
हाथों में लैंप लिए एक स्त्री ( Lady with a lamp)

जटायु का वध करता रावण

एक बंजारा परिवार (Gypsy Family)

उत्तर भारत की एक ग्वालिन (North Indian Milkmaid)

चित्रालय से निकलते हमें चार बज गए थे और रास्ते में खाते पीते हम करीब साढ़े आठ तक एलेप्पी पहुँच गए थे। हमारी ट्रेन सुबह पाँच बजे की थी इसलिए हमारी पहली कोशिश थी रेलवे के रिटायरिंग रूम में रात गुजारने की। पर आशा के विपरीत एलेप्पी स्टेशन बड़ा छोटा दिखाई दिया। एकमात्र रिटायरिंग रूम भरा हुआ था। स्टेशन के आस पास होटल क्या, ढंग के भोजनालय भी नहीं दिखे। स्टेशन के बिल्कुल करीब एलेप्पी या एलपुज्हा का समुद्र तट है और उसके किनारे कुछ गेस्ट हाउस भी हैं पर अब हमारे समूह को समुद्र तट देखने से ज्यादा होटल ढूँढने और सुबह सही समय स्टेशन पहुँचने की चिंता सता रही थी। होटल तो हमें मिल गया पर भोजन की तालाश में जब हम निकले तो साढ़े नौ बजे से ही एलेप्पी शहर सोता दिखाई दिया। पूर्व का वेनस (Venice of the East) कहे जाने वाले शहर में दुकाने साढ़े आठ नौ बजें ही बंद होने लगती हैं। तीस चालिस मिनट चक्कर काटने के बाद एक दुकान खुली दिखी तो वहाँ मेनू में डोसे के आलावा कुछ भी उपलब्ध नहीं था। थोड़ा बहुत खा कर हम वापस चल दिये केरल में अपनी अंतिम रात गुजारने के लिए।
कुल मिलाकर केरल के इस दस दिनी प्रवास में हमने मुन्नार के हरे भरे बागानों और बैकवाटर में केरल के गाँवों की यात्रा सबसे अधिक भाई। मुन्नार से थेक्कड़ी का हरियाली से भरपूर रास्ता अभूतपूर्व सुंदरता लिए हुए था। कोचीन और कोवलम हमारी अपेक्षाओं से थोड़े कमतर निकले। अपने तेरह भागों के इस यात्रा वृत्तांत में मैं जो देख और महसूस कर पाया उसे आप तक पहुँचाने की कोशिश की है। जैसा कि आपसे वादा था केरल मे रहने, खाने पीने और घूमने के खर्चों की जानकारी मैं इस पोस्ट में दे चुका हूँ। अब ये आप ही बता सकते हैं कि ये प्रयास कितना सफल रहा।
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
- यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
- यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
- यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
- यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
- यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
- यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
- यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
- यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
- यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
- यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
- यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
- यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !