कोंकण के समुद्र तटों की इस यात्रा में आप देख चुके हैं कुनकेश्वर, चिवला और तारकर्ली के समुद्र तट। इस श्रंखला की इस कड़ी में आज बारी है मालवण के समुद्र तट की जिसे डांडी का समुद्र तट भी कहा जाता है। मालवण के समुद्र तट पर आए बिना आप यहाँ के प्रसिद्ध समुद्री किले सिंधुदुर्ग तक नहीं पहुँच सकते। मतलब ये कि सिंधुदुर्ग का प्रवेश द्वार मालवण की ही जेटी है।
जैसा आप नीचे के मानचित्र में देख सकते हैं डांडी यानि मालवण का ये समुद्र तट चिवला और तारकर्ली के बीचो बीच में है। इस नक़्शे को देख आप ये समझ सकते हैं कि डांडी के आलावा तारकर्ली से भी सिंधुदुर्ग क्यूँ दिखाई दे रहा था?
अन्य समुद्र तटों की अपेक्षा आप मालवण के तट पर हमेशा चहल पहल पाएँगे। पर ये चहलपहल तट के साथ लगी मछुआरों की बस्ती की वज़ह से ज्यादा हैं। इस तट पर लहरें नहीं उठती सो यहाँ नहाने का आनंद तो आप नहीं उठा सकते मगर प्राकृतिक सुंदरता के मामले में ये तट किसी से पीछे नहीं है।
मालवण की अपनी एक संस्कृति है। इस संस्कृति का अभिन्न अंग है यहाँ की बोली (जो कि कोंकणी और मराठी का मिश्रण है) और भोजन। मालवण की मछली, चावल और नारियल से सजी मालवणी थाली नांसाहारियों को तो खूब पसंद आएगी। डांडी के तट पर नारियल के पेड़ों की सघनता और ढेर सारी मछुआरों की नावों से भोजन के इन अवयवों को स्रोत तो सहज ही मिल जाता है।