फान्ग नगा खाड़ी से जेम्स बांड द्वीप तक पहुँचते पहुँचते आसमान अपनी रंगत कई बार बदल चुका था। पहले गहरे बादल, हल्के बादलों में तब्दील हुए। फिर कुछ देर बाद वे भी इधर उधर छिटक कर आसमानी आभा का दर्शन करा गए। बादलों के इन फाँकों से निकलती सूर्य किरणों ने मैनग्रोव के इन जंगलों को जब अपना सुनहरा स्पर्श दिया, वे खिल उठे। जब हम जेम्स बांड द्वीप पहुँचे तो धूप छाँव का ये खेल जारी था।
जेटी पर उतरते ही दो आकृतियाँ आपका सहज ही ध्यान खींचती हैं। चूनापत्थर की चट्टानों के अपरदन से बनी ये गुफाएँ देखते ही एक रहस्यमय सा माहौल खड़ा कर देती हैं। इन गुफाओं में टूटते हुए पत्थरों के बीच जगह जगह छोटे बड़े पौधे उग आए हैं जो इन रूखी चट्टानों को कुछ रंगत बख्शते हैं। हमारे आने से पहले ही विदेशी पर्यटकों की बटालियन वहाँ पहुँची हुई थी। गुफा का ये रूप उन्हें भी आकर्षित कर रहा था। इन गुफाओं में ज्वार के समय पानी भर जाता है पर अक्टूबर के महीने में जब हम यहाँ पहुँचे तब पानी का स्तर उतना नहीं था।
इस द्वीप का प्रचलित नाम तो 1974 में प्रदर्शित जेम्स बांड की फिल्म The man with the Golden Gun की शूटिंग यहाँ होने के बाद जेम्स बांड आइलैंड पड़ा। पर उसके पहले ये द्वीप Khao Phing Kan के नाम से जाना जाता था। थाई भाषा में इस शब्द का मतलब है एक दूसरे पर झुकी हुई पहाड़ियाँ और सच ही द्वीप के बीचो बीच के इस दृश्य को देख इस नाम का मर्म समझ आ जाता है।
द्वीप के पश्चिमी भाग की चौड़ाई 130 मीटर है जबकि पूर्व की तरफ़ ये दो सौ मीटर से भी ज्यादा चौड़ा हो जाता है। दो भागों में बँटे इस द्वीप के ठीक बीच में छोटा सा समुद्र तट है जहाँ बाहर से आने वाली नौकाएँ पड़ाव लेती हैं।
पर जेम्स बांड द्वीप की सबसे प्रचारित छवि है को टापू (Ko Tapu) की। एक ज़माना था जब इस विचित्र से दिखने वाली चट्टान के एकदम पास नौका से पहुँचा जा सकता था। पर 1998 में फान्ग नगा नेशनल मैरीन पार्क बनने के बाद ये आवाजाही बंद कर दी गई। बहुत लोग Ko Tapu को ही James Bond Island समझते हैं जो कि एक गलत धारणा है। दरअसल को टापू इस द्वीप से नजदीक स्थित एक बेहद छोटा सा द्वीप (Islet) है जो एक बीस मीटर ऊँची चट्टान द्वारा निर्मित है।
थोड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद जब इसके करीब और पहुँचे तो कैमरे के जूम से इसकी ये शक्ल उभर कर आई। पानी के तल पर समुद्री लहरों के लगातार अपरदन से इसका व्यास घटकर मात्र चार मीटर रह गया है जबकि इसका ऊपरी सिरा आठ मीटर चौड़ा है।
वैसे जब भी कोई अजूबी चीज दिखे और उसके पीछे स्थानीय किवदंतियाँ ना हों ऐसा कैसे हो सकता है। को टापू की भी ऐसी कहानी है। कहते हैं कि एक मछुआरा इस इलाके से हमेशा मछली पकड़ता था। पर एक दिन उसकी तमाम कोशिशों के बावज़ूद उसे कोई भी मछली नहीं मिली। हाँ जाल के साथ एक काँटी जरूर निकल कर आई। मछुआरे ने वो काँटी वापस समुद्र में फेंक दी। पर अगली बार जाल के साथ फिर वो काँटी निकल कर आई। जब ऐसा कई बार हुआ तो तंग आकर मछुआरे ने अपनी तलवार निकाल ली और पूरी ताकत से काँटी पर प्रहार किया जिससे उसके दो टुकड़े हो गए। काँटी का जो हिस्सा समु्द्र में गिरा वो उसे चीरते हुए 'का टापू' की शक्ल में बाहर निकल गया।
वैसे जब भी कोई अजूबी चीज दिखे और उसके पीछे स्थानीय किवदंतियाँ ना हों ऐसा कैसे हो सकता है। को टापू की भी ऐसी कहानी है। कहते हैं कि एक मछुआरा इस इलाके से हमेशा मछली पकड़ता था। पर एक दिन उसकी तमाम कोशिशों के बावज़ूद उसे कोई भी मछली नहीं मिली। हाँ जाल के साथ एक काँटी जरूर निकल कर आई। मछुआरे ने वो काँटी वापस समुद्र में फेंक दी। पर अगली बार जाल के साथ फिर वो काँटी निकल कर आई। जब ऐसा कई बार हुआ तो तंग आकर मछुआरे ने अपनी तलवार निकाल ली और पूरी ताकत से काँटी पर प्रहार किया जिससे उसके दो टुकड़े हो गए। काँटी का जो हिस्सा समु्द्र में गिरा वो उसे चीरते हुए 'का टापू' की शक्ल में बाहर निकल गया।
वैसे वैज्ञानिक इस इलाके में विभीन्न रूपों में उभरी चट्टानों को धरती की
अंदरुनी परतों के टकराने और फिर उनके बाहर की ओर फूटने को इसका कारण मानते
हैं। को टापू के इस रूप को अपनी छवि के पार्श्व में रखकर हमारे समूह ने
भांति भांति मुद्राओं में तसवीरें खिंचाई। सामने ही पहाड़ी पर चढ़ने का
रास्ता था जो द्वीप के दूसरे समुद्र तट तक ले जाता था।
समुद्र तट छोटा सा था। पर ऐसा छायादार तट मेंने पहली बार देखा था। ऐसा प्रतीत होता था मानो अपरदित चट्टानों ने तट के एक हिस्से पर छतरी सी तान रखी हो। दोनों ओर पहाड़ियों से घिरा होने की वज़ह से लहरें तो नहीं आ रही थीं पर पानी एकदम स्वच्छ था। मन तो कर रहा था कि पानी में थोड़ी छपाछप की जाए पर पैंतालीस मिनट के अंदर वापस लौटने की समय सीमा वापस जाने को मजबूर कर रही थी। फिर भी पानी में हम सब चहलकदमी कर ही आए।
यहाँ पर रहने वाले लोग मूलतः मलय हैं और मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। पर्यटकों की भीड़ की वज़ह से यहाँ छोटी छोटी ढेर सारी दुकानें खड़ी हो गई हैं जो शंख, मोती, सीपी और प्लास्टिक से बने सामान बेचती हैं।।
हमार थाई गाइड दूर से हमें आते देख चालो चालो ( चलो चलो) की आवाज़ लगा रहा
था इसलिए इन दुकानों के आगे रुकना नामुमकिन था। कुल मिलाकर हमें लगा कि अगर हमें यहाँ एक घंटे का समय और मिला होता तो हम पानी में थोड़ी बहुत मस्ती कर सकते थे। पर फुकेत से आने जाने के समय के व्यर्थ जाने की वज़ह से टूर परिचालकों के लिए ऐसा करना संभव नहीं होता। वैसे चलते चलते आप क्या फिल्म का वो दृश्य नहीं देखना चाहेंगे जिसके चलते इस द्वीप का ये नाम पड़ा
फॉग नगा खाड़ी के हमारे अगले पड़ाव क्या थे जानिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में...
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