग सेंटर  (JICA Kitakyushu) से टहलने निकले। साथियों का दिल हुआ कि मुख्य सड़क को छोड़कर आस पास के मोहल्लों की खाक छानी जाए। सो हमने अपने कदम एक रिहाइशी इलाके की तरफ़ मोड़ लिये। दो सौ मीटर आगे चलने पर हमें एक गली से नगाड़ों सरीखी आवाज़ सुनाई दी । उत्सुकतावश आगे बढ़े तो देखा कि  तीस चालीस बच्चों का झुंड बड़े बड़े नगाड़ों के सामने पंक्तिबद्ध खड़ा है और बच्चे बारी बारी से बड़ों की निगरानी में उस पर अपनी हाथ आजमाइश कर रहे हैं। हमने तब तक जापानी भाषा की दो कक्षाएँ ही की थीं। हमें जापानी नहीं आती थी और उस मध्यम वर्गीय मोहल्ले में कोई अंग्रेजी का जानकार नहीं था। पर सांकेतिक भाषा के आधार पर हमने जान लिया कि सारी तैयारी एक महिने बाद आने वाले कस्बाई त्योहार की है जिसमें पारम्परिक संगीत बजाने के लिए बच्चों को प्रैक्टिस कराई जा रही है।

हम भी इस क़वायद को देखने के लिए बच्चों के बीच जा बैठे। कुछ ही देर में प्रश्नों की झड़ी से हमारा स्वागत हुआ। शुरुआती प्रश्न तो जाने पहचाने थे, मसलन

ओ नामाइ वा? (आपका नाम क्या है?)
वाताशी वा मनीष देस
ओ कुनी वा ?  (आप कहाँ से आए हैं? )
इंडो देस
ओ शिगोतो वा ? (आप क्या करते हैं ?)
इंजिनिया देस

पर इसके आगे उनके प्रश्नों का जवाब देने के लायक हमारी औकात थी नहीं और हम वहाँ से निकल लिए।