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गुरुवार, 11 जून 2015

गंगटोक चित्रों में .. In Pictures Gangtok

सिक्किम प्रवास के आखिरी दिन हमारे पास दिन के 3 बजे तक ही घूमने का वक्त था। तो सबने सोचा क्यूँ ना गंगटोक में ही चहलकदमी की जाये। सुबह जलपान करने के बाद सीधे जा पहुँचे फूलों की प्रदर्शनी देखने




वहाँ पता चला कि इतने छोटे से राज्य में भी ऑर्किड (Orchids) की 500 से ज्यादा प्रजातियाँ पाई जातीं हैं जिसमें से कई तो बेहद दुर्लभ किस्म की हैं। इन फूलों की एक झलक हमें चकित करने के लिये काफी थी। 


Orchids of Sikkim

शुक्रवार, 5 जून 2015

सफ़र छान्गू झील का और कथा बाबा हरभजन सिंह की Changu Lake, Gangtok

सिक्किम से जुड़े इस यात्रा वृत्तांत में अब तक आपने पढ़ा लाचेन, गुरुडांगमार, चोपटा घाटी, लाचुंग और यूमथांग घाटी तक के सफ़र का लेखा जोखा।  सिक्किम प्रवास में हमारा अगला दिन मुकर्रर था वहाँ के सबसे लोकप्रिय पड़ाव के लिये जहाँ प्रकृति अपने एक अलग रूप में हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। लाचुंग से शाम तक हम गंगटोक  वापस आ चुके थे।


अगली सुबह पता चला कि भारी बारिश और चट्टानों के खिसकने की वजह से नाथू-ला का रास्ता बंद हो गया है। मन ही मन मायूस हुये कि इतने पास आकर भी भारत-चीन सीमा को देखने से वंचित रह जाएँगे। पर बारिश ने जहाँ नाथू-ला (Nathu La)जाने में बाधा उत्पन्न कर दी थी तो वहीं ये भी सुनिश्चित कर दिया था कि हमें सिक्किम की बर्फीली वादियाँ के पहली बार दर्शन हो ही जाएँगे। इसी खुशी को मन में संजोये हुये हम छान्गू या  Tsomgo (अब इसका उच्चारण मेरे वश के बाहर है, स्थानीय भाषा में Tsomgo का मतलब झील का उदगम स्थल है ) की ओर चल पड़े। 3780 मीटर यानि करीब 12000 फीट की ऊँचाई पर स्थित छान्गू झील गंगटोक से मात्र 40 कि.मी. की दूरी पर है ।




गंगटोक से निकलते ही हरे भरे देवदार के जंगलो ने हमारा स्वागत किया। हर बार की तरह धूप में वही निखार था । कम दूरी का एक मतलब ये भी था की रास्ते भर जबरदस्त चढ़ाई थी। 30 कि.मी. पार करने के बाद रास्ते के दोनों ओर बर्फ के ढ़ेर दिखने लगे। मैदानों में रहने वाले हम जैसे लोगों के लिये बर्फ की चादर में लिपटे इन पर्वतों को इतने करीब से देख पाना अपने आप में एक सुखद अनुभूति थी। पर ये तो अभी शुरुआत थी। छान्गू झील (Changu Lake) के पास हमें आगे की बर्फ का मुकाबला करने के लिये घुटनों तक लम्बे जूतों और दस्तानों से लैस होना पड़ा ।

दरअसल हमें बाबा हरभजन सिंह मंदिर (Baba Mandir) तक जाना था जो कि नाथू-ला और जेलेप-ला के बीच स्थित है। ये मंदिर 23 वीं पंजाब रेजीमेंट के एक जवान की याद में बनाया है जो ड्यूटी के दौरान इन्हीं वादियों में गुम हो गया था । बाबा मंदिर की भी अपनी एक रोचक कहानी है। यहाँ के लोग कहते हैं कि चार अक्टूबर 1968 को ये सिपाही खच्चरों के एक झुंड को नदी पार कराते समय डूब गया था। कुछ दिनों बाद उसके एक साथी को सपने में हरभजन सिंह ने आकर बताया कि उसके साथ क्या हादसा हुआ था और वो किस तरह बर्फ के ढेर में दब कर मर गया। उसने स्वप्न में उसी जगह अपनी समाधि बनाने की इच्छा ज़ाहिर की। बाद में रेजीमेंट के जवान उस जगह पहुँचे तो उन्हें उसका शव वहीं मिला। तबसे वो सिपाही बाबा हरभजन के नाम से मशहूर हो गया। इस इलाके के फौजी कहते हैं कि आज भी जब चीनी सीमा की तरफ हलचल होती है तो बाबा हरभजन किसी ना किसी फौजी के स्वप्न में आकर पहले ही ख़बर कर देते हैं।

शनिवार, 9 मई 2015

गंगटोक से उत्तरी सिक्किम का वो सफ़र (Gangtok to North Sikkim )

गर्मियाँ अपने पूरे शबाब पर हैं । आखिर क्यूँ ना हों, मई का महिना जो ठहरा । अगर ऐसे में भी सूर्य देव अपना रौद्र रूप हम सबको ना दिखा पायें तो फिर लोग उन्हें देवताओं की श्रेणी से ही हटा दें :)। अब आपके शहर की गर्मी तो मैं कम कर नहीं सकता, कम से कम इस चिट्ठे पर ही ले चलता हूँ एक ऐसी जगह जहाँ तमाम ऊनी कपड़े भी हमारी ठंड से कपकपीं कम करने में पूर्णतः असमर्थ थे।

Orchids of Sikkim

बात कुछ साल पहले अप्रैल की है जब हमारा कुनबा रांची से रवाना हुआ । अगली दोपहर हम न्यू जलपाईगुड़ी पहुँचे । हमारा पहला पड़ाव गंगतोक था जो कि सड़क मार्ग से सिलीगुड़ी से 4 घंटे की दूरी पर है । सिलीगुड़ी से ३० किलोमीटर दूर चलते ही सड़क के दोनों ओर का परिदृश्य बदलने लगता है पहले आती है हरे भरे वृक्षों की कतारें जिनके खत्म होते ही ऊपर की चढ़ाई शुरू हो जाती है।