Kitakyushu लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Kitakyushu लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

आइए चलें किताक्युशु से तोक्यो की उड़ान पर ! ( An Aerial view of Tokyo Bay Area )

यूँ तो हम भारत से जापान हम टोक्यो हो कर ही आए थे, पर नई दिल्ली से तोक्यो पहुँचने के बाद सीधे उड़ान से हमें फुकुओका जाना पड़ा था और वो भी नारिता (Narita Airport) के  हवाई अड्डे से । फुकुओका से किताक्युशु शहर तक हमारे समूह को सड़क मार्ग से ले जाया गया था जिसके बारे में मैं आपको पहले ही विस्तार से यहाँ बता चुका हूँ। अब यूँ तो नारिता का हवाई अड्डा तोक्यो का मुख्य अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है पर ये तोक्यो स्टेशन से करीब 57 किमी की दूरी पर है। इसलिए यहाँ उतरते समय तोक्यो शहर दिखता तो है, पर थोड़ा दूर से। तोक्यो शहर को आसमान से कुछ और करीब से देखने का मौका हमें किताक्युशु (Kitakyushu) शहर में दो हफ्ते बिता लेने के बाद मिला। 

जुलाई का दूसरा हफ्ता था। बारिश का मौसम वहाँ तब चल ही रहा था पर उस दिन याहाता से चलते वक़्त धूप खिली हुई थी। दोपहर का भोजन थोड़ा जल्दी निबटाकर हम बारह बजे अपने ट्रेनिंग सेंटर से किताक्युशु के हवाई अड्डे की ओर निकल पड़े। याहाता से कोकुरा जाते वक़्त धूप तो कम हुई पर वातावरण में हल्की उमस बरक़रार थी।


किताक्युशु  का हवाई अड्डा शहर के पश्चिमी सिरे पर बना हुआ है। इस  हवाई अड्डे की खास बात ये है कि ये पूरी तरह समुद्र के बीचो बीच बना है। जैसा कि आप ‌ऊपर के चित्र में देख सकते हैं कि समुद्र के तीन किमी अंदर स्थित इस हवाईअड्डे पर एक पुल के ज़रिये पहुँचा जा सकता है। हम करीब एक बजे वहाँ पहुँचे।


हवाई अड्डे पर ज्यादा गहमागहमी नहीं थी। हमारी उड़ान तीन बजे की थी। सो वक़्त बिताने के लिए यूँ ही इधर उधर थोड़ी चहल कदमी करनी पड़ी। 


दिन के तीन बजे हमारे विमान ने जापान के सबसे बड़े द्वीप होन्शू  के लिए उड़ान भरनी शुरु की। डेढ़ घंटे की इस यात्रा के बाद हमें तोक्यो के हानेदा हवाई अड्डे पर उतरना था जो तोक्यो स्टेशन से चौदह किमी की दूरी पर तोक्यो खाड़ी क्षेत्र के पास स्थित है। आइए देखते हैं कि इस डेढ़ घंटे की उड़ान में टोक्यो उतरने से पहले क्या देख पाया..

शनिवार, 25 मई 2013

आइए चलें स्पेस वर्ल्ड की मनोरंजक दुनिया में.. Welcome to Space World, Kitakyushu !

जैसा कि मैंने आपको बताया था कि मोज़ीको (Mojiko) के बाद हमारा अगला सप्ताहांत बीता अंतरिक्ष संसार यानि स्पेस वर्ल्ड (Space World) में। कीटाक्यूशू शहर के याहाता वार्ड  से मोज़ीको जाने वाले रेल मार्ग में स्पेस वर्ल्ड पहला स्टेशन है। स्टेशन के प्लेटफार्म से ही आपको इस थीम पार्क के दर्शन हो जाएँगे। आज जिस जगह ये थीम पार्क बनाया गया है वहाँ कभी विश्व की अग्रणी स्टील कंपनी निप्पन स्टील (Nippon Steel) का कारखाना हुआ करता था। जब स्टील की खपत कम होने लगी तो कंपनी ने यहाँ अपनी ज़मीन पर ये अंतरिक्ष संसार बसा दिया।

जुलाई का पहला हफ्ता था। भारत की तरह जापान के लिए भी ये मौसम बारिश का होता है। सुबह से आकाश में घने बादल छाए थे।पर हफ्ते में पाँच दिन की थका देनी वाली ट्रेनिंग के बाद छुट्टी का कोई दिन हम व्यर्थ नहीं गँवाना चाहते थे। तो दर्जन भर भारतीयों की टोली चल पड़ी इस थीम पार्क का आनंद उठाने के लिए। 


इस अंतरिक्ष संसार में प्रवेश करने का टिकट था 4200 येन का। पर शाम तक हमें लगा कि हमने जितना खर्च किया उससे ज्यादा पैसे वसूल हो गए।



स्पेस वर्ल्ड की पहचान है  डिस्कवरी अंतरिक्ष यान का ये विशालकाय मॉडल। वैसे अपने नाम के अनुरूप ये थीम पार्क इच्छुक विद्यार्थियों को अंतरिक्ष में रहने की ट्रेनिंग भी देता है जिसे स्पेस कैंप (Space Camp) का नाम दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों को नासा (NASA) के अंतरिक्षयात्रियों जैसे ही उपकरण दिए जाते हैं ।


रविवार, 14 अप्रैल 2013

मेरी जापान यात्रा : आइए चलें खूबसूरत मोज़ीको रेट्रो सिटी (Mojiko Retro City) की सैर पर...

मेरी जापान यात्रा  से जुड़ी पिछली प्रविष्टि में आपने पढ़ा कि किस तरह हमने याहता (Yahata) से मोज़ीको (Mojiko) तक जापान में किया गया ट्रेन से पहला सफ़र पूरा किया और वहाँ से समुद्र के किनारे चलने वाली पर्यटक ट्रेन से केनमोन पुल (Kanmon Bridge) के पास पहुँचे जो जापान के द्वीप होंशू को क्यूशू से जोड़ता है। वापसी का रास्ता पैदल तय करना था। केनमोन सेतु के नीचे समुद्र के किनारे किनारे एक रास्ता बना दिख रहा था। सौ मीटर चलने के बाद वो रास्ता बंद हो गया तो हम ऊपर चढ़कर पास वाली रोड पर चले आए।

ये इलाका मेराकी पार्क (Meraki Park) का इलाका था जिसका चक्कर लगाने के लिए पाँच सौ रुपये प्रति व्यक्ति का किराया लगता है। ख़ैर हम लोग अंदाज़ से उसी मार्ग पर बढ़ गए। मेराकी मंदिर को पार करने के बाद हमें वो रेलवे लाइन दिखाई दी जिस से हम वहाँ आए थे। किसी ने सुझाव दिया कि अगर उस रेलवे लाइन के साथ चला जाए तो हम रेट्रो टॉवर पहुँच जाएँगे। अब इस सुझाव पर किसी स्थानीय व्यक्ति से मशवरा लेने का तो प्रश्न ही नहीं था। अव्वल तो उस भरी दोपहरी में तेज भागती इक्का दुक्का कारों के आलावा कोई इंसान नज़र नहीं आ रहा था और आता भी तो कौन सा हम लोग उसको अपनी परेशानी का सबब समझा पाते।

हमारे समूह में कुछ लोग रेलवे पटरी को देख कर इतने उत्साहित हो गए कि कुछ ही क्षणों में वो कुलाँचे भरते उस दिशा की ओर बढ़ गए। पर वे ये भूल गए कि ये जापान है,भारत नही जहाँ साथ चलती पगडंडियों के बिना किसी रेलवे ट्रैक की कल्पना करना भी मुश्किल है। तीन चौथाई रास्ता तय करने के बाद उन्हें दिखा कि एक बंद फाटक उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। वो समूह निराश हो कर वहीं से दूसरी ओर मुड़ गया और फिर आँखों से ओझल हो गया। 

थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद हमने फैसला किया कि लंबा ही सही हमें सड़क के साथ ही चलना चाहिए। शनिवार का दिन होने के बावज़ूद गर्मी की वज़ह से सड़कें भी बिल्कुल सुनसान थीं। पौन घंटे चलने के बाद भी हम मानचित्र से रास्ते का मिलान नहीं कर पा रहे थे। साथ वालों का भी पता ना था सो इस बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर के बाहर कुछ पल सुस्ताने के लिए रुके। जापान में हर छोटी बड़ी दुकान के सामने ग्राहकों को आकर्षित करने के पतले लंबे पोस्टर लगे होते हैं। पतले इसलिए कि इनमें हिन्दी व अंग्रेजी की तरह बाएँ से दाएँ ना लिखकर ऊपर से नीचे की ओर लिखा होता है। चित्र में बायीं तरफ पोस्टर तो आपको दिख जाएँगे पर ग्राहक.........! जापान में हमारे विस्मय का विषय ही यही होता था कि आख़िर इतनी बड़ी बड़ी दुकानें चलती कैसे हैं.:) ?


पन्द्रह मिनट और चलने के बाद हमारी इस एक घंटे लंबी  पदयात्रा का समापन हुआ और हम मोज़ीको की उस
इकतिस मंजिला, 103 मीटर ऊँची इमारत के सामने खड़े थे जिससे मोज़ीको के प्राचीन और नए हिस्सों का शानदार दृश्य दिखाई देता है। इसका डिजाइन आर्किटेक्ट किशो कुरोकावा (Kisho Kurokawa) ने किया है।

पर समूह के पाँच लोग अभी भी नदारद थे। दस मिनट बाद एक टैक्सी से वो भी पदार्पित हुए। पता चला गर्मी से बेहाल हो कर एक बॉर में गला तर करने बैठ गए थे। सबके आते ही लिफ्ट से हम टॉवर के ऊपरी सिरे की ओर चल पड़े।

टॉवर की छत से दिखता दृश्य बेहद रमणीक था। 270 डिग्री तक के कोण से दिखते दृश्य में केनमोन सेतु से लेकर मोज़ीको रेट्रो सिटी और दूसरी ओर छोटी बड़ी पहाड़ियों के नीचे फैलता आज का मोज़ी वार्ड दृष्टिगोचर हो रहा था।



बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

मेरी जापान यात्रा : कीटाक्यूशू (Kitakyushu) का वो पहला दिन!

जापानी समय के अनुसार दोपहर बारह बजे हम फुकुओका पहुँच चुके थे। फुकुओका से हमारा अगला पड़ाव था कीटाक्यूशू शहर (Kitakyushu City) था जो क्षेत्रफल के हिसाब से फुकुओका प्रीफेक्चर का सबसे बड़ा शहर है। एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही हल्की बूँदा बादी शुरु हो गई थी । मौसम सुहावना था । तापमान यही कोई 26 डिग्री के आसपास। विश्वास करना मुश्किल हो रहा था कि राँची से हजारों मील दूर आने के बावजूद भी मौसम वही का वही निकलेगा जैसा हम उसे अपने शहर छोड़ आए थे। एक जापानी महिला हमें अपनी गाड़ियों तक पहुँचाने के लिए बाहर खड़ी थीं। हमारा समूह यूँ तो पन्द्रह लोगों का था पर दिल्ली से हम दस लोग जो कि भारत के अलग अलग राज्यों से थे, साथ साथ आए थे। दस लोगों के लिए तीन वैन मँगाई गयी थीं। 


इतने सुहावने मौसम के बावजूद ड्राइवर ने एसी चला रखा था। अब बाहर का मौसम इतना सुहाना हो तो भला विदेशी हवा में साँस लेने का मौका हम क्यूँ छोड़ते ? सो ड्राइवर से नज़रें बचा कर चुपके से मैंने एक शीशा खोल लिया। पर वैन की गति इतनी तीव्र थी कि हवा के तेज थपेड़ों ने मुझे शीशा बंद करने पर मजबूर कर दिया।


फुकुओका से कीटाक्यूशू की दूरी मात्र अस्सी किमी है। इस रफ्तार से हम एक घंटे से कम में कीटाक्यूशू पहुँचने वाले थे। बाहर भीड़ का कोई नामोनिशान नहीं था। सड़कों पर तरह तरह की कारें दौड़ रही थीं। सुजुकी की कई गाड़ियाँ दिखीं जो हमारी यहाँ की गाड़ियों जैसी ही थीं। रास्ते में कुछ रंग बिरंगी इमारतें नज़र आयीं उनमें से एक ये रही..