किताक्यूशू से तोक्यो की उड़ान भरकर हम शाम तक अपने हॉस्टल में पहुँच गए थे। हमारा हॉस्टल शहर के एक चर्चित वार्ड Shinjuku के पास था। तोक्यो में हमारे पास मात्र दो शामें और एक पूरा दिन था। इतने कम समय में इतने विशाल शहर को देखना नामुमकिन था। फिर भी ट्रेनिंग के बाद की दो शामों और शनिवार के पूरे दिन का हमने शतप्रतिशत उपयोग करते हुए जापान की राजधानी में जो कुछ देखा वो अगली कुछ कड़ियों में आपके सामने होगा। पहली दो शामें कैसी गुजरीं उसका किस्सा तो आगे आपको सुनाएँगे आज मेरे साथ चलिए ऊँची अट्टालिकाओं के इलाके Shinjuku में !
पुराने ज़माने में Shinjuku, Edo (तोक्यो का प्राचीन नाम) की ओर जाने वाले मुख्य रास्ते में पड़ता था। यहाँ कुछ दुकानें थीं। बाद में यहाँ रिहाइशी इलाके भी बन गए। तोक्यो में रेलवे लाइनों का जाल बिछा तो ये इलाका रात्रि के मनोरंजन स्थल के रूप में प्रसिद्ध होने लगा। साठ के दशक में इसमें दैहिक मनोरंजन वाला हिस्सा भी शामिल हो गया। पर सत्तर के दशक की शुरुआत में Shinjuku का एक भाग अलग ही शक़्ल इख्तियार कर रहा था। ये शक्ल थी गगनचुंबी इमारतों से सजे एक व्यापारिक जिले की । Shinjuku के इन दोनों हिस्सों में मैं आपको ले चलूँगा लेकिन अपने तोक्यो भ्रमण की शुरुआत करते हैं इसके पश्चिमी इलाके से।
JICA Tokyo से शनिवार की सुबह का नाश्ता कर जब हम ट्रेन से Shinjuku स्टेशन पहुँचे तो उस वक़्त हमारी घड़ी दस बजा रही थी। जुलाई के महिने में धूप भी जबरदस्त थी। हमें बताया गया था कि तोक्यो की सरकारी मेट्रोपालिटन बिल्डिंग से हम मुफ्त में Shinjuku का नज़ारा ले सकते हैं। स्टेशन से बाहर निकल कर हमने पश्चिमी दिशा में चलना शुरु किया। छुट्टी का दिन था इसलिए सामान्य दिनों में अतिव्यस्त रहने वाले उस इलाके में ज्यादा भीड़्भाड़ नहीं थी। जिधर नजर घुमाओ ऊधर ही ऊँची ऊँची अट्टालिकाएँ मुँह उठाए हमें घूरती नज़र आती थीं। कुछ ही देर में हम मेट्रोपालिटन बिल्डिंग के आहाते में थे।
मेट्रोपॉलिटन बिल्डिंग या तोक्यो हॉल के तीन हिस्से हैं। एक इमारत 48 मंजिली है तो दूसरी 37 मंजिली। बीच में गोलाई में फैली मेट्रोपॉलिटन एसेम्बली हैमू्ख्य परिसर काफी फैलाव लिये हैं। फूलों की क्यारियाँ और आदमकद मूर्तियाँ शीघ्र ही आपका ध्यान खींचती हैं। वो जो महानुभाव एक महिला के साथ सामने खड़े नज़र आ रहे हैं ना उनके हाथ में स्वर्णिम सेव है। अब तो उनका परिचय कराने की जरूरत तो नहीं हैं ना। वैसे यहाँ पास से देखेंगे तो खुद ही पहचान जाएँगे :)।
पर इस पूरे परिसर में मुख्य आकर्षण हैं 48 मंजिली इमारत जो 33 वें तल्ले में जाकर दो भागों में बँट जाती है। इमारत के इन दो हिस्सों में एक एक Observation Deck हैं जिनकी ऊँचाई 202 मीटर है। मेट्रोपॉलिटन बिल्डिंग (243m) Shinjuku वार्ड की सबसे ऊँची और जापान में ऊँचाई के मामले में सातवें स्थान पर है। दोनों डेकों पर ऊपर जाने के लिए लंबी पंक्ति थी। हम भी कतार में खड़े हो गए। 202 मीटर की ऊँचाई से तोक्यो शहर को देखने का रोमांच मन को बेचैन कर रहा था।
तोक्यो आने के पहले अपने हॉस्टल के पुस्तकालय से मैंने तोक्यो से जुड़ी कई किताबें पढ़ी थीं। तोक्यो का सबसे मजेदार परिचय डेनियल रिची अपनी किताब Introducing Tokyo में करते हैं। मेट्रोपॉलिटन बिल्डिंग के Observation Deck पर पहुँचने पर रिची की बातें याद आ गयी । रिची ने अपनी किताब में लिखा था
मैंने तोक्यो में आए एक नवआंगुतक से तोक्यो की खूबसूरती की बार छेड़ दी। वो व्यक्ति एकदम से अचकचा गया कैसी खूबसूरती ? आख़िर क्यूँ इम्पीरियल पैलेस के तीस मील के दायरे में लगभग तीन करोड़ लोग रहते हैं? अगर तोक्यो की कोई स्थापत्य शैली है तो उसे Tokyo Impermanent कहना उचित होगा। पुरानी इमारतों के बीच एक अलग शैली में बनी इमारत लुभाती तो है पर कुछ क्षणों के लिए अगर पूरे परिदृश्य में उसे देखें तो उसका कोई आकर्षण नहीं रह जाता। ये शहर तो हमेशा निर्माण की प्रक्रिया से ही गुजरता रहता है। शहर का आधा हिस्सा टूट रहा होता है तो वहीं दूसरा हिस्सा बन रहा होता है। नहीं नहीं तोक्यो खूबसूरत नहीं है।