थाइलैंड से जुड़ी इस श्रंखला की पिछली कड़ी में आपने झलकें देखी थीं यहाँ के कार्निवाल विलेज की। इसके बाद Phuket Fantasea में हमारा अगला पड़ाव था The Golden Kinnaree जो ना केवल अपने वृहद भोज के लिए जाना जाता है बल्कि जिसकी बाहरी और आंतरिक साज सज्जा मन को मंत्रमुग्ध कर देती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि थाइलैंड के सुदूर दक्षिण इलाके में बने इस भोजनालय का नाम भारत की पौराणिक कथाओ में उल्लेखित किन्नर शब्द से ही निकला है।
पुराणों और महाभारत में इस बात का जिक्र बार बार मिलता है कि किन्नर हिमालय में बसने वाली एक जन जाति थी जिन्हें अपने स्वरूप से सीधे सीधे स्त्री या पुरुष में विभेद करना मुश्किल था। किन्नर नृत्य और गायन में प्रवीण होते थे। हिमालय के पवित्र शिखर पर रहने वाले शंकर भगवान की सेवा किन्नरों ने की थी । शायद इसी वज़ह से हिमालय की एक चोटी किन्नर कैलाश के नाम से जानी जाती है। कालांतर में बौद्ध धर्म जब भारत में पनपा तो थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ हिंदू धर्म की बहुत सारी पौराणिक मान्यताएँ उसमें भी समाहित हो गयीं। जहाँ पौराणिक हिंदू ग्रंथों में किन्नरों को अश्वमुखी मानव काया वाला समझा गया वहीं बौद्ध ग्रंथों में किन्नर विद्यमान रहा पर उसे एक नया रूप मानवमुखी पक्षी का मिल गया। थाई भाषा में किन्नर का नारी रूप किन्नारी हो गया। यानी शरीर का ऊपरी भाग स्त्री का और निचला एक पक्षी का तो अब आप समझ गए होंगे कि फुकेट फैंटासी के इस रेस्ट्राँ का नाम ऐसा क्यूँ है?
Main Gate मुख्य द्वार The Golden Kinnaree |
बाहरी साज सज्जा |
थाइलैंड के कई इलाकें ऐसे हैं जहाँ समुद्र का पार्श्वजल (Backwaters)
अंदरुनी गाँवों तक फैला हुआ है। इन इलाकों में तैरते बाजार (Floating
Markets) यानि नावों पर लगने वाले बाजार आम हैं। इसे ही दिखाने के लिए
गोल्डेन किन्नारी में भी खूबसूरत सी नाव रखी गई है।
Kamala Floating Market |