गुरुवार, 11 जून 2015

गंगटोक चित्रों में .. In Pictures Gangtok

सिक्किम प्रवास के आखिरी दिन हमारे पास दिन के 3 बजे तक ही घूमने का वक्त था। तो सबने सोचा क्यूँ ना गंगटोक में ही चहलकदमी की जाये। सुबह जलपान करने के बाद सीधे जा पहुँचे फूलों की प्रदर्शनी देखने




वहाँ पता चला कि इतने छोटे से राज्य में भी ऑर्किड (Orchids) की 500 से ज्यादा प्रजातियाँ पाई जातीं हैं जिसमें से कई तो बेहद दुर्लभ किस्म की हैं। इन फूलों की एक झलक हमें चकित करने के लिये काफी थी। 


Orchids of Sikkim

भांति भांति के रंग और रुप लिये इन फूलों से नजरें हटाने को जी नहीं चाहता था। ऐसा खूबसूरत रंग संयोजन विधाता के आलावा भला कौन कर सकता है।


Orchids of Sikkim

फूलों की दीर्घा से निकल हमने रोपवे की राह पकड़ी। ऊँचाई से दिखते गंगतोक की खूबसूरती और बढ़ गई थी। 


Aerial View from Gangtok Rope way
हरे भरे पहाड़, सीढ़ीनुमा खेत, सर्पाकार सड़कें और उन पर चलती चौकोर पीले डिब्बों जैसी दिखती टैक्सियाँ ।



रोपवे से आगे बढ़े तो सिक्किम विधानसभा भी नजर आई। 
Sikkim Legislative Assembly

रोपवे से उतरने के बाद बौद्ध स्तूप की ओर जाना था । स्तूप तक की चढ़ाई-चढ़ते चढ़ते हम पसीने से नहा गए। यहाँ की भाषा में स्तूप को Do-Drul-Chorten कहते हैं। इस स्तूप के चारों ओर 108 पूजा चक्र हैं जिन्हे बौद्ध भक्त मंत्रोच्चार के साथ घुमाते हैं।


Prayer wheels at Do Drul Chorten, Gangtok
वापसी का सफर 3 की बजाय 4 बजे शुरू हुआ। गंगतोक से सिलीगुड़ी का सफर चार घंटे मे पूरा होता है। इस बार हमारा ड्राइवर बातूनी ज्यादा था और घाघ भी। टाटा सूमो में सिक्किम में 10 से ज्यादा लोगों को बैठाने की इजाजत नहीं है पर ये जनाब 12-14 लोगों को उस में बैठाने पर आमादा थे। खैर हमारे सतत विरोध की वजह से ये संख्या 12 से ज्यादा नहीं बढ़ पाई ।
A typical building style in  Gangtok

सिक्किम में कायदा कानून चलता है और लोग बनाए गए नियमों का सम्मान करते हैं पर जैसे ही सिक्किम की सीमा खत्म होती है कायदे-कानून धरे के धरे रह जाते हैं। बंगाल आते ही ड्राइवर की खुशी देखते ही बनती थी। पहले तो सवारियों की संख्या 10 से 12 की और फिर एक जगह रोक कर सूमो के ऊपर लोगों को बैठाने लगा। पर इस बार सब यात्रियों ने मिलकर ऐसी झाड़ पिलायी की वो मन मार के चुप हो गया।

Sikkim has numerous road side waterfalls
उत्तरी बंगाल में घुसते ही चाँद निकल आया था। पहाड़ियों के बीच से छन कर आती उसकी रोशनी तीस्ता नदी को प्रकाशमान कर रही थी। वैसे भी रात में होने वाली बारिश की वजह से चाँद हमसे लाचेन और लाचुंग दोनों जगह नजरों से ओझल ही रहा था, जिसका मुझे बेहद मलाल था। शायद यही वजह थी कि चाँदनी रात की इस खूबसूरती को देख मन में ऍतबार साजिद की ये पंक्तियाँ याद आ रही थीं 

वहाँ घर में कौन है मुन्तजिर कि हो फिक्र दर सवार की
बड़ी मुख्तसर सी ये रात है, इसे चांदनी में गुजार दो
कोई बात करनी है चाँद से, किसी शाखसार की ओट में
मुझे रास्ते में यहीं कहीं किसी कुन्ज-ए -गुल में उतार दो

पर यहाँ उतरने की कौन कहे स्टेशन समय पर पहुँचने की समस्या थी। गंगतोक के बाहर सड़क बनने की वजह से हमें 1 घंटे रुकना पड़ा था। अब हमारे पास मार्जिन के नाम पर आधे घंटे ही थे। यानि 9.30 बजे की ट्रेन के पहले अपनी क्षुधा शांत करने की योजना हम ठंडे बस्ते में डाल चुके थे। घाटी पार करते ही चालक ने हमारी परेशानी देखते हुये टाटा सूमो की गति 75 किमी/ घंटे कर दी थी । पर भगवन हमारी वापसी की यात्रा को और रोमांचक बनाने पर तुले थे। सो सिलिगुड़ी के ठीक 25 किमी पूर्व ही सूमो का एक टॉयर जवाब दे गया। 20 मिनट टाँयर बदली में गये । सबके चेहरे पर तनाव स्पष्ट था। पर चालक की मेहरबानी से गाड़ी आने के ठीक 5 मिनट पूर्व हम भागते दौड़ते प्लेटफार्म पर पहुँचे।



चंद दिनों की मधुर स्मृतियों को लिये हमारा समूह वापस लौट रहा था कुछ अविस्मरणीय छवियों के साथ । उनमे एक छवि इस बच्चे की भी थी जिसे हमने चुन्गथांग में खेलते देखा था! आशा है सिक्किम पर की गई ये श्रंखला आपको पसंद आई होगी।

इस श्रंखला की सारी कड़ियाँ

अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "उलझे हुए शब्द-ज़रूरी तो नहीं" { चर्चा - 2004 } पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. आपसे मै बहुत प्रेरित हुआ हूॅ ।मै भी सिक्किम की यात्रा पर जाना चाहता हू ।

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    1. जरूर जाएँ पर जून के पहले वर्ना उसके बाद वहाँ बारिश शुरु हो जाएगी।

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  3. बहुत ही अच्‍छी सैर कराई आपने। मेरे ब्‍लाग पर आकर ''हैलो सिक्किम'' कहानी जरूर पढ़ें। मुझे खुशी होगी।

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    1. धन्यवाद !
      कहकशाँ जरूर पर आप उस पोस्ट का यहाँ लिंक तो दें।

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  4. अति सुन्दर वृतान्त, आपकी सिक्किम यात्रा कितने खर्च में संपन्‍न हुई इस बात की जानकारी भी पाठकों के लिए उपयोगी होगी।

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    1. मुझे प्रति व्यक्ति करीब पन्द्रह हजार का खर्च आया था। पर खर्चा बहुत सारी बातों पर निर्भर करता है। मसलन आपने यात्रा किस श्रेणी में की। कैसे होटलों में ठहरे? कहां कहाँ गए?
      यहाँ मैं स्लीपर ट्रेन में राँची से जलपाइगुड़ी और फिर साझा जीप में गंगटोक तक गया था। हम हजार रुपये तक के होटलों में ठहरे थे। मुख्य खर्चा गुरुडांगमार और यूमथांग और छागू के लिए ली गई गाड़ी का था।

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    2. और हाँ गाड़ी का खर्चा भी दो परिवारों में बाँटा गया था।

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  5. हाॅ !स्वाति जी से मै भी सहमत हूॅ।

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    1. सारी जानकारियाँ पोस्ट पर देना संभव नहीं होता। आप कमेंट में या इस ब्लॉग के फेसबुक पेज पर जब चाहे सवाल कर सकते हैं। समय मिलते ही मैं उसका उत्तर देने की कोशिश करता हूँ। आशा है ऊपर दिए उत्तर से आपको भी खर्चे के बारे में जानकारी मिल गई होगी।

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  6. जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत धन्‍यवाद। आपकी बात भी सही है कि सारी जानकारियाँ पोस्ट पर देना संभव नहीं होता, और जितना आप लिखते है उतना भी बहुत उपयोगी है। हर किसी के बस की बात नहीं है इतना अच्‍छा लेखन करना और बारीकी से सभी जानकारियां देना।

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    1. शुक्रिया..बतौर यात्रा लेखक जिन बातों का वर्णन करने में ज्यादा खुशी होती है वो सहज ही हमारे लेख का हिस्सा बन जाता है। कुछ बातें हम इसलिए भी नहीं लिखते कि इसी बहाने प्रश्न और उत्तर के माध्यम से पाठकों से संवाद बनाने का मौका मिलता है जो कि एक ब्लॉग लेखक के लिए आवश्यक है।

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  7. Ati sundar chitra. Par hamein to intezar hai europe ka! :)

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