घूमने के लिहाज़ से उत्तर प्रदेश तो कई बार जाना हुआ है। कभी आगरे का ताजमहल तो कभी लखनऊ की भूलभुलैया, या फिर बनारस के घाट नहीं तो गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े खास स्थानों की सैर। पर फरवरी के दूसरे हफ्ते में जब उत्तर प्रदेश के वन विभाग से न्योता आया वहाँ के दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के तीसरे वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पक्षी महोत्सव में शिरकत करने का तो मन एक सहज उत्सुकता से भर उठा।
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पक्षियों की संगत में कटे वो तीन दिन मन को एक ऊँची उड़ान पर ले गए |
उत्तर प्रदेश का नाम आते ही उसकी भारत की सबसे घनी आबादी वाले प्रदेश की छवि उभर कर आ जाती है। ऐसे प्रदेश को जंगल और पक्षियों से आम नागरिक तो नहीं जोड़ पाता है। उत्तर प्रदेश वन विभाग की ये पहल विशेषकर पक्षियों के मामले में अपनी जैव विविधता को दुनिया के सामने लाने की थी़ और उसमें वे पूरी तरह सफल हुए। नौ से ग्यारह फरवरी तक दुधवा में चले इस महोत्सव में देश विदेश से पक्षी वैज्ञानिक, संरक्षणकर्ताओं, पक्षी प्रेमियों और यात्रा लेखकों को बुलाया गया था।
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उत्तर प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय पक्षी महोत्सव के आयोजन स्थल का मुख्य द्वार |
आठ फरवरी को हमारा ये काफिला एक बस से दोपहर में लखनऊ से दुधवा की ओर रवाना हुआ। इस सफ़र में तकरीबन पाँच से साढ़े पाँच घंटे लग जाते हैं। रात होते होते हम लोग दुधवा नेशनल पार्क से करीब एक किमी पहले बनी अपनी अस्थायी टेंट सिटी के बाहर पहुँच चुके थे। सौ से ज्यादा बने इन तंबुओं को पक्षियों के नाम की अलग अलग गलियों में बाँटा गया था। मैं किंगफिशर स्ट्रीट का वासी था।
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किंगफिशर स्ट्रीट में था हमारा तीन दिनों का आशियाना |
इन पक्षियों को करीब से विशेषज्ञों के साथ देखने का रोमांच ऐसा था कि अगली सुबह साढ़े पाँच बजे ही तैयार मैं अपने नए साथियों के साथ दुधवा की ओर निकल पड़ा। दरअसल पक्षियों की सबसे ज्यादा गतिविधि सूर्योदय और सूर्यास्त वेला में होती हैं और जंगल के बीचो बीच पहुँचने के लिए घंटे भर पहले ही निकल जाना होता है।
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भोर होते ही दुधवा जाने के लिए इस शानदार सवारी पर तैयार हमारा काफिला |
ठंड जबरदस्त थी और खुली गाड़ी में बिना टोपी के और भी सता रही थी। अपने अस्थायी निवास से जंगलों में प्रवेश करने का समय बस दस मिनटों का था। दुधवा रेंज यूँ तो कई भागों में बँटी है पर पहले दिन हमने सोनारीपुर रेंज की राह थामी। सूरज अभी निकला नहीं था और हमारी गाड़ी साल के जंगलों के बीच सरपट दौड़ रही थी। सूर्य की पहली किरणों के साथ जंगल में पक्षियों का कलरव चालू हो गया और शुरु हुई पक्षियों के साथ हमारी आँख मिचौनी। सुबह और फिर शाम की ये क़वायद अगले तीन दिनों तक ज़ारी रही और इस दौरान हम सतियाना रेंज और फिर किशनपुर के वन्य अभ्यारण्यों में भी गए। पचास से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी हमारी नज़रों के सामने से गुजरे। आइए इनमें से कुछ की मुलाकात आपसे भी करवाता चलूँ जिनकी छवियाँ मैं अपने कैमरे में क़ैद कर सका।
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ग्रेट इंडियन हार्नबिल (Great Indian Hornbill) इनकी शानदार चोंच के क्या कहने! |
ग्रेट इंडियन हार्नबिल दुधवा में मुझे दोनों दिन दिखा। भारत में ये पश्चिमी घाट, उत्तर पूर्व और दुधवा जैसे हिमालय के तराई वाले इलाकों में काफी संख्या में पाया जाता है। अपनी पीली चोंच और उसके ऊपर के पीले काले मिश्रित मुकुट लिए ये दूर से ही पहचान में आ जाता है। भारत के केरल और अरुणाचल प्रदेश का ये राज्य पक्षी भी है। वैसे तो इसका मुख्य आहार फल है पर मौका पड़ने पर ये कीड़े और छोटे मोटे पक्षियों को निगलने से परहेज़ नहीं करता।
इसकी आवाज़ आप यहाँ सुन सकते हैं।
हार्नबिल को देखते देखते वहाँ एक ओरियल भी आ पहुँची।
अब बुलबुल तो हम सबने कई बार देखी होंगी पर मैंने कभी इसकी गर्दन और पंखों के पास के लाल धब्बों पर गौर नहीं किया था। भारत में ये सिपाही बुलबुल के नाम से भी जानी जाती है। गर्दन की दोनों ओर इस लाल निशान की वजह से कवियों और ग़ज़लकारों ने इसकी तुलना बलिदान देने वाले क्रांतिकारियों से की है। अब राम प्रसाद बिस्मिल की लिखी वो पंक्तियाँ तो आपको याद ही होंगी।
तोतों या पैराकीट्स की कई प्रजातियाँ दुधवा में दिखती हैं। इसमें ऐलेक्सेन्ड्राइन और रोज़ रिंग्ड पैराकीट की नस्लें यहाँ आम हैं। पक्षियों को देखते देखते हमें रास्ते में हिरण भी मिले और पानी के किनारे औंधते घड़ियाल भी। जंगलों में घूमते हुए कैसे दस बज गए पता ही नहीं चला। दिन में महोत्सव का उद्घाटन समारोह था तो वापस भी लौटना था।
उद्घाटन समारोह का आकर्षण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आगमन था। उन्होंने अपने भाषण में पर्यावरण संरक्षण के साथ पक्षी महोत्सव के रूप में वन विभाग द्वारा पर्यटन को दी जा रही इस पहल का स्वागत किया और इसके लिए दुधवा के आस पास आधारभूत सुविधाओं में सुधार लाने का विश्वास भी दिलाया। नामी वन्य जीव फिल्म निर्माता माइक पांडे ने भी यूपी इको टूरिज़्म के ब्रांड एम्बेसडर के रूप में इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। दिन के सत्रों में पक्षियों के संरक्षण से जुड़े कई रोचक शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। बच्चों की बनाई चित्र कला प्रदर्शनी लगाई गयी और स्थानीय जनजाति थारु द्वारा बनाए जाने वाले हस्तशिल्प का प्रदर्शन भी हुआ।
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माननीय मुख्यमंत्री योगी जी का उद्घाटन भाषण Inaugural Speech by CM of UP Sri Yogi Adityanath |
दोपहर को हम सतियाना रेंज की ओर बढ़े। सुबह की तुलना में हमें उतने पक्षी तो नज़र नहीं आए पर शारदा नदी के किनारे एक साथ आठ नौ मगरमच्छ आराम फर्माते हुए दिखे। दूर एक पेड़ की फुनगी पर ओरियंटल हनी बजार्ड जोड़े में मुस्तैद नज़र आया।
सूर्यास्त वेला के पास हम खुले हुए घास के मैदानों से बीच से जब निकल रहे थे तो ये Long Tailed Shrike दर्शन दे गयी। लंबे पंखो वाली इस चिड़िया के आँखों के नीचे का हिस्सा काला और कभी कभी पूरा सिर ही काला होता है। इस नस्ल को Black Headed Tricolor के नाम से जाना जाता है। ये चिड़िया आपको अक्सर झाड़ियों और सूखी घास के ढेर के आस पास नज़र आ जाएगी।
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स्राइक की ये प्रजाति बहुरंगी होने के कारण ट्राईकलर के नाम से जानी जाती है Long Tailed Shrike : Black Headed Tricolor |
डूबते सूरज का पीछा करते हुए दुधवा के जंगलों में जब हम इस पेड़ के सामने पहुँचे तो सुनहरी रोशनी के परिदृश्य में पेड़ की लगभग हर मुख्य शाख पर बैठे बंदरों की परछाइयाँ हमें विस्मृत कर गयीं। क्या अद्भुत पल था वो!
पक्षियों को जंगल में देख पाना एक बात है पर उन्हें कैमरे में क़ैद करना दूसरी। कई बार एक अच्छे कोण के लिए काफी देर तक इंतजार करना पड़ता है और फिर चिड़िया कब फुर्र हो जाए ये तो ऊपरवाला ही बता सकता है। ऐसे में अगले दिन जब हमें आमतौर पर घने जंगलों में विचरण करने वाला क्रेस्टेड सर्पेंट ईगल एक पत्तीविहीन पेड़ पर खुली धूप में नज़र आया तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जैसा कि नाम से स्पष्ट है ये बाज, साँप और अन्य रेंगने वाले जीवों को अपना शिकार बनाता है और इसीलिए दलदली भूमि के आसपास ही मँडराता रहता है।
मध्यम आकार का ये बाज अपने भूरे रंग, छोटी पूँछ और पीली चोंच से पहचाना जाता है। हमारे समूह ने इसके साथ काफी वक़्त बिताया । इसकी आवाज़ भी सुनी और इसके उड़ान भरने का इंतजार किया पर ये अपनी जगह से टस से मस भी नहीं हुआ। अपने आचार व्यवहार में ये भले खतरनाक हो पर
इसकी बोली एक सामान्य चिड़िया सी पतली और तीखी है।
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क्रेस्टेड सर्पेंट ईगल की पुकार, है कोई बंधु तैयार :) Crested Serpant Eagle |
इसके बाद हमारी मुलाकात हुई
चेंजेबल हॉक ईगल से। भारत और श्रीलंका में मुख्यतः पाया जाने वाले ये बाज मध्यम आकार का होता है। इसके पर भूरे रंग के होते हैं और पेट की तरफ का हिस्सा सफेद रंग का होता है। इसकी कुछ प्रजातियों में कलगी भी दिखती है। ये जब चहचहाता है तो पहले हल्की और फिर निरंतर तेज़ होती तीखी आवाज़ में अपना गायन समाप्त करता है। मिसाल के तौर पर
यहाँ देखिए। इसे जब हम अपने कैमरे में क़ैद कर रहे थे तभी वूली नेक्ड स्टार्क का एक जोड़ा आसमान में उड़ान भरता नज़र आया।
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चेंजेबल हॉक ईगल Changeable Hawk Eagle |
जंगल में घूमते हुए हम सबने एक बात गौर की। वो ये कि घने जंगलों के बीच पक्षियों की गतिविधियाँ उतनी नहीं होतीं जितनी कि घने जंगल से विरल जंगल की सीमा पर या जंगल से किसी खुले मैदान या जलराशि वाले भूभाग के मिलने पर। दुधवा के जंगलों से निकलने के पहले ऐसी ही एक दलदली भूमि के पास हम रुके। यहाँ भांति भांति के पक्षी थे। मजे की बात ये रही कि यहाँ मचान से हमें दूर घनी घासों के बीच स्वाम्प डियर का एक झुंड दिखा और साथ ही दिखी ब्लैक नेक्ड स्टार्क। बगुलों के झुंड ने तो पूरा एक पेड़ ही हथिया रखा था।
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बगुलों का एक झुंड, साथ में इनका एक पड़ोसी भी है |
दूसरे दिन दोपहर के बाद हमें किशनपुर वन्य जीव अभ्यारण्य जाना था जो दुधवा नेशनल पार्क का हिस्सा माना जाता है पर उससे करीब तीस किमी की दूरी पर है। बीच बीच नें रास्ते भर हमें यहाँ बहुतायत में पाए जाने सारस क्रेन खेतों में विचरते दिखे।
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Red Wattled Lapwing शिकार की तलाश में मोर्चे पर तैयार |
सवा दो सौ से थोड़े अधिक वर्ग किमी में फैला हुआ किशनपुर का अभ्यारण्य अनेक ताल तलैयाओं से घिरा है। इनमें से सबसे ज्यादा लोकप्रिय यहाँ का
झादी ताल है जहाँ स्थानीय और प्रवासी पक्षी काफी संख्या में मौजूद रहते हैं।
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झादी ताल मे पक्षियों के बीच टहलता बारहसिंगा Swamp Deer in Jhadi Taal |
जब हम झादी ताल के करीब पहुँचे तो बादलों की वजह से सूरज की रोशनी मद्धम पड़ चुकी थी। इतनी कम रोशनी में फोटोग्राफी मुश्किल थी तो दूरबीन के सहारे वहाँ मौज़ूद पक्षियों को निहारने के आलावा हमारे पास कोई चारा नहीं था। ताल के दूसरी तरफ बारहसिंगा यानि स्वाम्प डियर का झुंड दलदली भूमि में मजे से अपने भोजन की तलाश में मगन था। झील के चारों ओर ऊँचे ऊँचे मुंडेरों पर शिकारी पक्षी घात लगाए बैठे थे। इनमें से जैसे ही कोई उड़ान भरता ताल में खलबली सी मच जाती। पर ऐसी उड़ानों में कोई ना कोई शिकार बाज के हाथ में आ ही जाता।
रोशनी में इज़ाफे की उम्मीद में इस ताल का चक्कर लगाने के लिए हम आगे बढ़े। यहाँ के जंगलों में नीलगाय, मोर से मुलाकात करते हुए जब हमारा समूह थोड़ी खुली जगह में पहुँचा तो पाया कि ये नीलकंठ हमारे स्वागत को तैयार है।
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नीलकंठ Indian Roller |
नीलकंठ जिसे अंग्रेजी में इंडियन रॉलर भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप में अक्सर दिख जाने वाला पक्षी है। भूरे नीले रंग का ये पक्षी जब अपने पर फैलाए उड़ान भरता है तो आँखें तृप्त हो जाती हैं। प्रजनन काल में ये पक्षी मादा को प्रसन्न करने के लिए कलाबाजियाँ खाता है और इसका अंग्रेजी नाम इसके इसी स्वाभाव का परिचायक है। ओड़ीसा, तेलंगाना, कर्नाटक और आँध्र का ये राज्य पक्षी भी है।
झादी ताल पर पेंड की मुंडेरों से पैनी निगाह रखते शिकारी पक्षी
अब बात मोर की..पहले तो ये हमारे रास्ते में आगे ठुमक ठुमक कर चलता रहा और फिर उड़ान भर कर झादी ताल के मध्य छोटे से टापू पर जा बैठा। ये जिस ओर टकटकी लगाए है उधर दलदल में पाए जाने वाले मृगों (Swamp Deer) का जमावड़ा था। इनके नाचने की बड़ी प्रतीक्षा की हमने पर यह हमारी फरमाइश कहाँ पूरी करने वाले थे? सो मन ही मन वो गीत गाकर रह गए कि जंगल में मोर नाचा किसी ने ना देखा रे..
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परछाइयों में भी कितनी खूबसूरती छिपी है ना ! |
जंगल में पक्षियों की उपस्थिति को जानना अपने आप में एक कला है। पक्षियों के साथ इतने करीब से वक़्त बिताने का ये मेरा पहला अनुभव था पर विशेषज्ञों की संगत से कई बातें सीखने को मिलीं। पक्षियों को पहचानने में हमारी आँखों से कहीं ज्यादा कान काम आते हैं। इनकी बोली अगर पकड़ में आ जाए तो आपकी आँखें उस दिशा में और चौकन्नी हो जाती हैं।
दूसरी बात ये कि पक्षियों से जुड़ी किताबें ना केवल उनकी शक्ल सूरत के बारे में बताती हैं बल्कि ये भी सूचना दे देती हैं कि किसी इलाके में एक विशेष मौसम में किस प्रजाति के पक्षी पाए जा सकते हैं। तो अगली बार आप पक्षियों के ठिकाने पर जाएँ तो एक दूरबीन और उनसे जुड़ी किताब आपके साथ होनी चाहिए। साथ में एक हाई ज़ूम वाला कैमरा हो तो आप अपनी स्मृतियाँ, दूसरों को भी दिखा पाएँगे।
अगर आप सोच रहे हैं कि दुधवा का मेरा सफ़र पूरा हो गया तो आप मुगालते में हैं। पक्षियों के साथ इस मुलाकात के आलावा मैंने तीन दिनों में इन जंगलों की जो अनुपम प्राकृतिक छटा देखी उससे भी तो आपका परिचय करवाना जरूरी है। तो इंतजार कीजिए दुधवा से जुड़ी अगली कड़ी का।
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