आसमान की ऊँचाइयों से नीचे दिखते बादलों के झुंड, डिब्बानुमा शहर, हरे भरे खेत खलिहान, पल पल अपना रास्ता बदलती नदी, पतली सर्पीली सड़कें और उस पर रेंगती गाड़ियाँ देखना विमान यात्राओं में मेरा प्रिय शगल रहा है। पर ये सारी छवियाँ अक्सर मन मस्तिष्क में अंकित हो कर रह जाती हैं। उन्हें कैमरे में क़ैद करने का सिर्फ एक मौका होता है और वो तब जब विमान अपने गन्तव्य तक पहुँचने के पहले शहर के आस पास के इलाकों पर मँडरा रहा होता है।जब भी खिड़की के पास मुझे बैठने का मौका मिलता है मैं इसी मौके का बेसब्री से इंतजार करता हूँ।
विदेशो में तो ये आनंद दूना हो जाता है क्यूंकि वहाँ के खेत खलिहान और शहर ऊपर से ही इतनी रंग बिरंगी छटा प्रस्तुत करते हैं कि मन बँधा का बँधा रह जाता है। आपको याद तो होगा ना टोक्यो के हरे भरे धान के खेतों का जाल और बेल्जियम की राजधानी ब्रसल्स का सुंदर सुव्यवस्थित शहर, जिसे मैंने ब्लॉग के इन पन्नों पर आपको पहले दिखाया था।। तो चलिए आज आपको दिखाते हैं पूर्वी यूरोपीय देश आस्ट्रिया की राजधानी वियना के आकाशीय नज़ारे
दरअसल अपनी यूरोप यात्रा के दौरान लंदन जाते वक़्त हमें वियना के हवाई
अड्डे पर अपना विमान बदलना था। विमान को सुबह छः साढ़े छः बजे के लगभग पहुँचना
था। सुबह एप्पल जूस का रसपान करने के बाद मेरी तंद्रा पाँच बजे ही भंग हो
चुकी थी। विमान ने नीचे आना शुरु नहीं किया था पर इतना पता चल रहा था कि
सूर्योदय हो चुका है। अगले आधे घंटे में ज्यों ज्यों हम नीचे आते गए खूबसूत
दृश्यों का काफिला नज़रों के सामने से गुजरता गया। तो आइए उनमें से क़ैद
कुछ लमहों को देखिए मेरे कैमरे की नज़र से ..
यूरोप में पवनचक्कियाँ आम हैं। हालैंड तो खैर मशहूर ही है अपनी पवनचक्कियों के लिए..पर बाकी देशों में भी इनका खासा इस्तेमाल है।
उठती गिरती ढलानों के बीच करीने से जुते खेत खलिहान अगर आकाश की ऊँचाइयों से देखे जाएँ तो वे कितना खूबसूरत अहसास जगाते हैं मन में.. और इन लहराते खेतों के बीच पीले पीले फूल से लदे पेड़ों का एक घना जंगल आ जाए तो लगता है मानो धरा से एक कविता सी फूट रही हो .
सूर्य की प्रथम किरणे इन उँघते जंगलों को जगा रही थीं। खेत पर पड़ती उनकी हल्की परछाई एक नई सुबह की दस्तक दे रही थी।
कुछ ही देर में खेत खलिहानों को पीछे छोड़ता हमारा विमान अब वियना के आस पास के कस्बों के ऊपर से उड़ान भर रहा था।
यूरोप में अधिकतर कस्बों में मकानों के रंग का एक बँधा बंधाया नियम होता है। अब यहीं देखिए सफेद रंग की दीवारें और भूरी नारंगी छतें सूर्य की पहली रोशनी जा स्पर्श पाकर किस तरह खिल उठी हैं।
वियना हवाई अड्डे पर उतरते उतरते सूर्य अपनी पूरी रोशनी के साथ निकल आया था। बाहर का तापमान तब भी पन्द्रह डिग्री ही था। चार पाँच घंटे एयरपोर्ट पर बिताने के बाद भरी दुपहरी में हम फिर वियना से लंदन के लिए उड़ चले।
दिन पूरी तरह निकल आया था। सो हरा रंग अब कुछ ज्यादा ही हरा हो गया था।
जुते और फसलों से लहलहाए ये हरे भूरे खेत पतली पतली पट्टियों के आकार में चारों ओर बिखरे पड़े थे। सहसा इनके बीच कोई पीले फूलों वाली पट्टी आती तो एकदम से उभर जाती।
विमान ने फिर ऊँचाई की ओर बढ़ना शुरु किया और खेत भी जंगलों में सिकुड़ते चले गए..फिर आल्पस की चोटियों से ऊपर निकलता हमारा विमान बादलों के झुंड में विलीन हो गया।
तो कैसे लगे आपको वियना के ऊपर से लिए गए ये आकाशीय नज़ारे.. ?
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ये खेत तो हमारे गांगेय क्षेत्र से कहीं अलग नजारा प्रस्तुत करते हैं!
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
हाँ यहाँ की मशीनी जुताई इन्हें एक अलग ही खूबसूरती से भर देती है।
हटाएंManish Ji ram ram.bhut he sunder photo.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंबहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-06-2015) को "यही छटा है जीवन की...पहली बरसात में" {चर्चा अंक - 2018} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक आभार !
हटाएंखेत - almost like sea waves. Very nice. Thanks for sharing photos.
जवाब देंहटाएंYeah u r correct they look like earthy waves :)
हटाएंबहुत............बहुत सुंदर फोटो ......... धन्यवाद मनीष जी .........
जवाब देंहटाएंसाथ बने रहने का शुक्रिया !
हटाएंसुन्दर!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की १००० वीं बुलेटिन, एक ज़ीरो, ज़ीरो ऐण्ड ज़ीरो - १००० वीं बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !
हटाएंIt's awesome !
जवाब देंहटाएंThanx Sir !
हटाएंWonderfully captured..
जवाब देंहटाएंThe landscapes were so beautiful that all I had to do was only trigger the button at the right time :)
हटाएंsuperbb
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट खासतौर से चित्र बहुत अच्छे हैं वो भी तब जब कि चलते विमान से लिए गए हों
जवाब देंहटाएंमुझे तो बस इतना करना था कि सही समय पर शटर का बटन दबाना था :)
हटाएंअत्यंत सुन्दर चित्र....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपको चित्र पसंद आए जानकर प्रसन्नता हुई।
हटाएंकमाल के दृश्य दिखाये आपने। ये छायाचित्र धरती के कम किसी अलग खूबसूरत दुनिया के ज़्यादा जान पड़ते हैं। सचमुच अजब गज़ब रूप लिए है हमारी दुनिया।
जवाब देंहटाएंहम्म इसीलिए तो सुबह चार बजे भोर से इनकी प्रतीक्षा में बैठा था नम्रता । मैंने आस्ट्रिया की सुंदरता के बारे में पहले ही सुन रखा था। तुम्हें ये दृश्य मनमोहक लगे जानकर खुशी हुई।
हटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंbahut badiya
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंखूबसूरत ! :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंVery nice pictures sir ji
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंमन हरिया दिया,,एकदम फ्रेश फ्रेश।
जवाब देंहटाएंआँखें और मन दोनों ही बाँध लें ये अलौकिक नज़ारे।
कितनी कठिनता से आपने आँखें हटाई होंगी,हम समझ सकते हैं।
आभार साँझा करने के लिए
धन्यवाद रंजना जी !
हटाएंYor,gerat,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंख्वाबों के जैसी यात्रा ! खेत खलिहान ऐसे लग रहे हैं जैसे किसी चित्रकार ने चित्रकारी करी हो !!
जवाब देंहटाएंसही मुझे भी ऐसा ही लगा था।
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