शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

तोक्यो दर्शन : शिंजुकु की गगनचुंबी इमारतें (Tokyo: Skyscrapers of Shinjuku !)

किताक्यूशू से तोक्यो की उड़ान भरकर हम शाम तक अपने हॉस्टल में पहुँच गए थे। हमारा हॉस्टल शहर के एक चर्चित वार्ड Shinjuku के पास था। तोक्यो में हमारे पास मात्र दो शामें और एक पूरा दिन था। इतने कम समय में इतने विशाल शहर को देखना नामुमकिन था। फिर भी ट्रेनिंग के बाद  की दो शामों और शनिवार के पूरे दिन का हमने शतप्रतिशत उपयोग करते हुए जापान की राजधानी में जो कुछ देखा वो अगली कुछ कड़ियों में आपके सामने होगा। पहली दो शामें कैसी गुजरीं उसका किस्सा तो आगे आपको सुनाएँगे आज मेरे साथ चलिए ऊँची अट्टालिकाओं के इलाके  Shinjuku में ! 

पुराने ज़माने में Shinjuku,  Edo (तोक्यो का प्राचीन नाम) की ओर जाने वाले मुख्य रास्ते में पड़ता था। यहाँ कुछ दुकानें थीं। बाद में यहाँ रिहाइशी इलाके भी बन गए। तोक्यो में रेलवे लाइनों का जाल बिछा  तो ये इलाका रात्रि के मनोरंजन स्थल के रूप में प्रसिद्ध होने लगा। साठ के दशक में इसमें दैहिक मनोरंजन वाला हिस्सा भी शामिल हो गया। पर सत्तर के दशक की शुरुआत में Shinjuku का एक भाग अलग ही शक़्ल इख्तियार कर रहा था। ये शक्ल थी गगनचुंबी इमारतों से सजे एक व्यापारिक जिले की ।  Shinjuku के इन दोनों हिस्सों में मैं आपको ले चलूँगा लेकिन अपने तोक्यो भ्रमण की शुरुआत करते हैं इसके पश्चिमी इलाके से।

JICA Tokyo से शनिवार की सुबह का नाश्ता कर जब हम ट्रेन से Shinjuku  स्टेशन पहुँचे तो उस वक़्त हमारी घड़ी दस बजा रही थी। जुलाई के महिने में धूप भी जबरदस्त थी। हमें बताया गया था कि तोक्यो की सरकारी मेट्रोपालिटन बिल्डिंग से हम मुफ्त में Shinjuku का नज़ारा ले सकते हैं। स्टेशन से बाहर निकल कर हमने पश्चिमी दिशा में चलना शुरु किया। छुट्टी का दिन था इसलिए सामान्य दिनों में अतिव्यस्त रहने वाले उस इलाके में ज्यादा भीड़्भाड़ नहीं थी। जिधर नजर घुमाओ ऊधर ही ऊँची ऊँची अट्टालिकाएँ मुँह उठाए हमें घूरती नज़र आती थीं। कुछ ही देर में हम मेट्रोपालिटन बिल्डिंग के आहाते में थे।

मेट्रोपॉलिटन बिल्डिंग या तोक्यो हॉल के तीन हिस्से हैं। एक इमारत 48 मंजिली है तो दूसरी 37 मंजिली। बीच में गोलाई में फैली मेट्रोपॉलिटन एसेम्बली हैमू्ख्य परिसर काफी फैलाव लिये हैं। फूलों की क्यारियाँ और आदमकद मूर्तियाँ शीघ्र ही आपका ध्यान खींचती हैं। वो जो महानुभाव एक महिला के साथ सामने खड़े नज़र आ रहे हैं ना उनके हाथ में स्वर्णिम सेव है। अब तो उनका परिचय कराने की जरूरत तो नहीं हैं ना। वैसे यहाँ पास से देखेंगे तो खुद ही पहचान जाएँगे :)।


पर इस पूरे परिसर में मुख्य आकर्षण हैं 48 मंजिली इमारत जो 33 वें तल्ले में जाकर दो भागों में बँट जाती है। इमारत के इन दो हिस्सों में एक एक Observation Deck हैं जिनकी ऊँचाई 202 मीटर है। मेट्रोपॉलिटन बिल्डिंग (243m) Shinjuku वार्ड की सबसे ऊँची और जापान में ऊँचाई के मामले में सातवें स्थान पर है। ‌दोनों डेकों पर ऊपर जाने के लिए लंबी पंक्ति थी। हम भी कतार में खड़े हो गए। 202 मीटर की ऊँचाई से तोक्यो शहर को देखने का रोमांच मन को बेचैन कर रहा था।


तोक्यो आने के पहले अपने हॉस्टल के पुस्तकालय से मैंने तोक्यो से जुड़ी कई किताबें पढ़ी थीं। तोक्यो का सबसे मजेदार परिचय डेनियल रिची अपनी किताब Introducing Tokyo में करते हैं।  मेट्रोपॉलिटन बिल्डिंग के Observation Deck पर पहुँचने पर रिची की बातें याद आ गयी । रिची ने अपनी किताब में लिखा था

मैंने तोक्यो में आए एक नवआंगुतक से तोक्यो की खूबसूरती की बार छेड़ दी। वो व्यक्ति एकदम से अचकचा गया कैसी खूबसूरती ? आख़िर क्यूँ इम्पीरियल पैलेस के तीस मील के दायरे में लगभग तीन करोड़ लोग रहते हैं? अगर तोक्यो की कोई स्थापत्य शैली है तो उसे Tokyo Impermanent कहना उचित होगा। पुरानी इमारतों के बीच एक अलग शैली में बनी इमारत लुभाती तो है पर कुछ क्षणों के लिए अगर पूरे परिदृश्य में उसे देखें तो उसका कोई आकर्षण नहीं रह जाता।  ये शहर तो हमेशा निर्माण की प्रक्रिया से ही गुजरता रहता है। शहर का आधा हिस्सा टूट रहा होता है तो वहीं दूसरा हिस्सा बन रहा होता है। नहीं नहीं तोक्यो खूबसूरत नहीं है।

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

आइए चलें किताक्युशु से तोक्यो की उड़ान पर ! ( An Aerial view of Tokyo Bay Area )

यूँ तो हम भारत से जापान हम टोक्यो हो कर ही आए थे, पर नई दिल्ली से तोक्यो पहुँचने के बाद सीधे उड़ान से हमें फुकुओका जाना पड़ा था और वो भी नारिता (Narita Airport) के  हवाई अड्डे से । फुकुओका से किताक्युशु शहर तक हमारे समूह को सड़क मार्ग से ले जाया गया था जिसके बारे में मैं आपको पहले ही विस्तार से यहाँ बता चुका हूँ। अब यूँ तो नारिता का हवाई अड्डा तोक्यो का मुख्य अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है पर ये तोक्यो स्टेशन से करीब 57 किमी की दूरी पर है। इसलिए यहाँ उतरते समय तोक्यो शहर दिखता तो है, पर थोड़ा दूर से। तोक्यो शहर को आसमान से कुछ और करीब से देखने का मौका हमें किताक्युशु (Kitakyushu) शहर में दो हफ्ते बिता लेने के बाद मिला। 

जुलाई का दूसरा हफ्ता था। बारिश का मौसम वहाँ तब चल ही रहा था पर उस दिन याहाता से चलते वक़्त धूप खिली हुई थी। दोपहर का भोजन थोड़ा जल्दी निबटाकर हम बारह बजे अपने ट्रेनिंग सेंटर से किताक्युशु के हवाई अड्डे की ओर निकल पड़े। याहाता से कोकुरा जाते वक़्त धूप तो कम हुई पर वातावरण में हल्की उमस बरक़रार थी।


किताक्युशु  का हवाई अड्डा शहर के पश्चिमी सिरे पर बना हुआ है। इस  हवाई अड्डे की खास बात ये है कि ये पूरी तरह समुद्र के बीचो बीच बना है। जैसा कि आप ‌ऊपर के चित्र में देख सकते हैं कि समुद्र के तीन किमी अंदर स्थित इस हवाईअड्डे पर एक पुल के ज़रिये पहुँचा जा सकता है। हम करीब एक बजे वहाँ पहुँचे।


हवाई अड्डे पर ज्यादा गहमागहमी नहीं थी। हमारी उड़ान तीन बजे की थी। सो वक़्त बिताने के लिए यूँ ही इधर उधर थोड़ी चहल कदमी करनी पड़ी। 


दिन के तीन बजे हमारे विमान ने जापान के सबसे बड़े द्वीप होन्शू  के लिए उड़ान भरनी शुरु की। डेढ़ घंटे की इस यात्रा के बाद हमें तोक्यो के हानेदा हवाई अड्डे पर उतरना था जो तोक्यो स्टेशन से चौदह किमी की दूरी पर तोक्यो खाड़ी क्षेत्र के पास स्थित है। आइए देखते हैं कि इस डेढ़ घंटे की उड़ान में टोक्यो उतरने से पहले क्या देख पाया..

रविवार, 4 अगस्त 2013

जापान, जूडो और वो इंटरव्यू (Japan, Judo & that interview)

जापान जाने के पहले मेरी बड़ी इच्छा थी कि वहाँ जाकर सूमो पहलवानों को साक्षात देखूँ। पर टोक्यो और जापान के अन्य बड़े शहरों में जहाँ सूमो पहलवानों की कुश्ती होती है, वहाँ हमें ज्यादा रुकने का मौका ही नहीं मिला। यूँ तो सूमो कुश्ती जापान का राष्ट्रीय खेल है पर मार्शल आर्ट्स से जुड़े खेल भी यहाँ की प्राचीन समुराई संस्कृति से निकल कर आज तक अपने आप को चुस्त दुरुस्त रखने वाले जापानियों का पसंदीदा  शगल बने हुए हैं। इसके विविध रूपों- जूडो, कराटे और केंडो में जापानी जनता आज भी काफी रुचि लेती है।

वैसे ये जरूर है कि अमेरिकी और यूरोपीय प्रभावों की वज़ह से आज की तारीख़ में जापान में सबसे लोकप्रिय खेल बेसबाल और फुटबाल हो गए हैं। भले ही हम सूमो पहलवानों का ना देख पाए हों पर जैसा कि पिछली पोस्ट में मैंने आपको बताया कि  फुकुओका की यात्रा में हमें जापानी जूडो को करीब से देखने का मौका मिला।


कीटाक्यूशू से फुकुओका लगभग सत्तर किमी है और हम चित्र के ठीक बाँयी ओर दिखने वाली सड़क से होते हुए एक घंटे में फुकुओका पहुँचे। जूडो के इनडोर स्टेडियम के पास ही फुकुओका का बंदरगाह था।


जब हम जूडो स्टेडियम के प्रांगण में पहुँचे तो वहाँ खासी गहमागहमी थी। विभिन्न रंगों की जर्सियों में जूडोका स्टेडियम के बाहर और अंदर अलग अलग टोलियाँ बना कर घूम रहे थे। स्टेडियम के अंदर ही स्पोर्टस टी शर्ट और जर्सियों की दुकानें भारी भीड़ खींच रही थीं। स्टेडियम में घुसते ही हमारे गले में Official वाली नेम प्लेट टाँग दी गयी थी ताकि हम खिलाड़ियों के साथ बैठकर ही खेल का आनंद उठा सकें।


स्टेडियम खचाखच भरा था। सोचिए भारत में क्रिकेट, टेनिस व हॉकी छोड़ किस खेल में ऐसी भीड़ होती है? वैसे जापान ओलंपिक में अपने बीस फीसदी पदक इसी खेल से प्राप्त करता है। यूँ तो जापानी समाज सार्वजनिक स्थानों पर शांति से रहना पसंद करता है पर यहाँ माहौल दूसरा था। हर आयु वर्ग के लोग दर्शक दीर्घा में थे पर सबसे ज्यादा शोर किशोरवय के बच्चे ही मचा रहे थे। अलग अलग स्कूलों वा कॉलेजों का प्रतिनिधित्व कर रहे ये बच्चे अपनी टीम के खिलाड़ियों का भरपूर उत्साहवर्धन करते नज़र आए।

बतौर अतिथि हमें सबसे आगे बैठा तो दिया गया था पर हमारे समूह में किसी को भी जूडो के 'ज' तक का भी पता नहीं था। थोड़ी देर खेल देखने के बाद हमें बताया गया कि वहाँ के स्थानीय समाचारपत्र की एक पत्रकार हमारा साक्षात्कार लेना चाहती है। अब इस परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा ये तो हममें से किसी ने भी नहीं सोचा था। एक अदद मुर्गे की तलाश शुरु हुई जो मार्शल आर्ट्स से जुड़े प्रश्नों के जवाब दे सके।  पता चला कि हमारे एक सहभागी ने बचपन में जूडो की तो नहीं पर ताइक्वोंडो की ट्रेनिंग ले रखी है। लिहाजा उसे ही इंटरव्यू के लिए सामने कर दिया गया।

 
पत्रकार जूडो के प्रति हमारी रुचि के बारे में पूछती रही और हमारे सहयोगी भी किसी तरह घुमा फिरा कर जवाब देते रहे। भाषा की दीवार भी काम आ गई। बाद में वो इंटरव्यू जब छपा तो हमें ये समझ नहीं आया कि उसमें जापानी में क्या लिखा है। पर जिनका साक्षात्कार हुआ था वे इसी में खुश हो गए कि जापानी में ही सही अख़बार में नाम तो आया।

प्रतियोगिता में लड़कों के साथ लड़कियाँ भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही थीं। एक साथ आठ दस मैच चल रहे थे। कुछ देर मैच देखने के बाद हम स्टेडियम के बाद हमने दोपहर के भोजन तक का समय स्टेडियम का माहौल करीब से महसूस करने के लिए दर्शक दीर्घा में घूम घूम कर बिताया। आइए आपको दिखाएँ इस खेल और खिलाड़ियों की  कुछ झलकियाँ...

इनडोर स्टेडियम की भरी हुई दर्शक दीर्घाएँ


शुरुआती दाँव की कोशिश में दो महिला खिलाड़ी ..



और लगता है इस बार दाँव लग गया....

अपनी टीम के खिलाड़ी को हारते देख कुछ गुस्सा तो आएगा ना..

और ये है Exclusive Pose खास तौर पर मुसाफ़िर हूँ यारों के पाठकों के लिए..:)

जूडो तो आपने देख लिया अगली बार बताएँगे आपको कीटाक्यूशू से जापान की राजधानी टोक्यो तक की यात्रा का हाल। बस बने रहिए इस सफ़र में मेरे साथ।अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।