शनिवार, 31 मार्च 2012

यूगांडा की क्रेटर लेक्स और एक छायाकार का दर्द...

पूर्वी अफ्रिका का एक छोटा सा देश है यूगांडा। नेपाल की ही तरह चारों तरफ़ से ज़मीनी चादर से घिरा हुआ। विषुवत यानि भूमध्य रेखा इस देश के बीचो बीच से पार करती है। ज़ाहिर है यहाँ की प्रकृति घने जंगलों, घास के मैदानों और भांति भांति के वन्य जीवों से भरी पूरी है। यूगांडा के वन्य प्राणियों में सबसे खास है यहाँ का गोरिल्ला। पर यूगांडा के दक्षिण पश्चिमी इलाके में स्थित क्वीन एलिजाबेथ नेशनल पार्क में लोग सिर्फ गोरिल्ला और अन्य वन्य जीव देखने आते हों ऐसा भी नहीं है। प्रकृति ने यहाँ की भूमि को एक अलग सी भौगोलिक संरचना भी दी है जिसका नाम है रिफ्ट वैली (Rift Valley)

सहज शब्दों में अगर परिभाषित किया जाए तो इतना कहना पर्याप्त होगा कि रिफ्ट वैली का निर्माण तब होता है जब धरती की दो ऊँची ऊँची पट्टियों यानि प्लेट्स के बीच टेक्टोनिक ताकतों की वजह से अलगाव पैदा होता है और इस अलगाव से इनके बीच का भाग एक घाटी का रूप ले लेता है। अफ्रिकन, यूरेशियन व भारतीय प्लेटों के अलगाव की वज़ह से अफ्रिका के पूर्वी भाग में भी एक रिफ्ट वैली का जन्म हुआ और इसके फलस्वरूप हुई ज्वालामुखीय गतिविधियों की वजह से यूगांडा के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में अनेक क्रेटर झीलों अस्तित्व में आईं। इन्हीं मे से एक झील का चित्र आपने पिछली पोस्ट में देखा था।

चित्र सौजन्य 

यूगांडा के इस राष्ट्रीय उद्यान में ये क्रेटर 333 वर्ग किमी में फैले हुए हैं। इनमे से अधिकांश का  व्यास सौ मीटर से एक किमी तक है। इस झील समूह में सबसे बड़ी काटवे झील (Lake Katwe) है जिसकी गहराई एक किमी से भी ज्यादा है।

गुरुवार, 22 मार्च 2012

चित्र पहेली 20 : क्या आप इस झील में डुबकी लगाना चाहेंगे ?

चलिए आज राजस्थान की सैर से थोड़ा विराम लेते हैं और दिखाते हैं आपको ऐसा नज़ारा जिसे देखकर आप एकबारगी ठिठक जरूर जाएँगे ? दरअसल संसार में ईश्वर की दी हुई ये प्रकृति इतने विविध रूप रंगों में मौजूद है कि जितना भी इसे खँगाला जाए ये हमें उतना ही विस्मित करती चलती है।

झीलें तो आपने कई देखी होंगी और बहुतों में नौका विहार का भी आनंद उठाया होगा। पर इस झील में नौकाएँ नहीं चलती। और इसके आस पास की हरियाली देखकर कहीं मन इसमें डुबकी लगाने का कर गया तब तो भगवान ही मालिक है आपका। इस झील का ठीक ठीक तो पता नहीं पर ये और इसके पास की ऍसी झीलों की गहराई दो सौ मीटर से एक किमी तक है जनाब।
 
(चित्र के छायाकार का नाम उत्तर के साथ बताया जाएगा )

चित्र तो देख लिया आपने क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि ये नज़ारा किस देश का है और इस तरह की झील बनी कैसे होगी ? प्रश्न को थोड़ा आसान बनाने के लिए एक संकेत हाज़िर है। वो ये कि ये देश अपने एक तानाशाह की वज़ह से वर्षों तक सुर्खियों में रहा था।

तो देखें किसका तीर सबसे पहले निशाने पर लगता है। हमेशा की तरह आपके जवाब माडरेशन में रखें जाएँगे।

गुरुवार, 15 मार्च 2012

रंगीलो राजस्थान : आख़िर क्या ख़ास है रणकपुर (राणकपुर) के जैन मंदिरों में ?

आज आपको ले चल रहा हूँ रणकपुर के जैन मंदिरों के दर्शन के लिए। वैसे अंग्रेजी का Ranakpur, हिंदी में कैसे लिखा जाए इस पर मेरा संशय इस यात्रा के इतने दिनों बाद भी ज्यों का त्यों हैं। मील के पत्थरों पर, मंदिर में घुसने के पूर्व लगने वाले टिकट पर और बाद में अंतरजाल के विभिन्न जाल पृष्ठों पर मैंने रनकपुर, रणकपुर और राणकपुर तीनों नाम देखे हैं। इनमें सबसे प्रचलित नाम कौन सा है ये तो मेरे राजस्थानी मित्र बता पाएँगे। बहरहाल मैंने कहीं पढ़ा था कि है कि चूंकि ये मंदिर राणा कुंभ के शासनकाल में उनकी दी गई ज़मीन पर बनाया गया इसलिए इसका नाम राणकपुर पड़ा ।

बाल दिवस यानि चौदह नवंबर  को कुंभलगढ़ पर की गई चढ़ाई ने हमें वैसे ही थका दिया था। फिर खाली पेट पहाड़ी रास्तों के गढ़्ढ़ों को बचते बचाते हुए 50 किमी का सफ़र हमने कैसे काटा होगा वो आप भली भांति समझ सकते हैं। पर दो बातें हमारी इस दुर्गम यात्रा के लिए अनुकूल साबित हुईं। एक तो बरसात के बाद मंद मंद बहती ठंडी हवा और दूसरे हर दो तीन किमी पर हाथ से गाड़ी रुकवाता बच्चों का झुंड। जैसे ही हमारी गाड़ी धीमी होती ढेर सारे बच्चे छोटी छोटी टोकरियों में शरीफा लिए दौड़े चले आते। दाम भी कितना..पाँच रुपये में बारह शरीफे ! ना ना करते हुए भी बच्चों के अनुरोध को हम टाल ना सके। शरीफों की बिक्री के इस तरीके से हमें अगले दिन माउंट आबू जाते हुए भी दो चार होना पड़ा।

सोमवार, 5 मार्च 2012

रंगीलो राजस्थान : अरावली की पहाड़ियों में बसा कुंभलगढ़ !

कुंभलगढ़ के इतिहास के बारे में तो आप पिछली पोस्ट में जान चुके। आइए आज आपको दिखाते हैं किले के विभिन्न हिस्सों से ली गयीं इस इलाके की कुछ और तसवीरें..

 कुंभलगढ़ की ये विशाल दीवारें सबसे पहले पर्यटक का ध्यान खींचती हैं।


पूरे राजस्थान में हमने किले तो कई देखे पर किले के अंदर फूलों की खूबसूरती को कैमरे में क़ैद करने का मौका सिर्फ कुंभलगढ़ में मिला।