बुधवार, 24 जून 2015

लहराते खेत... उँघते जंगल : देखिए वियना का आकाशीय नज़ारा ! Aerial View : Vienna, Austria

आसमान की ऊँचाइयों से नीचे दिखते बादलों के झुंड, डिब्बानुमा शहर, हरे भरे खेत खलिहान, पल पल अपना रास्ता बदलती नदी, पतली सर्पीली सड़कें और उस पर रेंगती गाड़ियाँ देखना विमान यात्राओं में मेरा प्रिय शगल रहा है। पर ये सारी छवियाँ अक्सर मन मस्तिष्क में अंकित हो कर रह जाती हैं। उन्हें कैमरे में क़ैद करने का सिर्फ एक मौका होता है और वो तब जब विमान अपने गन्तव्य तक पहुँचने के पहले शहर के आस पास के इलाकों पर मँडरा रहा होता है।जब भी खिड़की के पास मुझे बैठने का मौका मिलता है मैं इसी मौके का बेसब्री से इंतजार करता हूँ।

विदेशो में तो ये आनंद दूना हो जाता है क्यूंकि वहाँ के खेत खलिहान और शहर ऊपर से ही इतनी रंग बिरंगी छटा प्रस्तुत करते हैं कि मन बँधा का बँधा रह जाता है। आपको याद तो होगा ना  टोक्यो के हरे भरे धान के खेतों का जाल और बेल्जियम की राजधानी ब्रसल्स का सुंदर सुव्यवस्थित शहर, जिसे मैंने ब्लॉग के इन पन्नों पर आपको पहले दिखाया था।। तो चलिए आज आपको दिखाते हैं पूर्वी यूरोपीय देश आस्ट्रिया की राजधानी वियना के आकाशीय नज़ारे


दरअसल अपनी यूरोप यात्रा के दौरान लंदन जाते वक़्त हमें वियना के हवाई अड्डे पर अपना विमान बदलना था। विमान को सुबह छः साढ़े छः बजे के लगभग पहुँचना था। सुबह एप्पल जूस का रसपान करने के बाद मेरी तंद्रा पाँच बजे ही भंग हो चुकी थी। विमान ने नीचे आना शुरु नहीं किया था पर इतना पता चल रहा था कि सूर्योदय हो चुका है। अगले आधे घंटे में ज्यों ज्यों हम नीचे आते गए खूबसूत दृश्यों का काफिला नज़रों के सामने से गुजरता गया। तो आइए उनमें से क़ैद कुछ लमहों को देखिए मेरे कैमरे की नज़र से ..


यूरोप में पवनचक्कियाँ आम हैं। हालैंड तो खैर मशहूर ही है अपनी पवनचक्कियों के लिए..पर बाकी देशों में भी इनका खासा इस्तेमाल है।



गुरुवार, 18 जून 2015

राँची का खूबसूरत पर सबसे खतरनाक झरना : दशम जलप्रपात Dassam Falls, Ranchi

झारखंड की राजधानी राँची को जलप्रपातों की नगरी कहा जाता है। ऐसे तो शहर से सौ किमी की दूरी के अंदर कई झरने हैं पर लोकप्रियता के हिसाब से दशम, हुँडरु और जोन्हा के जलप्रपातों का नाम सबसे पहले आता है। चूंकि ये सारे जलप्रपात बरसाती नदियों के बहाव के मार्ग पर बने हैं इसलिए इनको देखने का आनंद वर्षा ॠतु के ठीक बाद आता है।

ऊँचाई की दृष्टि से हुंडरु का जलप्रपात सबसे ऊँचा है जहाँ पानी करीब सौ मीटर की ऊँचाई से गिरता है जबकि जोन्हा और दशम में लगभग इसकी आधी ऊँचाई से। पर पानी के मौसम में अगर आप मुझसे पूछें कि इनमें सबसे सुंदर जलप्रपात कौन सा है तो मैं दस धाराओं के मिल कर बने दशम जलप्रपात का ही नाम लूँगा। तो आइए आज आपको लिए चलते हैं दशम फॉल जो राँची से करीब चालीस किमी की दूरी पर स्थित है।


दशम के जलप्रपात पर इससे पहले मैं बचपन में गया था। इसलिए जब पिछले साल अक्टूबर में यहाँ फिर जाने का कार्यक्रम बना तो गूगल बाबा का मैप बहुत काम आया। राँची से जमशेदपुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 33 पर (NH 33) तीस किमी चल लेने के बाद दाहिने एक मोड़ आता है जहाँ से दशम के झरने का रास्ता अलग होता है। इस रास्ते पर हम तीन चार किमी आगे बढ़े होंगे कि एक दोराहे पर आ गए। मज़े की बात ये थी कि दोनों रास्तों पर तीर मारकर दशम फॉल जाने का चिन्ह बनाया हुआ था। हमने दोनों रास्तों में जो ज्यादा सुंदर नज़र आया उस पर बढ़ गए। अब हम गूगल मैप के हिसाब से दशम से दूर जा रहे थे। 



गुरुवार, 11 जून 2015

गंगटोक चित्रों में .. In Pictures Gangtok

सिक्किम प्रवास के आखिरी दिन हमारे पास दिन के 3 बजे तक ही घूमने का वक्त था। तो सबने सोचा क्यूँ ना गंगटोक में ही चहलकदमी की जाये। सुबह जलपान करने के बाद सीधे जा पहुँचे फूलों की प्रदर्शनी देखने




वहाँ पता चला कि इतने छोटे से राज्य में भी ऑर्किड (Orchids) की 500 से ज्यादा प्रजातियाँ पाई जातीं हैं जिसमें से कई तो बेहद दुर्लभ किस्म की हैं। इन फूलों की एक झलक हमें चकित करने के लिये काफी थी। 


Orchids of Sikkim

शुक्रवार, 5 जून 2015

सफ़र छान्गू झील का और कथा बाबा हरभजन सिंह की Changu Lake, Gangtok

सिक्किम से जुड़े इस यात्रा वृत्तांत में अब तक आपने पढ़ा लाचेन, गुरुडांगमार, चोपटा घाटी, लाचुंग और यूमथांग घाटी तक के सफ़र का लेखा जोखा।  सिक्किम प्रवास में हमारा अगला दिन मुकर्रर था वहाँ के सबसे लोकप्रिय पड़ाव के लिये जहाँ प्रकृति अपने एक अलग रूप में हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। लाचुंग से शाम तक हम गंगटोक  वापस आ चुके थे।


अगली सुबह पता चला कि भारी बारिश और चट्टानों के खिसकने की वजह से नाथू-ला का रास्ता बंद हो गया है। मन ही मन मायूस हुये कि इतने पास आकर भी भारत-चीन सीमा को देखने से वंचित रह जाएँगे। पर बारिश ने जहाँ नाथू-ला (Nathu La)जाने में बाधा उत्पन्न कर दी थी तो वहीं ये भी सुनिश्चित कर दिया था कि हमें सिक्किम की बर्फीली वादियाँ के पहली बार दर्शन हो ही जाएँगे। इसी खुशी को मन में संजोये हुये हम छान्गू या  Tsomgo (अब इसका उच्चारण मेरे वश के बाहर है, स्थानीय भाषा में Tsomgo का मतलब झील का उदगम स्थल है ) की ओर चल पड़े। 3780 मीटर यानि करीब 12000 फीट की ऊँचाई पर स्थित छान्गू झील गंगटोक से मात्र 40 कि.मी. की दूरी पर है ।




गंगटोक से निकलते ही हरे भरे देवदार के जंगलो ने हमारा स्वागत किया। हर बार की तरह धूप में वही निखार था । कम दूरी का एक मतलब ये भी था की रास्ते भर जबरदस्त चढ़ाई थी। 30 कि.मी. पार करने के बाद रास्ते के दोनों ओर बर्फ के ढ़ेर दिखने लगे। मैदानों में रहने वाले हम जैसे लोगों के लिये बर्फ की चादर में लिपटे इन पर्वतों को इतने करीब से देख पाना अपने आप में एक सुखद अनुभूति थी। पर ये तो अभी शुरुआत थी। छान्गू झील (Changu Lake) के पास हमें आगे की बर्फ का मुकाबला करने के लिये घुटनों तक लम्बे जूतों और दस्तानों से लैस होना पड़ा ।

दरअसल हमें बाबा हरभजन सिंह मंदिर (Baba Mandir) तक जाना था जो कि नाथू-ला और जेलेप-ला के बीच स्थित है। ये मंदिर 23 वीं पंजाब रेजीमेंट के एक जवान की याद में बनाया है जो ड्यूटी के दौरान इन्हीं वादियों में गुम हो गया था । बाबा मंदिर की भी अपनी एक रोचक कहानी है। यहाँ के लोग कहते हैं कि चार अक्टूबर 1968 को ये सिपाही खच्चरों के एक झुंड को नदी पार कराते समय डूब गया था। कुछ दिनों बाद उसके एक साथी को सपने में हरभजन सिंह ने आकर बताया कि उसके साथ क्या हादसा हुआ था और वो किस तरह बर्फ के ढेर में दब कर मर गया। उसने स्वप्न में उसी जगह अपनी समाधि बनाने की इच्छा ज़ाहिर की। बाद में रेजीमेंट के जवान उस जगह पहुँचे तो उन्हें उसका शव वहीं मिला। तबसे वो सिपाही बाबा हरभजन के नाम से मशहूर हो गया। इस इलाके के फौजी कहते हैं कि आज भी जब चीनी सीमा की तरफ हलचल होती है तो बाबा हरभजन किसी ना किसी फौजी के स्वप्न में आकर पहले ही ख़बर कर देते हैं।