शनिवार, 27 दिसंबर 2014

जेम्स बांड द्वीप : क्या है इसकी खासियत ? James Bond Island : What is so peculiar about it !

फान्ग नगा खाड़ी से जेम्स बांड द्वीप तक पहुँचते पहुँचते आसमान अपनी रंगत कई बार बदल चुका था। पहले गहरे बादल, हल्के बादलों में तब्दील हुए। फिर कुछ देर बाद वे भी इधर उधर छिटक कर आसमानी आभा का दर्शन करा गए। बादलों के इन फाँकों से निकलती सूर्य किरणों ने मैनग्रोव के इन जंगलों को जब अपना सुनहरा स्पर्श दिया, वे खिल उठे। जब हम जेम्स बांड द्वीप पहुँचे तो धूप छाँव का ये खेल जारी था।


जेटी पर उतरते ही दो आकृतियाँ आपका सहज ही ध्यान खींचती हैं। चूनापत्थर की चट्टानों के अपरदन से बनी ये गुफाएँ देखते ही एक रहस्यमय सा माहौल खड़ा कर देती हैं। इन गुफाओं में टूटते हुए पत्थरों के बीच जगह जगह छोटे बड़े पौधे उग आए हैं जो इन रूखी चट्टानों को कुछ रंगत बख्शते हैं। हमारे आने से पहले ही विदेशी पर्यटकों की बटालियन वहाँ पहुँची हुई थी। गुफा का ये रूप उन्हें भी आकर्षित कर रहा था। इन गुफाओं में ज्वार के समय पानी भर जाता है  पर अक्टूबर के महीने में जब हम यहाँ पहुँचे तब पानी का स्तर उतना नहीं था।


इस द्वीप का प्रचलित नाम तो 1974 में प्रदर्शित जेम्स बांड की फिल्म The man with the Golden Gun की शूटिंग यहाँ होने के बाद जेम्स बांड आइलैंड पड़ा। पर उसके पहले ये द्वीप Khao Phing Kan के नाम से जाना जाता था। थाई भाषा में इस शब्द का मतलब है एक दूसरे पर झुकी हुई पहाड़ियाँ और सच ही द्वीप के बीचो बीच के इस दृश्य को देख इस नाम का मर्म समझ आ जाता है।



द्वीप के पश्चिमी भाग की चौड़ाई 130 मीटर है जबकि पूर्व की तरफ़ ये दो सौ मीटर से भी ज्यादा चौड़ा हो जाता है। दो भागों में बँटे इस द्वीप के ठीक बीच में छोटा सा समुद्र तट है जहाँ बाहर से आने वाली नौकाएँ पड़ाव लेती हैं।


पर जेम्स बांड द्वीप की सबसे प्रचारित छवि  है को टापू (Ko Tapu) की। एक ज़माना था जब इस विचित्र से दिखने वाली चट्टान के एकदम पास नौका से पहुँचा जा सकता था। पर 1998 में फान्ग नगा नेशनल मैरीन पार्क बनने के बाद ये आवाजाही बंद कर दी गई।  बहुत लोग Ko Tapu को ही James Bond Island समझते हैं जो कि एक गलत धारणा है। दरअसल को टापू इस द्वीप से नजदीक स्थित एक बेहद छोटा सा द्वीप (Islet) है जो एक बीस मीटर ऊँची चट्टान द्वारा निर्मित है।


थोड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद जब इसके करीब और पहुँचे तो कैमरे के जूम से इसकी ये शक्ल उभर कर आई। पानी के तल पर समुद्री लहरों के लगातार अपरदन से इसका व्यास घटकर मात्र चार मीटर रह गया है जबकि इसका ऊपरी सिरा आठ मीटर चौड़ा है।

वैसे जब भी कोई अजूबी चीज दिखे और उसके पीछे स्थानीय किवदंतियाँ ना हों ऐसा कैसे हो सकता है। को टापू की भी ऐसी कहानी है। कहते हैं कि एक मछुआरा इस इलाके से हमेशा मछली पकड़ता था। पर एक दिन उसकी तमाम कोशिशों के बावज़ूद उसे कोई भी मछली नहीं मिली। हाँ जाल के साथ एक काँटी जरूर निकल कर आई। मछुआरे ने वो काँटी वापस समुद्र में फेंक दी। पर अगली बार जाल के साथ फिर वो काँटी निकल कर आई। जब ऐसा कई बार हुआ तो तंग आकर मछुआरे ने अपनी तलवार निकाल ली और पूरी ताकत से काँटी पर प्रहार किया जिससे उसके दो टुकड़े हो गए। काँटी का जो हिस्सा समु्द्र में गिरा वो उसे चीरते हुए 'का टापू' की शक्ल में बाहर निकल गया।


वैसे वैज्ञानिक इस इलाके में विभीन्न रूपों में उभरी चट्टानों को धरती की अंदरुनी परतों के टकराने और फिर उनके बाहर की ओर फूटने को इसका कारण मानते हैं। को टापू के इस रूप को अपनी छवि के पार्श्व में रखकर हमारे समूह ने भांति भांति मुद्राओं में तसवीरें खिंचाई। सामने ही पहाड़ी पर चढ़ने का रास्ता था जो द्वीप के दूसरे समुद्र तट तक ले जाता था।


समुद्र तट छोटा सा था। पर ऐसा छायादार तट मेंने पहली बार देखा था। ऐसा प्रतीत होता था मानो अपरदित चट्टानों ने तट के एक हिस्से पर छतरी सी तान रखी हो। दोनों ओर पहाड़ियों से घिरा होने की वज़ह से लहरें तो नहीं आ रही थीं पर पानी एकदम स्वच्छ था। मन तो कर रहा था कि पानी में थोड़ी छपाछप की जाए पर पैंतालीस मिनट के अंदर वापस लौटने की समय सीमा वापस जाने को मजबूर कर रही थी। फिर भी पानी में हम सब चहलकदमी कर ही आए।


यहाँ पर रहने वाले लोग मूलतः मलय हैं और मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। पर्यटकों की भीड़ की वज़ह से यहाँ छोटी छोटी ढेर सारी दुकानें खड़ी हो गई हैं जो शंख, मोती, सीपी और प्लास्टिक से बने सामान बेचती हैं।।


हमार थाई गाइड दूर से हमें आते देख चालो चालो ( चलो चलो) की आवाज़ लगा रहा था इसलिए इन दुकानों के आगे रुकना नामुमकिन था। कुल मिलाकर हमें लगा कि अगर हमें यहाँ एक घंटे का समय और मिला होता तो हम पानी में थोड़ी बहुत मस्ती कर सकते थे। पर फुकेत से आने जाने के समय के व्यर्थ जाने की वज़ह से टूर परिचालकों के लिए ऐसा करना संभव नहीं होता। वैसे चलते चलते आप क्या फिल्म का वो दृश्य नहीं देखना चाहेंगे जिसके चलते इस द्वीप का ये नाम पड़ा


फॉग नगा खाड़ी के हमारे अगले पड़ाव क्या थे जानिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में...

थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

रविवार, 21 दिसंबर 2014

फांग नगा खाड़ी, थाइलैंड : समुद्र में उभरती अजीबोगरीब चट्टानीय आकृतियाँ ! Phang Nga Bay, Thailand

आप फुकेत जाएँ और फांग नगा खाड़ी के चक्कर ना लगाएँ ऐसा शायद ही होता है। थाइलैंड जाने के लिए जितने भी टूर पैकेज होते हैं उनमें से आधिकांश में इसकी यात्रा शामिल रहती है। दरअसल इस खाड़ी के रास्ते ही आप पर्यटकों में लोकप्रिय जेम्स बांड द्वीप तक  पहुँच सकते हैं। थाइलैंड टूर का प्रचार करने वाली कंपनियाँ अक़्सर इसी द्वीप के चित्र दिखाकर आपको फुकेत आने का न्योता देती हैं। पर मैं ये कहूँ कि जेम्स बांड आइलैंड से कहीं ज्यादा वहाँ तक जाने का रास्ता आपको आकर्षित करता है तो आप चौंक मत जाइएगा। तो आइए आज की इस पोस्ट में ले चलते हैं आपको इसी खाड़ी की यात्रा पर जहाँ हम गुफ़ा के अंदर के बौद्ध मंदिर Wat Suwankhuha को देखने के बाद पहुँचे थे। 

On route to Phang Nga Bay Jetty

हमारी मेटाडोर ने हमें खाड़ी के मुहाने पर उतार दिया था। नाव पर चढ़ने के पहले सभी याात्रियों को सुरक्षा जैकेट पहनना अनिवार्य था। हाल ही में चिल्का झील पर ऐसे ही नौका विहार में सुरक्षा जैकेट रहते हुए भी चालक ने उसे पहनने पर जोर नहीं दिया था और ना ही हम ख़ुद पहनने को उत्सुक थे। पर यहाँ उसे पहने बगैर नौका पर बैठने का सवाल ही नहीं था।

सामने एक सीढ़ी थी जो जेटी की तरफ़ ले जा रही थी। जेटी तक पहुँचने के लिए जो राह थी उसके दोनों ओर मैनग्रोव के जंगल थे। इस तरह के जंगल इससे पहले मैंने अंडमान और उड़ीसा के भितरकनिका में देखे थे। भितरकनिका नेशनल पार्क के यात्रा विवरण में आपको मैंने बताया था कि किस तरह दलदली व खारे पानी से भरी जगहों में ज़मीन के नीचे जाने के बजाए ऊपर हुई इन जड़ों के माध्यम से  ये पेड़ अपने अस्तित्व को बरक़रार रख पाते हैं।

Mangrove Forests at the entrance of Jetty
जेटी पर ढेर सारी मोटरबोट खड़ी थीं।   हमारे सहयात्रियों में कुछ दक्षिण भारतीय और बाकी विदेशी थे। भारत से फर्क बस इतना  कि नावों का अच्छे से रंग रोगन किया गया था और किनारे और ऊपर में बरसाती भी लगाई गई थी। हमने सोचा हो सकता है ऐसा बारिश के अचानक आ जाने के लिए किया गया हो। पर हमें शीघ्र ही उसका महत्त्व समझ आ गया जब बोट ने पूरी गति पकड़ ली।

Colourful Boats at Phang Nga Bay Jetty
जैसे ही हमारी नाव अपनी दिशा बदलती, पानी के छींटे किनारे बैठने वालों के मुखड़े तक को भिंगो डालते। ऐसे समय बगल में लगी बरसाती काम आती। शुरुआत में हमें खाड़ी के इस पतले सिरे के दोनों किनारों पर मैनग्रोव के घने जंगल दिखाई दिए। दरअसल चार सौ वर्ग किमी में फैले खाड़ी के इस इलाके की जैविक विविधता के संरक्षण के लिए इसे अस्सी के दशक में नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया था। 42 छोटे बड़े द्वीपों को समेटे इस खाड़ी में मैनग्रोव की 28 प्रजातियाँ मौज़ूद हैं।

Our boat ...

जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए खाड़ी का पाट चौड़ा होता गया और मैनग्रोव के जंगल हमसे दूर चले गए। दूसरी ओर मटमैला रंग का पानी भी अपना रंग बदलकर माणिक पन्ने के रंग जैसा हो गया। हम इन बदलते दृश्यों को देखने में मग्न थे कि बीच समुद्र में चट्टानी आकृतियाँ अवतरित होनी शुरु हुई। फान्ग नगा खाड़ी की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि ये अपनी गोद में चूनापत्थर की चट्टानों से बनी अजीबोगरीब आकृतियों को समाए हुए है।

A unique combination : Mangrove Forests with Hill !

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

डगर थाइलैंड की भाग 8 : आइए देखें प्राकृतिक गुफा में बने इस बौद्ध मंदिर को : Wat Suwankhuha - A cave temple !

फुकेट प्रवास के तीसरे दिन हमारा कार्यक्रम था फांग नगा खाड़ी के आस पास के इलाकों को देखने का। हम लोग फुकेट ( फुकेत ) के दक्षिण पश्चिम इलाके में थे और ये खाड़ी फुकेत के उत्तर पूर्वी सिरे पर स्थित है यानि करीब पचास किमी सड़क और पन्द्रह किमी समुद्र यात्रा तक हमें अपने गन्तव्य तक पहुँचना था। इस यात्रा के तीन मुख्य पड़ाव थे। बौद्ध गुफा मंदिर, फिर फांग नगा खाड़ी होते हुए मशहूर जेम्स बांड द्वीप और फिर वहाँ से खाड़ी के बीच बनी एक बस्ती में।

फुकेत शहर के बाहरी इलाकों में सबसे खूबसूरत दृश्य तब उभरता है जब आप पंक्तिबद्ध लगाए गए रबड़ के बागानों के बगल से गुजरते हैं। करीब एक घंटे की यात्रा के बाद हमारी गाड़ी एक पहाड़ी के सामने रुकी। पता चला कि इसी के अंदर वो मंदिर है जिसमें बुद्ध की सिर उठाकर लेटी मुद्रा में बनी सुनहरी मूर्ति है। 

Reclining Buddha Statue at Wat Suwankhuha

भारतीय मंदिरों की तरह ही इस मंदिर में बंदरों की पूरी फौज़ मौजूद थी और यहाँ भी लोग बंदर को खिलाने के लिए वहाँ खास तौर पर इसी उद्देश्य से बिक रहे पैकेट खरीद रहे थे।


लेटे हुए सुनहरे बुद्ध की प्रतिमा दूर से बेहद भव्य लगती है। प्रतिमा के सामने बौद्ध पुजारियों की छोटी छोटी मूर्ति बनाई गई है। मुख्य प्रतिमा केी बगल की सीढ़ियाँ एक अन्य छोटे मंदिर को जाती हैं जहाँ नियमित पूजा अर्चना होती है।


करीब बीस मीटर लंबी और पन्द्रह मीटर चौड़ी मुख्य गुफा से एक रास्ता ऊपर की ओर जाता है।


गुफा के विभिन्न हिस्सों में बुद्ध की छोटी बड़ी अन्य प्रतिमाएँ भी हैं।

 
सीढ़ी से ऊपर पहुँचते ही बौद्ध संत की इस छवि से सामना हो जाता है।


गुफा के इस हिस्से में एक छोटा सी स्तूपनुमा आकृति दिखती है।


मंदिर का हिस्सा यही खत्म हो जाता है। चूँकि इस इलाके की ज्यादातर चट्टानें चूनापत्थर की हैं यहाँ पर अंडमान की गुफाओं की तरह ही stalactite and stalagmite की संरचना देखने को मिलती है


पानी की उपस्थिति में ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर बढ़ती ये चट्टानें तरह तरह के अद्भुत रूपों में यहाँ दिखाई पड़ती हैं। गुफा के इन हिस्सों में चमगादड़ों का भी डेरा है। साथ ही रिसते पानी की वजह से हल्की सी सीलन भी रहती है।

 
वैसे गुफा में रोशनी की पुख्ता व्यवस्था है। बुद्ध भगवान से इस मुलाकात के कुछ ही देर बाद जा पहुँचे फांग नगा खाड़ी के मुहाने तक। यहाँ से आगे हमें जेम्स बांड आइलैंड तक एक नौका में जाना था। कैसी रहा हमारा अनुभव जानिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में..


थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

रविवार, 30 नवंबर 2014

डगर थाइलैंड की भाग 7 - फुकेट : रात की रंगीनियाँ Phuket's Night Life : Fun, Food and Frolic !

किसी भी शहर की एक छवि होती है और लोग उसी हिसाब से उसके बारे में अपनी राय बना लेते हैं या यूँ कहें अपनी कल्पनाओं को मूर्त रूप देने लगते हैं। फुकेत के बारे में भी जब चर्चा होती है तो एक ओर तो इसके हसीन समुद्री तटों की बात होती है तो दूसरी ओर मौज मस्ती भरी रातों की। सच में इस शहर के दो रूप हैं एक वो जो अब तक की पिछली कड़ियों में आपने देखा और जो बहुत कुछ हमारे किसी समुद्री पर्यटन स्थल से मिलता जुलता है। फुकेत का दूसरा रूप वो है जिसे माँग और पूर्ति की  पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की वज़ह से उसने स्वेच्छा से अपने ऊपर ओढ़ लिया है। 

एक ज़माने में फुकेत की अर्थव्यवस्था फलते फूलते टिन उद्योग से जुड़ी थीं। टिन की ख़दाने खाली हुई तो फिर धन के स्रोत सूखने लगे। रबड़ उत्पादन की वज़ह से कुछ सहारा मिला पर वो पर्याप्त नहीं था। अस्सी के दशक के पहले फुकेत के समुद्री तट बाहरी दुनिया के लिए अनजान ही थे। पर फिर यूरोपीय देशों के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ढेर सारे होटल, रिसार्ट्स, रेस्ट्राँ बने। मसॉज पार्लर तो थाई संस्कृति का हिस्सा थे ही पश्चिमी देशों से आए पर्यटकों की जरूरत को देखते हुए बीयर बार और रात्रि क्लबों के साथ देह व्यापार को भी तरज़ीह मिली।

फुकेत के इस रूप को देखने के लिए हमारा समूह भी पातोंग से सटे इन इलाकों की थाह लेने निकल पड़ा। कैसी थी फुकेट की तथाकथित 'नाइट लाइफ' आइए हमारे साथ आप ख़ुद ही देख लीजिए.. 


आठ अक्टूबर की शाम  होटल से बाहर निकल हम सड़क पार कर ही रहे थे कि मूसलाधार बारिश शुरु हो गई।  बिना छतरी ले के निकले थे सो भाग कर एक छोटी सी दुकान का सहारा लिया। हमारी इस हालत को देख तभी साइकिल से एक लड़का आया और कैरियर में बँधी बरसाती को खरीदने का आग्रह करने लगा। हम सब ने सोचा थोड़ी देर की बात है अभी क्यूँ खरीदना। पर बारिश भी नहीं रुकी और वो लड़का भी चला गया। थोड़ी देर पानी में भींगते हुए हम आगे बढ़ ही रहे थे कि हमें एक दुकान दिखी जहाँ वैसी ही बेहद पतले प्लास्टिक की बनी बरसाती बिकती मिली। मरता क्या ना करता, थोड़े मोल भाव के बाद सौ रुपये प्रति बरसाती के हिसाब से छः बरसाती खरीदकर हमारा काफिला उसी बरसात में आगे चल पड़ा। पातोंग तक पहुँचते पहुँचते बारिश धीमी हो गई थी पर इससे पहले बरसाती उतारी जाती एक वर्षा नृत्य Rain Dance तो बनता था ना।


पातोंग के समुद्र तट के समानांतर चलती Beach Road के दूसरी ओर बाजार, डिस्को और ढेर सारी खाने पीने की दुकाने हैं। अब अगर फुकेत में आएँ हो तो  Sea Food की तो विशेष किस्में दिखाई देनी ही हैं। इन नज़ारों को देख मुझे केरल का कोवलम तट याद आ गया। सबसे पहले दिखे ये घोड़े की नाल के आकार वाले केकड़े (Horse Shoe Crab)। प्लास्टिक के इस बड़े से टब में इन्हें ऐसे रखा गया था जैसे आलू प्याज हों।



आगे मछलियों की बहार थी। बर्फ में रखे Prawn, Lobsters, Shell Fish और Squids धड़ल्ले से बिक रहे थे।



यहाँ मिलने वाला समु्द्री भोजन शाकाहारी भोजन की तुलना में सस्ता है। सौ से दो सौ बहत (Baht) के बीच आप अपने मनपसंद व्यंजन की पूरी प्लेट मँगा सकते हैं। मेनू  पर ध्यान देने पर एक बात समझ आई कि ज्यादातर समुद्री व्यंजन चावल, सूप या किसी तरह के सॉस के साथ परोसे जाते हैं।

पर जो लोग मेरी तरह शाकाहारी हैं उन्हें कम से कम फुकेत में घबराने की जरूरत नहीं है। सिर्फ पातोंग के इलाके में छोटे बड़े पाँच भारतीय भोजनालय हैं और अगर आपको समुद्री भोजन की गंध परेशान नहीं करती तो आप थाई सलाद और उनके शाकाहारी व्यंजनों का भी आनंद उठा सकते हैं।


लाल और हरी शिमला मिर्च तो हमने खूब देखी थी पर पीली पहली बार यहीं देखी

Add caption
फलों के मामले में थाइलैंड का जवाब नहीं। यहाँ के बिना बीज वाले अमरूद को तो हमने बैंकाक में चखा पर जो स्वाद फुकेत में अनानास का था उसे भुलाया नहीं जा सकता। यहाँ का पपीता भी बड़ा स्वादिष्ट होता है। केले की भी कई प्रजातियाँ हैं जिन्हें हम चख नहीं पाए। वैसे अगर आप में नए स्वादों को आज़माने का जज्बा है तो एक तरह के ताड़ वृक्ष पे होने वाले इस Snake Fruit या स्थानीय भाषा में Salak या राकम के नाम से मशहूर इस फल का स्वाद चख सकते हैं।


फुकेत में आम थोड़े लंबे आकार के मिलते हैं। वैसे जानते हैं थाई भाषा में आम को मा मुआंग कहा जाता है। किसी ठेठ बिहारी से पाला पड़ गया तो वो तो सोचेगा कि कोई उसे 'मार कर मुआने' की बात कर रहा है :)। बहरहाल इतने बड़े आम को देखकर हमारे साहबजादे भी मचल उठे और ये पोज़ दे बैठे।


Beach Road पर सबसे चमकदार होर्डिंग नज़र आती है Banana Walk की! दरअसल ये एक तिमंजिला शापिंग कॉम्पलेक्स है जो यहाँ के मशहूर बनाना डिस्को के बगल में बना हुआ है। वैसे ज़रा सोचिए क्या आप भारत में किसी फल के हिन्दी नाम पर किसी डिस्को या शापिंग मॉल की कल्पना कर सकते हैं? नहीं ना ... पर लगता है थाईलैंड में हाथी की तरह ही ये फल भी थाई चेतना का अभिन्न अंग बन चुका है।


मन तो था कि ज़रा डिस्को के अंदर की चहल पहल का अंदाज़ा लें पर डिस्को ग्यारह बजे रात के बाद ही शुरु होता है।  बाहर की खुली बॉर में कोई बैंड अपना संगीत बजा रहा था।


Beach Road पर करीब आधा किमी चलने के बाद हमलोग Bangla Road के मोड़ तक आ पहुँचे । इस Bangla Road को ही फुकेत के रात्रि जीवन का मुख्य केंद्र माना जाता है। वैसे दूर से हमें लगा कि जगमगाती रोशनी से सजी इस सड़क पर यहाँ का मुख्य बाजार होगा। हम गलत तो नहीं थे पर उस मुख्य बाजार से पहले ही वहाँ ऐसा बहुत कुछ था जिसकी मैंने कल्पना नहीं की थी।


थोड़ी दूर चले ही थे कि बीच सड़क पर षोडषियाँ न्यूनतम वस्त्रों में ग्राहकों को रिझाती नज़र आयीं। परिवार के साथ होने के बावज़ूद वो हमें अपना प्रस्ताव देने से नहीं झिझकी। टोक्यो में भी ऐसे इलाकों से मैं गुजरा था पर वहाँ कभी लड़कियों को सीधे मुसाफ़िरों से आग्रह करते हुए नहीं देखा। पास ही पातोंग का सबसे बड़ा Tiger Night Club दिख रहा था। विदेशी पर्यटकों की भारी भीड़ उसमें मौज़ूद थी। 


हर नाइट क्लब का बाहरी परिदृश्य एक सा था। सामने बनी शीशे की दीवारों के पीछे लड़कियाँ पोल डांस करती दिख रही थीं। तेज बजते संगीत के बीच लोगों बीयर की चुस्कियाँ लगाने में तल्लीन थे। बॉर के सामने ही बड़ी बड़ी घंटियाँ लगी हैं जिसे बजाकर आप अपने आने की सूचना मदिरालय में मौज़ूद साकियों को दे देते हैं। सड़क पर भी मेले जैसे माहौल था। कहीं खिलौने बिक रहे थे तो कहीं जादूगरी दिखाई जा रही थी। फर्क सिर्फ इतना था कि ये मेला सिर्फ व्यस्कों के लिए था।


क्लबों के जाल से आगे निकले तो ये विशाल मसाज़ पार्लर नज़र आया। थाइलैंड में मसाज पार्लर दो तरह के होते हैं एक तो जहाँ सिर्फ मालिश होती है और दूसरे जहाँ उसके आलावा भी और कुछ होता है। Christin Massage इस दूसरी प्रकृति के मालिश केंद्रों मे आता है। इसी सड़क पर यहाँ का सबसे बड़ा मॉल जंगसीलोन है जो फुकेत के अंग्रेजों द्वारा दिए गए नाम Junk Ceylone पर पड़ा है।


थाइलैंड के इस इलाके की सबसे खास बात मुझे ये लगी कि इस इलाके में होता जो भी हो पर ये नहीं लगता कि आप असुरक्षित हैं। नाइट क्लब वाले अपने काम में मशगूल और साथ लगी दुकानें अपनी बिक्री में। पूरे इलाके में आपको जितने पुरुष पर्यटक नज़र आएँगे उतनी ही महिला पर्यटक भी। बहुत लोगों को पातोंग का ये शोर गुल मौज मस्ती का माहौल नहीं सुहाता तो वो फुकेत के दूसरे समुद्र तटों  के पास रहते हैं। वैसे अगर आप यहाँ के माहौल का और करीब से अनुभव करना चाहते हैं तो इस जापानी पर्यटक द्वारा लिया गया ये वीडियो देखिए। 


थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

रविवार, 23 नवंबर 2014

डगर थाइलैंड की भाग 6 : वाट चलौंग - क्या है थाई पूजा पद्धति? Wat Chalong and Thai prayer rituals !

बैंकाक मंदिरों का शहर है ये तो हमें पता था पर फुकेट ( फुकेत) को जब हमने अपने यात्रा के कार्यक्रम में डाला था तो बस ये सोचकर कि वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और लुभावने समुद्री तटों का खूब आनंद उठाएँगे।  फुकेट जाने पर पता चला कि वहाँ भी करीब 29 बौद्ध मंदिर हैं जो द्वीप के विभिन्न हिस्सों में बिखरे हैं। इन उनतीस मंदिरों में सबसे बड़ा, भव्य और श्रद्धेय मंदिर है वाट चलौंग (Wat Chalong)। थाई भाषा में वाट का अर्थ है मंदिर। चूंकि ये मंदिर चलौंग इलाके में स्थित है इसलिए इसका नाम वाट चलौंग पड़ गया। पर अगर इतिहास के पन्नों में झाँके तो पता चलता है कि इस मंदिर का असली नाम Wat Chaitararam था। मंदिर के पास मिले भग्नावशेषों से ये अनुमान लगाया जाता है कि 1837 में इसी जगह पर एक प्राचीन मंदिर अवश्य था। इस मंदिर में जिन धर्मगुरुओं की पूजा की जाती है उनका संबंध 1876 के चीनी श्रमिकों के विद्रोह से जोड़ा जाता है। 

वाट चलौंग का बौद्ध स्तूप या चेदी Three storied Chedi of Wat Chalong

उस कालखंड में फुकेट की मजबूत आर्थिक स्थिति का प्रमुख कारण इस इलाके में फल फूल रहा टिन का खनन उद्योग था। इस उद्योग में ज्यादातर मजदूर चीन के थे। अपनी खराब हालत के कारण 1876 में उन्होंने अपने थाई मालिकों के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया। जबरदस्त खून खराबा हुआ। थाई लोग इस विद्रोह को काबू में करने के लिए मंदिर के पुरोहित के पास मार्गदर्शन माँगने आए। उनके मशविरे का पालन कर उन्होंने इस विद्रोह को दबा भी दिया। जब इनका यश राजा राम पंचम तक पहुंचा तो उन्होंने पुरोहित  Luang Phor Cham, को बैंकाक में बुलाकर सम्मानित किया। आज भी इस मंदिर में धर्मगुरु लुआंग फोर चाम की प्रतिमा लगी है जहाँ भक्तगण दूर दूर से उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं।


जब हम वाट चलौंग के विशाल प्रांगण में पहुँचे तो बीच बीच में होने वाली बारिश एक बार फिर थम चुकी थी। सामने ही वाट चलौंग की तिमंजिला इमारत नज़र आ रही थी। इमारत के ऊपर साठ मीटर ऊँचा बौद्ध स्तूप है जिसे स्थानीय भाषा में ''चेदी'' कहा जाता है। इस स्तूप में श्रीलंका से लाया गया बुद्ध की अस्थि का एक क़तरा मौजूद है। मंदिर की दीवारों पर परंपरागत थाई कारीगिरी तो है, साथ ही भगवान बुद्ध की सुनहरी प्रतिमा भी बनी है। मंदिर के अंदर भी भगवान बुद्ध की अलग अलग भंगिमाओं में मूर्तियाँ हैं। भारत की तुलना में फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ बुद्ध की मूर्तियों को फूलों के बीच रखा गया है।


मंदिर की दीवारों पर जातक कथा की कहानियों से संबंधित दृश्य चित्रकला के माध्यम से उकेरे गए हैं। इस पूरे प्रांगण में स्तूप के आलावा कुछ और छोटे बड़े मंदिर भी हैं। स्तूप की तिमंजिली इमारत पर चढ़कर पूरे परिसर का भव्य नज़ारा आँखों के समक्ष आ जाता है।


है ना कितना सुंदर ? Isn't this beautiful ?

रविवार, 16 नवंबर 2014

डगर थाइलैंड की भाग 5 : फुकेट ( फुकेत ) के समुद्र तट Beaches of Phuket, Thailand

वो आठ अक्टूबर की सुबह थी। पिछले दिन की थकान अच्छी तरह सो लेने की वज़ह से खत्म हो चुकी थी। पर ये क्या.. बाहर तो मूसलाधार बारिश हो रही थी। मतलब इंटरनेट पर एक महीने पहले देखा हुआ मौसम का पूर्वानुमान सही साबित हो रहा था। पर खुशी की बात ये थी कि मैंने इसी वज़ह से दूसरे दिन फुकेट शहर के अंदर ही घूमने का कार्यक्रम बनाया था। ऐसे मौसम में घूमने के लिए छतरी का होना आवश्यक था। छतरी तो हम ले गए थे पर वो छः लोगों के हमारे समूह को पूरी तरह ढकने में असमर्थ थी। तैयार हो कर जब नीचे उतरे तो अचानक ही होटल के स्वागत कक्ष पर रखी इन बड़ी बड़ी रंग बिरंगी छतरियों पर नज़र पड़ी। होटल वाले से पूछा तो उसने बताया कि ये अतिथियों के लिए ही रखी गई हैं। फिर क्या था हम लोगों ने दो छतरियाँ उठायी और चल पड़े  सुबह के नाश्ते की तलाश में।

चली बारिश की बयार..  हम छतरी ले तैयार !

होटल चुनते समय हमने ये ध्यान रखा था कि भारतीय भोजनालय पास में ही हो। पिछली रात तो खाना फुकेट फैंटासी में ही हो गया था इसलिए वहाँ जाने की जरूरत नहीं पड़ी थी। पर सुबह जब वहाँ पहुँचे तो रेस्ट्राँ को बंद पाया। पता चला कि यहाँ दिन के ग्यारह बारह बजे से पहले ज्यादातर रेस्ट्राँ नहीं खुलते। कारण साफ था। फुकेट में रात की रंगीनियाँ इतनी देर तक चलती हैं कि बाहर से आए हुए मुसाफ़िर सुबह उठ जाएँ ऐसा कम ही होता है। ख़ैर तय हुआ कि एक आध और रेस्ट्राँ के चक्कर मारे जाएँ नहीं तो मक्खन पावरोटी से काम चलाया जाए। होटल के बगल के एक इतालवी रेस्ट्राँ में झाड़ू लगता देख हमें आशा बँधी सोचा शायद अमेरिकन ब्रेकफॉस्ट के नाम पर टोस्ट बटर यहीं मिल जाए।

अब इतालवी रेस्ट्राँ में आए हैं तो साज सज्जा तो यूरोपीय होगी ही !
अंदर जाकर जब हमें मेनू में मक्खन पावरोटी के साथ आलू के पराठे दिखे तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इतालवी रेस्टाँ में स्वादिष्ट आलू के पराठे खाना हमारे लिए थाइलैंड प्रवास का एक यादगार अनुभव रहा।

जलपान करने के बाद बाहर देखा तो पाया कि बारिश फुहार में बदल गई थी। हमारा उस दिन का कार्यक्रम मुख्यतः फुकेट के खूबसूरत समुद्र तटों और मंदिरों की सैर का था। फुकेट शहर में एक से बढ़कर एक समुद्र तट हैं। काथू, जहाँ हम ठहरे थे वहाँ से कुछ क़दमों के फासले पर Patong Beach है जो शहर के व्यस्ततम इलाके से सटी हुई है। Patong Beach के उत्तर की ओर जाने पर Kamala और Surin Beach मिलती है वहीं इसके दक्षिणी सिरे पर जाने से Karon और Kata के समुद्र तट मिलते हैं। Kamala के तट का दर्शन तो हम पिछली रात Phuket Fantasea देखने के पहले ही कर चुके थे।

फुकेट ( फुकेत ) के समुद्र तट

जो मेटाडोर हमें लेने आई थी वो हमें शहर के दक्षिणी सिरे की ओर ले जाने लगी। पर इन आधे दिन के भ्रमण वाले कार्यक्रम में इतना समय नहीं होता कि इन समुद्र तटों पर इच्छा के मुताबिक आपको वक़्त बिताने का मौका मिल सके। इसलिए ऐसे टूर लेने से बेहतर है कि आप वहीं जाकर अपनी पसंद की जगहों पर ज्यादा वक़्त बिताएँ। गाड़ी ढूँढने का काम या तो होटल वालों पर छोड़ दें या फिर टुकटुक वालों से मोलभाव की हिम्मत रखें :)। मेटाडोर हमें सबसे पहले एक छोटी सी पहाड़ी पर ले गई जहाँ से Karon और Kata के खूबसूरत समुद्र तट एक साथ दिखते हैं।

क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि ज़मीन के इस टुकड़े को समुद्र ने आपने आगोश में ले रखा हो !

शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

डगर थाइलैंड की भाग 4 - आइए ले चलें आपको हाथियों के महल और उड़ते किन्नरों की दुनिया में ! Phuket FantaSea : Palace of the Elephants !

थाइलैंड से जुड़ी इस श्रंखला की पिछली कड़ी में आपने झलकें देखी थीं यहाँ के कार्निवाल विलेज की। इसके बाद Phuket Fantasea में हमारा अगला पड़ाव था The Golden Kinnaree जो ना केवल अपने वृहद भोज के लिए जाना जाता है बल्कि जिसकी बाहरी और आंतरिक साज सज्जा मन को मंत्रमुग्ध कर देती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि थाइलैंड के सुदूर दक्षिण इलाके में बने इस भोजनालय का नाम भारत की पौराणिक कथाओ में उल्लेखित किन्नर शब्द से ही निकला है। 


पुराणों और महाभारत में इस बात का जिक्र बार बार मिलता है कि किन्नर हिमालय में बसने वाली एक जन जाति थी जिन्हें अपने स्वरूप से सीधे सीधे स्त्री या पुरुष में विभेद करना मुश्किल था। किन्नर नृत्य और गायन में प्रवीण होते थे। हिमालय के पवित्र शिखर पर रहने वाले शंकर भगवान की सेवा किन्नरों ने की थी । शायद इसी वज़ह से हिमालय की एक चोटी किन्नर कैलाश के नाम से जानी जाती है। कालांतर में बौद्ध धर्म जब भारत में पनपा तो थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ हिंदू धर्म की बहुत सारी पौराणिक मान्यताएँ उसमें भी समाहित हो गयीं। जहाँ पौराणिक हिंदू ग्रंथों में किन्नरों को अश्वमुखी मानव काया वाला समझा गया वहीं बौद्ध ग्रंथों में किन्नर विद्यमान रहा पर उसे एक नया रूप  मानवमुखी पक्षी का मिल गया। थाई भाषा में किन्नर का नारी रूप किन्नारी हो गया। यानी शरीर का ऊपरी भाग स्त्री का और निचला एक पक्षी का  तो अब आप समझ गए होंगे कि फुकेट फैंटासी के इस रेस्ट्राँ का नाम ऐसा क्यूँ है?

Main Gate मुख्य द्वार The Golden Kinnaree
The Golden Kinnaree की इमारत सचमुच चारों ओर स्वर्णिम आभा बिखेरती नज़र आती है। भवन का मुख्य दरवाजा किसी थाई शाही महल का सा आभास देता है। लगभग सवा एकड़ में फैले इस विशाल रेस्टाँ के सामने का हिस्सा पानी से घिरा हुआ है। रात को चौंधियाती रोशनी की छाया जब इस जलराशि पर पड़ती है तो नज़ारा देखने लायक होता है।

बाहरी साज सज्जा
थाइलैंड के कई इलाकें ऐसे हैं जहाँ समुद्र का पार्श्वजल (Backwaters) अंदरुनी गाँवों तक फैला हुआ है। इन इलाकों में तैरते बाजार (Floating Markets) यानि नावों पर लगने वाले बाजार आम हैं। इसे ही दिखाने के लिए गोल्डेन किन्नारी में भी खूबसूरत सी नाव रखी गई है।

Kamala Floating Market