पंडाल परिक्रमा की अंतिम कड़ी में आपको दिखाते हैं राँची के अन्य उल्लेखनीय पंडालों की झलकियाँ। रेलवे स्टेशन, रातू रोड, ओसीसी व बकरी बाजार के बाद जिन पंडालों ने ध्यान खींचे वो थे बाँधगाड़ी, काँटाटोली व हरमू के पंडाल।
बाँधगाड़ी में दुर्गा जी के आसपास कहीं भी महिसासुर की छाया तक नहीं थी। सारे शस्त्र माता के हाथों में ना होकर चरणों में दिखे। माता के मंडप में सर्व धर्म समभाव दिखाने के लिए विभिन्न धर्मों के प्रतीक चिन्हों का प्रयोग किया गया था।
बाँधगाड़ी में दुर्गा जी के आसपास कहीं भी महिसासुर की छाया तक नहीं थी। सारे शस्त्र माता के हाथों में ना होकर चरणों में दिखे। माता के मंडप में सर्व धर्म समभाव दिखाने के लिए विभिन्न धर्मों के प्रतीक चिन्हों का प्रयोग किया गया था।
बाँधगाड़ी के पंडाल में शस्त्र विहीन दुर्गा शांति का संदेश देती हुई |
कांटाटोली में माँ दुर्गा की प्रतिमा |
वहीं काँटाटोली के दुर्गापूजा पंडाल में चित्रकला के माध्यम से रामायण की कथा का निरूपण किया गया था। पंडाल का ये स्वरूप छोटे बड़े बच्चों को काफी आकर्षित कर रहा था।
आज जब एक अभिनेत्री ये नहीं बता पाती हैं कि संजीवनी पर्वत पर हनुमान किसके लिए बूटी लाने गए थे, तो देश में उसे मुद्दा बना लिया जाता है। हमलोग छोटे थे तो ये कहानियाँ कामिक्स और टीवी सीरियल के माध्यम से हमारी स्मृतियों में रोप दी गयी थीं पर आज कल के मोबाइल युग में पढ़ाई के इतर जो कुछ और परोसा जा रहा है उसमें हमारी संस्कृति के कितने अवयव समाहित हैं ये सोचने का विषय है।
यहाँ सजावट थी चित्रकला के माध्यम से... |