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मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

क्यूँ हैं लोद्रवा के जैन मंदिर राजस्थान के खूबसूरत मंदिरों में से एक? The beauty of Lodurva Jain Temples, Jaisalmer

राव जैसल द्वारा त्रिकूट पर्वत पर जैसलमेर की नींव रखने के पहले भाटी राजपूतों की राजधानी लौद्रवा थी जो जैसलमेर से सत्रह किमी उत्तरपश्चिम में है। आज तो लौद्रवा की उपस्थिति जैसलमेर से लगे एक गाँव भर की है।  ऐसा माना जाता है कि लोदुर्वा का नाम इसे बसाने वाले लोदरा राजपूतों की वजह से पड़ा।  दसवीं शताब्दी में ये इलाका भाटी शासकों के अधीन आ गया। ग्यारहवीं शताब्दी में गजनी के आक्रमण ने इस शहर को तहस नहस कर दिया। प्राचीन राजधानी के अवशेष तो कालांतर में रेत में विलीन हो गए पर उस काल में बना जैन मंदिर सत्तर के दशक में अपने जीर्णोद्वार के बाद आज के लोद्रवा की पहचान है।

जैसलमेर में थार मरुस्थल और सोनार किले को देखने के बाद हमारा अगला पड़ाव ये जैन मंदिर ही थे। दिन के साढ़े नौ बजे जब हम अपने होटल से निकले, नवंबर के आख़िरी हफ्ते की खुशनुमा धूप गहरे नीले आकाश के सानिध्य में और सुकून पहुँचा रही थी। जैसलमेर से लोधुर्वा की ओर जाती दुबली पतली सड़क पर अज़ीब सी शांति थी। बीस मिनट की छोटी सी यात्रा ने हमें मंदिर के प्रांगण में ला कर खड़ा कर दिया था।

जैसलमेर के स्वर्णिम शहर के नाम को साकार करते हुए ये मंदिर भी सुनहरा रूप लिए हुए हैं। मंदिर के गर्भगृह में जैन तीर्थांकर पार्श्वनाथ की मूर्ति है। इनके आलावा इस जैन मंदिर परिसर के हर कोने में अलग अलग तीर्थांकरों को समर्पित मंदिर हैं।