शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

शिमला और उसका ब्रिटिश अतीत... Shimla and its British legacy

वैसे तो ब्रिटिश लोगों ने हिमालय से सटे राज्यों में कई पर्वतीय स्थलों को सजाया सँवारा पर इतिहास की किताबों में इनमें जिस हिल स्टेशन का सबसे ज़्यादा उल्लेख हुआ वो था शिमला। तिब्बत का मामला हो या भारत पाकिस्तान के बीच बातचीत, शिमला में समझौते दर्ज होते रहे और इतिहास की पुस्तकों के माध्यम से हम उन्हें याद करते रहे।  हिमाचल के ज्यादातर हिस्से कभी नेपाली तो कभी पंजाबी शासकों के प्रभाव में रहे पर शिमला जिस रूप में आज है उसकी नींव रखने का श्रेय अंग्रेजों को ही जाता है। 
Christ Church, Shimla
 चित्र सौजन्य
जब हिंदुस्तान के मैदानों की गर्मी से निज़ात पाने अंग्रेज यहाँ पहुँचे तो शिमला एक छोटा सा गाँव भर था जहाँ  जाखू पर्वत पर एक मंदिर हुआ करता था। शिमला का नाम भी यहाँ पूजी जाने वाली श्यामला देवी के नाम से पड़ा था। लगभग 1820 ई के बाद से अंग्रेज हुक्मरानों का यहाँ गर्मियों में तफ़रीह के लिये आने जाने का सिलसिला शुरु हुआ। आज़ादी के पहले की दो तारीखें  शिमला के आज के अस्तित्व में काफी मायने रखती हैं। पहली तो 1863 की जब लार्ड विलियम बेंटिक ने शिमला को ब्रिटिश राज की ग्रीष्म कालीन राजधानी बना दिया और दूसरी 1906 की जब कालका शिमला रेलवे अपने अस्तित्व में आई। राजधानी बनने से यहाँ की आबादी बढ़ी, सिखों व पारसी समुदाय की अगुआई में नए नए व्यापारिक प्रतिष्ठान बने और रेल कड़ी बनने से लोगों का दिल्ली और चंडीगढ़ के रास्ते शिमला आना सुलभ हो गया।

शिमला शहर शहर का एक दृश्य चित्र सौजन्य
यातायात की सुविधा का कमाल है कि आज शिमला देश के लोकप्रिय पर्वतीय स्थलों में एक है और अब तो हिमाचल के अंदर आने जाने के लिए वायु सेवा शुरु हो गई है जिससे कुल्लू, शिमला, कांगड़ा और चंडीगढ जैसे शहर आपस में जुड़ गए हैं। पर अप्रैल के महीने में मनाली, कुल्लू और मंडी जैसे शहरों से होते हुए जब मैं शिमला पहुँचा था तो वायु सेवा का विकल्प नहीं था। होता भी तो मैं नहीं लेता क्यूँकि जो आनंद गाँव, कस्बों की घुमावदार सड़कों से गुजरते हुए और वहाँ के लोगों से मिलते जुलते अपने गन्तव्य तक पहुँचने में है वो हवाई उड़ान में कहाँ? शिमला पहुँच तो गए थे पर बिना होटल की बुकिंग कराए। बस ने तो हमें बस अड्डे तक छोड़ दिया था क्यूँकि शहर के केंद्र तक गाड़ियों के जाने की मनाही है पर मैं माल रोड के पास ही रहना चाहता था तो सामान के साथ वहाँ पहुँचने की अलग दिक्कत थी। ख़ैर कुलियों की कमी नहीं थी जो सामान के साथ होटल तक दिलवाने के लिए राजी थे। मैंने भी मन ही मन सोच लिया था कि होटल तो देखेंगे इसकी मर्जी से पर पसंद करेंगे अपनी सहूलियत से। माल रोड से करीब पचास मीटर चढ़ाई पर हमने होटल पसंद कर लिया था।

शिमला रिज़ चित्र सौजन्य

होटल की खिड़की से गर्मा गर्म चाय के साथ घाटी के नज़ारों को थोड़ी देर लुत्फ़ उठाने के बाद हम चहलकदमी करते मॉल रोड तक आ गए। दार्जिलिंग, मसूरी और नैनीताल में भी मॉल रोड हैं पर जो भव्यता मॉल रोड व उससे सटे रिज़ में शिमला में दिखी वो अतुलनीय थी। माल रोड के पूर्वी और पश्चिमी सिरों को जोड़ता रिज़ यानी चोटी का बड़ा चौरस समतल इलाका चारों ओर फैली घाटियों का एक साथ दर्शन कराता है। रिज़ पर ही अठारहवीं शताब्दी का बना क्राइस्ट चर्च स्थित है जिसका नाम उत्तर भारत के दूसरे सबसे पुराने चर्च में शुमार होता है। वैसे क्या आपको पता है कि इस रिज़ के नीचे पानी के विशाल टैंक है जिनसे पानी की आपूर्ति सारे शहर में की जाती है।

रिज़ के पूर्वी भाग से मॉल रोड पर चलते चलते आप लक्कड़ बाजार में पहुँचते हैं तो वहीं पश्चिमी सिरे का मिलन बिंदु स्कैंडल प्वाइंट के नाम से मशहूर है। आब आप सोच रहे होंगे कि आख़िर इस जगह का नाम स्कैंडल प्वाइंट क्यूँ पड़ा? कहते हैं पटियाला महाराज यहीं से वॉयसराय की पुत्री को भगा कर ले गए थे। ब्रिटिश सरकार ने उनकी इस हिमाकत के बाद उनके शिमला में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी। महाराज ने इस आदेश के प्रतिकार स्वरूप अपना ठिकाना शिमला की जगह चैल को बना दिया था।
मॉल रोड, शिमला चित्र सौजन्य

वैसे तो शिमला की औसत ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 2200 मीटर की है पर मुख्य शहर से दो किमी दूर चलते हुए आप जाखू की पहाड़ी पर शहर के सबसे ऊँचे बिंदु पर पहुँच सकते हैं। हाँ याद रहे कि ये यात्रा आपके लिए रोमांचकारी भी हो सकती है क्यूँकि चोटी पर हनुमान मंदिर तक पहुँचने के पहले किसी वानर का दिल आ गया तो वो आपके कंधे पर बैठकर भी मंदिर तक आपसे लिफ्ट ले सकता है या फिर प्रसाद पाने के लिए आँखे तरेर सकता है।

अंग्रेजों के समय की बनी इमारतों में आपकी दिलचस्पी हो तो वॉयसराय लॉज, आकलैंड हाउस, टाउन हॉल और गैटी थियेटर को सुबह या शाम की वॉक में जरूर निपटा दीजिए। शिमला की हरी भरी छटा  देवदार, ओक और बुरांश के पेड़ों से भरी पड़ी है। अगर प्रकृति के इस रूप का नज़दीक से लुत्फ़ उठाना हो तो फिर कुफरी (13 km) , नालडेहरा (25 km) या चैल (44km) तक निकल जाइए। वैसे कुफरी में जाते ही घोड़े वाले आपको घेर लेंगे। अव्वल तो ख़ुद भी आप ये ट्रेक कर सकते हैं। पर कुफरी में घोड़े पर बैठकर जाने का मज़ा तब है जब बर्फ पहाड़ों पर बिछी हो। कुफरी में बर्फ से नहीं खेले तो फिर आनंद कैसा? मैं जब कुफरी गया था तो मुझे बर्फ नहीं मिली थी और यहाँ से मैं मायूस ही लौटा था। नालडेहरा में यहाँ का खूबसूरत गोल्फ कोर्स है ही, साथ में वहाँ से दिखती पहाड़ी ढलानों पर खड़े घने पंक्तिबद्ध देवदार वृक्ष के हरे भरे जंगल मन को मोह लेते हैं।
कालका शिमला नैरो गेज़ चित्र सौजन्य

पर शिमला जाने के सबसे अच्छे अनुभवों में से एक है यहाँ की पर्वतीय रेलवे पर सफ़र करना। कालका और शिमला की ऊँचाई के बीच करीब चौदह सौ मीटर का फासला है और इस ऊँचाई को नैरो गेज पर मंथर गति से चलती ट्रेन, जंगलों को चीरती हुई, सौ से ऊपर सुरंगों और आठ सौ से ज्यादा पुलों को पार कर पहुँचती है। पर आजकल सैलानियों की बढ़ती भीड़ को देखते हुए आपने अगर इस ट्रेन में पहले से रिजर्वेशन नहीं कराया तो इस अद्भुत यात्रा के सुख से आप वंचित रह सकते हैं। शिमला या तो लोग गर्मियों में जाना पसंद करते हैं या जाड़े में। अगर जाड़े की छुट्टियों में यहाँ जाने की सोच रहे हों तो फिर होटल भी पहले से बुक करा कर रखें। बजट के हिसाब से आपको यहाँ कई तरह के होटल मिलेंगे जिसकी जानकारी आप नेट पर यहाँ से ले सकते हैं

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11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट ने मुझे पिछले वर्ष की अपनी शिमला मनाली यात्रा की याद दिला दी। यहाँ के कुलियों का तो जी पूछिये मत एक बार देख लिया तो फिर किसी हालात में छोड़ने वाले नहीं हैं ये।

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    1. हा हा , सही कह रही हैं हर्षिता मेरा भी यही अनुभव रहा था।

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  2. य़ादे जीवंत हो गयी.. धन्यवाद मनीष जी

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    1. मेरी यादों ने आपकी यादें ताज़ा कीं जानकर खुशी हुई :)

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  3. हम तो आपके लेख से ही भ्रमण कर हर्षित हो गये।

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    1. और हम आपको हर्षित देख हर्षित हो गए :)

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    2. यहाँ तो लगभग मेरा ही नाम छाया हुआ है, शुक्रिया ☺

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-07-2016) को "बच्चों का संसार निराला" (चर्चा अंक-2400) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हार्दिक आभार शास्त्री जी इस लेख को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए !

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  5. ये वादिया ये नजारे बुला रही है हमे/सुंदर शिमला

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