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बुधवार, 17 मार्च 2010

यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !

तीस दिसंबर केरल में बिताया हमारा आखिरी दिन था। नए साल का स्वागत हम सब ट्रेन में ही करने वाले थे। हमारी वापसी की ट्रेन ३१ की सुबह एलेप्पी (Alleppy) से थी। पद्मनवा स्वामी मंदिर का बाहर से ही दर्शन के बाद हमारे पास तीन घंटे का समय और था। पता चला कि तिरुअनंतपुरम का चिड़ियाघर, संग्रहालय और चित्रालय सब एक ही जगह पर है। यानि उस इलाके में पहुँचने के बाद दो तीन घंटों का समय यूँ निकल जाना था। बच्चे साथ थे तो संग्रहालय से पहले चिड़ियाघर में घुसना पड़ा। बाकी जीव जंतु तो वही दिखे जो किसी भी चिड़ियाघर में दिखते हैं पर अब तक 'डिस्कवरी' और 'नेशनल ज्योग्राफिक चैनल ' में दिखते आए जिराफ को साक्षात देख कर खुशी हुई। चिड़ियाघर से निकलते-निकलते दो घंटे बीत चुके थे।

चित्रालय या संग्रहालय में से किसी एक में जाने के लिए सिर्फ एक घंटे का समय हमारे पास था। लंबे चौड़े संग्रहालय को देखने के लिए ये समय सर्वथा अपर्याप्त था तो हम वहाँ के चित्रालय की ओर चले गए। यहाँ का चित्रालय केरल के महान चित्रकार राजा रवि वर्मा को समर्पित है।

चित्रालय की पहली कला दीर्घा में राजा महाराजाओं के जीवंत चित्र देख कर आँखें ठगी की ठगी रह गईं। चित्रों में उकेरी भाव भंगिमा कुछ ऍसी थीं मानो वो कभी बोल या मुस्कुरा पड़ेंगी। दरअसल १८४८ में केरल के किलिमनूर (Kilimanoor) में जन्मे राजा रवि वर्मा बचपन से ही कूचियाँ चलाने में माहिर थे। कहा जाता है कि लड़कपन में ही उन्होंने घर की दीवारें जानवरों और रोजमर्रा की दिनचर्या से जुड़ी तसवीरें बना कर रंग दीं थी। ये वो समय था जब चित्रकारों के पास सिर्फ प्राकृतिक रंग होते थे। तैल चित्र बनाने की कला उन्होंने तिरुअनंतपुरम में आ कर सीखी। वहाँ से पोट्रेट बनाने में उन्होंने ऐसी महारत हासिल की कि उनकी प्रसिद्धि देश विदेश में फैलने लगी। १८७३ में उनके बनाए चित्र को विएना की कला दीर्घा में प्रदर्शित और पुरस्कृत किया गया। हालत ये हो गई उनके गाँव किलिमनूर में पोट्रेट्स बनाने के आग्रह के लिए इतनी चिट्ठियाँ आने लगीं कि वहाँ एक डाकखाना खोलना पड़ा।

चित्रालयम मैं मौजूद कला दीर्घाओं में पोट्रेट्स के आलावा राजा रवि वर्मा के चित्रों को मुख्यतः दो कोटियों में बाँटा जा सकता है। एक तो वो तसवीरें हैं जो उस समय के समाज के चित्र को दर्शाती है और दूसरे हमारी पौराणिक कथाओं के विभिन्न प्रसंगों की कहानी कहती तसवीरें। हमारी प्राचीन कथाओं में राजा रवि वर्मा ने उन प्रसंगों को चुन कर अपनी कूची के रंगों में भरा जिसमें एक तरह का मेलोड्रामा है। प्रसंग में उपस्थित किरदारों का भाव निरूपण इस तरह से किया गया है कि प्रसंग का सार चित्र से सहज ही समझ आ जाता है।

राजा रवि वर्मा ने पहली बार देवी देवताओं के चित्र हमारे आस-पास के परिदृश्य के साथ बनाने का चलन शुरु किया। देवी देवताओं की जो तसवीरें हम ज्यादातर अपने घर के कैलेंडरों में देखते हैं उसकी उत्पत्ति का श्रेय इस महान चित्रकार को जाता है। मैं करीब एक घंटे इस कला दीर्घा में रहा और त्रिवेंद्रम-कोवलम में बिताए गए समय में ये एक घंटा शायद मेरी स्मृतियों में सबसे ज्यादा दिनों तक बना रहेगा।

चित्रालय में तसवीर खींचने की इज़ाजत नहीं थी पर आप गूगल देव की सहायता से अंतरजाल पर राजा रवि वर्मा की बनाई हुई कई तसवीरें देख सकते हैं। यहाँ अपनी पसंद की कुछ तसवीरों को पेश कर रहा हूँ..


हाथों में लैंप लिए एक स्त्री ( Lady with a lamp)


जटायु का वध करता रावण

 
एक बंजारा परिवार (Gypsy Family)



उत्तर भारत की एक ग्वालिन (North Indian Milkmaid)


चित्रालय से निकलते हमें चार बज गए थे और रास्ते में खाते पीते हम करीब साढ़े आठ तक एलेप्पी पहुँच गए थे। हमारी ट्रेन सुबह पाँच बजे की थी इसलिए हमारी पहली कोशिश थी रेलवे के रिटायरिंग रूम में रात गुजारने की। पर आशा के विपरीत एलेप्पी स्टेशन बड़ा छोटा दिखाई दिया। एकमात्र रिटायरिंग रूम भरा हुआ था। स्टेशन के आस पास होटल क्या, ढंग के भोजनालय भी नहीं दिखे। स्टेशन के बिल्कुल करीब एलेप्पी या एलपुज्हा का समुद्र तट है और उसके किनारे कुछ गेस्ट हाउस भी हैं पर अब हमारे समूह को समुद्र तट देखने से ज्यादा होटल ढूँढने और सुबह सही समय स्टेशन पहुँचने की चिंता सता रही थी। होटल तो हमें मिल गया पर भोजन की तालाश में जब हम निकले तो साढ़े नौ बजे से ही एलेप्पी शहर सोता दिखाई दिया। पूर्व का वेनस (Venice of the East) कहे जाने वाले शहर में दुकाने साढ़े आठ नौ बजें ही बंद होने लगती हैं। तीस चालिस मिनट चक्कर काटने के बाद एक दुकान खुली दिखी तो वहाँ मेनू में डोसे के आलावा कुछ भी उपलब्ध नहीं था। थोड़ा बहुत खा कर हम वापस चल दिये केरल में अपनी अंतिम रात गुजारने के लिए।

कुल मिलाकर केरल के इस दस दिनी प्रवास में हमने मुन्नार के हरे भरे बागानों और बैकवाटर में केरल के गाँवों की यात्रा सबसे अधिक भाई। मुन्नार से थेक्कड़ी का हरियाली से भरपूर रास्ता अभूतपूर्व सुंदरता लिए हुए था। कोचीन और कोवलम हमारी अपेक्षाओं से थोड़े कमतर निकले। अपने तेरह भागों के इस यात्रा वृत्तांत में मैं जो देख और महसूस कर पाया उसे आप तक पहुँचाने की कोशिश की है। जैसा कि आपसे वादा था केरल मे रहने, खाने पीने और घूमने के खर्चों की जानकारी मैं इस पोस्ट में दे चुका हूँ। अब ये आप ही बता सकते हैं कि ये प्रयास कितना सफल रहा।

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !

बुधवार, 10 मार्च 2010

यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की

कोवलम का समुद्री तट धनुष के आकार है। वैसे तो कहने को ये तीन छोटे-छोटे समुदी तटों में बँटा हुआ है पर इसके दक्षिणी सिरे पर जो 'लाइट हाउस बीच' (Lighthouse Beach) है वही यहाँ का मुख्य समुदी तट है। सारी दुकानें, कुछ होटल और भोजनालय इसी तट पर स्थित हैं। पर कोवलम जैसे समुद्री तट पर जो कि विश्व विख्यात है, पीक सीजन में आप इन होटलों में रहने या भोजनालय में खाने का जोखिम नहीं ले सकते। आपने कई बार मेलों में बच्चों के लिए डोरी घुमा कर पलास्टिक की छोटी बॉल में प्रकाश पैदा करते देखा होगा। हमारी आँखों के सामने ये खिलौना १०० से २०० रुपये में बिकता पाया और जब हमने उसका दाम पूछा तो वो सीधे दस रुपये पर आ गया।

इसी की बगल के मध्य सिरे में एक और तट है जहाँ हम अपने होटल से उतर कर सीधे पहुँचे थे, इसे हव्वा बीच (Eves Beach) के नाम से जाना जाता है।
ऍसा क्यूँ हैं ये जानने के लिए यहाँ देखें..



लाइटहाउस बीच पर विदेशी सैलानी बहुतायत में देखे जा सकते हैं। पर उसके बगल वाली बीच में भी लोग नहाते दिखते हैं हालांकि वहाँ हमें समुद तट में ढलाव ज्यादा महसूस हुआ। लाइटहाउस दिन में दो से चार बजे ही खुलता है पर अगर आपको इस पूरे धनुषाकार समुद्री तट का नज़ारा देखना हो तो आपको समय निकालकर वहाँ जाना चाहिए। ये बात हमें वहाँ से वापस लौटकर पता चली जब हमारे कार्यालय के सहयोगी, जो वहाँ हमसे दो तीन दिन पहले पहुँचे थे ने लाइटहाउस के ऊपर से क़ैद किए कुछ अद्भुत दृश्य हमें दिखाए। लाइटहाउस के ऊपर से लिए हुए पूरे इलाके के कुछ और हसीन नज़ारे आप यहाँ देख सकते हैं। जैसा कि मैंने आपको पिछली पोस्ट में बताया कि समुद्र में नहाने का सुख तो हम २९ की शाम को ही ले चुके थे। इसलिए तीस दिसंबर की सुबह हम समुद्र के साथ सुबह की ताज़गी का आनंद लेने निकल लिए।



समुद्र की ऊँची उठती लहरें तट से टकरा कर गर्जना कर रही थीं कि ज्यादा करीब आकर हमारी ताकत से लोहा लेने की कोशिश मत करो। उत्तरी समुद्री तट के पास ही मछुआरों की बस्ती है। मछुआरे सुबह सुबह अपनी नौका में सवार होकर समुद्र में अपना जाल बिछाने में लगे हुए थे। जाल को चारों तरफ फैला लेने के बाद अंतिम क़वायद पंक्तिबद्ध होकर जोर लगा के हइजा.. करने की थी जिस में हमारे सहयात्री भी शामिल हुए।


यूँ तो कोवलम सुंदर है पर जब मैं इसकी तुलना अंडमान के हैवलॉक या गोवा के कलंगूट समुद्री तट से करूँ तो ये इन दोनों के सामने नहीं ठहरता। हैवलॉक समुद्री तट के आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता और स्वच्छता के सामने कोवलम नहीं टिकता, वहीं इसके पास कलंगूट जैसी विशालता भी नहीं। समुद्री तट से लौटकर हमें अपना चार बजे तक का समय त्रिवेंद्रम में बिताना था। अबकि हम जहाँ ठहरे थे वहाँ एक तरणताल भी था सो समुद्र तट से वापस आकर बच्चों के साथ सीधे ताल में घुस लिया।

त्रिवेंद्रम शहर कोवलम से करीब २५ किमी की दूरी पर है। यहाँ का पद्मनवा स्वामी मंदिर आस्था की दृष्टि से बेहद पवित्र माना जाता है। हमारे कार्यालय के सहयोगियों ने बता रखा था कि यहाँ महिलाओं को सिर्फ साड़ी पहनकर ही मंदिर में आने दिया जाता है। सो वहाँ जाते वक़्त हमारी तैयारी वैसी ही थी पर जब वहाँ पहुँचे तो पता चला कि महिलाओं के आलावा पुरुषों के लिए भी वस्त्र निर्धारित थे। हमें सिर्फ धोती पहननी थी जो कि शायद वहाँ 25 से 30 रुपये में उपलब्ध थी। अब हमने तो अपनी जिद में शादी के समय भी धोती नहीं पहनी थी तो वहाँ क्या पहनते। सो हम बाहर ही रह गए। वैसे मुझे इस तरह के ड्रेस कोड का औचित्य समझ नहीं आया कि धोती के आलावा बाकी के वस्त्रों में क्या खराबी है जिसे पहन कर जाने से मंदिर की पवित्रता नष्ट हो जाएगी?



पद्मनवा स्वामी मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर हैं। यहाँ पर रखी हुई विष्णु की प्रतिमा विश्व में विष्णु की सबसे बड़ी प्रतिमा कही जाती है। अंदर विष्णु अनंतनाग के फन की शैया पर चिरनिद्रा में लीन दिखाई देते हैं। ये मंदिर कब बना इसके बारे में पुष्ट जानकारी नहीं है। पर ऍसा वहाँ के लोग कहते हैं कि इसकी आधारशिला ईसा पूर्व 3000 में रखी गई थी और इसे बनाने में 4000 मजदूरों को मिलकर छः महिने का समय लगा था।
मंदिर परिसर से हमें तिरुअनंतपुरम के संग्रहालय, चित्रालय और चिड़ियाघर देखते हुए वापस एलेप्पी की ओर कूच करना था। कैसा खत्म हुई हमारी केरल यात्रा ये जानते हैं इस श्रृंखला की समापन किश्त में....

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !