पिछली पोस्ट में आपको मैं ले गया था भुवनेश्वर से भितरकनिका के मैनग्रोव जंगलों के प्रवेश द्वार यानि गुप्ती चेक पोस्ट तक। करीब ६५० वर्ग किमी में फैले इन मैनग्रोव वनों का निर्माण
ब्राहाम्णी, वैतरणी और धर्मा नदियों की लाई और जमा की गई जलोढ़ मिट्टी के बनने से हुआ है। ये पूरा इलाका समुद को जल्दी से छू लेने की कोशिश में बँटी नदियों की पतली पतली धाराओं और उनके बीच बने छोटे द्वीपों से अटा पड़ा है।
मैनग्रोव जंगलों के बीच से इस डेल्टाई क्षेत्र से गुजरना मेरे लिए कोई पहला अनुभव नहीं था। इससे पहले मैं
अंडमान के बाराटाँग की यात्रा में इन जंगलों को करीब से देख चुका था। पर भितरकनिका के इन जंगलों में मैनग्रोवों के सिवा किस किस की झलक और देखने को मिलेगी इसका अंदाजा यात्रा शुरु करने के वक़्त तो नहीं था।
करीब सवा चार बजे हमारी लकड़ी की मोटरबोट अपने गन्तव्य
डाँगमाल (Dangmal) की ओर चल पड़ी थी। सूरज अभी भी मद्धम नहीं पड़ा था पर अक्टूबर के महिने में उसकी तपिश इतनी भी नहीं थी कि हमें उस नौका की छत पर जाने से रोक सके। कुछ ही दूर बढ़ने के बाद हमें तट के किनारे छोटे छोटे गाँव दिखने शुरु हुए। अगल बगल दिखते छोटे मोटे गाँवों में असीम शांति छाई थी। पानी में हिलोले लेती नौका के आलावा जलराशि में भी कोई हलचल नहीं थी।
पर धीरे धीरे गाँवों की झलक मिलनी बंद हो गई और रह गए सिर्फ जंगल..
अंडमान में जब हैवलॉक के डॉल्फिन रिसार्ट में रहने का अवसर मिला था तो वहीं पहली बार पेड़ों को उर्ध्वाकार यानि सीधी ऊँचाई में बढ़ते ना देखकर समानांतर बढ़ते देखा था। कुछ ही देर में वही नज़ारा भितरकनिका में भी देखने को मिल गया। अंतर बस इतना था कि ये पेड़ अंडमान की अपेक्षा अधिक घने थे। पेड़ की हर ऊँची शाख पर पक्षी यूँ बैठे थे मानों बाहरी आंगुतकों से जंगलवासियों को सचेत कर रहे हों।
पाँच बजने को थे पर हमें भितरकनिका के नमकीन पानी में रहने वाले मगरमच्छों (Salt Water Crocodiles) के दर्शन नहीं हुए थे। यहाँ के वन विभाग के अनुमान के हिसाब से भितरकनिका में करीब १५०० मगरमच्छ निवास करते हैं और उनमें से कुछ की लंबाई २० फुट तक होती है यानि विश्व के सबसे लंबे मगरमच्छों का दर्शन करना हो तो आप भितरकनिका के चक्कर लगा सकते हैं। हमारी आँखे पानी में इधर उधर भटक ही रही थीं कि दूर पानी की ऊपरी सतह आँखे बाहर निकाले एक छोटा सा घड़ियाल दिखाई पड़ा। उसके कुछ देर बाद तो दूर से ही ये मगरमच्छ महाशय क्रीक की दलदली भूमि पर आराम करते दिखे। फिर दिखी भागते कूदते हिरणों की टोली। खैर हिरणों से तो अगले दिन भी सामना होता रहा।
डाँगमाल पहुँचने के पहले ही हमें देखनी थी भितरकनिका के बीच बसी पक्षियों की दुनिया। क़ायदे से हमें यहाँ चार बजे तक पहुँच जाना था। पर केन्द्रापाड़ा से देर से सफ़र शुरु करने की वज़ह से हम यहाँ पहुँचे सवा पाँच पर। भितरकनिका की पक्षियों की इस दुनिया को यहाँ बागा गाहन (Baga Gahan) या हेरनरी (Heronry) कहा जाता है। यहाँ पाए जाने वाले पक्षी मूलतः बगुला प्रजाति के हैं। जून से नवंबर के बीच विश्व की ग्यारह बगुला प्रजातियों के पक्षी ३०००० तक की तादाद में यहाँ आकर घोसला बनाते हैं और नवंबर दिसंबर तक अपने छोटे छोटे बच्चों जिनकी तादाद भी लगभग ३५००० होती है लेकर उड़ चलते हैं। हमारी नौका जब सवा पाँच बजे पक्षियों के इस मोहल्ले पर रुकी तो पक्षियों का कर्णभेदी कलरव दूर से ही सुनाई दे रहा था।
अँधेरा तेजी से फैल रहा था इसलिए नौका से उतरकर जंगल की पगडंडियों पर हम तेज़ कदमों से लगभग भागते हुए वाच टॉवर की ओर बढ़ गए। जंगल के बीचो बीच बने इस वॉच टॉवर की ऊँचाई २० से ३० मीटर तक की जरूर रही होगी क्यूँकि ऊपर पहुँचते पहुँचते हम सब का दम निकल चुका था। पर वॉच टावर के ऊपर चढ़कर जैसे ही मैंने चारों ओर नज़रें घुमाई मैं एकदम से अचंभित रह गया।
दूर दूर तक उँचे पेड़ों का घना जाल सा था। और उन पेड़ों के ऊपर थे हजारों हजार की संख्या में बगुले सरीखे काले सफेद रंग के पक्षी। जिंदगी में पक्षियों के इतने बड़े कुनबे को एक साथ देखना मेरे लिए अविस्मरणीय अनुभव था। ढलती रौशनी में इस दृश्य को सही तरीके से क़ैद करने के लिए बढ़िया जूम वाले क़ैमरे की जरूरत थी जो हमारे पास नहीं था। फिर भी कई तसवीरें ली गई और उनमें से एक ये रही....(चित्र को बड़ा करने के लिए उस पर क्लिक करें)
साँझ ढल रही थी सो हमें ना चाहते हुए भी बाघा गाहन से विदा लेनी पड़ी। आधे घंटे बाद शाम छः बजे हम डाँगमाल के वन विभाग के गेस्ट हाउस में पहुँचे। आगे क्या हुआ ये जानने के लिए इंतज़ार कीजिए इस श्रृंखला की अगली पोस्ट का ।