सोमवार, 27 जुलाई 2009

चाँदीपुर समुद्र तट : जहाँ समुद्र रात में आता और सुबह गायब हो जाता है...

समुद्र तट तो कई देखे हैं पर कुछ तट अपनी विशिष्टता के कारण स्मृतियों से कभी ज्यादा दूर नहीं जा पाते। आज से करीब दस-बारह साल पहले की बात है। हम सड़क मार्ग से जमशेदपुर से भुवनेश्वर जा रहे थे। जमशेदपुर से भुवनेश्वर करीब ४०० किमी दूरी पर है। हम दिन में चार बजे के आस पास जमशेदपुर से निकले थे। जब घाटशिला से झारखंड की सीमा पार कर ओड़ीसा के मयूरभंज जिले के मुख्यालय बारीपदा को पार करते हुए बालेश्वर (Baleshwar) या बालासोर (Balasore) तक पहुँचे तब तक रात्रि के आठ बज चुके थे।

बालासोर से १४ किमी दूर ही चाँदीपुर का समुद्र तट (Chandipur Sea Beach) है। तब तक चाँदीपुर के बारे में मैं यही जानता था कि यहाँ एक मिसाइल टेस्ट रेंज है। हम लोग जब रात को गेस्ट हाउस में भोजन कर रहे थे तो बगल से समुद्री लहरों की आती गर्जना स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी। पर सफ़र की थकान की वज़ह से हम तुरंत ही समुद्र तट को नहीं देख पाए।
सुबह साढ़े छः पौने सात बजे के बीच जब समुद्र की ओर निकले तो दूर-दूर तक समुद्र का कोई सुराग ना था। वहाँ जाने पर ये तो लोगों ने बताया था कि समुद्र भाटे यानि लो टाइड (Low Tide) होने के समय दूर चला जाता है पर यहाँ तो जितनी दूर तक नज़र जाती थी, पानी का नामो निशान ही नहीं दिखता था।

(इस चित्र के छायाकार हैं : टोटन )
पर हमने भी ठान लिया कि समुद्र देख कर ही आगे की यात्रा शुरु करेंगे। सो समुद्र के अंदर ही सुबह की सैर (Morning Walk) शुरु कर दी। क्या आप यकीन करेंगे कि करीब २० मिनट समुद्र के अंदर चलने के बाद हमें समुद्र के दर्शन हुए ? समुद्र की धारा अभी भी 50-100 मीटर और दूर थी। हम थोड़ी देर वहीं खड़े रहे तो ऐसा लगा कि समुद्र हमारी तरफ चला आ रहा है। पास खड़े स्थानीय निवासी से पूछा तो उसने कहा कि आधे घंटे में आप लोग जहाँ से चले थे लहरें वहाँ तक पहुँच जाएँगी।

ये सुनकर हमें लगा कि अब ज्यादा देर किए बिना तेजी से वापस लौटना चाहिए। हम चलते रहे और समुद्र करीब 100 मीटर की दूरी पर पीछे-पीछे आता रहा और सचमुच आधे घंटे में वो वापस किनारे पर आ गया। लेकिन उसके दस मिनट पहले ही हम वापस किनारे का दामन थाम चुके थे।

बाद में पता चला कि समुद्र लो टाइड के समय तट से लहभग ५ किमी. तक पीछे चला जाता है। छिछले समुद्र तट पर घूमने में आपको तरह तरह के समुदी जीवों को देखने का अवसर मिलता है और फिर पाँच किमी के दायरे में घूमते वक़्त कुछ नए जीव आपके कदमों के इर्द गिर्द अपने घरों से झांकते नज़र ना आएँ ऍसा हो नहीं सकता। बंगाल की खाड़ी में होते सूर्योदय और सूर्यास्त को यहाँ से देखना भी एक अविस्मरणीय अनुभव है जिसका आनंद हमारा समूह नहीं ले पाया क्योंकि हमें आगे भुवनेश्वर की ओर जाना था। तो जब कभी उड़ीसा की ओर घूमने का मन बनाए चाँदीपुर का भी चक्कर लगाएँ। यहाँ रहने के लिए उड़ीसा पर्यटन के पंथनिवास से संपर्क कर सकते हैं।


पुनःश्च : इस यात्रा के पश्चात चाँदीपुर दोबारा भी जाना हुआ। इस यात्रा में इस समुद्र तट को  बेहद करीब और तबियत से खींचने का मौका मिला। समुद्र तट के कई दिलकश मंज़र मेरे कैमरे में क़ैद हुए। पूरे विवरण के लिए इन लिंकों को देखें..

सोमवार, 20 जुलाई 2009

कंक्रीट के जंगलों से हरे भरे खेत खलिहानों तक : देखिए कोलकाता और राँची के आस पास का ऊपरी परिदृश्य

उत्तर भारत में भले ही मानसूनी बादल आँख मिचौली कर रहे हों पर पूर्वी भारत में सावन जोरों पर है। ऍसे ही एक बरसाती दिन में कोलकाता से राँची आने का अवसर मिला। दोनों शहर आसमान की छत से कितना भिन्न परिदृश्य उपस्थित करते हैं ये आप इन चित्रों से आसानी से समझ जाएँगे।

कोलकाता से विमान उड़ता है तो कंक्रीट के जंगलों को चीरता हुआ तुरंत हुगली नदी के ऊपर मंडराने लगता है।





बादलों के बीच से दिखता हावड़ा ब्रिज और उसके ठीक दाँयी ओर हावड़ा का स्टेशन


कुछ ही देर में हम बादलों की दुनिया में हैं। पर राँची के पास आते ही विमान धीरे धीरे अपनी ऊँचाई को कम करता नीचे आने लगता है और फिर दिखती है सर्वत्र हरियाली। जी हाँ आखिर ये झारखंड की धरती है।







पर अब तो बारिश का मौसम आ गया है तो राँची के आस पास के खेत खलिहान एक दूसरी ही छटा लिए हुए हैं।

विकास की दौड़ जंगलों को हमसे दूर करती जा रही है। पर झारखंड में राँची क्या, कहीं भी जंगलों के बीच खेतों का ये दृश्य आम तौर पर दिखाई दे जाता है।

और जब बारिश झमाझम होगी तो धान की रोपनी कहाँ दूर रह सकती है।

झारखंड अभी भी विकास के पथ से काफी दूर है। हम सभी चाहते हैं कि हमारा राज्य आगे बढ़े पर ये विकास अपने आस पास की प्रकृति को नष्ट कर नहीं पर बल्कि एक सामंजस्य बिठाकर हो तो सही अर्थों में हम सब यहाँ की सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक विशिष्टता को अक्षुण्ण रख पाएँगे।
(चित्रों को बड़ा कर देखने के लिए उन पर क्लिक करें।)

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

चित्र पहेली 5 का जवाब : आइए जानें इस त्रिभुजाकार चोटी के बारे में ?

मुसाफिर हूँ यारों पर पर कुछ दिनों पहले हिमालय की अन्नपूर्णा पर्वत श्रृंखला के बीच पोखरा, नेपाल के पास मछली के आकार की पूँछ वाली चोटी को देखने का अनुभव मैंने
आपसे साझा किया था। पर आज जिस पहाड़ी चोटी को आप को पहचानना है वो भारत में अवस्थित है पर इसका आकार प्रकार भी अचंभित कर देने वाला है।

इस चोटी की खासियत ये है कि इसका आकार अपने आधार से शीर्ष तक पहुँचते पहुँचते समानुपातिक ढ़ंग से इस तरह घटता है कि ऊँचाई से ये पहाड़ी एक त्रिभुज की तरह दिखती है। मानसून के दौर में इस चोटी के आस पास की छटा देखने वाली होती है। तैरते बादलों के बीच तब ये चोटी ढक सी जाती है।


(चित्र साभार इंटरनेट, छायाकार का नाम पता नहीं।)
तो आपको इस चित्र को देख कर आज बताना है इस चोटी का नाम क्या है और ये कहाँ अवस्थित है। हमेशा की तरह सही जवाब तक पहुँचने के लिए संकेत हाजिर हैं।



संकेत 1 : ये चोटी भारत के पश्चिमी घाट में है और इसकी ऊँचाई १००० मीटर से थोड़ी कम है।

कलावंतिन दुर्ग पनवेल से उत्तर पूर्व दिशा में अवस्थित है और इसकी ऊँचाई तकरीबन २३०० फीट है। ये चोटी प्रबलगढ़ दुर्ग के ठीक बगल की चोटी है और ऊपर का चित्र प्रबलगढ़ के ऊपर से खड़े होकर लिया गया है। इस दुर्ग पर चढ़ने ले लिए बकाएदा सीढ़ियाँ बनी हैं। इसकी चोटी का क्षेत्रफल इतना कम है कि उस पर एक वक्त में मात्र तीस से चालिस लोग खड़े हो सकते हैं। ऊपर तक जाने के लिए सीढ़ियाँ हैं पर चोटी के पास की सीढ़ियाँ काफी फिसलन भरी हैं। अपने इस अनूठे आकार के लिए इसका प्रयोग निगरानी चौकी के रूप में किया जाता रहा।
संकेत 2 : हिंदी चिट्ठाजगत के एक चिर परिचित कवि / शायर का घर इस चोटी से तकरीबन घंटे भर की दूरी पर है।:)

जी हाँ हमारे चिर परिचित शायर नीरज गोस्वामी जी खपोली में रहते हैं और यहाँ से पनवेल का रास्ता करीब आधे घंटे में निबटाया जा सकता है। कलावंतिन दुर्ग पनवेल से १७ किमी दूर पर ठाकुरवाड़ी गाँव के समीप है।

संकेत 3: इस चोटी का नाम संगीत के एक प्रसिद्ध घराने से मिलता जुलता है।
कलावंतिन दुर्ग (Kalavantin Durg) से मिलता जुलते नाम का कलावंत संगीत घराना है। वैसे इस दुर्ग का कहीं कहीं उल्लेख कलावती दुर्ग (Kalavati Durg) या कलावंतिनिचा बुरुज (Kalavantinicha Buruz) के रूप में भी किया जाता है।



तो हैं ना मज़ेदार संकेत ! वैसे इस बार पिछली बार से विपरीत एक से ज्यादा सही जवाब आने की आशा है क्योंकि मुझे यक़ीन है कि आप में से कुछ ने इस चोटी को देखा जरूर होगा। मेरे ख्याल से इन संकेतों की सहायता से उत्तर तक शीघ्र ही पहुँच जाएँगे तो देर किस बात की जल्दी लिखिए अपना जवाब। आपके उत्तर हमेशा की तरह माडरेशन में रखे जाएँगे। सही जवाब 16 जुलाई की रात इसी पोस्ट में बताए जाएँगे।

आइए देखें किसने दिया सही जवाब:.

इस बार कुल मिलाकार तीन लोगों ने सही जवाब ढूँढ निकाला है। पर एक बार फिर सबसे पहले सही जवाब अभिषेक ओझा ने दिया। हालांकि उनसे ठीक पहले राज भाटिया जी जवाब के बेहद करीब पहुँच चुके थे। भाटिया जी, प्रबलगढ़ और कलावंतिन दुर्ग अगल बगल की दो अलग अलग चोटियाँ हैं और जैसा कि मैंने बताया कि प्रस्तुत चित्र प्रबलगढ़ दुर्ग के ऊपर से लिया गया है।। वैसे राज भाटिया जी और समीर भाई देर आए पर दुरुस्त आए। आप तीनों को सही उत्तर तक पहुँचने के लिए हार्दिक बधाई।

साथ ही शुक्रिया उन सभी लोगों का जिन्होंने इस चित्र को देख कर अपने अनुमान लगाए और विचार प्रकट किए।

बुधवार, 1 जुलाई 2009

राशिद मियाँ सही कहा आपने, वाकई बादलों के ऊपर रब की दुनिया है !

कहते हैं आसमान की छत पर बादलों की चादर ओढ़े कोई फरिश्ता बसता है। अब कल ही देखिए ना अनुराग की ये पोस्ट पढ़ रहा था राशिद मियाँ प्रेसवाले के बारे में जो उनसे पूछ बैठे हैं...
आप तो हवाई जहाज में कई बार बैठे होगे .आसमान में...
हाँ क्यों ?
कुछ नहीं......वे हंसते हुए कपडे उठाते है. हमारी बेगम कहती है .. रब ऊपर बैठा है …फिर एक ठंडी सांस ..…"पगली है " ...

"मुए जहाजो से कहो कभी हार्न बजाये......

अपनी दुनिया को आसमान से ढक कर
तुम्हारा खुदा बड़ी बेफिक्री से सोया है
"

क्या खूब कहा अनुराग ने ! सोचता हूँ गर राशिद मियाँ ने यही सवाल मुझ से पूछा होता तो मैं क्या कहता ! नहीं, नहीं, कहने को कुछ नहीं बस उन्हें दिखाता कि आसमाँ की उस ऊँचाई पर बादलों के दूर दूर तक फैले श्वेत बिछौने पर उनके ख़ुदा को ढूँढना उतना ही मुश्किल है जितना की इस रंग रंगीली दुनिया में।

तो आइए दिखाएँ आपकों रब के साम्राज्य की एक झलक। इनमें से अधिकांश तसवीरें मैंने करीब दो साल पहले कोलकाता से राँची से आते हुए खींची थी। चित्रों को बड़ा करने के लिए उन पर क्लिक करें।











इन नज़ारों को चलता फिरता देखना चाहते हों तो यहाँ देखें...


वैसे अब तो आपको भी यकीन आ गया होगा ना कि कि रब की दुनिया वाकई पाक है !