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बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

पैंगांग झील ( पांगोंग त्सो) और वो मजेदार वाकया ! Beauty of Pangong Tso

इस श्रंखला की पिछली कड़ी में मैंने आपको  लेह के ड्रक वाइट लोटस स्कूल से होते हुए पैंगांग त्सो तक के रास्ते की सैर कराई थी। वैसे बोलचाल में पैंगांग के आलावा इस झील को पेंगांग और पांगोंग के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। तिब्बती भाषा में पांगोंग त्सो शब्द का मतलब ऊँचे चारागाह पर स्थित झील होता है। पैंगांग झील करीब 134 किमी लंबी है और इस लंबाई का लगभग पचास पचपन किमी हिस्सा भारत में पड़ता है। पर कोई भी सड़क फिलहाल झील के किनारे किनारे सीमा तक नहीं जाती। घुसपैठ रोकने के लिए सिर्फ सेना के जवान ही इलाक़े में गश्त लगाते हैं।
पैंगांग ( पांगोंग त्सो) में मस्ती का आलम
मैंने सबसे पहली अत्याधिक ऊँचाई पर स्थित झील उत्तरी सिक्कम में देखी थी। 17800 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस एक चौथाई जमी हुई झील को देखना मेरे लिए बेहद रोमांचक क्षण था। ऍसा इसलिए भी था कि तब तक यानि 2006 में इतनी ऊँचाई पर मैं कभी गया नहीं था। दूसरी बात ये थी कि गुरुडोंगमर झील के बारे में पहले से मुझे कुछ खास पता नहीं था, इसीलिए बिल्कुल किसी अपेक्षा के जा पहुँचा था गुरुडोंगमर तक। पर पैगांग त्सो ! क्या उसके लिए यही बात कही जा सकती थी? यहाँ तो सब उल्टा था। हिंदी फिल्मों और नेट पर लोगों ने शायद ही कोई कोण छोड़ा हो इस खूबसूरत झील का। 

झील ने पूछा आसमान से बोलो सबसे नीला कौन ?

फिर भी लद्दाख जाते समय इस झील का आकर्षण मेरे लिए कम नहीं हुआ था। होता भी कैसे? झील के बदलते रंगों को अपनी आँखों से देखने की उत्कंठा जो थी। वैसे भी पैंगांग (पांगोंग) की विशालता इसे बाकी झीलों से अलग कर देती है। गुरुडोंगमर हो या चंद्रताल या फिर इतनी ऊँचाई पर स्थित कोई अन्य झील, पैंगांग के विस्तृत फैलाव के सामने सब की सब बौनी हैं। अब बताइए जहाँ पैंगांग का क्षेत्रफल सात सौ वर्गकिमी है वही गुरुडोंगमर और चंद्रताल दो वर्ग किमी से भी कम के क्षेत्रफल  में सिमटे हुए हैं।

कितना विस्तृत कितना नीला ...है प्रभु तेरी अनूठी लीला

सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

ड्रक वाइट लोटस स्कूल से होते हुए पैंगांग त्सो तक का सफ़र Three Idiot's School and Pangong Lake Road

इस श्रंखला की पिछली कड़ियों में आपको श्रीनगर से लेह तक ले के आया था। फिर मानसून यात्राओं में कुछ बेहद रोमांचक अनुभव हुए तो सोचा उन्हें ताज़ा ताज़ा ही साझा कर लूँ और फिर लेह से आगे के सफ़र की दास्तान लिखी जाए। 

जैसा मैंने पहले भी बताया था अक्सर लेह पहुँचने के बाद High Altitude Sickness की समस्या के चलते लोग पहले दिन वहाँ जाकर आराम करते हैं। पर चूँकि हम सब श्रीनगर से आए थे इसलिए हमारा शरीर इस ऊँचाई का अभ्यस्त हो चुका था। इसके बावज़ूद मैंने लेह में अगले दिन स्थानीय आकर्षणों को देखने का कार्यक्रम बनाया था। पर मेरे यात्रा संयोजक से चूक ये हो गई कि फोन पर उसने पैंगांग झील के लिए जो दिन नियत किया वो वहाँ के टेंट वाले ने उल्टा सुन लिया। लिहाजा पैंगांग झील (पांगोंग त्सो )  जहाँ मैंने सबसे अंत में जाने का सोचा था वहाँ सबसे पहले जाना पड़ा। 

मी  इडियट  :)
हमारी यात्रा की शुरुआत ड्रक वाइट लोटस स्कूल जिसे लेह में ड्रक पद्मा कारपो स्कूल कह के भी बुलाया जाता है से हुई। 1998 में बना ये स्कूल उसी रास्ते पर है जिससे लेह से पैंगांग त्सो की ओर जाया जाता है। इतिहास गवाह है कि हिंदी या अंग्रेजी फिल्मों ने विश्व के मानचित्र में कई नयी जगहों को एकदम से लोकप्रिय बना दिया। एक समय था जब कश्मीर से शायद ही कोई बॉबी हाउस देखे बिना लौट कर आता था। कोयला की शूटिंग में माधुरी दीक्षित अरुणाचल प्रदेश गयीं तो फिर वहाँ की एक पूरी झील ही माधुरी झील के नाम से जानी जाने लगी। कहो ना प्यार है में ऋतिक रोशन और अमीशा पटेल ने थाइलैंड की माया बे को हर भारतीय की जुबाँ पर ला दिया।

ओमी वैद्य ने थ्री इडियट्स में चतुर रामलिंगम का किरदार ऐसा निभाया कि उनका फिल्म की आख़िर में इस स्कूल और पैंगांग त्सो में अभिनीत दृश्य दर्शको के मन मस्तिष्क में अजर अमर हो गया।