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सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

कैसे करें तोक्यो में रेल की सवारी ? (Mastering train travel in Tokyo.)

ढाई दिनों के तोक्यो प्रवास में मैंने तोक्यो महानगर का जितना हिस्सा देखा वो तो आपको भी दिखा दिया। वैसे तो तोक्यो जैसे विशाल शहर को देखने के लिए महिनों और समझने के लिए वर्षों लगेंगे पर एक बात तो तोक्यो में पाँव रखने के कुछ घंटों में ही मेरे पल्ले पड़ गई कि अगर इस शहर में घूमना है तो सबसे पहले आपको इसके जबरदस्त रेल नेटवर्क को समझना होगा। वैसे तो तोक्यो आने से पहले मैं Kitakyushu के रेल नेटवर्क पर कई बार सफ़र कर चुका था पर तोक्यो आने के कुछ घंटों में पहली बार जब इस नेटवर्क की वृहदता का सामना हुआ तो पहले का सँजोया आत्मविश्वास जाता रहा । 



जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था कि Kitakyushu से तोक्यो पहुँचते पहुँचते शाम हो गई थी। अगले दो दिनों का कार्यक्रम इतना कसा हुआ था कि अगर किसी से मिलना हो तो यहीं समय इस्तेमाल किया जा सकता था। मुनीश भाई से फोन नंबर तो लिया था पर ऐन वक़्त पर संपर्क ना हो सका। तोक्यो में एक करीबी रिश्तेदार के यहाँ जाना भी अनिवार्य था तो उन्हें आफिस से सीधे अपने हॉस्टल बुला लिया। अपने पास के स्टेशन से उनके स्टेशन तक पहुँचने के लिए हमने चार बार ट्रेनें बदलीं और वो भी बिना विराम के। यानि एक ट्रेन से उतरे, दूसरी  का टिकट लिया और लो ट्रेन आ भी गई। यात्रा कै दौरान वो मुझे समझाते रहे ताकि मैं  उसी मार्ग से अकेले वापस आ सकूँ। पर तीसरी ट्रेन बदलने के बाद मेरे चेहरे के भावों से उन्होंने समझ लिया कि ये इनके बस का नहीं है। सो कुछ घंटों के बाद जब मैं वापस लौटा तो उन्हें मेरे स्टेशन तक साथ ही आना पड़ा।

वैसे तो तोक्यो के रेल नेटवर्क में विभिन्न स्टेशनों पर अंग्रेजी जानने वाले लोगों को ध्यान में रखकर सारे चिन्ह जापानी के आलावा अंग्रेजी में भी प्रदर्शित किए गए हैं पर मुख्य मुद्दा भाषा का नहीं पर उस वृहद स्तर का है जिसको देख भारत जैसे देश से आया कोई यात्री सकपका जाता है। मिसाल के तौर पर नीचे का दिया गया मानचित्र देखिए। जापान से संबंधित हर यात्रा पुस्तक में आपको सबसे पहले इसके दर्शन होते हैं और इसकी सघनता  देख मानचित्रों में खास रुचि रखने वाले मेरे जैसे व्यक्ति के भी पसीने छूट गए थे।।

झटका तब और लगता है जब ये पता चलता है कि कुछ निजी कंपनियों के स्टेशन तो इसमें दिखाए ही नहीं गए हैं। दुर्भाग्य से मेरे हॉस्टल के पास का स्टेशन भी उसी श्रेणी में था।

भारतीय रेल की समय सारणी से माथा पच्ची के दौरान कभी ना कभी आप भी परेशान हुए होंगे। मेरे लिए पहली ताज्जुब की बात ये थी कि तोक्यो में लगभग दर्जन भर निजी कंपनियाँ अपनी अलग अलग ट्रेन चलाती हैं। और तो और अगर आप शिंजुकु और शिबूया जैसे बड़े स्टेशनों पर पहुँच गए तो आपको पता चलेगा कि एक ही जगह पर चार अलग अलग स्टेशन हैं। जापानियों ने जमीन को कितना खोदा है ये इसी से समझिए कि एक बार जिस स्टेशन पर मैं उतरा उसके दो निचले तल्लों पर दो दूसरे और एक स्टेशन उसके ऊपरी तल्लों पर था। अगर आपको कहीं जाना हो तो पहले स्टेशन पर दिए हुए चार्ट या मानचित्र से अपना रास्ता पता कीजिए। फिर ये देखिए कि आप जिस स्टेशन पर हैं उसे चलाने वाली रेल कंपनी की ट्रेन सीधे उस स्टेशन तक जाती है या नहीं और अगर नहीं तो किस स्टेशन पर उतरकर आपको दूसरी रेल कंपनी की गाड़ी पकड़नी है? तोक्यो में हम जितने दिन रहे ऊपर के प्रश्न का जवाब अपने हॉस्टल के सहायता कक्ष से ले लेते थे। एक बार आपकी ये समस्या दूर हो जाए तो समझिए पचास प्रतिशत काम हो गया।

स्टेशन पर टिकट खरीदने की प्रक्रिया शायद विदेशों में कमोबेश एक जैसी ही है। ऍसा मुझे तोक्यो के बाद पिछले हफ्ते बैंकाक की Sky Train पर यात्रा करने के बाद महसूस हुआ। एक बार गन्तव्य स्टेशन का किराया पता लग जाए तो आप वहाँ की मुद्रा टिकट मशीन में डालिए। तोक्यो आने से पहले तक हम अधिकतर टिकट आफिस में जाकर ही टिकट खरीद लेते थे। मशीन का प्रयोग करने से कतराने का कारण भारतीय मानसिकता थी। हम लोगों के दिमाग में होता कि अगर ज्यादा पैसे डाले और बाकी के बचे पैसे बाहर नहीं आए तब क्या होगा? पर तोक्यो में वो विकल्प ही नहीं था। मशीन में पहले किराया निश्चित करना होता था और फिर एक एक कर के पैसे डालने होते थे जैसे ही किराये से डाले गए पैसे बढ़ जाते छनाक की आवाज़ के साथ बाकी पैसों के साथ टिकट निकल आता और मजाल है कि आपका पैसा कभी मशीन में फँसा रह जाए।

हाँ ये जरूर है कि मँहगी जगह होने के कारण उस वक्त तोक्यो में किसी भी स्टेशन का न्यूनतम भाड़ा चाहे वो पाँच किमी की दूरी पर ही क्यूँ ना हो सौ रुपये से कम नहीं था। बैकांक में ये दर पचास साठ रुपये के पास थी। वैसे तोक्यो में अन्य महानगरों की तरह विदेशी नागरिक हजार येन का टिकट ले कर मेट्रों से शहर के भीतर कहीं आ जा सकते हैं। एक बार टिकट लेने के बाद इंगित चिन्हों और सूचना पट्ट पर आती जानकारी से अपने प्लेटफार्म पर पहुँचना कोई मुश्किल बात नहीं थी। तोक्यो में प्लेटफार्म पर पहँचने के बाद ट्रेन के लिए कभी पाँच मिनटों से ज्यादा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। पर हाँ प्लेटफार्म पर ये नहीं कि आप जहाँ मर्जी खड़े रहें। चाहे भीड़ हो या नहीं आपको दरवाजा खुलने की जगह पर पंक्ति बना कर खड़ा रहना है। उतरने वालों की प्रतीक्षा करनी है और फिर पंक्ति के साथ अंदर घुसना है। अगर आपको ये लग रहा हो कि जापान की मेट्रो में हमारे मुंबई महानगर में दौड़ने वाली मेट्रो से कम भीड़ होती होगी तो आप का भ्रम अभी दूर किए देते हैं। कार्यालय के समय में इन डिब्बों में तिल धरने की भी जगह नहीं होती पर फिर भी हर स्टेशन पर बिना किसी हल्ले गुल्ले के लोगों का चढ़ना उतरना ज़ारी रहता है।



तोक्यो का सरकारी पर्यटन  केंद्र शिंजुकु इलाके में हैं जहाँ से तोक्यो के विभिन्न हिस्सों के लिए टूर कराए जाते हैं। ट्रेन से पहले आपको आपके गन्तव्य स्टेशन के पास ले जाया जाता है और फिर वहाँ से एक या दो गाइड आपको उसके आस पास के इलाके पैदल घुमाते हैं। बस भी यहीं काम करती हैं पर वे अपेक्षाकृत मँहगी है। अब दो से तीन हजार रुपये का चूना लगवाने के बजाए अगर आप ट्रेन टिकट खरीदकर और फिर लोगों से पूछते हुए अपने गन्तव्य तक पहुँच जाएँ तो जेब भी हल्की नहीं होगी और अपने समय का अपनी इच्छा से उपयोग करने की भी सुविधा रहेगी। हमारे समूह ने तो यही किया । तोक्यो में बिताए साठ घंटों में अलग अलग कंपनियों की ट्रेनों में सवार होकर मैं आपको Shinjuku, Roppongi Hills, Akihabara, Asakusa, Sky Tree और Tokyo Tower जैसी जगहें दिखा सका। वैसे तोक्यो के रेल मानचित्र में ये जगहें कितनी दूर हैं वो यहाँ देखिए।


वेसे इन स्टेशनों से निकलकर बाहर सड़क पर आने के लिए कभी कभी आपको दो सौ से चार सौ मीटर दूरी तय करनी पड़ सकती है। पर घबराइए नहीं रास्ते के दोनों ओर सजी दुकानें आपको ये अहसास ही नहीं होने देंगी कि आप स्टेशन से निकल रहे हैं। तोक्यो के रेल नेटवर्क की इतनी बात हो और शिनकानसेन (Shinkansen) यानि बुलेट ट्रेन का जिक्र नहीं आए ये कैसे हो सकता है? तोक्यो से अपने अगले गन्तव्य क्योटो तक पहुँचने के लिए हमें इसकी ही मदद लेनी पड़ी और इसी वज़ह से हमें तोक्यो के मुख्य स्टेशन के दर्शन हो गए जहाँ से ये ट्रेन चलती है।




जापान की यात्रा को कुछ दिनों के लिए यहीं विराम देते हुए मैं आपको अगली कुछ प्रविष्टियों में ले चलूँगा राजस्थान के जैसलमेर और बीकानेर की यात्रा पर। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

तोक्यो दर्शन (Sights of Tokyo) की सारी कड़ियाँ

सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

तोक्यो दर्शन : देखिए तोक्यो का सबसे पुराना बौद्ध मंदिर सेंसो जी ! (Sensoji Temple, Asakusa, Tokyo)

जापान के चालीस दिन के प्रवास में उनकी जिस सास्कृतिक परंपरा में मुझे सबसे ज्यादा भारतीयता का अक़्स दिखा वो था उनका अपने धर्म के प्रति नज़रिया। ख़ैर उनके इस नज़रिए के बारे में विस्तार से बात तब होगी जब मैं आपको उनके धार्मिक शहर क्योटो (Kyoto) की यात्रा पर ले चलूँगा। पर आज मेरा इरादा आपको तोक्यो शहर के सबसे प्राचीन और लोकप्रिय मंदिर सेंसो जी (Senso Ji)  घुमाने का है। प्राचीन इसलिए कि इस मंदिर का निर्माण आज से करीब चौदह सौ वर्ष पूर्व यानि सातवीं शताब्दी में हुआ और लोकप्रिय इसलिए कि हर साल करीब तीन करोड़ लोग इस मंदिर के दर्शन करते हैं। वैसे तोक्यो का एक और प्रसिद्ध मंदिर Meiji Shrine है जो कि एक शिंटो Shinto मंदिर है। आपके मन में एक सवाल जरूर उठ रहा होगा कि बौद्ध और शिंटो की धार्मिक आस्थाओं में क्या कोई फर्क है? इस प्रश्न का जवाब आपको मैं क्योटो के शिंटो मंदिर दिखा कर ही बता पाऊँगा। 

सेंसो जी  असाकुसा (Asakusa) स्टेशन से दस पन्द्रह मिनट के पैदल रास्ते के बाद दिखने लगता है। ये मंदिर असाकुसा में जिस जगह विद्यमान है उसके पीछे एक बड़ी दिलचस्प कथा है। 628 ई में मार्च के महिने में जब दो मछुआरे सुमिदा नदी (Sumida River) में मछली पकड़ रहे थे तब उन्हें भगवान बुद्ध (Asakusa Kannon) की मूर्ति मिली। जब इस बात की ख़बर असाकुसा गाँव के मुखिया को मिली तो उन्होंने इस मूर्ति को अपने घर में स्थापित किया और सारा जीवन इसकी सेवा में बिता दिया। कालांतर में अनके शासकों और सेनापतियों द्वारा इस मंदिर के विभिन्न द्वारों और कक्षों का निर्माण हुआ। 

 मंदिर परिसर की शुरुआत  Kaminarimon Gate यानि तूफानी द्वार से शुरु होती है। दसवीं शताब्दी में पहली बार बने इस द्वार में मंदिर के प्रहरी के रूप में वायु और तूफान के देवताओं की प्रतिमा लगाई गई थी। इस द्वार के दो सौ मीटर आगे एक और विशाल द्वार है जिसे Hozomon द्वार कहते हैं। दसवीं शताब्दी में सेनापति तायरा ने तोक्यों और उसके आस पास के इलाकों को अपने प्रभुत्व में आने के लिए यहीं प्रार्थना की थी। इस आलीशान द्वार का निर्माण उसी मनोकामना के पूर्ण होने पर किया गया।

Hozomon Gate, Senso ji Temple

मंदिर का मुख्य कक्ष यूँ तो Edo काल की देन है पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसका एक बड़ा हिस्सा तहस नहस हो गया था। साठ के दशक में जब इसे दोबारा बनाया गया तो इसका आकार तो वही रहा पर छत लकड़ी की जगह कंक्रीट की बनी और उस पर टाइटेनियम की टाइलें लगायी गयीं।


अचरज की बात ये है कि मुख्य मंदिर में कहीं भी बोधिसत्व की मूर्ति नज़र नहीं आती है। इतिहास के पन्नों को उलटने पर पता चला कि सातवी शताब्दी में इसके निर्माण के समय बौद्ध पुजारियों को सपने में संदेश मिला कि बुद्ध की मूर्ति को लोगों की नज़रों से दूर रखना है इसलिए मूर्ति इस तरह स्थापित की गई कि उसे आगुंतक देख ना सकें। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।
मंदिर के मुख्य कक्ष तक पहुँचने के पहले ही लोग इस विशाल पात्र में जल रहे दीपकों की आँच को अपने शरीर से लगाते हैं।


मंदिर में प्रवेश करने के पहले अपने को शुद्ध करने के लिए लोग फव्वारे से गिर रहे पानी को कलछुल जैसे पात्र से उठाते हैं और अपने हाथों को धोते है और पानी को पीते हैं। 

अगर आप ये समझते हैं कि सारे भाग्यवादियों ने सिर्फ हिंदुस्तान में डेरा डाला हुआ है तो ज़रा ठहरिए। मुख्य मंदिर के दोनों ओर जो दो अपेक्षाकृत छोटी इमारते दिख रही हैं वहाँ  रखी लकड़ी की आलमारियों की दराजें आपका भाग्य बताने के लिए तैयार हैं। थोड़ी राशि दान में खर्च कीजिए और फिर एक दराज खींचिए। उसमें से एक क़ाग़ज का टुकड़ा निकलेगा जो आपके आने वाले दिनों की भविष्यवाणी करेगा। युवा जापानियों को मैंने कई बार इसका इस्तेमाल करते हुए देखा।

मुख्य मंदिर से Hozomon द्वार के आगे जाने पर यहाँ का प्रसिद्ध बाजार Nakamise Shopping Street शुरु होता है। दो सौ मीटर लंबाई में फैला ये बाजार सेंसो जी जितना पुराना तो नहीं पर पहली बार ये इस रूप में यहाँ अठारहवीं शताब्दी में पदार्पित हुआ था। जापान से अपने नाते रिश्तेदारों के लिए कुछ लेना हो तो ये उसके लिए अच्छी जगह है। मोल भाव करने पर बीस से तीस फीसदी दाम कम भी हो जाते हैं।

मंदिर प्रागण में स्थित ये पाँच मंजिला पैगोडा मंदिर की भव्यता को बढ़ाता है। दसवीं शताब्दी में बनने के बाद आग लगने की वज़ह से कई बार ये  क्षतिग्रस्त हुआ । बुद्ध से जुड़े धर्मग्रंथ इसकी सबसे ऊपरी मंजिल पर रखे गए हैं।


करीब एक घंटे मादिर प्रांगण में बिताने के बाद जब हम बाहर निकले तो शाम हो चुकी थी और मंदिर के कपाट भी बंद हो चुके थे।


इस मंदिर यात्रा से आपको क्या ऐसा नहीं लगा कि जापानी संस्कृति का ये हिस्सा हमारे तौर तरीकों से कितना मिलता है? जब मैं शिंटो पद्धति से जीवन जीने के बारे में आपको बताऊँगा तो आपको ये समानता और स्पष्ट होगी। जब तक ये प्रविष्टि आपके सामने होगी मैं थाइलैंड के समुद्री तटों की यात्रा पर रहूँगा। लौट कर इस श्रंखला को जारी रखते हुए आपको बताऊँगा कि तोक्यो घूमने के लिए क्यूँ जरूरी है यहाँ के रेल तंत्र को समझना?

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तोक्यो दर्शन (Sights of Tokyo) की सारी कड़ियाँ

सोमवार, 30 सितंबर 2013

तोक्यो दर्शन : इलेक्ट्रिक टाउन , स्काई ट्री,शाही बाग और जापानी संसद (Akihabara Electric Town, Asakusa, Tokyo Sky Tree, Diet & Imperial Garden)

तोक्यो दर्शन में अब तक आपने शिंजुकु की गगनचुंबी इमारतें और जापान की राजधानी में रात की चकाचौंध देखी । साथ ही यहाँ की प्रसिद्ध नाइट लाइफ से जुड़े मेरे अनुभवों को पढ़ा। आज आपको लिए चलते हैं तोक्यो के दो नामी इलाकों अकिहाबारा ( Akihabara ) और असाकुसा ( Asakusa ) की सैर पर। शिंजुकु के मेट्रोपॉलिटन टॉवर से तोक्यो का विहंगम दृश्य देख लेने के बाद हमने स्टेशन से Akihabara की लोकल ट्रेन पकड़ी। Akihabara या संक्षेप में 'Akiba' कहे जाने वाले इलाके को तोक्यो में इलेक्ट्रिक टाउन के नाम से जाना जाता है। जापानी भाषा में Akihabara का अर्थ है 'Field of Autumn Leaves'. 

अब अकिहाबारा का ये नाम कैसे पड़ा ये तो मालूम नहीं पर सारे सैलानी इलेक्ट्रानिक सामानों की खरीदारी के लिए यहीं पहुँचते हैं। मैं अपने एक मित्र के साथ जब यहाँ पहुँचा तो उस वक़्त दिन के एक बज रहे थे। स्टेशन से निकलते ही बड़ी बड़ी रंग बिरंगी होर्डिंगों से सुसज्जित दुकानों की लंबी कतारें दिखीं। एक और तो बड़े बड़े ब्रांड को एक ही छत के अंदर बेचने वाले विशालकाय शोरूम थे तो दूसरी ओर किसी एक खास उत्पाद से जुड़ी छोटी छोटी दुकानें। हम कम्पयूटर हार्डवेयर से जुड़ी कुछ छोटी दुकानों में घुसे । कीमतें भारतीय कीमतों से कम कहीं नज़र नहीं आयीं। हम विंडो शॉपिंग कर ही रहे थे कि अचानक हमें एक दुकान पर दो दक्षिण भारतीय युवा दिखे। जैसा कि हमने पिछली रात किया था, उनसे परिचय लेने के बाद हमने आस पास कही भारतीय रेस्त्राँ होने की बात पूछी। उन्होंने जो रास्ता बताया हम उसी पर चल पड़े।


कुछ ही देर में हम Yadobashi के इस विशाल आठ मंजिला शो रूम के सामने थे। Yadobashi Camera के जापान में कुल 21 स्टोर हैं और ये आधुनिक इलेक्ट्रानिक उत्पादों को सही कीमत पर खरीदने के लिए जापान के अग्रणी स्टोरों में से एक माना जाता था। हमारा भारतीय  भोजनालय भी इसके सबसे ऊपरी तल्ले पे था। सो हमने सोचा कि भोजन करने के बाद इसके सारे तल्लों को एक बार घूम कर देखा जाएगा। नॉन, दाल और सब्जी का जायका लेने के बाद हमने एक घंटे से कुछ ज्यादा का समय इस स्टोर में बिताया। कंप्यूटर, कैमरे और तमाम इलेक्ट्रानिक उपकरणों का जो जख़ीरा यहाँ देखने को मिला वो मैंने तो पहले कभी नहीं देखा था। कल्पना कीजिए की एक  मोटराइज्ड टूथब्रश जो मुँह के अंदर जाते ही अपने आप ही आपके दाँतों की सफाई करे। एक कुर्सी जो आपको बैठाने के आलावा आपके अंग अंग की मालिश करे और ना जाने कितने और उत्पाद जिनके प्रयोग के बारे में हम समझ नहीं सके। ख़ैर  हमने छिटपुट खरीदारी की और वहाँ से निकल कर असाकुसा की ओर चल पड़े।


असाकुसा की ये इमारत अपने विलक्षण आकार की वज़ह से तुरंत ध्यान खींचती है। दरअसल ये असाकुसा का सांस्कृतिक सूचना केंद्र  ( Asakusa Cultural Information Center) है जिसे पिछले साल यानि 2012 में बनाया गया है।


असाकुसा में टहलते हुए इस इमारत ने भी ध्यान खींचा। पहले इसके गेट को देख कर मंदिर होने का आभास हुआ। अब एक भारतीय मन दरवाजे पर गाय की प्रतिमा देख कर और क्या समझे ? पर बगल की अंग्रेजी तख्ती पर जानवरों का अस्पताल लिखा देख भ्रम की स्थिति बनी रही।


असाकुसा स्टेशन के पास से यहाँ  की Sumida नदी बहती है और वहीं पर मोटरबोट से नदी में सैर की व्यवस्था है। अमूमन पन्द्रह मिनट से लेकर पौन घंटे की सैर में नदी के दोनों ओर बनी ऊँची ऊँची इमारते ही दिखाई पड़ती हैं। ऐसी एक यात्रा आपकी जेब को पाँच सौ से आठ सौ रुपयों तक हल्का कर सकती है।

वैसे इस नौकाविहार का सबसे आकर्षक दृश्य असाकुसा के पास ही दिखाई पड़ता है। जब नवनिर्मित स्काई ट्री के साथ Asahi Beer की इमारत भी नज़र आती है। इस इमारत की ख़ासियत ये है कि इसका आकार बीयर के गिलास की तरह है जिसके ऊपर 360 टन की स्वर्णिम संरचना बीयर के हृदय की आग और उफनते फेन का परिचायक है। इसीलिए 1989 में बनी इस सुनहरी काया का इसके फ्रेंच डिजाइनर ने नाम रखा Flamme d'Or।


तोक्यो स्काई ट्री जापान का सबसे ऊँचा टॉवर है। 634 मीटर ऊँचे इस टॉवर में दो Observation Decks हैं। एक की ऊँचाई 350 मीटर और दूसरे की 450 मीटर है। स्काई ट्री का निर्मार्ण टेलीविजन संकेतों के प्रसारण के लिए किया गया। समयाभाव के कारण मैं ना तो स्काई ट्री के ऊपर वढ़ा और ना ही नदी में मोटरबोट के जरिए घूम पाया। पर सेन्सो जी मंदिर और असाकुसा की गलियों में चक्कर काटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अगली सुबह हम तोक्यो स्टेशन से जापान के धार्मिक शहर क्योटो की ओर कूच करने के लिए तैयार थे।

तोक्यो स्टेशन के ठीक पहले ही हमें यहाँ के सम्राट के लिए बनाए गए महल के पास वाले हिस्से से गुजरे।  महल के चारों ओर सुरक्षा के लिए बनाई गई बावड़ी है जिसके ऊपर महल के भिन्न दरवाजों तक पहुँचने के लिए इन छोटी छोटी पुलिया  की सहायता लेनी पड़ती है। 


कंक्रीट के जंगल से अलग तोक्यो का ये इलाका अपनी हरियाली से मन मोह लेता है। साढ़े आठ बजे भी भारी संख्या में लोग सुबह की सैर करते दिखाई पड़े। वैसे भी जापानी अपने स्वास्थ को लेकर काफी सजग होते हैं।


इंपीरियल गार्डन के किनारे किनारे चलते हुए हमारी बस जापान की संसद डाइट के सामने जा पहुँची। भारतीय संसद की तुलना में ये एक छोटी इमारत है और इसके शिल्प में यूरोपीय वास्तुलकला की सीधी छाप दिखाई देती है।


तोक्यो दर्शन से जुड़ी आगामी प्रविष्टियों में बाकी है बाते Senso Ji और Tokyo Railway की।
 
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शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

तोक्यो दर्शन : कैसे जगमगाता है रात में तोक्यो टॉवर ? (Night Scenes of Tokyo Tower , Shinjuku & Roppongi)

जापान की सड़कों पर गुजरी पहली शाम का आँखों देखा हाल तो आपको अपनी इस प्रविष्टि में बताया ही था। आज देखिए रात में जगमगाते तोक्यो टॉवर और Shinjuku एवम् Roppongi के बाजारों की कुछ तसवीरें..

कुछ साल पहले तक 333 मीटर ऊँचा तोक्यो टॉवर तोक्यो शहर की पहचान माना जाता था। इसका इस्तेमाल जापान में पहले रेडिओ और फिर टीवी ब्राडकॉस्टिंग के लिए किया जाता रहा। इस टॉवर पर 150 मीटर की ऊँचाई पर एक Observation Deck है पर हम वहाँ नहीं गए क्यूँकि उसके लिए अच्छा खासा टिकट था। पिछले साल तोक्यो में तो्क्यो स्काई ट्री (Tokyo Sky Tree) बन जाने के बाद जो कि इससे भी ऊँचा टॉवर है, तोक्यो टॉवर के प्रति लोगों का आकर्षण कम हुआ है। वैसे तोक्यो में रहते हुए अगर इस टॉवर के दर्शन करने हों तो रात में ही करें। देखिए नारंगी रंग के प्रकाश में किस तरह नहाया हुआ है तोक्यो टॉवर !

तोक्यो टॉवर (Tokyo Tower)

तोक्यो टॉवर से Roppongi Hills का इलाका बेहद पास में है। यहाँ की प्रसिद्ध इमारत मोरी टॉवर है जिसे  प्रसिद्ध बिल्डर मिनोरू मोरी (Minoru Mori) के नाम पर बनाया गया है। 53 मंजिली ये इमारत 248 मीटर ऊँची है। इसके बावनवें तल्ले के Observation Deck तोक्यो शहर का मनमोहक दृश्य मिलता है। पर रात में इस टॉवर के इर्द गिर्द चक्कर काटने के बावज़ूद हम ऊपर जाने का रास्ता नहीं ढूँढ पाए। इस टॉवर के पास ही मोरी म्यूजियम है।

Roppongi चौक के पार्श्व में दिखता मोरी टॉवर (Mori Tower in background near Roppongi Square)

चीनी ड्रैगन्स तो आपने बहुत देखें होंगे, पर आज आपको दिखाते हैं इसका जापानी संस्करण..

A Huge Billboard with Japanese Dragon !

शिंजुकु स्टेशन के पास है Odakyu का ये विशाल डिपार्टमेंटल स्टोर..शिंजुकु में खरीददारी करने का एक लोकप्रिय अड्डा.

Odakyu Departmental Store, Shinjuku, Tokyo


रात की रोशनी में जगमगाते पूर्व शिंजुकु के बाजार.. (Markets @ East Shinjuku)


वैसे बैग और बेल्ट को प्रदर्शित करने का ये तरीका कैसा लगा आपको ?

तोक्यो की व्यस्त चौराहों पर जेब्रा क्रासिंग हर दिशा में बनी दिखती है।

गाड़ियों के लिए लाल बत्ती होते ही चारों तरफ से सड़क पार करने के लिए जो भीड़ उमड़ती है वो देखने लायक दृश्य होता है।

तोक्यो दर्शन की अगली कड़ी में आपको ले चलेंगे तोक्यो के इलेक्ट्रानिक बाजार के मुख्य केंद्र Akihabara में। साथ ही होगी Asakusa की सैर जहाँ Tokyo Sky Tree के आलावा शहर का लोकप्रिय शिंटो मंदिर Senso ji भी है। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

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मंगलवार, 10 सितंबर 2013

तोक्यो दर्शन : रात्रि में तोक्यो हो जाता है कितना रंगीन ? (Night Life of Tokyo !)

तोक्यो दर्शन की पिछली कड़ी में आपने देखी शिंजुकु पश्चिम (Shinjuku West) की गगनचुंबी इमारतें। शिंजुकु पश्चिम (Shinjuku West) में तो हम शनिवार सुबह को गए थे पर उसकी पिछली शाम हमने शिंजुकु के पूर्वी भाग में गुजारी थी। शुक्रवार की शाम साढ़े पाँच बजे जब हम अपने ट्रेनिंग कार्यक्रम से लौटे तो प्रश्न उठा कि तोक्यो की ये दूसरी शाम कैसे बिताई जाए? ट्रेंनिंग हॉस्टल से जानकारी मिली कि तोक्यो की 'नाइट लाइफ' बड़ी जबरदस्त है और इसका अनुभव करने के लिए Roppongi, Shibuya और Shinjuku के इलाके में से किसी में भी जाया जा सकता है। 

तेरह लोगों का हमारा समूह  इस बात पर एकमत नहीं था कि ये वक़्त कैसे बिताया जाए? अब नाइट लाइफ के लिए रेस्त्राँ या बार में जाना तो लाजिमी था पर समूह मे एक तिहाई लोगों को मदिरा पान तक से परहेज था। इसी लिए हमारी राहें अलग हो गयीं। पीने खाने वाला समूह तोक्यो टॉवर होते हुए Roppongi की ओर बढ़ चला। बाकी के हम पाँच लोग रह गए। नाइट लाइफ में शिरक़त करने की तो नहीं पर माहौल को परखने और देखने की उत्कंठा हममें भी थी। शिंजुकु स्टेशन हमारे हॉस्टल से पास था तो मैंने सोचा क्यूँ ना अपनी शाम की शुरुआत वहीं से की जाए। 


शिंजुकु के पश्चिमी इलाके (Shinjuku West) की तुलना में शिंजुकु का पूर्वी इलाका (Shinjuku East) एक अलग ही परिदृश्य उपस्थित करता है। जहाँ पश्चिमी इलाके की चौड़ी सड़कों के चारों ओर ऊँची ऊँची इमारतों का जाल बिछा हैं वहीं शिंजुकु का पूर्वी इलाका हर तरह के बाजार को अपने में समेटे हुए हैं।  व्यस्त चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल के बंद होते ही चारों ओर से लोगों का हुजूम सड़क पर नज़र आता है। जापानी लोग खाने और पीने के बड़े शौकीन होते हैं। सप्ताहांत में आयोजित पार्टियाँ का पौ फटने तक चलना यहाँ कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

विंडो शापिंग करते करते हमें एक घंटे बिताने के बाद हम शिंजुकु पूर्व की मुख्य सड़कों को छोड़कर इससे जुड़ी गलियों में बढ़ चले। शिंजुकु के इस इलाके को काबुकी चो (Kabuki Cho) के नाम से जाना जाता है। वैसे जापान के परंपरागत नृत्य नाटक काबुकी से इसका कोई संबंध नहीं है। एक ज़माने में गिन्ज़ा (Ginza) के काबुकी थिएटर के जल जाने के बाद इस इलाके में थिएटर को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव आया था। स्थानीय लोगों के विरोध से थिएटर तो यहाँ नहीं आया पर उसके बदले में आज जिस स्वरूप में ये इलाका विकसित हुआ उससे यहाँ रहने वाले खुश होंगे इसमें पर्याप्त संदेह है। आज Kabuki Cho, तोक्यो के अग्रणी 'Pleasure District' यानि रेडलाइट इलाके में जाना जाता है। 

इससे पहले कि मैं इस इलाके के बारे में कुछ और लिखूँ, ये बताना उचित रहेगा कि दक्षिण पूर्व एशिया और चीन जैसे देशों से उलट जापान ने कभी भी कनफ्यूशियस की एकल विवाह पद्धति को तरज़ीह नहीं दी। शादी से इतर संबंध बनाना वहाँ कभी अपवाद नहीं रहा। यही कारण है कि आर्थिक प्रगति के साथ ऐसे इलाके भी काफी फले फूले।  आज Roppongi, Shibuya और Shinjuku जैसे इलाकों में हजारों की संख्या में बॉर, रेस्टाँ,थिएटर,लव होटल,स्नानागार और जिस्मनुमाइश के अड्डे हैं जहाँ जापान और विदेशों से आए लोग अपना मनोरंजन करते हैं।


शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

तोक्यो दर्शन : शिंजुकु की गगनचुंबी इमारतें (Tokyo: Skyscrapers of Shinjuku !)

किताक्यूशू से तोक्यो की उड़ान भरकर हम शाम तक अपने हॉस्टल में पहुँच गए थे। हमारा हॉस्टल शहर के एक चर्चित वार्ड Shinjuku के पास था। तोक्यो में हमारे पास मात्र दो शामें और एक पूरा दिन था। इतने कम समय में इतने विशाल शहर को देखना नामुमकिन था। फिर भी ट्रेनिंग के बाद  की दो शामों और शनिवार के पूरे दिन का हमने शतप्रतिशत उपयोग करते हुए जापान की राजधानी में जो कुछ देखा वो अगली कुछ कड़ियों में आपके सामने होगा। पहली दो शामें कैसी गुजरीं उसका किस्सा तो आगे आपको सुनाएँगे आज मेरे साथ चलिए ऊँची अट्टालिकाओं के इलाके  Shinjuku में ! 

पुराने ज़माने में Shinjuku,  Edo (तोक्यो का प्राचीन नाम) की ओर जाने वाले मुख्य रास्ते में पड़ता था। यहाँ कुछ दुकानें थीं। बाद में यहाँ रिहाइशी इलाके भी बन गए। तोक्यो में रेलवे लाइनों का जाल बिछा  तो ये इलाका रात्रि के मनोरंजन स्थल के रूप में प्रसिद्ध होने लगा। साठ के दशक में इसमें दैहिक मनोरंजन वाला हिस्सा भी शामिल हो गया। पर सत्तर के दशक की शुरुआत में Shinjuku का एक भाग अलग ही शक़्ल इख्तियार कर रहा था। ये शक्ल थी गगनचुंबी इमारतों से सजे एक व्यापारिक जिले की ।  Shinjuku के इन दोनों हिस्सों में मैं आपको ले चलूँगा लेकिन अपने तोक्यो भ्रमण की शुरुआत करते हैं इसके पश्चिमी इलाके से।

JICA Tokyo से शनिवार की सुबह का नाश्ता कर जब हम ट्रेन से Shinjuku  स्टेशन पहुँचे तो उस वक़्त हमारी घड़ी दस बजा रही थी। जुलाई के महिने में धूप भी जबरदस्त थी। हमें बताया गया था कि तोक्यो की सरकारी मेट्रोपालिटन बिल्डिंग से हम मुफ्त में Shinjuku का नज़ारा ले सकते हैं। स्टेशन से बाहर निकल कर हमने पश्चिमी दिशा में चलना शुरु किया। छुट्टी का दिन था इसलिए सामान्य दिनों में अतिव्यस्त रहने वाले उस इलाके में ज्यादा भीड़्भाड़ नहीं थी। जिधर नजर घुमाओ ऊधर ही ऊँची ऊँची अट्टालिकाएँ मुँह उठाए हमें घूरती नज़र आती थीं। कुछ ही देर में हम मेट्रोपालिटन बिल्डिंग के आहाते में थे।

मेट्रोपॉलिटन बिल्डिंग या तोक्यो हॉल के तीन हिस्से हैं। एक इमारत 48 मंजिली है तो दूसरी 37 मंजिली। बीच में गोलाई में फैली मेट्रोपॉलिटन एसेम्बली हैमू्ख्य परिसर काफी फैलाव लिये हैं। फूलों की क्यारियाँ और आदमकद मूर्तियाँ शीघ्र ही आपका ध्यान खींचती हैं। वो जो महानुभाव एक महिला के साथ सामने खड़े नज़र आ रहे हैं ना उनके हाथ में स्वर्णिम सेव है। अब तो उनका परिचय कराने की जरूरत तो नहीं हैं ना। वैसे यहाँ पास से देखेंगे तो खुद ही पहचान जाएँगे :)।


पर इस पूरे परिसर में मुख्य आकर्षण हैं 48 मंजिली इमारत जो 33 वें तल्ले में जाकर दो भागों में बँट जाती है। इमारत के इन दो हिस्सों में एक एक Observation Deck हैं जिनकी ऊँचाई 202 मीटर है। मेट्रोपॉलिटन बिल्डिंग (243m) Shinjuku वार्ड की सबसे ऊँची और जापान में ऊँचाई के मामले में सातवें स्थान पर है। ‌दोनों डेकों पर ऊपर जाने के लिए लंबी पंक्ति थी। हम भी कतार में खड़े हो गए। 202 मीटर की ऊँचाई से तोक्यो शहर को देखने का रोमांच मन को बेचैन कर रहा था।


तोक्यो आने के पहले अपने हॉस्टल के पुस्तकालय से मैंने तोक्यो से जुड़ी कई किताबें पढ़ी थीं। तोक्यो का सबसे मजेदार परिचय डेनियल रिची अपनी किताब Introducing Tokyo में करते हैं।  मेट्रोपॉलिटन बिल्डिंग के Observation Deck पर पहुँचने पर रिची की बातें याद आ गयी । रिची ने अपनी किताब में लिखा था

मैंने तोक्यो में आए एक नवआंगुतक से तोक्यो की खूबसूरती की बार छेड़ दी। वो व्यक्ति एकदम से अचकचा गया कैसी खूबसूरती ? आख़िर क्यूँ इम्पीरियल पैलेस के तीस मील के दायरे में लगभग तीन करोड़ लोग रहते हैं? अगर तोक्यो की कोई स्थापत्य शैली है तो उसे Tokyo Impermanent कहना उचित होगा। पुरानी इमारतों के बीच एक अलग शैली में बनी इमारत लुभाती तो है पर कुछ क्षणों के लिए अगर पूरे परिदृश्य में उसे देखें तो उसका कोई आकर्षण नहीं रह जाता।  ये शहर तो हमेशा निर्माण की प्रक्रिया से ही गुजरता रहता है। शहर का आधा हिस्सा टूट रहा होता है तो वहीं दूसरा हिस्सा बन रहा होता है। नहीं नहीं तोक्यो खूबसूरत नहीं है।

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

आइए चलें किताक्युशु से तोक्यो की उड़ान पर ! ( An Aerial view of Tokyo Bay Area )

यूँ तो हम भारत से जापान हम टोक्यो हो कर ही आए थे, पर नई दिल्ली से तोक्यो पहुँचने के बाद सीधे उड़ान से हमें फुकुओका जाना पड़ा था और वो भी नारिता (Narita Airport) के  हवाई अड्डे से । फुकुओका से किताक्युशु शहर तक हमारे समूह को सड़क मार्ग से ले जाया गया था जिसके बारे में मैं आपको पहले ही विस्तार से यहाँ बता चुका हूँ। अब यूँ तो नारिता का हवाई अड्डा तोक्यो का मुख्य अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है पर ये तोक्यो स्टेशन से करीब 57 किमी की दूरी पर है। इसलिए यहाँ उतरते समय तोक्यो शहर दिखता तो है, पर थोड़ा दूर से। तोक्यो शहर को आसमान से कुछ और करीब से देखने का मौका हमें किताक्युशु (Kitakyushu) शहर में दो हफ्ते बिता लेने के बाद मिला। 

जुलाई का दूसरा हफ्ता था। बारिश का मौसम वहाँ तब चल ही रहा था पर उस दिन याहाता से चलते वक़्त धूप खिली हुई थी। दोपहर का भोजन थोड़ा जल्दी निबटाकर हम बारह बजे अपने ट्रेनिंग सेंटर से किताक्युशु के हवाई अड्डे की ओर निकल पड़े। याहाता से कोकुरा जाते वक़्त धूप तो कम हुई पर वातावरण में हल्की उमस बरक़रार थी।


किताक्युशु  का हवाई अड्डा शहर के पश्चिमी सिरे पर बना हुआ है। इस  हवाई अड्डे की खास बात ये है कि ये पूरी तरह समुद्र के बीचो बीच बना है। जैसा कि आप ‌ऊपर के चित्र में देख सकते हैं कि समुद्र के तीन किमी अंदर स्थित इस हवाईअड्डे पर एक पुल के ज़रिये पहुँचा जा सकता है। हम करीब एक बजे वहाँ पहुँचे।


हवाई अड्डे पर ज्यादा गहमागहमी नहीं थी। हमारी उड़ान तीन बजे की थी। सो वक़्त बिताने के लिए यूँ ही इधर उधर थोड़ी चहल कदमी करनी पड़ी। 


दिन के तीन बजे हमारे विमान ने जापान के सबसे बड़े द्वीप होन्शू  के लिए उड़ान भरनी शुरु की। डेढ़ घंटे की इस यात्रा के बाद हमें तोक्यो के हानेदा हवाई अड्डे पर उतरना था जो तोक्यो स्टेशन से चौदह किमी की दूरी पर तोक्यो खाड़ी क्षेत्र के पास स्थित है। आइए देखते हैं कि इस डेढ़ घंटे की उड़ान में टोक्यो उतरने से पहले क्या देख पाया..

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

मेरी जापान यात्रा : माउंट फूजी व हरे भरे खेत खलिहान !

चीन , अमेरिका, ब्राजील और भारत की तुलना में जापान एक छोटा सा देश है। एक ऐसा देश जहाँ की शहरी आबादी भारत के महानगरों को भी टक्कर दे सके। पर जापान के टोक्यो (Tokyo) और ओसाका (Osaka) जैसे महानगरों में दूर दूर तक दिखते कंक्रीट के जंगलों के परे भी एक दुनिया है जो दिखती तब है जब आप  इन शहरों से इतर जापान के अंदरुनी भागों का सफ़र करते है। अब आप ही बताइए जिस देश का अस्सी फीसदी इलाका छोटे बड़े पहाड़ों से घिरा हो वो भला प्रकृति की अनमोल छटा से कैसे विलग हो सकता है? हाँ ये जरूर है कि चार हजार द्वीपों के इस देश में विकास और नगरीकरण ने यहाँ की नैसर्गिक सुंदरता को चोट जरूर पहुँचाई है। पर पहाड़ों के रहने की वज़ह से अभी भी जापान के बहुत सारे इलाके इस प्रभाव से मुक्त रह पाए हैं।

पहाड़ों से सटी इन हरी भरी वादियों के बगल से जब भी हम गुजरे एक दृश्य हमें अपने मुल्क की याद बार बार दिलाता रहा । ये दृश्य था धान के लहलहाते खेतों का। दरअसल जून का महिना जापान में बारिश का होता है। ये बारिश मध्य जुलाई तक चलती है और इसी समय में धान की फसल भी बोई जाती है। 

दक्षिण और पूर्वी भारत की तरह ही जापान में चावल भोजन का अभिन्न अंग माना जाता है। चावल का शाब्दिक जापानी अनुवाद कोमे है। वैसे जापानी इसे ओ कोमे (o kome) और पकाने के बाद गो हान (go han) भी कहते हैं। वेसे 'ओ' और 'गो' उपसर्ग सम्मानसूचक हैं जिससे ये पता चलता है कि जापानी संस्कृति में शुरु से चावल को कितना महत्त्व दिया जाता रहा है। 

हवाई जहाज से जापान की इस हरियाली को देखने का अपना ही आनंद है। तोक्यो से जापान के दक्षिणी प्रदेश फुकोका की ओर जब हमारे विमान ने उड़ान भरी तो कंक्रीट के जंगलों की जगह जो दृश्य सबसे पहले दिखा था वो था हरे भरे जंगलों और धान के इन खूबसूरत खेतों का। तो चलिए ना आखिर इस हरियाली का आनंद उठाने से आप क्यूँ वंचित रहेंगे? 


बादल के पुलिंदे , बलखाती नदी , नदी के किनारे छोटे छोटे मकान और उनके पीछे  हरे भरे खेतों का काफ़िला... दिल नहीं करता आपका पंछी की तरह इन बादलों की संगत में मँडराने का...


बुधवार, 29 अगस्त 2012

मेरी जापान यात्रा : सफ़र नई दिल्ली से टोक्यो का ! ( My visit to Japan : Newdelhi to Tokyo)

पहली बार अंडमान जाते वक़्त हवाई जहाज़ पर चढ़ना हुआ था। वैसे उस जैसी रोचक हवाई यात्रा फिर नहीं हुई। अब प्रथम क्रश कह लीजिए या आसमान में उड़ान, पहली बार का रोमांच कुछ अलग होता है। विगत कुछ वर्षों में हवाई यात्राओं में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बैंगलोर, भुवनेश्वर और हैदराबाद जाना होता रहा है पर अंतरराष्ट्रीय उड़ान पर तो चढ़ने का मौका अब तक नहीं मिला था। छोटे थे तो पिताजी एक बार पटना के हवाई अड्डे पर ले गए थे। दस रुपये के टिकट में तब सीढ़ी चढ़ कर इमारत की छत से विमान को उड़ता और लैंड करते हुए देखा जा सकता था। तब पटना से काठमांडू के लिए रॉयल नेपाल एयरलाइंस (Royal Nepal Airlines) के विमान चला करते थे। उनका वृहत आकार और बाहरी साज सज्जा तब बाल मन को बहुत भाए थे। ख़ैर उस ज़माने में हम बच्चों के लिए हवाई जहाज़ बस देखने की चीज हुआ करता था। इसीलिए तीन दशकों बाद जब एक लंबी अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा का अवसर मिला तो मुझे बेहद उत्साहित होना चाहिए था। पर क्या ऐसा हो सका था ? 

यात्रा के दो दिन पहले तक मनःस्थिति वैसी नहीं थी। होती भी कैसे वीसा एप्लीकेशन से ले कर बाकी की काग़ज़ी कार्यवाही से जुड़ी भागदौड़ ने हमारे पसीने छुड़ा दिये थे। ऊपर से दिल्ली का उमस भरा मौसम भी कोई राहत नहीं पहुँचा रहा था। काग़ज़ी काम तो जाने के एक दिन पहले खत्म हो गया था पर चिंताएँ अभी थमी नहीं थी। सबसे बड़ी चिंता पापी पेट की थी। चालिस दिनों का सफ़र और वो भी ऐसे शाकाहारी के लिए जिसने आमलेट के आलावा किसी सामिष भोजन को कभी हाथ ना लगाया हो, निश्चित ही चुनौतीपूर्ण था :)। जापान जा चुके अपने जिन सहकर्मियों से वहाँ के भोजन के बारे में बात होती पहला सवाल यही दागा जाता क्या आप शाकाहारी हैं? हमारी हाँ सुनकर सामने वाले के चेहरे पर तुरंत चिंता की लकीरें उभर आती और फिर ठहरकर जवाब मिलता Then you are going to have problem. 

उनकी बातों की सत्यता परखने के लिए गूगल का सहारा लिया । पता चला जापानियों के लिए शाकाहार को समझ पाना ही बड़ा मुश्किल है,प्रचलन की बात तो दूर की है। जिस देश में खेती के लिए ज़मीन ना के बराबर हो और जो चारों ओर समुद्र से घिरा हो वहाँ के लोग शाकाहारी रह भी कैसे सकते हैं?

अब समस्या हो तो अपने देश में समाधान बताने वालों की कमी तो होती नहीं है। सो चावल, दाल, सत्तू , ओट्स से लेकर प्री कुक्ड फूड ले जाने के मशवरे मिले। अपने ट्रेनिंग कार्यक्रम के लिए जहाँ हमें जाना था वहाँ सख़्त हिदायत थी कि कमरे में ख़ुद खाना बनाना मना है। सो पहला सुझाव तो रद्द कर दिया। रही सत्तू की बात तो सत्तू की लिट्टी और पराठे तो खूब खाए थे पर लोगों ने कहा भाई सत्तू घोर कर भी पी लोगे तो भूखे नहीं मरोगे। दिल्ली पहुँचे तो वहाँ कुछ और सलाह दी गई। नतीजन अपने बड़े से बैग को मैंने सत्तू, भांति भांति प्रकार के मिक्सचर / बिस्किट्स, मैगी और प्री कुक्ड फूड के ढेर सारे पैकेट, घर में बने पकवानों से इतना भर लिया कि उसका वज़न पच्चीस के आस पास जा पहुँचा। ख़ैर भला हो जापान एयर लाइंस (Japan Air Lines) वालों का कि वे विदेश यात्रा में 23 kg  के दो बैग ले जाने की इजाज़त देते हैं सो चेक इन में दिक्कत नहीं हुई।

दिल्ली से हमारे समूह के सात लोग जाने वाले थे। पर सब  बाहर का नज़ारा लेने के लिए अलग अलग खिड़कियों के पास जा बैठे। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में 2+2 के आलावा 4 सीटें बीच में होती हैं।