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सोमवार, 6 अप्रैल 2009

यादें अंडमान की : हैवलॉक का समुद्र तट,क्यूँ माना जाता है एशिया में सबसे सुंदर ?

वैसे तो हैवलॉक में कई टूरिस्ट रिसार्ट हैं। पर ज्यादातर के मुख्य ग्राहक विदेशी सैलानी ही हैं। पर आम जनता में सबसे लोकप्रिय, अंडमान पर्यटन द्वारा संचालित डॉलफिन रिसार्ट (Dolphin Resort) है। ये रिसार्ट बेहद खूबसूरत है । अलग अलग झोपड़ीनुमा कमरे ... उन्हें आपस में जोड़ती पगडंडियाँ जिनकी दोनों ओर पौधों की मोहक कतारें लगी थीं। पर इन सबकी ओर ज्यादा ध्यान तो सुबह में गया। उस वक्त चिंता तो इस बात की हो रही थी कि अरे ये सब तो ठीक है पर ये समुद्र कहाँ गया ? इससे पहले तो जो लोग बाग घूम कर आए थे उन्हें तो यही कहते सुना था कि...
'अमां....समुद्र तो यूँ सामने बहता है कि जब चाहो तब उसे छू लो !
पर यहाँ छूने की कौन कहे दूर-दूर तक कोई आवाज भी नहीं सुनाई पड़ रही थी। रिसार्ट के बाहरी सिरे पे लगी सारी लाइट्स बिजली की कमी की वजह से जलायी नहीं जा सकीं थीं और हम थे कि उस घुप्प अंधकार में आँखें फाड़े समुद्र की टोह लेने की कोशिश कर रहे थे ।


इस श्रृंखला की पिछली प्रविष्टियों में आपने पढ़ा कि किस तरह इठलाती बालाओं और विमान के टूटते डैने के संकट से उबर कर अंडमान पहुँचा और सेल्युलर जेल में ध्वनि और प्रकाश का सम्मिलित कार्यक्रम वहाँ के गौरवमयी इतिहास से मुझे रूबरू करा गया। अगले दिन रॉस द्वीप की सुंदरता देख और फिर नार्थ बे के पारदर्शक जल में गोते लगाकर मन प्रसन्न हो गया। हैवलॉक तक की गई यात्रा मेरी अब तक की सबसे अविस्मरणीय समुद्री यात्रा रही। अब आप पढ़ रहे हैं हैवलॉक में बिताए गए खूबसूरत लमहों की दास्तान...


जब कुछ देर तक समुद्र का कोई सुराग ना मिला तो सब वापस अपने कमरों में चले गए। सामने के बगीचे की नर्म घास को पार करते ही रिसार्ट की चारदीवारी आ जाती है। नहाने धोने के पश्चात फिर हमारी मंडली उसकी रेलिंग पर आ जमी । समुद्र का अता-पता तो अब भी ना था पर ये जरूर था कि हवा के प्यारे झोंकों से सफर की थकान को मिटाते जा रहे थे।

कुछ ही मिनट बीते होंगे कि दूर कहीं एक आवाज सुनाई दी । उससे यही अनुमान लग पा रहा था कि सागर करीब आधे पौने किमी की दूरी पर जुरूर है। पर जैसे जैसे हमारी बातें होती रहीं वो आवाज निरंतर हमारे पास आती गई। लगता था जैसे सागर खुद हमारे भ्रमित मस्तिष्क को सही मार्ग दिखाने हौले-हौले कदमों से पास आ रहा हो। हमें यकीन नहीं हुआ जब कुछ ही देर में समुद्र हमसे १० मीटर के फासले पर आ पहुँचा । समुद्र के इस तरह तट से दूर जाने और आने का मंजर हम एक बार उड़ीसा के चाँदीपुर समुद्र तट (Chandipur Sea Beach) पर देख चुके थे । समुद्र के दर्शन से निश्चिंत होकर सबका ध्यान पेट पूजा पर गया । शयनकक्ष में आँखे मुंदने के पहले आने वाली सुबह के रूप रंग की कल्पनाओं में मन डूबा था।

हैवलॉक में समुद्री तटों का नामाकरण संख्या के आधार पर किया गया है । डॉलफिन रिसार्ट के ठीक सामने का समुद्री किनारा 5 नंबर 'बीच' (Beach No. 5) कहलाता है और इसके समानांतर अगर उत्तर की दिशा में बढ़ें तो 'बीच' संख्या 3 (Beach No. 3) आ जाती है। वही राधानगर के समुद्र तट पर जाने के लिए तट संख्या तीन से पश्चिम की ओर मुड़ना होता है (नक्शा देखें )।
सुबह उठकर बाहर का दृश्य देखते ही बनता था। समुद्र फिर दूर चला गया था पर दूर हल्के नीले रंग का जल हमें अपनी ओर आमंत्रित कर रहा था। हैवलॉक का समुद्र तट एशिया में सबसे सुंदर माना गया है । अब मुझे तो भारत और नेपाल से बाहर जाने का मौका नहीं मिला पर यहाँ आने के पहले तक मुझे गोवा का समुद्री तट बहुत सुंदर लगा था।

पर हैवलॉक की खासियत है तट के किनारे- किनारे मैनग्रोव वृक्ष (Mangrove Trees) की खूबसूरत कतारें । इनकी जड़ें लतर की तरह फैलती हैं। कई वृक्ष जमीन से लम्बवत ना बढ़कर, क्षैतिज यानि जमीन के समानांतर बढ़ते हैं। इन्हें दूर से देखने से ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वच्छ नीले समुद्र से आकर्षित होकर उसे अपने बाहुपाश में बाँधने आ रहे हों। हमारा समूह भी इस छटा को देख मंत्रमुग्ध सा हो गया और हम तट संख्या 5 से 3 की ओर बढ़ चले।


समुद्र के पारदर्शक जल के साथ ही सुनहरी रेत की लकीर खिंची हुई थी जो तट की सुंदरता को बढ़ा रही थी। भांति-भांति के केकड़े दूर से इधर उधर दौड़ते दिखाई देते पर पास जाते ही रेत के गोलाकार छिद्रों में पनाह ले लेते। कई-कई जगह तो पेड़ इस तरह रास्ता रोके खड़े थे कि हमें उनसे आगे जाने के लिए लगभग लेटते हुए उनके नीचे से जाना पड़ा। बीच की दूसरी तरफ पेड़ों की झुरमुटों के बीच में अलग अलग रिसार्ट बने हैं। करीब डेढ़ किमी तक इन मनभावन दृश्यों को आत्मसात करने के बाद हम सब वापस मुड़े। सूरज के चढ़ते ही समुद्र तेजी से तट की ओर बढ़ चला था। जिन पेड़ों के नीचे से झुक कर निकले थे, अब वहां घुटने से थोड़ा नीचे तक पानी बह रहा था। झुके हुए पेड़ की डाल पर चढ़ कर चित्र खिंचवाने का आनंद ही अलग था।

अब किसने सोचा था ऍसा दृश्य...ऊपर पेड़ की शाखाएँ और नीचे बहता समुद्र। हम सब ऊपरवाले की रची इस लीला को देख के अभिभूत थे।
दिन में भोजन करने और दो घंटे का विश्राम कर हम सब तट संख्या सात यानि राधानगर बीच की ओर चल पड़े। राधानगर का रास्ता हरियाली से परिपूर्ण था। छोटे- छोटे घर,धान और सब्जियों के खेत, चारा चरते मवेशी और पार्श्व से उनपर नजर रखती पहाड़ियाँ, भारत की मुख्यभूमि के किसी गाँव की याद दिला रहे थे। कुछ ही देर में हम राधानगर पहुँच गए थे। लहरों की गर्जना दूर से ही सुनाई दे रही थी। समुद्री तट कर पहुँचने के लिए विशाल और ऊँचे वृक्षों की कतार से होकर गुजरना पड़ता है। पास में ही तंबू या हट्स बने हुए हैं। इनमें ज्यादातर विदेशी पर्यटक ही रहते हैं। एक औसत भारतीय पर्यटक का समुद्र दर्शन सूर्यास्त के साथ ही समाप्त हो जाता है, पर विदेशी तो रात का नाचना गाना भी तट के बगल में करना पसंद करते हैं।

राधानगर बीच (Radhanagar Beach) अर्धवृताकार ढंग से फैली है। सफेद रेत के पार्श्व में एक ओर पहाड़ी और दूसरी तरफ जंगल हैं। सुबह समुद्र में स्नान ये सोचकर नहीं किया था कि नहाना तो राधानगर में है। सो धूप की बिना परवाह किये हम समुद्र में कूद पड़े। हैवलोक के समुद्री तटों (3,5) की तुलना में यहाँ का समुद्र ज्यादा अशांत है । लहरें ऊंची उठती हैं, इसलिए उनके साथ समुद्र में डुबकी लगाना बेहद आनंददायक है। दो घंटों की समयावधि में हम सब कई बार सूखे और कई बार तर हुए । सूर्यास्त के पहले से ही पानी में ठंडक बढ़ने लगी तो हमें अपने नहाने के कार्यक्रम का पटाक्षेप करना पड़ा। सूर्यास्त बादलों के पीछे हुआ पर सूर्य किरणों के परावर्त्तन से पूरा आकाश हल्के,लाल,नारंगीऔर नीले रंगों की मिश्रित आभा से जीवंत हो उठा ।

सच, आशा के अनुरूप अंडमान में बिताया गया ये हमारा सबसे खूबसूरत दिन था। अगर कभी अंडमान जाएँ तो हैवलॉक में दो दिन का कार्यक्रम रखें..आप शायद इसे भी कम महसूस करें।

अगले भाग में ले चलेंगे आपको अंडमान ट्रंक रोड की सफारी पर..और साथ में बताएंगे कि कैसे समुद्र की ये प्यारी लहरें हमारे दुख का कारण बनी यात्रा के छठे दिन ?
(चित्र इंटरनेट और मित्रों के अंडमान प्रवास के एलबम से संकलित)

रविवार, 29 मार्च 2009

यादें अंडमान की : बारिश में भीगी-भीगी सी वो हैवलॉक की समुद्री यात्रा

इस श्रृंखला की पिछली प्रविष्टियों में आपने पढ़ा कि किस तरह इठलाती बालाओं और विमान के टूटते डैने के संकट से उबर कर अंडमान पहुँचा और सेल्युलर जेल में ध्वनि और प्रकाश का सम्मिलित कार्यक्रम वहाँ के गौरवमयी इतिहास से मुझे रूबरू करा गया। अगले दिन रॉस द्वीप की सुंदरता देख और फिर नार्थ बे के पारदर्शक जल में गोते लगाकर मन प्रसन्न हो गया अब आगे पढ़ें....


तीन दिनों से अच्छी खासी धूप खिलाने के बाद सूरज देवता को विराम लेने की सूझी । और रात से ही मूसलाधार वर्षा शुरु हो गई । सुबह फोनिक्स जेटी (Phoenix Jetty) के आस-पास का समुद्र शांत लग रहा था। बारिश भी थम गई सी लगती थी । सुबह ९ बजे जैसे ही गेस्ट हाउस के बाहर निकले बारिश फिर प्रारंभ हो गई । खैर, जाना तो था ही क्योंकि पहले तीन दिनों में हमने इतनी कम जगहें निबटाईं थीं कि चौथे दिन के लिए हमारे पास अपने कार्यक्रम को आगे-पीछे करने की गुंजाइश ही नहीं बची थी।

सो तेज बारिश के बीच भागते दौड़ते हम अपने पहले गन्तव्य चाथम (Chatham) के लकड़ी के कारखाने तक पहुँचे । चाथम, पोर्ट ब्लेयर के उत्तरी सिरे में अवस्थित एक छोटा सा द्वीप है । पोर्ट ब्लेयर से चाथम तक पहुँचने ले लिए समुद्र के ऊपर एक सेतु से होकर पहुँचते हैं। ये सेतु अंग्रेजों ने यहाँ की सॉ मिल के निर्माण के समय बनवाया था । ये सॉ मिल दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे बड़ी मिल मानी जाती है। अब मिल की ऐतिहासिक प्रसिद्धि जो भी रही हो, बारिश में भींगते हुए उसे देखना हमें नागवार गुजरा। मिल में जहाँ -तहाँ लकड़ी के ढ़ेर दिखे । यहाँ तक कि इतनी बड़ी मिल में चलती हुई मशीनें इनी-गिनी ही दिखाई पड़ीं। सो वहाँ से जल्दी हम सब जल्दी कट लिए और Mini Zoo होते हुए नृविज्ञानी (एन्थ्रापोलोजिकल ) संग्रहालय पहुंचे।

संग्रहालय दर्शनीय लगा । अंडमान की सारी आदिम जन जातियों की वेश भूषा और उनके रहन सहन के बारे में अच्छी जानकारी मिली । जारवा (Jarva), सेंटीनल (Sentinal) और ओंगी (Ongy) तो काफी हद तक एक जैसे दिखे। जान कर आश्चर्य हुआ कि इन सबकी आबादी कुल मिलाकर 1000 से भी कम है । निकोबारी (Nicobari) ही एकमात्र ऐसी जनजाति है जो आम लोगों से बिल कुल घुल -मिल गये हैं और उनकी संख्या भी सबसे ज्यादा है। उनके नाक- नक्श बहुत कुछ मंगोलाएड (Mangoloid) रेस से मिलते-जुलते हैं । अपनी यात्रा के आखिरी चरण में इन आदिम जन जातियों में से एक से रूबरू होने का सौभाग्य मिला। पर उस प्रकरण के लिए आपको थोड़ा इंतजार करना होगा। वैसे अगर आपकी नृविज्ञान में रुचि नहीं तो 'समुद्रिका' चले चलें । समुद्र में रहने वाले जीवों और दुर्लभ कोरलों का अभूतपूर्व संग्रह है वहाँ पर !
भोजन का वक्त आ चुका था और इंद्र देव भी कुछ देर के लिए शांत हो गए थे । हमें भोजन उपरांत अंडमान के सबसे खूबसूरत द्वीप हैवलॉक की ओर कूच करना था । तड़तड़ाती बारिश के बीच 12.30 पर हम अपने जहाज के करीब पहुंचे । MVS Jollybuoy हमारी प्रतीक्षा में तैयार खड़ा था। एसी केबिन में जहाँ हमारी सीटें थी, वहाँ पहुँचने के लिए पहले जहाज के डेक पर जाना पड़ता था और फिर नीचे । अंदर जाते वक्त ख्याल यही था कि खिड़की के नजदीक से बाहर का नजारा देखने को मिलेगा या नहीं । पर अंदर जाने पर पता चला कि वो खिड़की एक छोटी तश्तरी से ज्यादा बड़ी नहीं है और उसका तल समुद्री जल के स्तर से थोड़ा सा ही ऊपर है । यानि उसमें ज्यादा ताक-झांक करने का स्कोप नहीं। सो धीमी बारिश में ही हम केबिन छोड़ ऊपर जहाज की डेक पर जा पहुँचे ।

जीवन में कुछ क्षण ऍसे आते हैं जिन्हें अपने स्मृति पटल से कभी मिटाया नहीं जा सकता । जहाज के ऊपर के डेक पर कदम रखते ही जो मंजर आँखों के सामने दिखा उसका शुमार मैं ऐसे ही कुछ पलों में करता हूँ।

चारों ओर पानी की विशाल नीली चादर....
दूर दूर तक ना कोई पेड़ पौधे ना किसी पंक्षी की झलक...
बारिश और हवा के साथ उठती गिरती लहरें, मानों अट्टाहस कर रही हों, चुनौती दे रही हों कि क्या मुझको भेद पाओगे ?
पर हमारा MVS Jollybuoy कब पीछे हटने वाला था...
वो तो उन लहरों को चीरता हुआ समुद्र के बीचों-
बीच एक सफेद लकीर खींचता चला जा रहा था।
एक अजीब सी निस्तब्धता थी उस माहौल में...
एक पल को दिल सहम सा गया था पर कुछ ही पलों में प्रकृति का ये अनजाना रूप मन में समा गया था।
ऊपर के इस दृश्य को देखने के बाद नीचे जाने का सवाल ही नहीं था क्यूँकि हम सब ये जानते थे कि ऐसी सुखद अनुभूति कि पुनरावृति शायद फिर ना हो । आकाश में अभी भी बादलों का डेरा था जिसकी हलकी फुहारें रुक-रुक कर हमें भिंगोने पर तुली हुईं थीं। पर हवा का वेग जैसे जैसे बढ़ता गया, बादलों की सेना पीछे की ओर हटने लगी और यात्रा शुरु होने के डेढ़ घंटे बाद बारिश थम ही गई । हमें अपनी बायीं तरफ हरे भरे जंगलों से भरा हैवलॉक द्वीप दिखाई दे रहाथा । कुछ ही देर में दाहिनी ओर भी जमीन पर नारियल के झुंड दिखने लगे। लोगों से पता चला कि ये नील द्वीप (Neel Island) है और हमारा जहाज यहाँ होते हुए हैवलॉक की ओर मुड़ेगा ।

सारे समूह की मायूसी बढ़ती जा रही थी । सबने सोचा था कि अगर साढ़े चार तक भी हैवलॉक पहुँचेगे तो कुछ देर तट पर समुद्र से अठखेलियाँ करने का अवसर मिलेगा। पर जहाज नील से होकर जाएगा ये जानने पर सबके समक्ष ये साफ हो गया कि शाम के पहले हम हैवलॉक नहीं पहुँच पाएँगे । नील आते ही शिप के डेक पर भीड़ बढ़ गई। चढ़ने -उतरने वाले ज्यादातर स्थानीय थे तो जो शायद पोर्ट ब्लेयर से रोज आते -जाते थे। नील द्वीप पर हमारे जहाज को मुड़ते हुए वापस हैवलॉक की ओर जाना था।

हैवलॉक (Havelock), अंडमान के बड़े द्वीपों में एक है। हमारा जहाज मुड़ने के बाद अब इस द्वीप के दूसरे सिरे पर आ गया था। हैवलॉक पहुँचते- पहुँचते शाम के सवा पाँच बज चुके थे।नवंबर मैं वैसे भी दिन छोटा होता है सो अँधेरा लगभग हो चला था। हैवलॉक हमारी इस यात्रा का मुख्य आकर्षण था। इसकी सुंदरता के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। लिहाजा सबके मन में यही उधेड़बुन थी कि वो हमारी आशाओं के अनुरूप निकलेगा या नहीं । क्या हैवलॉक वैसा ही था जिसकी कल्पना हमने की थी ?