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सोमवार, 16 दिसंबर 2013

यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..

मलयालम में केरा (Kera) का मतलब होता है नारियल का वृक्ष और अलयम (Alayam) मतलब जमीन या देश। ऍसा कहा जाता है कि केरलयम ही समय के साथ केरल में बदल गया। यूँ तो नारियल के पेड़ पूरी यात्रा में हमेशा दिखाई देते रहे पर कोट्टायम (Kottayam) के बैकवाटर्स में ये जिस रूप में हमारे सामने आए वो बेहद खूबसूरत था।

 
जैसा कि मैंने आपको बताया था कि लोग केरल के बैकवाटर्स का आनंद लेने कुमारकोम जाते हैं जो कि कोट्टायम शहर से करीब १६ किमी है। पर यही काम आप काफी कम कीमत में कोट्टायम शहर में रहकर भी कर सकते हैं। पूरे कोट्टायम जिले में नदियों और नहरों का जाल है जो आपस में मिलकर वेम्बनाड झील (Vembanad lake) में मिलती हैं।


जिस होटल में हम ठहरे थे वहीं से हमने दिन भर की मोटरबोट यात्रा के टिकट ले लिए। ये प्रति व्यक्ति टिकट मात्र 200 रुपये का था जिसमें दिन का शाकाहारी भोजन और शाम की चाय शामिल थी। कोट्टायम जेट्टी में उस दिन यानि 28दिसंबर को कोई भीड़ नहीं थी। दस बजे तक धूप पूरी निखर चुकी थी और हम अपनी दुमंजिला मोटरबोट में आसन जमा चुके थे। ऊपर डेक पर नारंगी रंग का त्रिपाल तान दिया गया था जिससे धूप का असर खत्म हो गया था। बच्चे कूदफाँद करते हुए सबसे पहले मोटरबोट के डेक के सबसे आगे वाले हिस्से पर जा पहुँचे। वो जगह चित्र खींचने और मनमोहक दृश्यों को आत्मसात करने के लिए आदर्श थी।

 
थोड़ी दूर आगे बढ़ते ही नहर के दोनों किनारों पर नारियल के पेड़ों की श्रृंखला नज़र आने लगी। बीच बीच में नहर को पार करने के लिए पुल बने थे जिन्हें मोटरबोट के आने से उठा लिया जाता था। पहले आधे घंटे तक नहर की चौड़ाई संकरी ही रही। पानी की सतह के ऊपर जलकुंभी के फैल जाने की वजह से मोटरबोट को बीच-बीच में रुक-रुक के चलना पड़ रहा था। नहर के दोनों ओर ग्रामीणों के पक्के साफ-सुथरे घर नज़र आ रहे थे। बस्तियाँ खत्म हुईं तो ऍसा लगा कि हम वाकई धान के देश में आ गए हैं। दूर दूर तक फैले धान के खेत अपनी हरियाली से मन को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। किनारे-किनारे प्रहरी के रूप में खड़े हुए नारियल के पेड़ और खेतों में मँडराते सफेद बगुलों और अन्य पक्षियों के झुंड ऐसा दृश्य उपस्थित करते हें कि बस आपके पास टकटकी लगा कर देखने के आलावा कुछ नहीं बचता।

हालैंड के आलावा यही ऍसा इलाका है जहाँ समुद्रतल के नीचे धान की खेती होती है। खेतों के चारों ओर इतनी ऊँचाई की मेड़ बनाई जाती है जिससे खारा पानी अंदर ना आ सके। समुद्र के पार्श्व जल से भरे ये इलाके यहाँ के ग्रामीण जीवन की झलक दिखाते हैं। यहाँ के लोगों का जीवन कठिन है। मुख्य व्यवसाय नाव निर्माण, नारियल रेशे का काम, मछली -बत्तख पालन और धान की खेती है। सामने बहती नदियाँ और नहरें इनके जीवन की सभी मुख्य गतिविधियों से जुड़ी हुई हैं। हर छोटे बड़े घर के सामने एक छोटी सी नाव आप जरूर पाएँगे। घर से किसी काम के लिए निकलना हो तो यही नाव काम आती है। यहाँ तक की फेरीवाले तमाम जरूरत की चीजों को नाव पर डालकर एक गाँव से दूसरे गाँव में बेचते देखे जा सकते हैं।
केरल के ग्राम्य जीवन के विविध रंगों की झलक देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।


शनिवार, 14 जून 2008

आइए देखिए केरल के ग्राम्य जीवन की ये झांकी...

केरल के बैकवाटर (Backwaters of Kerala) भ्रमण का विस्तृत ब्योरा तो आज ही यहाँ पोस्ट किया है। बैकवाटर की प्राकृतिक सुंदरता की झलकियाँ आप वहाँ देख सकते हैं। पर नदियों, नहरों और समुद्री पार्श्व जल के बीच की गई इस यात्रा में हमें वहाँ के ग्रामीणों के रहन-सहन, रोज़ी-रोटी के साधनों और दैनिक दिनचर्या की झलक भी मिलती है। मेरी इस प्रविष्टि का उद्देश्य आपको चित्रों के माध्यम से केरल के इस परिवेश से परिचित कराना है।


यूँ तो इन गाँवों में उत्तर भारत के विपरीत सारे मकान पक्के होते हैं पर मकान की छत खपड़ैल की होती है। पूरी यात्रा में ये घर हम सबको बड़ा प्यारा लगा शायद इसके बाग में लगे लाल तने वाले पेड़ों के लिए

सामने बहता जल नहाने में भी प्रयुक्त होता है और दिन भर के कामों में भी...

स्कूटर या किसी अन्य वाहन का यहाँ कोई काम नहीं क्योंकि हर घर की पार्किंग में लगी रहती है ये नाव !


चल दिए मियाँ बीवी अपने काम धंधे पर..


एलेप्पी (Alleppy) हाउसबोट निर्माण का प्रमुख केंद्र है। देखिए कैसे जुटे हैं कारीगर इस हाउसबोट (Houseboat) को खूबसूरती से गढ़ने में..


और पूजास्थल भी तो होने चाहिए बगल में। तो ये रहा नहर के किनारे बना एक सुंदर सा गिरिजाघर (Church)


जहाँ धर्म की पैठ है वहाँ राजनीति कैसे पीछे रहेगी वो भी केरल जैसे सजग राज्य में ! केरल के इस भाग में ज्यादातर श्रमिक बहुल उद्योग हैं। चाहे वो धान की खेती हो या नारियल के रेशे का काम या फिर नाव निर्माण इन सभी में मुख्यतः मशीनों से ज्यादा कुशल हाथों की जरूरत होती है। और यही वज़ह है कि कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) इस इलाके में खासी लोकप्रिय है..




काम धाम तो होता रहेगा। दिसंबर की इस गर्मी में (जी हाँ आप सही पढ़ रहे हैं गर्मी में) बीच-बीच में गला तर करने की भी जरूरत है इसलिए नारियल के पेड़ से निकलने वाली ये टॉडी (Toddy) यहाँ के ग्रामीणों में बेहद लोकप्रिय है बहुत कुछ उत्तर भारत की ताड़ी की तरह !



और शाम हो गई तो पड़ोसन के घर का हाल-चाल लेना भी तो उतना ही जरूरी है :) !

तो बताइए कैसी लगी आपको केरल के ग्राम्य जीवन की ये झांकी ?