गुरुवार, 23 अगस्त 2018

भारत के आधुनिकतम संग्रहालयों में से एक : पटना का बिहार संग्रहालय Bihar Museum, Patna

बिहार के साथ आधुनिक शब्द का इस्तेमाल थोड़ा अजीब लगा होगा आपको। भारत के पूर्वी राज्यों बिहार, झारखंड और ओड़ीसा का नाम अक्सर यहाँ के आर्थिक पिछड़ेपन के लिए लिया जाता रहा है पर बिहार के पटना  स्थित इस नव निर्मित संग्रहालय को आप देखेंगे तो निष्पक्ष भाव से ये कहना नहीं भूलेंगे कि ना केवल ये बिहार की ऐतिहासिक एवम सांस्कृतिक धरोहर को सँजोने वाला अनुपम संग्रह केंद्र है बल्कि इसकी रूपरेखा इसे वैश्विक स्तर के संग्रहालय कहलाने का हक़ दिलाती है।

बिहार के गौरवशाली ऍतिहासिक अतीत से तो मेरा नाता स्कूल के दिनों से ही जुड़ गया था जो बाद में नालंदा, राजगीर, वैशाली और पावापुरी जैसी जगहों पर जाने के बाद प्रगाढ़ हुआ पर पिछले महीने की अपनी पटना यात्रा मैं मैं जब इस संग्रहालय में गया तो बिहार की कुछ अनजानी सांस्कृतिक विरासत से भी रूबरू होने का मौका मिला।  

संग्रहालय परिसर में लगा सुबोध गुप्ता का शिल्प "यंत्र"
पाँच सौ करोड़ की लागत से पटना के बेली रोड पर बने इस संग्रहालय की नींव अक्टूबर 2013 में रखी गयी और चार साल में एक जापानी कंपनी की देख रेख में इसका निर्माण हुआ। दरअसल इस विश्व स्तरीय संग्रहालय का निर्माण बिहार के वर्तमान मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह का सपना था। अंजनी जी ख़ुद एक संग्रहकर्ता हैं और आप जब संग्रहालय के विभिन्न कक्षों से गुजरते हैं तो लगता है कि किसी ने दिल लगाकर ही इस जगह को बनवाया होगा।

संग्रहालय का मानचित्र

संग्रहालय में प्रवेश के साथ ओरियेंटेशन गैलरी मिलती है जो संक्षेप में ये परिभाषित करती है कि संग्रहालय के विभिन्न हिस्सों में क्या है? साथ ही ये भी समझाने की कोशिश की गयी है कि एक इतिहासकार के पास इतिहास को जानने के लिए क्या क्या मानक प्रक्रियाएँ उपलब्ध हैं? अगर आपके पास समय हो तो यहाँ पर आप एक फिल्म के ज़रिए बिहार में हो रहे ऐतिहासिक अनुसंधान के बारे में भी जान सकते हैं। 

बिहार बौद्ध और जैन धर्म का उद्गम और इनके धर्मगुरुओं की कर्मभूमि रही है। इसलिए आप यहाँ अलग अलग जगहों पर खुदाई में निकली भगवान बुद्ध ,महावीर और तारा की मूर्तियों को देख पाएँगे। इनमें कुछ की कलात्मकता देखते ही बनती है। आडियो गाइड की सुविधा के साथ साथ यहाँ काफी जानकारी आलेखों में भी प्रदर्शित की गयी है।

संग्रहालय इतिहास की तारीखों के आधार पर तीन अलग अलग दीर्घाओं में बाँटा गया है।
ऐतिहासिक वस्तुओं को प्रदर्शित करते यूँ तो देश में कई नामी संग्रहालय हैं, फिर बिहार संग्रहालय में अलग क्या है? अलग है शिल्पों को दिखाने का तरीका। प्रकाश की अद्भुत व्यवस्था जो कलाकृतियों के रूप लावण्य को उभार देती हैं और इस बात की समझ की एक शिल्प भी अपने चारों ओर एक खाली स्थान चाहता है ताकि जो उसपे नज़रे गड़ाए उसकी कलात्मकता  में बिना ध्यान भटके डूब सके ।
बिहार तो बुद्ध की भूमि रही है। ये संग्रहालय उनकी कई ऐतिहासिक मूर्तियों को सँजोए हुए है।

शनिवार, 11 अगस्त 2018

लेह लद्दाख यात्रा : मैग्नेटिक हिल का तिलिस्म और कथा पत्थर साहिब की Road trip from Alchi to Leh

अलची से लेह की दूरी करीब 66 किमी की है पर इस छोटी सी दूरी के बीच लिकिर मठ, सिन्धु ज़ांस्कर संगम, मैग्नेटिक हिल, और गुरुद्वारा पत्थर साहिब जैसे आकर्षण हैं। पर इन सब आकर्षणों पर भारी पड़ता है इस हिस्से के समतल पठारी हिस्सों के बीच से जाने वाला रास्ता। ये रास्ते देखने में भले भले खाली लगें पर गाड़ी से उतरते ही आपको समझ आ जाएगा कि इन इलाकों में यहाँ बहने वाली सनसनाती हवाएँ राज करती हैं। मजाल है कि इनके सामने आप बाहर बिना टोपी लगाए निकल सकें। अगर गलती से ऍसी जुर्रत कर भी ली तो कुछ ही क्षणों में आपके बाल इन्हें सलाम बजाते हुए कुतुब मीनार की तरह खड़े हो जाएँगे।


इतने बड़े निर्जन ठंडे मरुस्थल को जब आपकी गाड़ी हवा को चीरते हुए निकलती है तो ऐसा लगता है कायनात की सारी खूबसूरती आपके कदमों में बिछ गयी है। मन यूँ खुशी से भर उठता है मानो ज़िदगी के सारे ग़म उस पल में गायब हो गए हों। इसी सीधी जाती सड़क के बीचो बीच मैंने ऐसे ही उल्लासित तीन पीढ़ियों के एक भरे पूरे परिवार को इकठ्ठा सेल्फी लेते देखा।

इन रेशमी राहों में, इक राह तो वो होगी, तुम तक जो पहुँचती हो... 
सरपट भागती गाड़ी अचानक ही लिकिर मठ की ओर जाने वाले रास्ते को छोड़ती हुई आगे बढ़ गयी। अलची में समय बिता लेने के बाद लेह पहुँचने में ज्यादा देर ना हो इसलिए मैंने भी लिकिर में अब और समय बिताना उचित नहीं समझा। वैसे भी रास्ता इतना रमणीक हो चला था कि आँखें इनोवा की खिड़कियों पर टँग सी गयी थीं। सफ़र मैं ऍसे दृश्य मिलते हैं तो बस होठों पर नए नए तराने आते ही रहते हैं। पथरीले मैदान अब सड़क के दोनों ओर थे। बादल यूँ तो अपनी हल्की चादर हर ओर बिछाए थे पर कहीं कहीं चमकते बादलों द्वारा बनाए झरोखों से गहरा नीला आकाश दिखता तो तीन रंगों का ये  समावेश आँखों को सुकून से भर देता था।

कि संग तेरे बादलों सा, बादलों सा, बादलों सा उड़ता रहूँ
तेरे एक इशारे पे तेरी ओर मुड़ता रहूँ

सेना की छावनी के बीच से निकलता एक खूबसूरत मोड़

पीछे के रास्तों की तरह अलची से लेह के बीच के हिस्से में यहाँ नदी साथ साथ नहीं चलती। अलची के पास जो सिंधु नदी मिली थी वो वापस निम्मू के पास फिर से दिखाई देती है। यहीं इसकी मुलाकात जांस्कर नदी से होती है। जैसा कि मैंने आपको बताया था कि जांस्कर घाटी की ओर जाने के लिए एक रास्ता कारगिल से कटता है जो इसके मुख्यालय पदुम तक जाता है। वैसे एक सड़क निम्मू से भी जांस्कर नदी के समानांतर दिखती है पर वो अभी तक पदुम तक नहीं पहुँची है। संगम पर गर्मी के दिनों में आप यहाँ रिवर राफ्टिंग का आनंद उठा सकते हैं जबकी सर्दी के दिनों में जब जांस्कर जम जाती है तो जमी हुई नदी ही जांस्कर और लेह के बीच आवागमन का माध्यम बनती है। जमी हुई जांस्कर नदी पर सौ किमी से ऊपर की हफ्ते भार की ट्रेकिंग चादर ट्रेक के नाम से मशहूर है।