शनिवार, 27 दिसंबर 2014

जेम्स बांड द्वीप : क्या है इसकी खासियत ? James Bond Island : What is so peculiar about it !

फान्ग नगा खाड़ी से जेम्स बांड द्वीप तक पहुँचते पहुँचते आसमान अपनी रंगत कई बार बदल चुका था। पहले गहरे बादल, हल्के बादलों में तब्दील हुए। फिर कुछ देर बाद वे भी इधर उधर छिटक कर आसमानी आभा का दर्शन करा गए। बादलों के इन फाँकों से निकलती सूर्य किरणों ने मैनग्रोव के इन जंगलों को जब अपना सुनहरा स्पर्श दिया, वे खिल उठे। जब हम जेम्स बांड द्वीप पहुँचे तो धूप छाँव का ये खेल जारी था।


जेटी पर उतरते ही दो आकृतियाँ आपका सहज ही ध्यान खींचती हैं। चूनापत्थर की चट्टानों के अपरदन से बनी ये गुफाएँ देखते ही एक रहस्यमय सा माहौल खड़ा कर देती हैं। इन गुफाओं में टूटते हुए पत्थरों के बीच जगह जगह छोटे बड़े पौधे उग आए हैं जो इन रूखी चट्टानों को कुछ रंगत बख्शते हैं। हमारे आने से पहले ही विदेशी पर्यटकों की बटालियन वहाँ पहुँची हुई थी। गुफा का ये रूप उन्हें भी आकर्षित कर रहा था। इन गुफाओं में ज्वार के समय पानी भर जाता है  पर अक्टूबर के महीने में जब हम यहाँ पहुँचे तब पानी का स्तर उतना नहीं था।


इस द्वीप का प्रचलित नाम तो 1974 में प्रदर्शित जेम्स बांड की फिल्म The man with the Golden Gun की शूटिंग यहाँ होने के बाद जेम्स बांड आइलैंड पड़ा। पर उसके पहले ये द्वीप Khao Phing Kan के नाम से जाना जाता था। थाई भाषा में इस शब्द का मतलब है एक दूसरे पर झुकी हुई पहाड़ियाँ और सच ही द्वीप के बीचो बीच के इस दृश्य को देख इस नाम का मर्म समझ आ जाता है।



द्वीप के पश्चिमी भाग की चौड़ाई 130 मीटर है जबकि पूर्व की तरफ़ ये दो सौ मीटर से भी ज्यादा चौड़ा हो जाता है। दो भागों में बँटे इस द्वीप के ठीक बीच में छोटा सा समुद्र तट है जहाँ बाहर से आने वाली नौकाएँ पड़ाव लेती हैं।


पर जेम्स बांड द्वीप की सबसे प्रचारित छवि  है को टापू (Ko Tapu) की। एक ज़माना था जब इस विचित्र से दिखने वाली चट्टान के एकदम पास नौका से पहुँचा जा सकता था। पर 1998 में फान्ग नगा नेशनल मैरीन पार्क बनने के बाद ये आवाजाही बंद कर दी गई।  बहुत लोग Ko Tapu को ही James Bond Island समझते हैं जो कि एक गलत धारणा है। दरअसल को टापू इस द्वीप से नजदीक स्थित एक बेहद छोटा सा द्वीप (Islet) है जो एक बीस मीटर ऊँची चट्टान द्वारा निर्मित है।


थोड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद जब इसके करीब और पहुँचे तो कैमरे के जूम से इसकी ये शक्ल उभर कर आई। पानी के तल पर समुद्री लहरों के लगातार अपरदन से इसका व्यास घटकर मात्र चार मीटर रह गया है जबकि इसका ऊपरी सिरा आठ मीटर चौड़ा है।

वैसे जब भी कोई अजूबी चीज दिखे और उसके पीछे स्थानीय किवदंतियाँ ना हों ऐसा कैसे हो सकता है। को टापू की भी ऐसी कहानी है। कहते हैं कि एक मछुआरा इस इलाके से हमेशा मछली पकड़ता था। पर एक दिन उसकी तमाम कोशिशों के बावज़ूद उसे कोई भी मछली नहीं मिली। हाँ जाल के साथ एक काँटी जरूर निकल कर आई। मछुआरे ने वो काँटी वापस समुद्र में फेंक दी। पर अगली बार जाल के साथ फिर वो काँटी निकल कर आई। जब ऐसा कई बार हुआ तो तंग आकर मछुआरे ने अपनी तलवार निकाल ली और पूरी ताकत से काँटी पर प्रहार किया जिससे उसके दो टुकड़े हो गए। काँटी का जो हिस्सा समु्द्र में गिरा वो उसे चीरते हुए 'का टापू' की शक्ल में बाहर निकल गया।


वैसे वैज्ञानिक इस इलाके में विभीन्न रूपों में उभरी चट्टानों को धरती की अंदरुनी परतों के टकराने और फिर उनके बाहर की ओर फूटने को इसका कारण मानते हैं। को टापू के इस रूप को अपनी छवि के पार्श्व में रखकर हमारे समूह ने भांति भांति मुद्राओं में तसवीरें खिंचाई। सामने ही पहाड़ी पर चढ़ने का रास्ता था जो द्वीप के दूसरे समुद्र तट तक ले जाता था।


समुद्र तट छोटा सा था। पर ऐसा छायादार तट मेंने पहली बार देखा था। ऐसा प्रतीत होता था मानो अपरदित चट्टानों ने तट के एक हिस्से पर छतरी सी तान रखी हो। दोनों ओर पहाड़ियों से घिरा होने की वज़ह से लहरें तो नहीं आ रही थीं पर पानी एकदम स्वच्छ था। मन तो कर रहा था कि पानी में थोड़ी छपाछप की जाए पर पैंतालीस मिनट के अंदर वापस लौटने की समय सीमा वापस जाने को मजबूर कर रही थी। फिर भी पानी में हम सब चहलकदमी कर ही आए।


यहाँ पर रहने वाले लोग मूलतः मलय हैं और मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। पर्यटकों की भीड़ की वज़ह से यहाँ छोटी छोटी ढेर सारी दुकानें खड़ी हो गई हैं जो शंख, मोती, सीपी और प्लास्टिक से बने सामान बेचती हैं।।


हमार थाई गाइड दूर से हमें आते देख चालो चालो ( चलो चलो) की आवाज़ लगा रहा था इसलिए इन दुकानों के आगे रुकना नामुमकिन था। कुल मिलाकर हमें लगा कि अगर हमें यहाँ एक घंटे का समय और मिला होता तो हम पानी में थोड़ी बहुत मस्ती कर सकते थे। पर फुकेत से आने जाने के समय के व्यर्थ जाने की वज़ह से टूर परिचालकों के लिए ऐसा करना संभव नहीं होता। वैसे चलते चलते आप क्या फिल्म का वो दृश्य नहीं देखना चाहेंगे जिसके चलते इस द्वीप का ये नाम पड़ा


फॉग नगा खाड़ी के हमारे अगले पड़ाव क्या थे जानिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में...

थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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रविवार, 21 दिसंबर 2014

फांग नगा खाड़ी, थाइलैंड : समुद्र में उभरती अजीबोगरीब चट्टानीय आकृतियाँ ! Phang Nga Bay, Thailand

आप फुकेत जाएँ और फांग नगा खाड़ी के चक्कर ना लगाएँ ऐसा शायद ही होता है। थाइलैंड जाने के लिए जितने भी टूर पैकेज होते हैं उनमें से आधिकांश में इसकी यात्रा शामिल रहती है। दरअसल इस खाड़ी के रास्ते ही आप पर्यटकों में लोकप्रिय जेम्स बांड द्वीप तक  पहुँच सकते हैं। थाइलैंड टूर का प्रचार करने वाली कंपनियाँ अक़्सर इसी द्वीप के चित्र दिखाकर आपको फुकेत आने का न्योता देती हैं। पर मैं ये कहूँ कि जेम्स बांड आइलैंड से कहीं ज्यादा वहाँ तक जाने का रास्ता आपको आकर्षित करता है तो आप चौंक मत जाइएगा। तो आइए आज की इस पोस्ट में ले चलते हैं आपको इसी खाड़ी की यात्रा पर जहाँ हम गुफ़ा के अंदर के बौद्ध मंदिर Wat Suwankhuha को देखने के बाद पहुँचे थे। 

On route to Phang Nga Bay Jetty

हमारी मेटाडोर ने हमें खाड़ी के मुहाने पर उतार दिया था। नाव पर चढ़ने के पहले सभी याात्रियों को सुरक्षा जैकेट पहनना अनिवार्य था। हाल ही में चिल्का झील पर ऐसे ही नौका विहार में सुरक्षा जैकेट रहते हुए भी चालक ने उसे पहनने पर जोर नहीं दिया था और ना ही हम ख़ुद पहनने को उत्सुक थे। पर यहाँ उसे पहने बगैर नौका पर बैठने का सवाल ही नहीं था।

सामने एक सीढ़ी थी जो जेटी की तरफ़ ले जा रही थी। जेटी तक पहुँचने के लिए जो राह थी उसके दोनों ओर मैनग्रोव के जंगल थे। इस तरह के जंगल इससे पहले मैंने अंडमान और उड़ीसा के भितरकनिका में देखे थे। भितरकनिका नेशनल पार्क के यात्रा विवरण में आपको मैंने बताया था कि किस तरह दलदली व खारे पानी से भरी जगहों में ज़मीन के नीचे जाने के बजाए ऊपर हुई इन जड़ों के माध्यम से  ये पेड़ अपने अस्तित्व को बरक़रार रख पाते हैं।

Mangrove Forests at the entrance of Jetty
जेटी पर ढेर सारी मोटरबोट खड़ी थीं।   हमारे सहयात्रियों में कुछ दक्षिण भारतीय और बाकी विदेशी थे। भारत से फर्क बस इतना  कि नावों का अच्छे से रंग रोगन किया गया था और किनारे और ऊपर में बरसाती भी लगाई गई थी। हमने सोचा हो सकता है ऐसा बारिश के अचानक आ जाने के लिए किया गया हो। पर हमें शीघ्र ही उसका महत्त्व समझ आ गया जब बोट ने पूरी गति पकड़ ली।

Colourful Boats at Phang Nga Bay Jetty
जैसे ही हमारी नाव अपनी दिशा बदलती, पानी के छींटे किनारे बैठने वालों के मुखड़े तक को भिंगो डालते। ऐसे समय बगल में लगी बरसाती काम आती। शुरुआत में हमें खाड़ी के इस पतले सिरे के दोनों किनारों पर मैनग्रोव के घने जंगल दिखाई दिए। दरअसल चार सौ वर्ग किमी में फैले खाड़ी के इस इलाके की जैविक विविधता के संरक्षण के लिए इसे अस्सी के दशक में नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया था। 42 छोटे बड़े द्वीपों को समेटे इस खाड़ी में मैनग्रोव की 28 प्रजातियाँ मौज़ूद हैं।

Our boat ...

जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए खाड़ी का पाट चौड़ा होता गया और मैनग्रोव के जंगल हमसे दूर चले गए। दूसरी ओर मटमैला रंग का पानी भी अपना रंग बदलकर माणिक पन्ने के रंग जैसा हो गया। हम इन बदलते दृश्यों को देखने में मग्न थे कि बीच समुद्र में चट्टानी आकृतियाँ अवतरित होनी शुरु हुई। फान्ग नगा खाड़ी की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि ये अपनी गोद में चूनापत्थर की चट्टानों से बनी अजीबोगरीब आकृतियों को समाए हुए है।

A unique combination : Mangrove Forests with Hill !

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

डगर थाइलैंड की भाग 8 : आइए देखें प्राकृतिक गुफा में बने इस बौद्ध मंदिर को : Wat Suwankhuha - A cave temple !

फुकेट प्रवास के तीसरे दिन हमारा कार्यक्रम था फांग नगा खाड़ी के आस पास के इलाकों को देखने का। हम लोग फुकेट ( फुकेत ) के दक्षिण पश्चिम इलाके में थे और ये खाड़ी फुकेत के उत्तर पूर्वी सिरे पर स्थित है यानि करीब पचास किमी सड़क और पन्द्रह किमी समुद्र यात्रा तक हमें अपने गन्तव्य तक पहुँचना था। इस यात्रा के तीन मुख्य पड़ाव थे। बौद्ध गुफा मंदिर, फिर फांग नगा खाड़ी होते हुए मशहूर जेम्स बांड द्वीप और फिर वहाँ से खाड़ी के बीच बनी एक बस्ती में।

फुकेत शहर के बाहरी इलाकों में सबसे खूबसूरत दृश्य तब उभरता है जब आप पंक्तिबद्ध लगाए गए रबड़ के बागानों के बगल से गुजरते हैं। करीब एक घंटे की यात्रा के बाद हमारी गाड़ी एक पहाड़ी के सामने रुकी। पता चला कि इसी के अंदर वो मंदिर है जिसमें बुद्ध की सिर उठाकर लेटी मुद्रा में बनी सुनहरी मूर्ति है। 

Reclining Buddha Statue at Wat Suwankhuha

भारतीय मंदिरों की तरह ही इस मंदिर में बंदरों की पूरी फौज़ मौजूद थी और यहाँ भी लोग बंदर को खिलाने के लिए वहाँ खास तौर पर इसी उद्देश्य से बिक रहे पैकेट खरीद रहे थे।


लेटे हुए सुनहरे बुद्ध की प्रतिमा दूर से बेहद भव्य लगती है। प्रतिमा के सामने बौद्ध पुजारियों की छोटी छोटी मूर्ति बनाई गई है। मुख्य प्रतिमा केी बगल की सीढ़ियाँ एक अन्य छोटे मंदिर को जाती हैं जहाँ नियमित पूजा अर्चना होती है।


करीब बीस मीटर लंबी और पन्द्रह मीटर चौड़ी मुख्य गुफा से एक रास्ता ऊपर की ओर जाता है।


गुफा के विभिन्न हिस्सों में बुद्ध की छोटी बड़ी अन्य प्रतिमाएँ भी हैं।

 
सीढ़ी से ऊपर पहुँचते ही बौद्ध संत की इस छवि से सामना हो जाता है।


गुफा के इस हिस्से में एक छोटा सी स्तूपनुमा आकृति दिखती है।


मंदिर का हिस्सा यही खत्म हो जाता है। चूँकि इस इलाके की ज्यादातर चट्टानें चूनापत्थर की हैं यहाँ पर अंडमान की गुफाओं की तरह ही stalactite and stalagmite की संरचना देखने को मिलती है


पानी की उपस्थिति में ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर बढ़ती ये चट्टानें तरह तरह के अद्भुत रूपों में यहाँ दिखाई पड़ती हैं। गुफा के इन हिस्सों में चमगादड़ों का भी डेरा है। साथ ही रिसते पानी की वजह से हल्की सी सीलन भी रहती है।

 
वैसे गुफा में रोशनी की पुख्ता व्यवस्था है। बुद्ध भगवान से इस मुलाकात के कुछ ही देर बाद जा पहुँचे फांग नगा खाड़ी के मुहाने तक। यहाँ से आगे हमें जेम्स बांड आइलैंड तक एक नौका में जाना था। कैसी रहा हमारा अनुभव जानिएगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में..


थाइलैंड की इस श्रंखला में अब तक
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