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रविवार, 5 मई 2013

मोज़ीको : जहाँ खाया हमने जापान में नॉन !(Eating Naan in Japan !)

जापान यात्रा से जुड़ी पिछली पोस्ट में मैंने जापानी लड़कियों के समूह की खिलखिलाती तसवीर दिखाकर ये पूछा था कि आख़िर ये हँस क्यूँ रही हैं? तो आइए आज जानते हैं इस राज को। दरअसल हमारे गाँव कस्बों में जिस तरह मदारी बंदर का नाच दिखाकर भीड़ जुटाया करते थे, वही काम जापान में सड़कों पर जादू दिखाने वाले जादूगर करते हैं। और हैरत की बात तो ये है कि इस विशु्द्ध मनोरंजन के लिए ये 'सड़किया' जादूगर कोई पैसे नहीं लेते।  


मोज़ीको रेट्रो टॉवर से हमारा समूह उतरा तो था भारतीय रेस्ट्राँ की तलाश में पर अचानक ही सबकी दिलचस्पी जादू के इस खेल में हो गई। इससे पहले कि जादूगर अपने स्टील ब्रीफकेस से जादू का नया खेल शुरु करता आसमान से बारिश की बूँदों का खेल शुरु हो गया।

जहाँ ये जादू का खेल चल रहा था उसके ठीक पीछे हल्के नीले रंग का एक पुल है जिसे यहाँ ब्लू मोज़ी (Blue Moji) के नाम से जाना जाता है। किसी मोटरबोट के आने पर ये पुल ऊपर की ओर उठ जाता है। बारिश धीरे धीरे प्रचंड रूप ले रही थी। गहरी काली घटाएँ और तड़तड़ाती बारिश की बूँदें ..आख़िरकार जापानी मौसमविदों की भविष्यवाणी सच ही साबित हुई थी। अब नौ लोग और तीन छतरियाँ लेकर हम भाग ही रहे थे कि अचानक मोज़ी का ये पुल ऊपर उठा। पार्श्व की कालिमा में इसका ये हल्का नीला रूप बेहद सुंदर लग रहा था..   बादलों के बीच मोजी के उठते हुए पुल की छवि शायद हमेशा हमारे स्मृतिपटल पर रहे।


रविवार, 14 अप्रैल 2013

मेरी जापान यात्रा : आइए चलें खूबसूरत मोज़ीको रेट्रो सिटी (Mojiko Retro City) की सैर पर...

मेरी जापान यात्रा  से जुड़ी पिछली प्रविष्टि में आपने पढ़ा कि किस तरह हमने याहता (Yahata) से मोज़ीको (Mojiko) तक जापान में किया गया ट्रेन से पहला सफ़र पूरा किया और वहाँ से समुद्र के किनारे चलने वाली पर्यटक ट्रेन से केनमोन पुल (Kanmon Bridge) के पास पहुँचे जो जापान के द्वीप होंशू को क्यूशू से जोड़ता है। वापसी का रास्ता पैदल तय करना था। केनमोन सेतु के नीचे समुद्र के किनारे किनारे एक रास्ता बना दिख रहा था। सौ मीटर चलने के बाद वो रास्ता बंद हो गया तो हम ऊपर चढ़कर पास वाली रोड पर चले आए।

ये इलाका मेराकी पार्क (Meraki Park) का इलाका था जिसका चक्कर लगाने के लिए पाँच सौ रुपये प्रति व्यक्ति का किराया लगता है। ख़ैर हम लोग अंदाज़ से उसी मार्ग पर बढ़ गए। मेराकी मंदिर को पार करने के बाद हमें वो रेलवे लाइन दिखाई दी जिस से हम वहाँ आए थे। किसी ने सुझाव दिया कि अगर उस रेलवे लाइन के साथ चला जाए तो हम रेट्रो टॉवर पहुँच जाएँगे। अब इस सुझाव पर किसी स्थानीय व्यक्ति से मशवरा लेने का तो प्रश्न ही नहीं था। अव्वल तो उस भरी दोपहरी में तेज भागती इक्का दुक्का कारों के आलावा कोई इंसान नज़र नहीं आ रहा था और आता भी तो कौन सा हम लोग उसको अपनी परेशानी का सबब समझा पाते।

हमारे समूह में कुछ लोग रेलवे पटरी को देख कर इतने उत्साहित हो गए कि कुछ ही क्षणों में वो कुलाँचे भरते उस दिशा की ओर बढ़ गए। पर वे ये भूल गए कि ये जापान है,भारत नही जहाँ साथ चलती पगडंडियों के बिना किसी रेलवे ट्रैक की कल्पना करना भी मुश्किल है। तीन चौथाई रास्ता तय करने के बाद उन्हें दिखा कि एक बंद फाटक उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। वो समूह निराश हो कर वहीं से दूसरी ओर मुड़ गया और फिर आँखों से ओझल हो गया। 

थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद हमने फैसला किया कि लंबा ही सही हमें सड़क के साथ ही चलना चाहिए। शनिवार का दिन होने के बावज़ूद गर्मी की वज़ह से सड़कें भी बिल्कुल सुनसान थीं। पौन घंटे चलने के बाद भी हम मानचित्र से रास्ते का मिलान नहीं कर पा रहे थे। साथ वालों का भी पता ना था सो इस बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर के बाहर कुछ पल सुस्ताने के लिए रुके। जापान में हर छोटी बड़ी दुकान के सामने ग्राहकों को आकर्षित करने के पतले लंबे पोस्टर लगे होते हैं। पतले इसलिए कि इनमें हिन्दी व अंग्रेजी की तरह बाएँ से दाएँ ना लिखकर ऊपर से नीचे की ओर लिखा होता है। चित्र में बायीं तरफ पोस्टर तो आपको दिख जाएँगे पर ग्राहक.........! जापान में हमारे विस्मय का विषय ही यही होता था कि आख़िर इतनी बड़ी बड़ी दुकानें चलती कैसे हैं.:) ?


पन्द्रह मिनट और चलने के बाद हमारी इस एक घंटे लंबी  पदयात्रा का समापन हुआ और हम मोज़ीको की उस
इकतिस मंजिला, 103 मीटर ऊँची इमारत के सामने खड़े थे जिससे मोज़ीको के प्राचीन और नए हिस्सों का शानदार दृश्य दिखाई देता है। इसका डिजाइन आर्किटेक्ट किशो कुरोकावा (Kisho Kurokawa) ने किया है।

पर समूह के पाँच लोग अभी भी नदारद थे। दस मिनट बाद एक टैक्सी से वो भी पदार्पित हुए। पता चला गर्मी से बेहाल हो कर एक बॉर में गला तर करने बैठ गए थे। सबके आते ही लिफ्ट से हम टॉवर के ऊपरी सिरे की ओर चल पड़े।

टॉवर की छत से दिखता दृश्य बेहद रमणीक था। 270 डिग्री तक के कोण से दिखते दृश्य में केनमोन सेतु से लेकर मोज़ीको रेट्रो सिटी और दूसरी ओर छोटी बड़ी पहाड़ियों के नीचे फैलता आज का मोज़ी वार्ड दृष्टिगोचर हो रहा था।



बुधवार, 10 अप्रैल 2013

मेरी जापान यात्रा : ट्रेन का वो पहला सफ़र और मोज़ीको (Mojiko)

कीटाक्यूशू शहर में आए हमें कुछ ही दिन हुए था। जून का आख़िरी हफ्ता था। जापान के इस दक्षिण पश्चिमी भूभाग में बारिश का मौसम शुरु हो चुका था। तापमान तीस से पैंतिस के बीच डोल रहा था। जैसे जैसे पहला सप्ताहांत पास आ रहा था हमारा समूह इसी उधेड़बुन में था कि आख़िर जापान दर्शन कहाँ से शुरु किया जाए? हमारी ये मुश्किल तब आसान हुई जब एक ट्रेनिंग इंसट्रक्टर (Training Instructor) ने अपनी कक्षा में आसपास की पसंदीदा जगहों में मोज़ीको का नाम लिया। दरअसल मोज़ी को (Mojiko) या जापानी में मोजी़ कू (Moji Ku) का मतलब मोज़ी का बंदरगाह है। उन्नीसवीं सदी की आख़िर (1889) में ये जापान के व्यस्ततम बंदरगाहों में एक था। पर आज इसे बंदरगाह से ज्यादा मोज़ीको रेट्रो टाउन (Mojiko Retro Town) के रूप में  जाना जाता है क्यूँकि जापानियों ने  यहाँ लगभग सौ साल पुरानी इमारतें सुरक्षित बचा रखी है और जापान के लिए ये एक बड़ी बात है। द्वितीय विश्व युद्ध की तबाही के बाद इस इलाके में गिनती की पुरानी इमारतें रह गयी हैं। 

शनिवार के दिन हमें हिदायत दी गई कि मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार आज मोज़ीको सहित पूरे कीटाक्यूशू (Kitakyushu) में भारी बारिश हो सकती है। मैंने सोचा कि आख़िर ये मौसम विज्ञानी अपने भारतीय समकक्षों से अलग थोड़े ही ना होंगे। सो हो सकता है आज बारिश ना ही हो। मोज़ीको (Mojiko) जाने के लिए हमें पास के याहाता (Yahata) स्टेशन से ट्रेन पकड़नी थी। जापान से ट्रेन में सफ़र करने का ये पहला अनुभव था। जापानी भाषा की अभी तक मात्र एक क्लास हुई थी सो भाषा का भी लोचा था। वैसे तो सभी स्टेशनों पर अधिकांश टिकट स्वचालित मशीनों से खरीदे जाते हैं पर हमें लगा कि स्टेशन पर टिकट संग्राहक से सीधे टिकट खरीदने का विकल्प बेहतर रहेगा।


स्टेशन कार्यालय में दो युवक बैठे थे । उम्र होगी यही कोई बीस के आस पास। आठ  लोगों की विदेशी फौज़ को अपनी ओर आते देख वे थोड़ा सकपकाए। अपनी भारतीय बुद्धि का प्रयोग कर हम सामूहिक टिकट की छूट के बारे में पूछना चाहते थे। पर पाँच मिनट के परिश्रम के बाद हम उन्हें सिर्फ गन्तव्य स्थान का नाम बताने में ही सफल हो सके। वापसी में जब बिना कुछ बोले छूट मिली तो सब बड़े प्रसन्न हुए। ट्रेन के टिकटों का जब आप जापानी मूल्य देखेंगे तो आपको लगेगा कि इतनी दूरी के लिए पैदल ही चल लेते तो ही बेहतर होता। भारत में जहाँ दस रुपये का टिकट लगता होगा वो जापान में 150 येन से कम में नहीं मिलेगा।

दो मिनट के इंतज़ार के बाद हम ट्रेन के अंदर थे। भीड़ ज्यादा नहीं थी। पौन घंटे के सफ़र के बाद हम मोज़ीको पहुँच गये। ये इस लाइन का वैसे भी आखिरी स्टेशन है सो पूरी ट्रेन ही यहाँ खाली हो गई।