रविवार, 7 जुलाई 2013

मिलिए जापान के इन गुड्डे गुड़ियों से ! (Kids in Japan )

बच्चे तो किसी के भी हों, कहीं के भी हों बड़े प्यारे होते हैं। पर जापान के नवजात जब अपने गोल गोल चेहरों और बटन सरीखी आँखों से आपको देखते हैं तो उनकी मासूमियत देखते ही बनती है। अपने जापान प्रवास में मुझे और मेरे मित्रों को जब भी मौका मिला हमने विभिन्न क्रियाकलापों में लगे बच्चों की तसवीर को कैमरे में क़ैद किया।

 ये गोलू मोलू महाशय मुझे हिरोशिमा के समुद्रतट से सटे एक मंदिर में दृष्टिगोचर हुए।


वैसे बच्चों से हमारा पहला साबका जापान में आने के एक हफ्ते बाद हुआ। शाम को हम अपने ट्रेनि्ग सेंटर  (JICA Kitakyushu) से टहलने निकले। साथियों का दिल हुआ कि मुख्य सड़क को छोड़कर आस पास के मोहल्लों की खाक छानी जाए। सो हमने अपने कदम एक रिहाइशी इलाके की तरफ़ मोड़ लिये। दो सौ मीटर आगे चलने पर हमें एक गली से नगाड़ों सरीखी आवाज़ सुनाई दी । उत्सुकतावश आगे बढ़े तो देखा कि  तीस चालीस बच्चों का झुंड बड़े बड़े नगाड़ों के सामने पंक्तिबद्ध खड़ा है और बच्चे बारी बारी से बड़ों की निगरानी में उस पर अपनी हाथ आजमाइश कर रहे हैं। हमने तब तक जापानी भाषा की दो कक्षाएँ ही की थीं। हमें जापानी नहीं आती थी और उस मध्यम वर्गीय मोहल्ले में कोई अंग्रेजी का जानकार नहीं था। पर सांकेतिक भाषा के आधार पर हमने जान लिया कि सारी तैयारी एक महिने बाद आने वाले कस्बाई त्योहार की है जिसमें पारम्परिक संगीत बजाने के लिए बच्चों को प्रैक्टिस कराई जा रही है।

हम भी इस क़वायद को देखने के लिए बच्चों के बीच जा बैठे। कुछ ही देर में प्रश्नों की झड़ी से हमारा स्वागत हुआ। शुरुआती प्रश्न तो जाने पहचाने थे, मसलन

ओ नामाइ वा? (आपका नाम क्या है?)
वाताशी वा मनीष देस
ओ कुनी वा ?  (आप कहाँ से आए हैं? )
इंडो देस
ओ शिगोतो वा ? (आप क्या करते हैं ?)
इंजिनिया देस

पर इसके आगे उनके प्रश्नों का जवाब देने के लायक हमारी औकात थी नहीं और हम वहाँ से निकल लिए।
ख़ैर हम लोगों ने बच्चों से संवाद स्थापित करने की कोशिश नहीं छोड़ी। अपने हॉस्टल के कर्मचारियों से पता चला कि जापान में कई स्कूलों में अंग्रेजी प्राथमिक कक्षाओं से शुरु ना कर माध्यमिक कक्षाओं से पढ़ाई जाती है। नतीजन छोटे बच्चों से तो जवाब अंग्रेजी में मिलने से रहा। रही बात बड़े बच्चों की, तो वो अंग्रेजी पढ़ तो लेते हैं पर उसे बोलने में बहुत घबराते हैं। कुछ दिनों के बाद हमें शाम की सैर के दौरान स्कूल बैग के साथ आता बड़ा बच्चा दिखाई दिया। हमारे कुछ मित्रों ने उससे बात करनी शुरु कर दी। मैंने देखा कि तेरह चौदह साल का वह लड़का अंग्रेजी में हमारे सवालों का जवाब ना दे पाने की वज़ह से पसीने पसीने हो गया। पर जब उसने अपनी किताबें दिखायीं तो जापानी भाषा की किताबों के साथ उसमें अंग्रेजी व्याकरण की किताब भी दिखाई दी। इस घटना के बाद हमने  बच्चों और किशोरों से वार्तालाप सामन्य अभिवादन तक ही समेट लिया पर बच्चों की गतिविधियों को हमारी निगाहें कैमरे में  क़ैद करती रहीं।

ये भी तो सच है ना कि तसवीरों तो ख़ुद बोलती हैं उनके लिए भला भाषा की दीवार कहाँ? तो आइए आपको मिलवाएँ जापानी नौनिहालों से कुछ चित्रों के माध्यम से...।

देखिए विदेशियों के झुंड को देख कर कैसे सबके चेहरों पर विस्मय का भाव आया



कुछ देर साथ में मस्ती क्या हुई हाव भाव यूँ बदल गए :)

पार्क में बच्चों की उछल कूद
 इनके माता पिता इन्हें सुपरमार्केट में ला कर निश्चिंत होकर सामान खरीद रहे हैं ,  कुछ देर तो साथ चले पर अब इतनी बड़े बाजार में कहाँ तक चला जाए  सो यहीं सुस्ता लें :)

बहुत थका दिया मम्मी पापा ने


अब ये बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं पर लगता है कि इनकी कोई स्कूल ड्रेस नहीं है पर सब के सब कितने आकर्षक परिधानों में हैं।


स्कूल चले हम !


हिंदुस्तान की तरह जापान में भी त्योहारों में जश्न का माहौल रहता है। आमतौर पर सुनसान रहने वाली सड़कों पर त्योहारों के समय तिल रखने की जगह नहीं होती। क्या बच्चे क्या बड़े सभी अपने वहाँ के परंपरागत वस्त्रों में घूमते नज़र आ जाते हैं।

कोकुरा जिआन फेस्टिवल (Kokura Gion Daiko Festival) के लिए सजी लड़की
वीडियो गेम्स के प्रति जापानी बच्चों का गजब का आकर्षण है। अचरज ये है कि ये प्रवृति आप वहाँ के वृद्धों में भी देख सकते हैं।


चलते चलते इस छोटे परंतु अत्यंत नटखट बालक से भी मिलते चलिए जो पिता के साथ किस आराम से साइकिल की टोकरी में सफ़र कर रहा है। जैसे ही हम सब इसकी तसवीरें खींचने लगे इसकी मुद्राएँ बदलने लगीं।


जरा पास से देखिए इनके अंदाज़.. बच्चे कहीं के भी हों आखिर बच्चे ही रहेंगे


बच्चों की इतनी बातें तो कर ली पर इनसे जुड़ा एक मजेदार तथ्य बताना मैं भूल ही गया था। दरअसल  विगत कुछ वर्षों में जापान की आबादी थम सी गई है यानि यहाँ के लोग अन्य उन्नत देशों की तरह ही जल्दी शादी के बंधन में नहीं बँध रहे और अगर बँधते भी हैं तो अपने अपने कैरियर की चिंता में बच्चे पैदा करने में रुचि नहीं दिखा रहे। हालात ये हो गए हैं कि जापान में बच्चा पैदा करने के लिए आजकल तनख़्वाह में सरकार इन्क्रीमेंट दे रही है। सोचिए अगर भारत में भी ऐसा होने लगे तो :) :)

सुना है टमाटर का भाव आजकल आठ रुपये में एक तक का  हो गया है। भारतीय टमाटर की शान तो आपने देख ली , अब जापानी टमाटर की भी देख लीजिए। इस श्रंखला की अगली प्रविष्टि में ले चलेंगे आपको जापान के फल व सब्जी बाजार में..

अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

12 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्‍दर तस्‍वीरें. यहां एक रुपए में एक टमाटर भी मुश्किल है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जापान में सब्जियों और फलों का हाल देखेंगे तो लगेगा भारत ही ठीक है।

      हटाएं
  2. बच्चे लदा ही कोमलता भरे होते हैं, बस हम उनका बचपन बचाये रखें।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह.. जापानी बच्चों ने तो मन मोह लिया..

    जवाब देंहटाएं
  4. सुबराशी किजि दा
    :-)

    Japanese-courtesy my son :-)he is passionate about the country .

    अनु

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनु जी आपकी जापानी भाषा का अनुवाद कुछ यूँ होगा ना बेहतरीन लेख :) सच पूछिए तो अब धीरे धीरे जापान में सीखे शब्द भूलता जा रहा हूँ पर सुबाराशि शायद जीवन भर याद रहे क्यूँकि हमारे द्वारा इसका इस्तेमाल जापानियों के चेहरे पर एक मुस्कान बिखेर देता था।

      हटाएं