लूसर्न से स्विट्ज़रलैंड का मेरा अगला पड़ाव था माउंट टिटलिस। इंटरलाकन में जुंगफ्राओ के शिखर तक पहुँचने के बाद मुझे लग रहा था कि आख़िर टिटलिस की चढ़ाई क्या वैसी ही नहीं होगी? डेजा वू के अहसास को मन ही मन दबाए मैं लूसर्न से इंजलबर्ग अपने काफिले के साथ निकल पड़ा।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEir0y9KJQg2qhVLI_JOKJebSfwGaVn0e_f_Q6GqXZcpG-QSwj_fSVlbSNf1rgHL3q5SxpQB1uLPVdQzt7F7_aJQctUBorw33j8zG-mYdjmpun3DPdLaad6jg4POeJiK2GPJlMJ1iF-axV5m/s640/Titlis.JPG) |
माउंट टिटलिस के शिखर पर.. :) |
जिस तरह युंगफ्राओ की चढ़ाई क्वाइन्स स्काइक नाम के स्टेशन से शुरु होती है वैसे ही टिटलिस तक पहुँचने का आरंभिक पड़ाव केंद्रीय स्विटज़रलैंड का कस्बा इंजलबर्ग है। टिटलिस (3238m) और युंगफ्राओ (3571m) की चोटियों की ऊँचाई में ज्यादा अंतर नहीं है। मुख्य फर्क सिर्फ शिखर पर पहुँचने के तरीके में है। जुंगफ्राओ का सफ़र रेल से पूरा होता है जबकि टिटलिस का केबल कार और फिर रोटोकार की बदौलत।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGRSK9Rm8LEnKyg-FaDtyPRfXBIhrWuCPYzQElyUmuNGK8JtHdeXZryuH3x3TNDzz91h8bLCAssYIaL2vNtu8rxj5OhtixDPXmzJehAAYALIMhH2dTCeryEnC2Q0f-X8N9xfvzF6cVnZF2/s640/Titlis+0.jpg) |
केंद्रीय स्विट्ज़रलैंड का कस्बा इंजलबर्ग |
लूसर्न से इंजलबर्ग मात्र पैंतीस किमी दूर है। पर ये छोटा सा सफ़र भी बड़ा सुहावना है। रास्ते में दोनों ओर हरी भरी पहाड़ियाँ साथ चलती हैं। मौसम भी शानदार रहा। ऊपर नीला आसमान, चमकती धूप और नीचे हरी भरी वादियाँ। पर इंजलबर्ग जैसे जैसे बेहद करीब आने लगा दूर से ही खड़ी चट्टानों वाले स्याह नुकीले पहाड़ की दिखाई देने लगे ।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPEZ9zPA2Y6irplMV080xX8L1A4Mxjr6EsS7YfclYIlrolzrHrr0MGcTaGP2do33gB3lKbjYZNFv0CfRKtxP97N0WYdLkpOA9CycrxNUW13K9sUmoZyW9Awtsl4o5gunUMl76-3dNeL2Tg/s640/Titlis+%25282%2529.JPG) |
नुकीले स्याह पर्वत शिखर |
इंजलबर्ग पर यात्रियों का भारी जमावड़ा था। ज्यादातर संख्या भारतीय और चीनियों की थी। केबल कार पर प्रवेश करते ही हिदायत मिली कि आप सबका टिकट टिटलिस की चोटी तक का है। केबल कार बीच के स्टेशन पर रुकेगी। स्वचालित दरवाजे खुलेंगे पर आप सब अपनी सीट पर ही बैठे रहना।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOcbfmTU-0krLbnFIQBIUFI8owVA2KUt8KFEIVY-CGiK-LHQsDf9evUd06oJ5AGjpuSqfFjBNtUhuHIsB1TYymSbQxwNs91C1IKzBova_UkgQWGZNWQXXo8AXuHtDOsQmgGWYmrzh_aa0c/s640/Titlis+%25283%2529.JPG) |
केबल कार से दिखता नीचे का दृश्य |
केबल कार जैसे ही इंजलबर्ग से बाहर आई घास के हरे भरे मैदानों को देखकर हमारी आँखें हरिया गयीं। नीचे खड़ी बसें, घर अब सब डब्बे सरीखे नज़र आने लगे। सड़कें, पगडंडियाँ और नदी स्याह, पीली और नीली लकीरों में तब्दील होनें लगीं।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2nU7M-DizOvU_JjNV98E0kuRtQ_iMhz6nM3QWHHNOKPsZHMCPg6L8CZti8wXnSeb-hpkCn-EzvLdy0iDLOEt6ftYpV6LC7nPwWGlEGXC7AE2jxTse279V-_qeVPyKQgjuA9UG1i3plTs-/s640/Titlis+%25284%2529.JPG) |
ऍसा दिखता है आकाश से इंजलबर्ग ! |
अब हमारा पहला स्टेशन पास आ रहा था। स्टेशन आते ही कुछ पलों के लिए केबल कार रुकी, दरवाजे खुले और सामने की केबल कार से इतनी सारी हिदायतों के बावजूद एक गुजराती महाशय बाहर की ओर लपके। समय कम था और दरवाजा बंद होने ही वाला था । सब तरफ से साथी यात्री आवाजें लगाने लगे कि यहाँ नहीं उतरना है तो वो वापस भागे और समय रहते वापस केबल कार में दाखिल हो गए। सबने चैन की साँस ली।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzUY6mfe9cH1hzJvdMDdxT_bzFy9IdELeQweTA-Uvccqk4gZ1sNiIqEffkqcv6C_9rbTMBu8lnxBMCTCB3tRMxMiHrfph3caozrYBiRqc0BV4hhAu20LeBZzN3ByY2T4G-XLsnoqxaIdPE/s640/Titlis+%25285%2529.JPG) |
यूरोप में हिंदी से पहली मुलाकात |
केबल कार फिर चल दी और अचानक ही मेरी नज़र एक बोर्ड पर पड़ी और हँसते हँसते मेरा बुरा हाल हो गया। स्विट्ज़रलैंड वालों ने क्या खूब पहचाना है भारतवासियों की प्रवृति को ! जानते हैं बोर्ड की भाषा क्या थी? जी हाँ जनाब हिंदी और उस पर लिखा था गंतव्य पहाड़ की चोटी पर है। कृपया बैठे रहें। यानि स्विस ये अच्छी तरह जान गए हैं कि कितना भी समझा लो हड़बड़िया भारतीय भायाओं में से कोई तो गलती करेगा ही। यही वज़ह है कि संदेश हिंदी में लिखा गया ताकि लोग समझ सकें। ऐसा ही एक संदेश मंदारिन में भी मिला यानि इस मामले में हिंदी चीनी भाई भाई।😉
हिंदी का प्रयोग ये तो साबित कर गया कि बड़ी तादाद में भारतीय आजकल स्विटज़रलैंड की यात्रा कर रहे हैं। वैसे अपनी यूरोप यात्रा में हिंदी से हुई अनायास ये मुलाकात पहली और आखिरी थी।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEic-ZTFAxyPFqGZD4kI39_kpHrJswt5TLZiQjZRMUBFoEuHbTqovSKYS6acE1GSO8f-ffzWiaKBtdZPifYoA1jcPlTz0ytoMbDAsQJqzAjB42ucMdIPI0Hkx7bn8DVw9nEbIkplmRr18k6b/s640/Titlis+%25286%2529.JPG) |
केबल कार जो ले जाती है टिटलिस से थोड़ा पहले तक |
हमारी केबल कार ने स्टेशन आने के पहले तक तीखी चढ़ाई चढ़ी थी। आगे का रास्ता फिर नीचे ढलान वाला था। कई बार इस रास्ते में बर्फबारी की वजह से धुंध छाई रहती है और कुछ दिखाई नहीं देता पर मैं खुशनसीब था कि मैं वहाँ तब पहुँचा था जब मौसम पूरी तरह खुला हुआ था। केबल कार का अंतिम स्टेशन आने के पहले आखिरी चढ़ाई फिर आरंभ हो गयी। यूँ तो सारी यात्रा अच्छे से कट गयी पर ये देख के अचरज हुआ कि केबल कार के शीशों का रखरखाव अच्छा नहीं था और उनमें जगह जगह निशान पड़े थे जो चित्र खींचने में बाधा उत्पन्न कर रहे थे।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdxsP97Zh_nXh5nxhyphenhypheneQE2gEMuhTmpGiRIYUe9M_B1VScnRLm5kEjVMhWptaZBa2byG6yG7Moxszb49C2TCorOm8rOGmq9Q6aXd6PpEWKaUFi8Zve1Pz6XiPBvFOqGEXcWQ2-qooRDAvvY/s640/Titlis+%25287%2529.JPG) |
रास्तों का संगम हैं ना विहंगम ? |
अब हमें आगे का सफ़र रोटोकार में तय करना था। रोटोकार भी एक तरह की केबल कार है जो ऊपर जाने के साथ अपनी धुरी पर गोल गोल घूमती है ताकि 360 डिग्री तक के नज़ारों को आप सहूलियत के साथ देख सकें।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZBjXEcU7ceIwSYkjUck5XE0cPK7cdY84by09fRAnL3c7etHNoKEjc-Mjev0IKuKlCIxMJF_KY4rdDF2NQrhaOr24Xed8UR5QdhVX69n3ILwUn6IFb_-xod4e6seuu99RxG7k5lXisB6t0/s640/Titlis+%25288%2529.JPG) |
ये है दुनिया की सबसे पहली रोटोकार ! |
रोटोकार में आकर लगा कि सारा विश्व लगभग पचास वर्ग फुट के दायरे में सिमट गया है। रोटोकार जिसे यहाँ रोटोएयर के नाम से बुलाया जाता है विश्व की प्रथम ऍसी कार थी जो ऊपर उठते हुए चक्कर लगाती है। पहली बार आज से करीब नब्बे वर्ष पूर्व 1927 में इस कार ने लोगों को टिटलिस की चोटी पर पहुँचाया था।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVwf-VtVEHZtksxRtxz0hN5ATK1h2jiNMH09pJOam3g1M6gRv59gthHjPiA_B8ByR4byZFNBhXSR97K-zIWjYQSvLQpxW94OGUYUKNQIpwX3zkHrtXjL5BStwpzaRH70ihDxGtCWB-85g_/s640/Titlis+%25289%2529.JPG) |
लो जी बस पहुँच ही गए बर्फ की चादरों में लिपटे इस शिखर के पास |
इस कार में इतने यात्रियोँ को अंदर घुसा दिया जाता है कि तिल रखने की भी जगह ना बचे। पर दस पन्द्रह मिनट की इस यात्रा में दिखने वाले दृश्य इतने रोमांचकारी होते हैं कि पता ही नहीं लगता कि कब आप टिटलिस की चोटी पर पहुँच जाते हैं।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCq6eNl0oBizRPmG7OrApDY_RJexQNxvG4194HYSkSe-bxFLNoGIAuGuW4n-G1eKfFlKaTlgArWZvbX3eXkiEGKmt9GciBC5EG_G21mbb0w1OLOLBXcPa2GCjY_4904jqavgSb6vLMOAF_/s640/Titlis+%252810%2529.JPG) |
इन बर्फीली गुफाओं की दीवारों पर बनी हैं बर्फ की कलाकृतियाँ |
युंगफ्राओ की तरह पहाड़ के अंदर यहाँ भी बर्फ का संग्रहालय बनाया गया हे। जुंगफ्राओ में तीखी धूप का सामना करने के बाद मैंने यहाँ जैकेट का भी त्याग कर दिया था पर बर्फ की सुरंगों से गुजरते वक़्त धूप तो नदारद हो गयी और शुन्य से कम तापमान का सामना एक मफलर और इनर के सहारे करना मुझे भारी पड़ा। जल्दी जल्दी बर्फ की कलाकृतियों पर नज़र मारते और ठिठुरते हुए जब बाहर निकले तो जान में जान आई।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiS0717nI9arUH74YzjSmeUXRRLQ20FLa9Zkwtr-D5pbBVRzNW3kZT7cdJvvF4aHBfqBYFkVGQa7YaOZr0M0bLa7fHy90TEVEdnZIFda_26xam3BTGIMHXmNz82ZnO49BqghVQRO1tjxq9v/s640/Titlis+%252811%2529.JPG) |
आइस फ्लायर और ग्लेशियर पार्क तक की चढ़ाई |
टिटलिस के रोमांच को और बढ़ाने के लिए एक आइस फ्लायर भी है। जिसमें एक कुर्सी पर बैठकर बर्फ के मैदानों की बेहद पास से सैर की जा सकती है यानि ऐसा लगे कि बर्फ में ही उड़ रहे हों। आइस फ्लायर के ठीक पीछे एक सौ मीटर लंबा लटकता हुआ पुल है। समुद्रतल से 10000 फीट ऊपर बने इस पुल के तीन फीट चौड़े रास्ते पर चलना डर को चुनौती देना है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5yvnvrCic4CQWAO0CtyqdVX7vIO5OeNzjbt7Ht9Ca_O6_l7MILF_Yyyl-rh5NdRM4Qa09i_NtwK1-VdtsylaD7nVMqFkXWi1Twxdouo2pjtw-uTHCSpZXBhyQY3LSS17vr15IbrPvFMwN/s640/Titlis+%252814%2529.JPG) |
आइस फ्लायर और उसके ठीक पीछे है लटकता पुल |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjq4LJqFvDRhmWb1gJQnFtOBuX0WYEAJKBgMxQ566_y5pkyZfyagq2wmDQ5FJAghf6mB2BhRlophmaZ7Ln-0cNkJSt2k2T5K2Kzm1IhSER3BvIdKILRYfwmvCmf_sfvX8eBCaFdhg9jAlpD/s640/Titlis+%252815%2529.JPG) |
ढलान को पार कर पहुँचना था शिखर पर |
आइस फ्लायर से ज्यादा मुझे बर्फ की विशाल चादर आकर्षित कर रही थी जो टिटलिस की ढलान पर बिछी हुई थी। मन हुआ कि दल बल के साथ इसी पर चढ़ाई कर ली जाए। दस पन्द्रह मिनट की मशक्कत के बाद हम शिखर पर थे। जहाँ तक नज़र जा रही थी वहाँ तक छोटे बड़े हिम शिखरो का जाल सा बिछा हुआ था।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOqtcrD9gybDSe98m1jWDik6qh9eNPlnqW6-1DpcdsQDzmyPAIWlAXnq31ivBgNhHWkHUt8oDU4BcyKyBjPlQEcuntoyp1STr8UzeN6Afla74zY17MR_1OTTWU42mFXeQtDSrTnoQyhho0/s640/Titlis+%252812%2529.JPG) |
बर्फ में मस्ती |
अब नीचे चल के जाने का मन मुझे नहीं कर रहा था। अचानक ही विचार आया क्यूँ ना इस बर्फ पर फिसलते हुए नीचे पहुँचा जाए। फिर क्या था बच्चों के साथ नीचे से ऊपर तक बनी पगडंडी पर फिसलना शुरु हुआ। आगे बच्चे और पीछे मैं। दिक्कत ये हुई कि कुछ देर बाद मेरे फिसलने की गति बच्चों से ज्यादा हो गयी और एक समय ऐसा लगने लगा कि मैं उनसे टकरा ही जाऊँगा। पर बच्चों ने ऐन वक्त पर पलटी मारकर मेरे रास्ते से अपने आप को अलग किया और हम तीनों लगभग साथ साथ पहुँचे। इस करतब में मजा खूब आया और तशरीफ भी गीली होने से बच गयी।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs3vsiF14NWlweaL41yQeCHnZN19fs5qc0Sw7iC3fHTAi4RvvC9C2xSDiWTiaLyU91cbjdVMDzAW3Rr5l0Bj2xvAh0uScyeAtMx1gTunCpwnkOviYG8rVCp2FYseehNSnb-cwssGfDSZP7/s640/DSC02131.jpg) |
कौन कौन मेरे साथ लुढ़केगा ? |
नीचे जाकर कुछ देर सुस्ताने के बाद सबने वापसी की राह पकड़ी तो रास्ते में शाहरुख और काजोल से मुलाकात हो गयी। यूँ तो दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे कि शूटिंग मूलतः इंटरलाकन के आस पास के इलाकों और जुंगफ्राओ में हुई है पर भारतीय पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए फिल्म का ये पोस्टर टिटलिस पर भी लगा दिया गया है। ज़ाहिर था कि स्विट्ज़रलैंड की सरजमीं पर हमने भी इस फिल्म की यादों से अपनी यादों को जोड़ लिया।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_rxrr7blOMKMJsuZaDcH7dtH_6wygtpu39URUZIMADRo82z08r75O04Qsrd7IwuS4x5MxaRKAm1oI_y8thUY61cH1ucr9D3IdOXPwMNhgfTTEZUngnxSwMhIaLutwwtLkuWxDftD1VkgZ/s640/Titlis+%252816%2529.JPG) |
यादें DDLJ कीं ! |
टिटलिस स्विटज़रलैंड में स्कीइंग का बहुत बड़ा केंद्र है। गर्मी कै मौसम में भी यहाँ की बर्फ स्कीइंग के लिए आदर्श होती है। मुझे तो स्कीइंग नहीं आती पर ये जानकर कि स्कीइंग द्वारा टिटलिस के शिखर से नीचे की हरी भरी वादियों तक पहुँचा जा सकता है मन रोमांच से भर आया। किमी के इस रास्ते को पूरा करना इस विधा के जानकार का निश्चय ही सपना होता होगा।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpxfTXWJuOevJ2lQnT636TfvT_thrtZ5W95Iq3HJfed8Mz0ODKkgdZaMgLMlBxiAtYJXUCzTeMAVVo1WIHDyd8xyhn2aa1SLpcG9J1PFaA8m5YI5Chw_GTy_MunEjhxbmIR8GGPcZyL0zX/s640/Titlis+%25281%2529.JPG) |
स्कीइंग से बर्फ पर उभरे निशान |
टिटलिस स्विटज़रलैंड का हमारा आखिरी पड़ाव था। इसके बाद हम ऐसे देश में प्रवेश करने वाले थे जिसकी चर्चा राजनीतिक रोटियाँ सेकने वाले गाहे बगाहे किया करते हैं। कौन था वो देश जानिएगा यूरोप से जुड़ी इस श्रंखला के आगे की कड़ियों में..
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4i8heZOkoJbwiDi2zz9Y1OtAJhV5upTEf9bE73wyFgQeTyW500Xr3YvLFahyMbD33wEESe2iAJ2VjYI-3SiqOqfxfI2uS1CRchsE_yLU8-JprNFR-Qdf_FPnFpoDxGH_KMW-6MoJcyucq/s640/Titlis+%252817%2529.JPG) |
अलविदा माउंट टिटलिस ! |
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
धन्य हो हिंदी में लिखना ही पड़ा आखरी में स्विस govt को और यूरोप में हिंदी चीनी भाई भाई ग़ज़ब लगा...DDLJ लगता है इतनी सर चढ़ कर छाई हुई है कि भारतीय जब स्विट्ज़रलैंड में जाते होंगे तब सिर्फ DDLJ लोकेशन मांगते होंगे....रोटोकार के बारे में जानकर अच्छा लगा...भारत मे ओली में भी इस तरह ली केबल कार चलती है और बिल्कुल यूरोप का अनुभव देती है....
जवाब देंहटाएंरोटोकार तो अब ख़ैर भारत सहित विश्व के कई देशों में है। टिटलिस में इस तकनीक की शुरुआत हुई थी। DDLJ अपने ज़माने की लोकप्रिय फिल्म थी पर ऍसा नहीं है कि भारतीय सिर्फ उन्हीं लोकेशन पे जाना चाहते हैं। ये तो स्विस लोगों का भारतीयों को रिझाने का तरीका है। अपने देश से जुड़ी किसी फिल्म की यादगार देख कौन ऐसा भारतीय है जो खुश नहीं होगा।
हटाएंकृपया आपका कुल खर्च भी बताए कहाँ से कितना खर्च हुआ या पैकेज कितने का पड़ा थोड़ी जानकारी इसलिए मांग रहा हूं क्योंकि मेरा भी सपना है कभी यूरोप की सैर कर आऊँ
जवाब देंहटाएंये थोड़ा पेचीदा प्रश्न है। खर्च आपके द्वारा चुने हुए देशों, जाने के समय, यात्रा के अंतराल, होटल का आपका चुनाव जैसी बातों पर निर्भर करता है। बिना पैकेज आफ सीजन में जाने, यूथ हास्टल में रहने, पब्लिक ट्रासपोर्ट इस्तेमाल करने से हफ्ते भर का खर्चा साठ हजार से एक लाख के बीच आ सकता है।
हटाएंपैकेज में हफ्ते भर का खर्चा डेढ़ लाख (7 days) से ढाई लाख (15 days) तक का है। पैकेज के आलावा जो जरूरी खर्चे होते हैं वो कुल खर्च के पाँच प्रतिशत से ज्यादा नही होते।
Bahut acchi jankari di shayd isme flight ka kharcha alag hoga waise aapki musafir yu yaaro ki post bahut baar padha hu kaafi maza aata hai padh kar aapka padoshi hi hu jamshedpur se
हटाएंपैकेज वाले मूल्य में फ्लाइट का खर्चा भी शामिल है।
हटाएंPhir se yad dila di apne..Ab phir se jana pdega
जवाब देंहटाएंक्यूँ दिल अभी भरा नहीं :)
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ओ. पी. नैय्यर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !
हटाएंजबरदस्त लेखन भाई जी, देश में विदेशी जानकारी प्राप्त कर के काफी खुशी प्राप्त होती है।
जवाब देंहटाएंआपको आनंद आया ये जानकर मुझे भी खुशी हुई !
हटाएंचलो खुशी हुयी कि आप तशरीफ गीली करने से बच गये। ये सब रोमाँच का भाग है।
जवाब देंहटाएंहा, हा :)
हटाएंDhanywaad
जवाब देंहटाएं