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मंगलवार, 4 सितंबर 2018

मानसूनी झारखंड : देखिए खूबसूरती पतरातू घाटी की In pictures : Patratu Valley

राँची को बाहर से आने वाले अक्सर झरनों के शहर के रूप में ही जानते रहे हैं। हुँडरू, दसम, जोन्हा, सीता और हिरणी के जलप्रपात राँची से अलग अलग दिशा में बिखरे हैं जहाँ महज एक से दो घंटे के बीच पहुँचा जा सकता है। एक ज़माना था जब राँची में दोपहर के बाद लगभग हर दिन बारिश हो जाया करती थी और तब इन झरनों में सालों भर यथेष्ट बहाव रहा करता था। आज की तारीख़ में बारिश के मौसम और उसके तीन चार महीनों बाद तक ही इन झरनों की रौनक बनी रहती है।

पतरातू घाटी
यही वजह है कि आजकल झरनों से ज्यादा लोग पतरातू घाटी की हरी भरी वादियों में विचरना  पसंद करते हैं। राँची से पतरातू घाटी की दूरी मात्र पैंतीस किमी है और यहाँ जाने का रास्ता भी बेहद शानदार है। आप तो जानते ही हैं कि हर साल मैं अपने मित्रों के साथ मानसून के मौसम में झारखंड के अंदरुनी इलाकों में सफ़र के लिए एक बार जरूर निकलता हूँ। पिछली बार हमारा गुमला, नेतरहाट और लोध जलप्रपात का सफ़र बेहद खुशगवार बीता था। 

इस बार मानसून का आनंद लेने के लिए हम लोगों ने पारसनाथ की पहाड़ियों को चुना। अगस्त के आख़िरी सप्ताहांत में शनिवार की सुबह जब हम घर से निकले तो हमारा इरादा राँची हजारीबाग रोड से पहले हजारीबाग पहुँचने का था पर घर से दो तीन किमी आगे निकलने के साथ योजना ये बनी कि क्यूँ ना इस खूबसूरत सुबह को पतरातू की हरी भरी वादियों में गुजारा जाए।

राँची से पतरातू जाने वाला रास्ता यहाँ के मानसिक रोगियों के अस्पताल, रिनपास, काँके की बगल से गुजरता है।
पर इससे पहले की आप पतरातू की इस रमणीक घाटी के दृश्यों को देखें ये बता दूँ कि इस घाटी पर जब ये सड़क नहीं बनी थी तो लोग रामगढ़ हो कर पतरातू आते जाते थे। अस्सी के दशक में रूस की मदद से यहाँ एक ताप विद्युत संयंत्र लगाया गया था। इस संयंत्र और रामगढ़ शहर को पानी पहुँचाने के लिए यहाँ एक डैम का भी निर्माण हुआ था जहाँ पहले मैं आपको ले जा चुका हूँ। आज यहाँ जिंदल की भी एक स्टील मिल है।

रास्ते में उपलों के ढेर

यहीं से शुरु होती हैं पतरातू की पिठौरिया घाटी

मानसून के मौसम में यहाँ की हरी भरी वादियों के बीच खाली खाली सड़क के बीच से गुजरने का लुत्फ़ ही और है।

 पतरातू घाटी को चीरती आड़ी तिरछी सर्पीली सड़कें 

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

मानसूनी हरियाली में नहाया हुआ झारखंड : ये वादियाँ, ये फ़िज़ायें बुला रही हैं तुम्हें ! Lush Green Jharkhand !

मुझे बचपन से ही रेल में सफ़र करना पसंद रहा है। मज़ाल है कि रेल के सफ़र में मुझसे कोई खिड़की की जगह छीन ले। आजकल तो रेलवे की समय सारणी में मुख्यतः बड़े स्टेशन का जिक्र रहता है पर उस वक़्त महीन छपाई में बीच वाले छोटे छोटे उन सभी स्थानों का उल्लेख रहता था। हर यात्रा के पहले मैं उस टाइम टेबल का उसी तरह परायण करता जैसे कि परीक्षा के पहले लोग किताबों को बाँचते हुए करते हैं। 

रेल के निकलते धुएँ के साथ पटरी पर दौड़ती ट्रेन, सामने से निकलते हरे भरे खेत, छोटे बड़े घर, काम करते लोग इन सबको अपलक निहारते हुए अगले स्टेशन या आने वाली नदी की प्रतीक्षा करना मेरी आदत में शुमार हो गया था। डिब्बे में कहीं भी कोई पूछता कि अगला स्टेशन कौन सा होगा तो छूटते ही मेरा जवाब तैयार होता और मुझे ये करते बेहद संतोष का अनुभव होता।

ये नज़ारा है राँची से बस बीस किमी की दूरी पर स्थित कस्बे टाटीसिलवे के बाहर का (Near Tatisilwai)

ट्रेन के वातानुकूल डिब्बों में सफ़र करते हुए  ना तो स्लीपर की वो खिड़की रही जिसकी छड़ों के बीच चेहरे को घुसाकर पटरियों के साथ कदम ताल मिला सकूँ और ना ही यात्रियों के  अनिर्दिष्ट सवालों को जवाब देने की बाल सुलभ तत्परता। पर रेल की खिड़कियों का मोह उसी तरह आज भी बरक़रार है। कार्यालय के कामों से जाऊँ या परिवार के साथ खिड़की पर कब्जा आज भी मेरा ही होता है।

मेरा मानना है किसी स्थान के लिए किए गए सफ़र जितनी ही महत्त्वपूर्ण वो डगर होती है जिससे आप अपनी मंजिल तक पहुँचते हैं। ऐसी ही एक डगर को आँखों से नापने का मौका मुझे विश्व पर्यटन दिवस पर मिला। ये सफ़र था राँची से आसनसोल तक का। झारखंड एक ऐसा प्रदेश है जहाँ मानसून और उसके बाद की हरियाली देखते ही बनती है। एक बार आप शहर की चौहद्दी से निकले तो फिर दूर दूर तक जिधर भी आपकी नज़रें जाएँगी हरी भरी पहाड़ियाँ और उनकी तलहटी में फैले धान के खेत आपका मन मोह लेंगे।  इन दिनों यही रंग रूप है झारखंड से सटे बंगाल और ओड़ीसा का भी। ईंट पत्थरों की दुनिया से बाहर निकलते ही जब ऐसे दृश्य दिखते हैं तो आँखें तृप्त हो जाती हैं। तो चलें ऐसी ही एक यात्रा पर जो ट्रेन की खिड़कियों से गुजरती हुई आप तक पहुँची है..

हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन, के जिस पे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
सारे रास्ते धान के खेतों के साथ धूप की आँख मिंचौनी चलती रही। ज्यूँ ही बदरा छाते हैं धान की बालियाँ गहरी हरी हो जाती हैं और धूप के आते ही धानी रंग में रँग जाती हैं।
नीलगगन में उड़ते बादल आ आ आ, धूप में जलता खेत हमारा कर दे तू छाया
 

बताइए कितना अच्छा लगेगा ना कि इस धान के खेत के मध्य में खड़े उस पेर के नीचे एक पूरा दिन बिता दिया जाए..



 झारखंड बंगाल की सीमा पर झालिदा की पहाड़ियाँ


बलखाती बेलें, मस्ती में खेले, पेड़ों से मिलके गले नीले गगन के तले.. ..धरती का प्यार पले
दामोदर नदी, चंद्रपुरा के नजदीक  Near Chandrapura, Bokaro
कभी बंगाल का शोक कहीं जाने वाली दामोदर अब जगह जगह थाम ली गई है। सारा साल अपनी चट्टानी पाटों के बीच सिकुड़ती हुई बहती है। हाँ जब बारिश आती है तो इसका मन भी मचल मचल उठता है उमड़ने को।

जमुनिया नदी, चंद्रपुरा और जमुनिया टाँड़ के बीच

कहीं धूप कहीं छाँव आज पिया मोरे गाँव

किता घाटी : सोचिए गर ये तार ना होते.. Kita Valley near Silli

गंगाघाट से सटे जंगल  Forest near Gangaghat, Ranchi

इन  रेशमी राहों में इक राह तो वो होगी तुम तक जो पहुँचती है इस मोड़ से जाती है 
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

लीजिए ओड़िशा झारखंड की इस बरसाती रुत में मानसूनी यात्रा का आनंद ! Magic of Monsoons in Odisha and Jharkhand

मानसून के समय में भारत के खेत खलिहानों की हरियाली देखते ही बनती है। यही  वो वक़्त होता है जब ग्रामीण अपने पूरे कुनबे के साथ धान की रोपाई में जुटे दिखते हैं। चाहे वो झारखंड हो या बंगाल, उड़ीसा हो या छत्तीसगढ़, भारत के इन पूर्वी राज्य में कहीं भी निकल जाइए बादल, पानी, धान और हरियाली इन का समागम कुछ इस तरह होता है कि तन मन हरिया उठता है। पिछले हफ्ते ट्रेन से राउरकेला से राँची आते हुए ऐसे ही कुछ बेहद मोहक दृश्य आँखों के सामने से गुजरे। इनमें से कुछ को अपने कैमरे में क़ैद कर पाया। तो आइए आज देखते हैं इस मानसूनी यात्रा की हरी भरी काव्यात्मक झांकी..



आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है, मुझ में
और फिर मानना पड़ता है के ख़ुदा है मुझ में
अब आप पूछेंगे कि यहाँ आग कहाँ है जनाब..तो मेरा जवाब तो यही होगा कि ऐसे सुहाने मौसम में अकेले सफ़र करते हुए आग तो दिल में जल रही होगी ना बाकी सब तो फोटू में है ही :) :)

शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

झारखंड जहाँ हरियाली सर्वत्र पसरी है The Green Jharkhand : A train journey from Ranchi to Bokaro !

वैसे तो आज आपको दशनोक के चूहों के मंदिर में घुमाने के बाद आपको बीकानेर का शानदार किला दिखाना था। पर पिछले हफ्ते शताब्दी एक्सप्रेस से राँची से दुर्गापुर जाते हुए प्रकृति ने इतने हरे भरे लमहे दिए कि उनको आप तक पहुँचाए बगैर मन ही नहीं मान रहा था। राजधानी राँची, नामकुम और टाटीसिलवे से निकलने के बाद झारखंड का रमणीक रूप आँखों के सामने आ जाता है। ऊँचाई पर चलती ट्रेन से टाटीसिलवे और गंगाघाट के बीच की घाटी को देखना मैं अपनी किसी यात्रा में नहीं भूलता। हर बार यही सोचता हूँ कि काश वहाँ कोई हॉल्ट होता तो कुछ पल तो उन सुरम्य वादियों को अपलक निहार पाता।

गंगाघाट के आगे जंगल रेलवे की पटरियों के एक ओर सट के चलते हैं तो दूसरी ओर विरल होते जंगलों के बीच छोटे छोटे खेत खलिहान दिख जाते हैं। पर नयनों को असली तृप्ति तब मिलती है जब गाड़ी गौतमधारा से किता की ओर सरपट भागती है। मानसून के इस मौसम में धान के लहलहाते खेतों के पीछे की पहाड़ियाँ भी हरे रंग से सराबोर हो जाती हैं. विश्वास नहीं आता तो खुद ही देख लीजिए


पर हुज़ूर दुनिया आप पर ध्यान तभी देती है जब आप लीक से हट कर कुछ करें। अब किता स्टेशन पर खड़े इस अकेले पेड़ को ही देखिए। सारी धरती जब हरियाली की चादर ओढ़े है तो ये महाशय अपने को पत्तीविहीन कर किस दर्प के साथ सीना ताने खड़े हैं। और सच ध्यान इनकी खूबसूरती से हट ही कहाँ पा रहा है?


सोमवार, 11 अगस्त 2014

आइए देखें झारखंड की मनमोहक बरसाती छटा... Lovely Jharkhand in rainy season

सावन तो आपने आख़िरी चरण में है पर झारखंड में मूसलाधार बारिश का दौर पिछले हफ्ते से शुरु हुआ है। झारखंड तो वैसे ही जंगलों से परिपूर्ण है पर एक बार बरसाती घटाओ का साया इसके ऊपर हो जाए फिर तो इसकी हरियाली देखते ही बनती है। पिछले हफ्ते दिल्ली से राँची आते वक़्त विमान से झारखंड की हरी भरी धरती देखने का सुख प्राप्त हुआ तो मैंने सोचा क्यूँ ना प्रकृति की इस अद्भुत झांकी को आपके साथ साझा करूँ

किसी और मौसम में झारखंड की पहाड़ी नदियाँ के बगल से अगर गुजरे तो सूखी चट्टानों और बालू के ढेर में महीन सी बहती धारा ही दिखेगी पर बरसात में तो इन नदियों की मस्तानी चाल देखते ही बनती है। पठारी इलाका होने की वजह से नदी के रास्ते आने वाली ढलानों पर ये छोटे छोटे झरनों के माध्यम से उफन उठती हैं।

वैसे नदियाँ क्या  खेत, जंगल और उनके बीच बसे खपरैल घरों वाले छोटे छोटे गाँव सब इस मूसलाधार बारिश  में नहा उठे हैं।


सोचिए तो इस छोटी सी पहाड़ी की चोटी पर बैठ कर रूई के फाहों समान इन बादलों के बीच सर्वत्र फैली इस हरियाली को जज़्ब करना कितना सुकूनदेह होगा ?


झार का मतलब ही होता है वन... इन घने जंगलों का गहरा हरा रंग और बरसात में धान का धानी एक ऐसा रंगों का समायोजन प्रस्तुत करते हैं कि देख के आँखें तृप्त हो जाती हैं।


छोटी छोटी पहाड़ियों की ढलानों पर उगे इन जंगलों के बीच जहाँ भी समतल भूमि मिलती है किसान उसी में अपना गुजारा करते हैं।


ये है राँची की बाहरी रिंग रोड.. सोच रहा हूँ अगली छुट्टी में इसका भी एक चक्कर मार लूँ। क्या ख्याल है आपका?

वैसे ऊपर से मुझे ये समझ नहीं आया कि इतनी समरूपता से लगाए गए ये पेड़ कौन से हैं ?


कुछ जुते खेत,  हरी भरी धरती और उसमें समाया एक छोटा सा गाँव..


धान के खेतों को कैमरे में क़ैद करना मेरा प्रिय शगल रहा है। बुआई से लेकर कटाई तक ये खेत इतने अलग अलग रंगों में सामने आते हैं कि किसी भी प्रकृति प्रेमी का मन हर्षित हो उठे। अब देखिए इस साल धान की बुआई अभी शुरु ही ही हुई है। पानी भरे इन खेतों में पौधों की कोपलें बस फूटना ही चाह रही हैं। पर पानी से भरे ये छोटे छोटे टेढ़े मेढ़े खेत अपने इस बेढ़ब रूप में भी वैसे ही लग रहे हैं जैसे गाँव की कोई अल्हड़ सुंदरी..


अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

बुधवार, 19 सितंबर 2012

जादू मानसून का : जब छत्तीसगढ़ ने ओढ़ी धानी चुनरिया ! Chhatisgath : Monsoon Magic !

जापान की हरियाली दिखाने के बाद वैसे तो मेरा इरादा आपको वहाँ के कंक्रीट जंगल दिखाने का था पर पिछले हफ्ते भिलाई के दौरे में कुछ ऐसे कमाल के दृश्य देखने को मिले कि वो कहते हैं ना कि "जी हरिया गया"। जिन दृश्यों को मैंने चलती ट्रेन से अपने मोबाइल कैमरे में क़ैद किया वो रेल से सफ़र के कुछ यादगार लमहों में से रहेंगे।

वैसे सामान्य व स्लीपर क्लॉस में यात्रा करते करते मेरा पूरा बचपन और छात्र जीवन बीता पर कार्यालय और पारिवारिक यात्राओं की वज़ह से विगत कई वर्षों से इन दर्जों में यात्रा ना के बराबर हो गई थी। पर भिलाई से राँची आते वक़्त जब किसी भी वातानुकूल दर्जे में आरक्षण नहीं मिला तो मैंने तत्काल की सुविधा को त्यागते हुए स्लीपर में आरक्षण करवा लिया। वैसे भी बचपन से खिड़की के बगल में बैठ कर चेहरे से टकराती तेज़ हवा के बीच खेत खलिहानों, नदी नालों, गाँवों कस्बों और छोटे बड़े स्टेशनों को गुजरता देखना मेरा प्रिय शगल रहता था। आज इतने दशकों बाद भी अपने इस खिड़की प्रेम से खुद को मुक्त नहीं कर पाया। भरी दोपहरी में जब हमारी ट्रेन दुर्ग स्टेशन पर पहुँची तो हल्की हल्की बूँदा बाँदी ज़ारी थी। साइड अपर बर्थ होने से खिड़की पर तब तक मेरी दावेदारी बनती थी जब तक रात ना हो जाए।



भिलाई से रायपुर होती हुई जैसे ही ट्रेन बिलासपुर की ओर बढ़ी बारिश में भीगे छत्तीसगढ़ के हरे भरे नज़ारों को देखकर सच कहूँ तो मन तृप्त हो गया। मानसून के समय चित्र लेने में सबसे ज्यादा आनंद तब आता है जब हरे भरे धान के खेतों के ऊपर काले मेघों का साया ऍसा हो कि उसके बीच से सूरज की रोशनी छन छन कर हरी भरी वनस्पति पर पड़ रही हो। यक़ीन मानिए जब ये तीनों बातें साथ होती हैं तो मानसूनी चित्र , चित्र नहीं रह जाते बल्कि मानसूनी मैजिक (Monsoon Magic) हो जाते हैं। तो चलिए जनाब आपको ले चलते हैं मानसून के इस जादुई तिलिस्मी संसार में । ज़रा देखूँ तो आप इसके जादू से सम्मोहित होने से कैसे बच पाते हैं ?