गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

डेन थलेन की वो भूल भुलैया और कैमरे की असमय मौत ! The mysterious road to Dain Thlen Falls & those last pictures of my camera !

चेरापूंजी में नोहकालिकाई के आलावा जिस झरने का लोग सबसे ज्यादा जिक्र करते हैं वो है सेवेन सिस्टर्स फॉल यानि सात बहनों का झरना। अब सातो बहनें सगी ठहरीं। सो जब अपनी प्रचंडता से बहती हैं तो एक दूसरे में आत्मसात होकर लगभग एक धारा बना देती हैं। पर जब ऐसा होता है तो धुंध और पानी की फुहारों के बीच वो छवि क़ैद करनी मुश्किल हो जाती है।

सच तो ये है कि इनका मन भी बारिश की बूंदों के साथ ही हिलोरें मारता है। बारिश खत्म हुई तो ऐसी रूठती हैं कि एक साथ बहना भी बंद कर देती हैं। यानि सितम्बर तक अगर आप यहाँ पधारे तब ही आप सात बहनों की अठखेलियों को मुग्ध हो कर निहार सकते हैं। अक्टूबर के बाद से तो इस झरने को पहचानना भी मुश्किल हो जाता है।

Seven sisters fall सेवेन सिस्टर्स फॉल

अब मुझे या मेरे साथ जाने वालों को पहले से इस बात का पता नहीं था। अक्टूबर के पहले हफ्ते में जब हमारा समूह चेरापूंजी पहुँचा तो इस झरने की विरल धारा देख कर दिल में मायूसी छा गई। कहाँ उफनता हुआ पानी और कहाँ बस सादी सी बहते जल की चार पाँच लकीरें। पानी की धारा का पीछा करते हुए जब गहरी खाई की ओर कैमरा घुमाया तो पानी पर सूर्य किरणों की वज़ह से बनते इंद्रधनुष को देख मायूस मन थोड़ा प्रसन्नचित्त जरूर हुआ। सोचिए बारिश के भरपूर मौसम में जब सूर्य देव यहाँ प्रकट होते होंगे तो सारी घाटी इस इंद्रधनुषी छटा से नहा जाती होगी।

Rainbow formation at the base of the fall प्रपात के पाँव के पास बनती इंद्रधनुषी छटा

वैसे पतली ही सही बाएँ से दाएँ जाती इन लकीरों को आप गिने तो सातों बहनों का स्वरूप आपको दिख जाएगा। क्यूँकि ये प्रपात मास्मई गाँव के पास है इसलिए ये मास्मई के जलप्रपात के नाम से जाने जाते हैं। मास्मई की गुफाओं से बेहद पास इन धाराओं को मुख्य सड़क से ही देखा जा सकता है।

Another view of the fall


शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

नोहकालिकाई, चेरापूंजी : कैसे नाम पड़ा देश के सबसे ऊँचे जलप्रपात का ? Story of Nohkalikai Falls, Cherrapunji

इस श्रंखला के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह रास्ते की हरियाली का स्वाद लेते हुए हम चेरापूंजी पहुँचे। चेरापूंजी मेघालय का एक छोटा सा कस्बा है जिसे हम सभी बारिश की अधिकता के लिए जानते हैं। चेरापूंजी में देखने लायक बहुत कुछ है..... हर जगह फैली प्राकृतिक सुंदरता, ढेर सारे छोटे बड़े जलप्रपात , चूनापत्थर की पहाड़ियों के बीच बनी दुर्गम गुफाएँ और खासियों द्वारा पेड़ों की जड़ का इस्तेमाल कर आवगमन के लिए बनाए लिविंग रूट्स ब्रिज। पर दूसरी ओर इतनी प्राकृतिक संपदा की मिल्कियत सँभाले इस कस्बे में अच्छे होटलों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। एक डेढ़ महीने पहले से आरक्षण की कोशिश करते रहने के बाद भी हमें यहाँ जगह नहीं मिली। मतलब ये कि हमें यहाँ सुबह चलकर शाम तक शिलांग लौट आना था।
This definitely shows that city of Cherrapunji loves Football चेरापूंजी का फुटबाल प्रेम
चेरापूंजी खासी पहाड़ियों के दक्षिणी सिरे पर बसा एक पठारी भूभाग है जो अपने आस पास की घाटियों से पाँच छः सौ मीटर ऊँचा है। पठार की इन खड़ी ढालों और गहरी घाटियाँ के दक्षिण में बाँग्लादेश का मैदानी इलाका है। जब बाँग्लादेश की ओर से मानसूनी हवाएँ चलती हैं तो जलवाष्प से भरी हवा ऊपर उठकर और ठंडी होती हुई इन खड़ी ढालों से टकराती है जिससे इस इलाके में भारी बारिश होती है। पठारी भाग के घने जंगलों में बने पानी के छोटे बड़े स्रोत मिलकर जब इन खड़ी ढालों से गिरते हैं तो झरनों का निर्माण करते हैं। चेरापूंजी में मैंनै वैसे तो करीब आधा दर्जन जलप्रपात देखे पर इनमें नोहकालिकाई का जलप्रपात मेरी स्मृतियों में हमेशा बना रहेगा।


नोहकालिकाई जाने का रास्ता चेरापूंजी के बाकी आकर्षणों की राह से थोड़ा हटकर है। पठारी इलाकों से बीच से गुजरती इस सड़क के दोनों ओर आश्चर्यजनक रूप से जंगल नदारद हैं। दूर दूर तक जंगली घास और झाड़ियों का ही साम्राज्य दिखाई देता है। आसपास के कुछ इलाके कोयले के खनन के लिए भी इस्तेमाल हो रहे हैं। शायद इसका असर यहाँ की वानस्पतिक संरचना पर पड़ा हो। पाँच छः किमी के इस रास्ते को पार करने के बाद गाड़ियों के जमावड़े को देखकर लगता है कि शायद जलप्रपात आ गया। पर दिक्कत ये है कि घने जंगलों के बीच से गिरते इस अद्भुत प्रपात के पास आप जा नहीं सकते। जहाँ से पर्यटकों को इसे देखने के लिए व्यू प्वाइंट बनाया गया है वहाँ से नीचे की ओर सीढ़ियाँ  तो जाती हैं पर वो झरने से काफी दूर ही खत्म हो जाती हैं।

Nohkalikai Falls नोहकालिकाई का जलप्रपात
पर दूर से ही इस झरने और इसके आस पास की मनोहारी छटा मन को लुभा जाती है। इतने हरे भरे दरख्तों के बीच पानी की गिरती मोटी धार और नीचे बनते नन्हे से नीले सरोवर की छवि नयनों में अटक सी जाती है और महीनों दिल से नहीं निकलती। अपने कैमरे के जूम से धारा और नीचे की जलराशि को क़ैद करने की कोशिश की तो वो एक फ्रेम  में समा ही नहीं पाई। आख़िर समाती भी तो कैसे? एक बार में इतनी ऊँचाई से गिरने वाला ये भारत का सबसे ऊँचा जलप्रपात ठहरा। हम खुशकिस्मत थे कि हमें ये प्रपात ऊपर से नीचे तक देखने का मौका मिला वर्ना अक्सर इसके मुहाने पर मानसूनी बादलों का डेरा रहता है जिसकी वजह से इसकी मुख्य धार और आस पास की हरियाली कैमरे की ज़द के बाहर हो जाती है।

...Where water falls from a height of 340m जहाँ तीन सौ चालीस मीटर की ऊँचाई से गिरता है पानी

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

शिलांग से चेरापूंजी की वो खूबसूरत डगर ... Road trip from Shillong to Cherrapunji (Sohra)

शिलांग प्रवास के दूसरे दिन हमने चेरापूंजी की राह पकड़ी । अब यूँ तो चेरापूँजी बारिश के लिए जाना जाता है पर उस दिन आसमान लगभग साफ था। काले बादलों का  दूर दूर तक कोई नामो निशान नहीं था। शिलांग से चेरापूंजी की दूरी साठ किमी की है, जिसे रुकते रुकते भी आराम  से दो घंटे के अंदर पूरा किया जा सकता है। रुकते रुकते इसलिए कि शिलांग से वहाँ तक की डगर इतनी रमणीक है कि आपका दिल बार बार गाड़ी पर ब्रेक लगाना चाहेगा। वो कहते हैं ना कि गन्तव्य जितना महत्त्वपूर्ण रास्ता भी होता है तो वो बात इस सफ़र के लिए सोलह आने सच साबित होती है। तो चलिए मेघालय यात्रा की इस कड़ी में आज आपको दिखाता हूँ शिलांग से चेरापूंजी तक के सफ़र को अपने कैमरे की नज़र से.. 

Shillong Cherrapunji Highway
पर इससे पहले कि मेघालय के इस राज्य राजमार्ग 5 पर आगे बढ़ें चेरापूँजी और सोहरा के नामों से आपके दिल में जो संशय पैदा हो गया होगा उसे दूर कर देते हैं। दरअसल इस स्थान का वास्तविक नाम सोहरा ही है जो किसी ज़माने में खासी जनजाति प्रमुख द्वारा शासित इलाका हुआ करता था। अब अंग्रेजों ने सोहरा नाम को चुर्रा नाम क्यूँ बुलाना शुरु किया ये मेरी समझ से बाहर है। पर कालांतर में ये नाम चुर्रा से चेरा और फिर चेरापूंजी हो गया। वैसे अब मेघालय सरकार ने अपने साईनबोर्ड्स पर इस जगह के पुराने नाम को अपनाते हुए सोहरा को ही लिखना प्रारंभ कर दिया है।


वैसे भी  संसार का सबसे गीला स्थान होने का तमगा भी अब चेरापूंजी से छिनकर पास के गाँव मॉसिनराम को चला गया है।
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बारिश इस इलाके में पहले से कम जरूर हुई है पर शिलांग से सोहरा तक के रास्ते की हरियाली देखती ही बनती है। पूर्वी खासी की पहाड़ियों में  फैले हरे भरे घने जंगल, पतली दुबली नदियाँ और पहाड़ी ढलानों में थोड़ी भी समतल भूमि मिलने से बोई गई फसलों के नजारे इस रास्ते को अपनी अलग पहचान देते हैं। दो जगहों की तुलना मुझे कभी नहीं भाती और स्कॉटलैंड मैं गया नहीं पर यहाँ के सदाबहार जंगलों  की हरियाली की वजह से ही इसे शायद  स्काटलैंड आफ दि ईस्ट कहा जाता हो।