रविवार, 18 सितंबर 2016

वाट फो : क्या अनूठा है थाई मंदिर स्थापत्य शैली में ? Wat Pho, Temple of reclining Buddha, Bangkok

बैंकाक मंदिरों का शहर है। यहाँ तकरीबन चार सौ छोटे बड़े मंदिर हैं जिन्हें यहाँ वाट भी कहा जाता है। अब सारे मंदिरों को तो आप देख भी नहीं सकते और देखना भी नहीं चाहेंगे। पर देखें तो किसे देखें?  खासकर ऐसी जगह में जहाँ एक ओर तो मशहूर फुटबाल खिलाड़ी डेविड बेकहम  के नाम पर भी मंदिर है तो दूसरी ओर ऐसे मंदिर भी जो विशाल पीपल के पेड़ में समाए हैं । वैसे अगर लोकप्रियता के हिसाब से देखें तो बैंकाक के शाही महल में स्थित वाट फ्रा काएव, शाही महल के बाहर पर उसके बिल्कुल निकट का प्राचीन मंदिर वाट फो और नदी के पार स्थित बैंकाक की पहचान के रूप में जाना जाने वाला वाट अरुण अग्रणी स्थान रखते हैं। 


वाट फ्रा काएव में चूँकि प्रवेश शुल्क करीब 1000 रुपये है इसलिए बहुत सारे यात्रा संचालक इसे अपने कार्यक्रम के बाहर रखते हैं। पर फुकेट और बाद में बैंकाक के मंदिरों को देखने के बाद ये तो समझ आ गया कि स्थापत्य की दृष्टि से इन मंदिरों के मूल तत्त्व क्या होते हैं? आज जब मैं आपको वाट फो यानि सहारे के साथ लेटे हुए बुद्ध के मंदिर (Temple of reclining Buddha) में ले चलूँगा तो थाई मंदिरों की ये विशिष्ट स्थापत्य शैली आपके सामने होगी।

Decorated roof and Chedi of Wat Pho  वाट फो की सजी धजी छतें व स्तूप
भारतीय बौद्ध मंदिरों में स्तूप की बनावट तो आपने देखी ही होगी। धौली, लेह व साँची के स्तूप आदि एक गुंबद की शक्ल में उभरते हैं  जबकि इनका आधार वृताकार है। थाईलैंड में स्तूपों का आकार शंकुनुमा  होता है। यहाँ के स्तूप आधार में चौड़े और ऊपर जाते हुए पतले होकर एक लकीर की शक़्ल इख़्तियार कर लेते हैं। दूर से ऐसा लगता है मानो आसमान से लटकती बड़ी बड़ी घंटियाँ सतह पर रख दी गई हों। स्थानीय भाषा में इन्हें 'चेदी' कहा जाता है। वाट फो की विशालता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की यहाँ 91 छोटे और 4 बड़े स्तूप हैं।

Chedis of Wat Pho वाट फो की मशहूर चेदी
वैसे आपने कभी सोचा है कि इन स्तूपों में होता क्या है? प्राचीन स्तूपों में पहलेपहल दुर्लभ बौद्ध ग्रंथ या बुद्ध की अस्थियाँ रखी गयीं। बाद के कुछ स्तूपों में बुद्ध व अनके अनुयायी भिक्षुओं के जरूरत के सामान भी  रखे गए। बुद्ध के जीवन की विशेष घटना को परिलक्षित करने के लिए भी इनका निर्माण हुआ। वाट फो के कुछ स्तूपों में राजपरिवार के सदस्यों के दैहिक अवशेष भी रखे गए हैं।

पुराने स्तूपों को छोड़ दें तो पिछले सौ - दो सौ सालों में भारत में बने स्तूप आपको मूलतः सफेद रंग से रँगे मिलेंगे। पर थाईलैंड के तिकोने स्तूप की बाहरी सजावट देखने वाली होती है। कहीं इनमें रंग बिरंगी टाइल्स के बीच आकृतियाँ बनी होती हैं तो कहीं तो ये पूरे सोने के बने हुए होते हैं।
Ornamental decoration in Lamyong लामयोंग की खूबसूरत साज सज्जा
वाट फो के प्रांगण में स्तूपों के बाद  जिस बात पर ध्यान जाता है वो है मंदिर की त्रिकोणिका (Gable End)। ऐसा कहा जाता है कि थाई स्थापत्य में छत के सिरे से निकलती ये सर्पीली आकृतियाँ संभवतः नाग से प्रेरित हैं। इस पूरी संरचना को स्थानीय भाषा में लामयोंग (Lamyong) कहा जाता है।

Gable End of Thai Temple त्रिकोणिका
थोड़ी थोड़ी दूर पर  इनसे उठती हुई  नुकीले उभार, नाग के फन का प्रतीक हैं। जहाँ त्रिकोणिका की दोनों किनारियाँ मिलती हैं वहाँ ऊपर की ओर एक चोंचनुमा आकृति निकली रहती है। संभवतः ये यहाँ के पूज्य पक्षी गरुण की चोंच का निरूपण है।

Lamyong in Gable End त्रिकोणिका कि किनारा यानि नक्काशी युक्त लामयोंग
चटक रंगों का प्रयोग थाइलैंड के जनजीवन में आम है। पिछली पोस्ट में मैंने आपको यहाँ की रंग बिरंगी टैक्सियों की बात बताई थी। मंदिरों की ब्राह्य सजावट में उनका ये रंग प्रेम और उभर कर सामने आता है। थाई अपने मंदिरों में सफेद के साथ लाल, गहरे हरे, पीले, नीले व नारंगी रंगों का इस्तेमाल बखूबी करते हैं।

Colourful layered roof of Wat Pho वाट फो की परतदार रंगीन छतें
अब ज़रा  इन  छतों की ढलानों को ध्यान से देखिए। इसमें आपको सामान्यतः तीन रंगों का समावेश मिलेगा। एक मुख्य रंग और उसके किनारे बार्डर या परिमति में दो रंगों की पट्टी। अंतिम पट्टी सामान्यतः सफेद रंग की होती है। छत की सुंदरता बढ़ाने के लिए उसमें परतों का इस्तेमाल किया जाया है। ऊपर के चित्र में आप छत की तीन परतों को देख सकते हैं। मंदिरों की सफेद दीवालों के बीच की खिड़कियाँ भी सुनहरे रंगों और महीन नक्काशी से सुसज्जित रहती हैं।

A window which opens path of peace एक खिड़की जो खोलती है शांति का रास्ता
इतनी देर हो गई और आप सोच रहे होंगे कि मैंने भगवान बुद्ध का दर्शन आपको नहीं कराया। दरअसल अस्सी हजार वर्गमीटर मैं फैले इस मंदिर के मुख्य प्रार्थना कक्ष तक पहुँचते पहुंचते काफी वक़्त लग जाता है। सोलहवीं शताब्दी में जब ये मंदिर बना था तब इतने वृहद रूप में नहीं था। तब तो बैंकाक का शहर भी अस्तित्व में नहीं आया था। प्राचीन मंदिर को इस रूप में लाने का श्रेय यहाँ के शासक राम प्रथम को जाता है जिन्होंने अठारहवीं शताब्दी में इस मंदिर का विस्तार और पुनर्निर्माण किया। बैंकाक का शाही महल भी उसी समय इस मंदिर की बगल में बनना शुरु हुआ। यानि वाट फ्रा क्याव से वाट फो ज्यादा प्राचीन है।

यहाँ के मुख्य प्रार्थना कक्ष जिसमें सारे महत्त्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान होते हैं को फ्रा उपोस्थ या उबोस्त या बोत भी कहा जाता है। फ्रा उपोस्थ में स्थापित बुद्ध की प्रतिमा सोने और तांबे की मिश्र धातु से बनी है। इसके ऊपर नौ परतों में बना छत्र है जो थाइलैंड की संप्रभुता का प्रतीक माना जाता है। राम प्रथम ने ये प्रतिमा थाइलैंड की पुरानी राजधानी अयुथ्या से लाकर यहाँ लगवाई थी।

Buddha's statue in main prayer hall फ्रा उपोस्थ में बुद्ध की प्रतिमा

वाट फो  के फ्रा उपोस्थ यानि मुख्य प्रार्थना कक्ष के चारों कोनो में चार स्तंभ बने हैं जिन्हें फ्रा प्रांग कहा जाता है। ये भव्य स्तंभ खमेर शासकों द्वारा बनाए मंदिरों की स्थापत्य शैली से प्रेरित रहे हैं। खमेर साम्राज्य के शासक विष्णु व शिव के उपासक थे और एक समय थाईलैंड तक उनका साम्राज्य फैला हुआ था। वैसे वाट अरुण, एक विशाल फ्रा प्रांग का सबसे अच्छा उदाहरण है।

Phra Prang फ्रा प्रांग

राम प्रथम ने वाट फो परिसर को ना केवल मंदिर बल्कि एक विश्वविद्यालय की तरह निर्मित किया था। यहाँ धर्म, इतिहास, भाषा के आलावा औषध विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी  थाई मसाज के बारे में शिक्षित करने वाला ये अपनी तरह का पहला विश्वविद्यालय था और आज़ भी है। यहाँ मंदिर की दीवारों में मसाज की विभिन्न पद्धतियाँ और शरीर के उर्जा बिंदु अंकित हैं। बाहर से आने वाले आज भी एक शुल्क देकर यहाँ पारम्परिक रीति से मसाज करवा सकते हैं।
Depiction of energy points of body on wall of temple शरीर के उर्जा बिंदु

राम वंश के शासकों ने आगे भी इस मंदिर को अलग अलग कालों में विस्तार दिया । राम तृतीय के समय ही  गौतम बुद्ध की सहारा लेकर आराम करती हुई प्रतिमा यहाँ बनाई गयी। ये प्रतिमा पन्द्रह मीटर ऊँची और तकरीबन इसकी तिगुनी लंबी है। बुद्ध की इस मुद्रा को उनके पुनर्जन्मों की समाप्ति के बाद के महानिर्वाण से जोड़ा जाता है। सिंहशैया नाम से प्रचलित इस मुद्रा में बुद्ध का एक हाथ अपने बालों पर है। उनकी बाँह के ठीक नीचे आयाताकार बक्से जैसे दो तकिये  हैं जिनके ऊपर महीन नक्काशी की गई है।

Reclining Buddha
बुद्ध के शरीर का अंदरुनी हिस्सा ईंटों से बनाया गया है। ईंटों के बाहर प्लास्टर कर उस पर सोने  की परत चढ़ाई गई है। पर इस प्रतिमा में जितना उनका चेहरा आकर्षित करता है उतने ही उनके विशाल चरण। बताइए तीन मीटर ऊँचे और साढ़े चार मीटर लंबे चरण आपने कहा देखें होंगे? उनके तलवों को 108 वर्गों में विभक्त कर प्रत्येक में उनके चारित्रिक लक्षणों को दर्शाया गया है। उनकी प्रतिमा के किनारे किनारे इतनी  ही संख्या में कटोरे भी रखे गए हैं जिनमें दान करना शुभ माना जाता है।


यूँ तो बैंकाक की मंदिर यात्रा में वाट फो के आलावा कई मंदिरों को बाहर और कुछ को अंदर से देखने का मौका मुझे मिला पर उनकी चर्चा फिर कभी। वाट फो की इस सैर में आपको थाई मंदिरों की संरचना का थोड़ा बहुत तो अंदाज मिल ही गया होगा। चलते चलते इस मंदिर से जुड़ी कुछ आवश्यक जानकारी आपको दे दूँ।

ये मंदिर रोज आठ बजे से शाम पाँच बजे तक खुला रहता है। वैसे मसाज का समय शाम छः बजे तक का है। रही प्रवेश शुल्क की बात तो यहाँ की सैर आपकी जेब को मात्र दो सौ रुपये की चपत लगाती है। और हाँ, मंदिर के प्रार्थना कक्ष में प्रवेश के समय वैसे कपड़े पहनने आवश्यक हैं जो आपके शरीर को ढक सकें।


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13 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut hi shandar post dali hai apne manish g.mai apke sare travel articles read karta hu aur anand uthata hu, apki lekhan shaili bahut hi sunadr hai:-)

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    1. शुक्रिया अपनी राय ज़ाहिर करने के लिये

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  2. सुन्दर जानकारी बैकाक के मन्दिरों की।

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  3. शानदार यात्रा वृत्त और कमाल के अद्भुत फ़ोटोज़ हैं | मैं तो आपके ब्लॉग का और आपकी लिखनी का पुराना प्रशंसक रहा हूँ मनीष जी | अब दोबारा सक्रिय हो रहा हूँ अब तो आता रहूँगा

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    1. पोस्ट पसंद करने के लिए शुक्रिया। आशा है ब्लॉगिंग में आपकी सक्रियता इस बार स्थायी रहेगी।

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