26 दिसंबर की शाम
कुमली के बाजारों में बीती। कुमली में मसालों के ढ़ेर सारे
बगीचे (Spice Garden) हैं जहाँ
इलायची, काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, जायफल की खेती की जाती है।

इसलिए हमारी खरीदारी का मुख्य सामान मसाले ही थे। अब भला ७० रुपये में सौ ग्राम इलायची मिले तो कौन नहीं लेना चाहेगा। इसके आलावा तरह-तरह के आयुर्वेदिक तेल और हाथों से बनाए चॉकलेट भी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र थे। यहाँ केरल के प्रसिद्ध आयुर्वेदिक तेल मसॉज (Herbal Oil Massage) का आनंद भी आप ले सकते हैं पर हममें से कोई उसके लिए विशेष उत्साहित नहीं था।
होटल के बगल में रात को केरल के शास्त्रीय नृत्य
कत्थकली (Kathakali) का आयोजन था। पर एक एक टिकट का मूल्य दो सौ रुपये था और उसे देखने के लिए पर्याप्त संख्या में विदेशी पर्यटक मौजूद थे।
दरअसल केरल में जाने पर एक बात स्पष्ट लगती है कि सरकार मुख्य रूप से विदेशी सैलानियों और अमीर भारतीयों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है और ये बात थेक्कड़ी में सबसे ज्यादा खटकती है। कोचीन में जब हम सरकारी पर्यटन कार्यालय में विभाग द्वारा चलाए गए होटलों के बारे में पूछने गए थे तो वहाँ के कर्मचारी ने हँसते हुए जवाब दिया था कि वो आप लोग नहीं कर पाएँगे क्योंकि वे सारे सितारा होटल हैं। बाद में इस बात की सत्यता जानने के लिए जब इंटरनेट पर
के.टी.डी.सी. (KTDC) का जाल पृष्ठ खोला तो पाया कि एक दो को छोड़ दें तो अधिकांश के किराये ही तीन हजार प्रतिदिन से ऊपर हैं।

जिस होटल में ठहरे थे वहाँ हमसे ये कहा गया था कि सुबह
झील यात्रा के टिकट की चिंता ना करें वो बड़ी आसानी से मिल जाएगा। पर रात होते होते भारी भीड़ की वजह से हर टिकट पर प्रीमियम की बात होने लगी। सुबह सात बजे निकते तो थे कि आठ बजे फॉरेस्ट गेट पार कर साढ़े आठ बजे वाली नौका को पकड़ लेंगे पर गेट के बाहर ही जंगल में अंदर घुसने के लिए एक डेढ़ किमी लंबी गाड़ियों की पंक्ति लगी थी। गाड़ी को वहीं छोड़ हम गेट पर टिकट लेने पहुँचे। वहाँ भी वही हालत थी। देने वाला एक था और पंक्तियाँ दो थीं। एक विदेशियों के लिए और दूसरी देशियों के लिए। लाइन इतनी मंथर गति से बढ़ी कि हमें गेट पार करने में ही डेढ़ घंटे लग गए। लिहाजा साढ़े आठ की मोटरबोट छूट गई।

पूरी
पेरियार झील उस समय सफेद घनी धु्ध में डूबी हुई थी। धु्ध इतनी गहरी थी कि ना तो जंगल दिख रहे थे ना झील। मन ही मन सोचा कि ऐसे में हमें मोटरबोट से शायद ही कुछ दिखाई देता। पेरियार जंगल के अंदर से ही वन विभाग और पर्यटन विभाग की नौकाएँ छूटती हैं।
पर बदइंतजामी का आलम ये था कि घंटों पंक्ति में खड़े होकर भी टिकट नहीं मिल रहे थे। टिकट के दलाल पहले ही टिकट खरीद कर 'बोट फुल' की घोषणा कर देते। इस अफरातफरी की वजह से तनाव इस हद तक बढ़ गया कि बात मारा मारी तक पहुँच गई।(काउंटर पर हंगामे का दृश्य बगल के चित्र में देखें)

घंटों लाइन में खड़े रह कर नौका यात्रा करने का विचार हमने त्याग दिया। हमें लगा कि चार घंटे पंक्ति में खड़े रहने के बजाए अगर हम वो समय जंगल में विचरण करने में लगाएँ तो वो ज्यादा बेहतर रहेगा। बाद में हमारे सहकर्मी (जो वहाँ दो दिन पहले पहुँचे थे) से पता चला कि मोटरबोट से उन्हें एक हिरण के आलावा कोई वन्य प्राणी नहीं दिखा।
वास्तव में पेरियार की झील के भ्रमण का पूरा आनंद लेना हो तो कभी सप्ताहांत और पीक सीजन में ना जाएँ। वन्य जीव सामान्यतः सुबह या शाम के वक़्त ही पानी पीने के लिए झील की तरफ आते हैं इसलिए कोशिश करें कि इसी समय की बोट मिले।
पेरियार झील एक मानव निर्मित झील है जो पेरियार नदी पर
मुल्लापेरियार बाँध (Mullaperiyar Dam) की वजह से बनी है। पेरियार एक टाइगर रिजर्व है और इसका विस्तार करीब ७७७ वर्ग किमी तक फैला हुआ है। बाघों के आलावा हाथी, हिरण और कई तरह के पशु पक्षी भी इस जंगल के भीतरी भागों में निवास करते हैं।
जो भाग डैम के बनने से डूब गया था उसके मृत पेड़ों के सूखे तनों को आप अब भी झील के बीचों बीच निकला देख सकते हैं। बगल के चित्र में देखें..
झील के चारों ओर जिधर भी चहलकदमी करें पेड़ों का जाल दिखाई देता रहता है। साढ़े दस बज रहे थे और हमने एक बजे के नेचर वॉक (Nature Walk) के टिकट ले लिए थे। थोड़ा जलपान कर हम चहलकदमी करते हुए आस पास की हरियाली का आनंद लेते रहे। पास ही कछुआनुमा आकार की एक दुकान दिखी जिसमें पेरियार के अभ्यारण्य और वन्य जीवन से जुड़ी कुछ पुस्तकें मिल रही थीं।
ठीक एक बजे हम अपने जंगल अभियान यानि
नेचर वॉक (Nature Walk) के लिए तैयार हो गए। जंगल के अंदर का तीन चार किमी का ये सफ़र करीब तीन घंटों का रहा। कैसा रहा हमारा ये संक्षिप्त जंगल प्रवास ये जानते हैं यात्रा की अगली किश्त में....
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ - यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
- यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
- यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
- यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
- यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
- यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
- यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
- यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
- यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
- यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
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