सोमवार, 24 मार्च 2014

दिल्ली दर्शन : हुमायूँ का मकबरा - बदकिस्मत बादशाह खूबसूरत मकबरा ! (Humayun's Tomb)

पिछले हफ्ते  दिल्ली दर्शन की इस श्रंखला में आपको कुतुब मीनार की सैर पर ले गया था। आज चलिए दिल्ली की एक और मशहूर इमारत 'हुमायूँ के मकबरे' की यात्रा पर। पर इससे पहले आपको मकबरे का दर्शन कराऊँ कुछ बाते उस बादशाह के बारे में जिसकी याद में ये मकबरा बनाया गया है।

मुगल साम्राज्य के दो बदकिस्मत बादशाहों को अगर आप याद करें तो शायद आपके होठों पर हुमायूँ और बहादुर शाह ज़फर का नाम सबसे पहले आए। ख़ैर बहादुर शाह ज़फर तो मुगलिया सल्तनत के बुझते चिराग थे। रही बात हुमायूँ की तो उन्होंने जब 1530 ईं में राजसिंहासन सँभाला तो उनकी पहली चुनौती हिंदुस्तान में अपने पिता बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की रखी नींव का विस्तार करने की थी। पर विस्तार तो दूर दस साल की अवधि पूरी होते ही शेर शाह सूरी ने उसे देश से बाहर खदेड़ दिया।




मुगल काल की अनजानी महिला को समर्पित : बू हलीमा द्वार

1555 में राजगद्दी पर हुमायूँ पुनः काबिज़ तो हो गए पर सिंहासन का ये सुख वो ज्यादा दिन नहीं भोग पाए और 1556 में सीढ़ियों से गिरने की वज़ह से वो चल बसे। अपनी ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा हुमायूँ को इधर उधर भाग कर बिताना पड़ा। जितने साल तख्तो ताज़ हाथ में रहा किसी ख़ास काम के लिए जाने नहीं गए। अफ़ीम की लत की वज़ह से बदनामी हुई सो अलग। पर मुकद्दर देखिए इस बादशाह का ! जो जीते जी दर दर की ठोकरें खाता रहा उस के मरने के बाद उसकी याद में जो मकबरा बना, वो किसी भी अन्य मुगल बादशाह के लिए बनाए मकबरों में सबसे आलीशान था। 

पश्चिमी दरवाजा, हुमायूँ का मकबरा 

अक्टूबर के दूसरे हफ्ते की एक खुशगवार शाम को मैं हजरत निजामुद्दीन  इलाके के पास बने इस मकबरे के पास पहुँचा। हुमायूँ के मकबरे में वैसे तो दो द्वार हैं पर आज की तारीख़ में  इस मकबरे का दक्षिणी द्वार बंद कर दिया गया है। साढ़े पन्द्रह मीटर ऊँचे इस मुख्य द्वार की तुलना में इसका पश्चिमी दरवाजा अपने स्वरूप में उतना भव्य नहीं है। पश्चिमी दरवाज़े तक पहुंचने के पहले आपको बू हलीमा द्वार से गुजरना पड़ता है। बू हलीमा का मकबरा वहाँ कैसे आया और हुमायूँ से उनका क्या संबंध था ये आज भी इतिहासकारों को ज्ञात नहीं है। बू हलीमा द्वार के पहले हरे भरे वृक्षों की कतारें मन को मोहती हैं और यहीं से पहली बार हुमायूँ के मकबरे के आलीशान गुम्बद के प्रथम दर्शन होते हैं।

हुमायूँ के मकबरे का आलीशान दोहरा गुंबद (Double Dome of Humayun's Tomb)

दिल्ली में बनी मुगलिया इमारतों पर गौर करें तो पाएँगे कि इन पर षष्ठकोणीय तारों का अलंकरण अवश्य बना रहता है। बू हलीमा, पश्चिमी द्वार या फिर मकबरे का मुख्य द्वार आप चित्र में दरवाजे पर बनी इन आकृतियों को देख सकते हैं। दरअसल मुगल इन सितारों का प्रयोग सजावटी अंतरिक्ष संकेत के रूप में किया करते थे। 

पश्चिमी दरवाजे से घुसते ही हुमायूँ का मकबरा अपनी खूबसरती से अचंभित कर देता है। इसके शिल्प की दो खूबियाँ जो सबसे पहले ध्यान खींचती है वो है इसका विशाल गुंबद और हर तरफ से दिखने वाली समरूपता। हाँलाकि मुगलिया काल के पहले भी भारत में दोहरे गुम्बद का शिल्प कुछ इमारतों में प्रयुक्त हुआ था पर इस मकबरे में ये पहली बार इतने भव्य रूप में दिखा । जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि ऐसी संरचनाओं में बाहरी गु्बद के नीचे एक छोटा गुंबद भी विद्यमान रहता है। जहाँ बाहरी गुंबद पूरी इमारत की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है, वहीं अंदर के गुंबद की ऊँचाई भीतरी कक्ष की दीवारों की ऊँचाई को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।

हुमायूँ का मकबरा : इसे कहते हैं बेहतरीन समरूपता ! (Enchanting Symmetry of Humayun's Tomb))


मकबरे का मुख्य कक्ष अष्ठभुजाकार है। बाहर से आप लाल बलुआ पत्थर से इस इमारत को किसी भी दिशा से देखें आपकों तीन मेहराबें दिखाई देंगी और इनमें से बीच वाली वाली सबसे ऊँची है। भारतीय स्मारकों में दोहरे गुंबद की अवधारणा तो फारस से आई पर हिंदू शिल्प का असर गुंबद के आस पास बनी छतरियों में सहजता से देखा जाता है। एक और कमाल की बात जो दिखती है वो है दीवार के ऊपर बनी अष्ठभुजाकार मीनारों में खिलते कमल की संरचना।

 तांबे के पात्रों से बना शिखर और खिलते कमल से सजी मीनारें

इस मकबरे को हुमायूँ की बड़ी रानी बेगा बेगम उर्फ हाजी बेगम ने बनाया था। कहते हैं कि उस वक़्त इस इमारत को बनाने में पन्द्रह लाख रुपये लगे थे। आज इस मकबरे के भीतर हुमायूँ की समाधि के आलावा उनकी सारी बेगमों , दारा शिकोह, फारूखशियर और कितने ही अनजाने मुगलों की कब्रे हैं। 

 हुमायूँ का मकबरा (Humayun's Tomb)

भटकने की किस्मत से बादशाह को मौत के बाद भी निज़ात नहीं मिली। हुमायूँ को  पहले पुराने किले में दफ्नाया गया था। अकबर,  हेमू के डर से उनकी समाधि को वहाँ से सरहिंद ले गए और फिर विजयी होने पर वापस पुराने किले में ले आए  और अंततः इस मकबरे के बनने पर उसे यहाँ लाया गया।

हुमायूँ का मकबरा : मक्के के दिशा में बनी पत्थर की जालियाँ (Stone Carvings in Windows)

मकबरे के भू तल पर भी बहुत सारे कक्ष हैं। उनके अंदर से तहखाने की ओर रास्ता जाता हैं। तहखाने में भी राज परिवार के लोगों की अनेक कब्रें हैं जिनकी पहचान कर पाना इतिहासकारों के लिए भी मुश्किल का सबब रहा है।

हुमायूँ के मकबरे की तीसरी और सबसे बड़ी खासियत इसका बाग मकबरे के रूप में निर्माण है। मकबरे के चारों ओर बाग बनाने का रिवाज़ पन्द्रहवी शताब्दी में तैमूर के समय शुरु हो गया था। हुमायूँ का मकबरा भी  आठ वर्गाकार बागों के ठीक मध्य में ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है जो कि नीचे के मॉडल से स्पष्ट है।


पर बाग के साथ मकबरे की सोच आई कैसे? दरअसल इस्लाम में स्वर्ग की व्याख्या में उनका सु्दर बगीचों के बीच होना बताया गया है। मकबरे के चारों दिशाओं में बागों के मध्य से निकलती नहरें कुरान में उल्लेखित जन्नत के नीचे बहती नदियों का प्रतीतात्मक निरूपण थी। लबेलुबाब ये कि जब भी बादशाह अल्लाह को प्यारे हों तो ऐसी जगह जाकर विश्राम करें जो कुरान में बताई गयी जन्नत सरीखी हो।

 समकोण बनाती जलराशियाँ एवम् वर्गाकार मुगल बाग

मुगल काल के पराभव के समय इस मकबरे के बागों का भी बुरा हाल हुआ। अंग्रेजों ने पहले तो यहाँ अपनी तबियत वाले बाग बनाए बाद में वापस इसे अपने पुराने रूप में परिवर्तित किया। लेख के शुरु में मैंने मुगलिया सल्तनत के बदकिस्मत बादशाहों में बहादुर शाह ज़फर का जिक्र किया था। 1857 के विद्रोह के कुचले जाने के बाद वो इसी मकबरे में पनाह लेने के लिए आया था और अंग्रेजों ने उसे यहीं पर पकड़ के रंगून रवाना कर दिया था।


 सांझ को विदा लेने के ठीक पहले मकबरे का रमणीक दृश्य

बहरहाल स्थापत्य की दृष्टि से दोहरे गुंबद और बाग मकबरे को भारत में स्थापित करने का श्रेय हुमायूँ के मकबरे को दिया जाना चाहिए क्यूँकि इसी की प्रेरणा लेते हुए शाहजहाँ आगरे में ताजमहल का निर्माण करवा सका। 

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21 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत स्थापत्य, जिसने भी बनवाया हो।

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    1. जैसा पोस्ट में लिखा है इस मकबरे को हुमायूँ की बड़ी रानी बेगा बेगम उर्फ हाजी बेगम ने बनाया था।

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  2. आनंद आ गया दुबारा से। एक बार मैं अकेले जा चुका हूं।

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    1. सामने के लॉन पर चुपचाप बैठकर इस धरोहर को देखना ही अपने आप में ऐसा अनुबव है जिसे व्यक्ति बार बार लेना चाहे।

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  3. यहां मेरी भी जानें की इच्छा है...

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    1. कुतुब मीनार और लाल किले के बाद दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों में इसका ही क्रम आता है।

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  4. मनीष जी, हम लोग इस मकबरा में12/13 साल पहले गये थे और आज आप के इस सुन्दर प्रस्तुति ने फिर वहाँ जाने के लिए उत्प्रेरित कर रहा है।आभार॥

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  5. इस मकबरे के बारे में क्या कहूँ । इतने साल दिल्ली में रहने के बाद भी कभी जाना नहीं हुआ पर आपके चिट्ठे से बहुत सारी जानकारी मिली |
    Very informative post.

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    1. पास की चीजें बहुत बार छूटी रह जाती हैं। फरिदाबाद में नौकरी करते वक़्त दो सालों में मैं भी यहाँ नहीं जा पाया था।

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  6. बहुत ही जानकारी दी आपने।
    हम तो वैसे बाहर से देख कर ही चले थे। आपने हमें अच्छी बात बताई।
    शुक्रिया

    जैसलमेर राजस्थान आओ तो मिलना सर

    मलिक
    मुस्कान टूर
    09468507786

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  7. Aapne is tarah se bataya hai ki mai kuchh der ke liye bahin pahunch gaya tha...

    Thanks bro....

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