गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडाल : भाग 4 Durga Puja Pandals of Kolkata, Suruchi Sangha, 66 Palli : Concluding Part

आज नवरात्र का पर्व दशहरे के साथ समाप्त हो रहा है और मैं आपके सम्मुख हूँ कोलकाता के पूजा पंडाल परिक्रमा की इस आख़िरी कड़ी को लेकर। आज आपको ले चलूँगा दक्षिणी कोलकाता के उन दो पूजा पंडालों में जो हर साल अपनी अद्भुत थीम के चुनाव और निरूपण के लिए सुर्खियाँ बटोरते रहते हैं। ये पंडाल हैं न्यू अलीपुर में स्थित सुरुचि संघ और रासबिहारी गुरुद्वारे के करीब का 66 पल्ली। 


सुरुचि संघ इससे पहले 2003, 2009 व 2011 में कोलकाता के सर्वश्रेष्ठ पूजा पंडाल का ख़िताब जीत चुका है। पिछले साल इस पंडाल की थीम का केंद्र था छत्तीसगढ़। वहाँ की नक्सल समस्या को ध्यान में रखते हुए पंडाल के ठीक सामने एक काल्पनिक वृक्ष बनाया गया था । वृक्ष के ऊपरी हिस्से में राज्य में हो रही हिंसा व अशांति का चित्रण था जबकि नीचे शंति का संदेश देते हुए स्थानीय वाद्यों को लेकर नाचते गाते लोग दिखाए गए थे। भीड़ इतनी ज्यादा थी की चित्र लेने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी।


पंडाल की शक़्ल एक आक्टोपस सरीखी थी। पर ध्यान से देखने पर लगा कि जिसे हम आक्टोपस की भुजा समझ रहे हैं वो तुरही के समान जनजातीय वाद्य यंत्र है। पंडाल की दीवारों पर वैसे चित्र अंकित किए गए थे जैसे पुरा काल में आदिवासी कला चट्टानों पर अंकित की जाती थी।



मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडाल : भाग 3 Durga Puja Pandals of Kolkata, Bose Pukur, Kumartuli, Talbagan, Bagh Bazar: Part III

बांग्ला में पुकुर का मतलब होता है पोखरा और आप तो जानते ही हैं कि बंगाल में आदि काल से हर गाँव और कस्बे में पोखर का होना अनिवार्य सा रहा है। यही वज़ह है कि वहाँ कस्बे और मोहल्लों के नाम तालाबों पर रखे गए हैं। दक्षिणी कोलकाता में गरियाहाट से सटा इलाका है कस्बा का और यहीं से बोस पुकुर सड़क होकर गुजरती है। इस इलाके की दुर्गा पूजा अपनी नई सोच और कलात्मकता के लिए पूरे कोलकाता में प्रसिद्ध है। आज आपको उत्तरी कोलकाता में ले जाने के पहले इसी इलाके के दो खूबसूरत पंडालों से रूबरू करवाना चाहता हूँ। पहले चलते हैं तालबागान जहाँ पिछले साल दुर्गा माँ तक पहुँचने के लिए आपको कमल के फूलों की पंखुडियों के बीच से जाना था. 


 रंग बिरंगी पंखुडियों के बीच आसीन माँ  दुर्गा...



रविवार, 18 अक्तूबर 2015

कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडाल : भाग 2 Durga Puja Pandals of Kolkata, West Bengal : Part II

दक्षिणी कोलकाता के गरियाहाट के आस पास के पंडालों को तो हम कोलकाता में बिताई पहली शाम को ही देख चुके थे। दूसरे दिन की शुरुआत हमने जोधपुर पार्क से की। गरियाहाट और जादवपुर के बीच पड़ने वाला ये इलाका दुर्गा पूजा की दृष्टि से हर साल चर्चा में रहता है। पिछले साल यहाँ पंडाल को तो प्राचीन मंदिर की शक़्ल दी गई थी पर काग़ज़ पर माँ दुर्गा की छवि 3D प्रिंटर से निकाल पंडाल में लगाई गई थी एक अलग से अनुभव को जगाने के लिए। 

Ancient temple depicted at Jodhpur Park
दूर से दिखते खंभो और उनके बीच की कलाकृतियों को देखकर तो यही लगता था कि सचमुच हम किसी पुरातन ऐतिहासिक मंदिर के करीब आ गए हैं। माता का 3D निरूपण तो अपनी जगह था पर पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से जानकर अच्छा लगा  कि ये सारे चित्र काग़ज़ पर उतारे गए हैं।

Goddess Durga in 3D

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडाल : भाग 1 Durga Puja Pandals of Kolkata, West Bengal : Part I

जिस तरह गणेश चतुर्थी का पर्व बड़े धूमधाम से भारत के पश्चिमी राज्यों में मनाया जाता है उसी तरह दुर्गा पूजा पूर्वी भारत में। पटना, राँची, कटक की पूजा देखने के बाद सिर्फ कोलकाता की पूजा देखने की हसरत रह गई थी मुझे। हर बार लोग वहाँ की भीड़ और उमस की बात कर मेरा उत्साह ठंडा कर दिया करते थे। पर पिछले साल अक्टूबर के महीने में उत्तर पूर्व की ओर निकलने के पहले मैंने कोलकाता में रुकने का कार्यक्रम बनाया। भीड़ से बचने के लिए पंचमी, षष्ठी व सप्तमी के दिन पंडालों के चक्कर लगाए और कुल मिलाकर मेरा अनुभव शानदार रहा। अब जबकि इस साल की दुर्गा पूजा पास आ रही है तो मैंने सोचा कि क्यूँ ना आपको कोलकाता के पूजा पंडालों की सैर करा दूँ ताकि आप ये समझ सकें कि क्यूँ होना चाहिए किसी को कोलकाता में दुर्गा पूजा के वक़्त?
 
मिट्टी के रंग में रँगी माता दुर्गा  Goddess Durga in her gray avtaar

कोलकाता में हर साल हजारों की संख्या में पंडाल बनते हैं। सारे तो आप देख नहीं सकते पर कुछ विशिष्ट पूजा पंडाल आप छोड़ भी नहीं सकते। कोलकाता जैसे महानगर में पूजा पंडालों का चक्कर लगाने का मतलब है कि एक दिन के लिए उसका कोई एक इलाका निर्धारित कर लें। मोटे तौर पर कोलकाता की पूजा के तीन मुख्य इलाके हैं उत्तरी कोलकाता, दक्षिणी कोलकाता और मध्य कोलकाता। अपने कोलकाता प्रवास के समय मैं वहाँ के बिड़ला मंदिर के पास ठहरा था तो मैंने अपनी पंडाल यात्रा दक्षिणी कोलकाता से शुरु की।

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

ताज़ के आगे का आगरा Agra Beyond Taj : Uttar Pradesh Travel Writers Conclave 2015

अक्टूबर के पहले हफ्ते में उत्तर प्रदेश पर्यटन की तरफ़ से एक न्योता आया आगरा, लखनऊ और बनारस के आस पास के इलाकों में उनके साथ घूमने का। सफ़र का समापन यात्रा लेखकों के सम्मेलन से लखनऊ में होना था। सम्मेलन में भारत और विदेशों से करीब चालीस पत्रकार, ब्लॉगर और फोटोग्राफर बुलाए गए थे।

उत्तर प्रदेश मेरे माता पिता का घर रहा है। बनारस, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद व आगरा जैसे शहरों में मैं पहले भी कई बार जा चुका हूँ।  बनारस के घाट की स्मृतियाँ तो एकदम नई थीं क्यूँकि वहाँ पिछले साल ही गया था पर आगरा गए पन्द्रह साल से ऊपर हो चुके थे। सो मैंने आगरा वाले समूह के साथ जाने की हामी भर दी।

उत्तर प्रदेश पर्यटन ने अपने इस कार्यक्रम को दि हेरिटेज आर्क (The Heritage Arc) का नाम दिया था। इस परिधि में आगरा, लखनऊ व बनारस के आस पास के वो सारे इलाके शामिल किए गए थे जहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएँ हैं। यानि उद्देश्य ये कि इनमें से पर्यटक किसी भी जगह जाए तो उसके करीब के सारे आकर्षणों को देखते हुए ही लौटे। ज़ाहिर था उत्तर प्रदेश पर्यटन  हमें भी ताज़ के आगे का आगरा (Agra beyond Taj) दिखाने को उत्सुक था। सफ़र के ठीक पहले जब पूरे कार्यक्रम को देखा तो मन आनंदित हुए बिना नहीं रह सका। ऐतिहासिक धरोहरों, वन्य जीवन, प्रकृति, कला, संस्कृति व खान पान का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण बिड़ले ही किसी कार्यक्रम में देखने को मिलता है।

First ray of the Sun falling on the Taj
तीन अक्टूबर को पौ फटते ही हमारे सफ़र की शुरुआत हुई ताज दर्शन से। ताज के दरवाजे सवा छः बजे के लगभग खुलते हैं। पर जब हम वहाँ पहुँचे तो पर्यटकों की भारी संख्या सूर्योदय के समय के ताज़ के दर्शन के लिए आतुर थी। इधर सूरज की किरणों ने संगमरमर की दीवारों का पहला स्पर्श किया और उधर ढेर सारे कैमरे इस दृश्य को अपने दिल में क़ैद करने की जुगत में जुट गए। हमारे गाइड इमरान और आदिल ताज़ महल परिसर की इमारतों के शिल्प की बारीकियों के बारे में बताते रहे और उधर  तब तक   सूर्य देव  ने  सुनहरी रौशनी से पूरे ताज को अपने आगोश में ले लिया ।

The Taj in all its glory !