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रविवार, 20 सितंबर 2015

नियाग्रा का विशाल भँवरः जो समेटे है अपने अंदर प्रेम और त्याग की उस अमर कहानी को ! A journey from Niagara Whirlpool to Niagara on the Lake!

नियाग्रा  के पहले बहती नदी और फिर बनते जलप्रपात को तो आपने इस श्रंखला की पिछली कड़ी में तो देख लिया। आज चलिए जलप्रपात से आगे नियाग्रा नदी के मुहाने तक जहाँ ये ओंटेरियो झील से मिलती है। जिस छोटे शहर के पास ये मिलन होता है उसका नाम है नियाग्रा-आन-दि-लेक (Niagara-on-the-Lake)। पर इससे पहले कि इस तीस किमी लंबे सफ़र पर आपको ले चलूँ आपके एक सवाल का जवाब बताता चलूँ। पिछले आलेख में आपकी ओर से एक प्रश्न आया था कि आख़िर नियाग्रा नदी में इतना पानी आता कहाँ से हैं और अपनी गंगा ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों की तरह क्या ये भी उतनी ही विशाल है? सच पूछिए तो हमारी इन नदियों से नियाग्रा नदी की तुलना हो ही नहीं सकती।  पूछिए क्यूँ?
A beautiful Cherry Blossom tree on in Niagara on the Lake

नियाग्रा नदी की लंबाई मात्र 56 किमी है और हमारी नदियों की तरह इसका उद्गम स्थल कोई पर्वत श्रंखला नहीं है। जैसा आप नीचे के मानचित्र में देख सकते हैं कि ये नदी एक झील एरी (Lake Erie) से निकलती है और दूसरी झील ओंटोरियो में आकर अपना पानी छोड़ देती है। दोनों झीलों की ऊँचाई में अंतर सौ मीटर का है और इसी ढलान की वज़ह से इस नदी में पानी जाड़ों को छोड़कर साल भर उफनता रहता है। जाड़ों में नियाग्रा के जलप्रपात से गिरता पानी जम जाता है और वो मंज़र भी देखने लायक होता है।

Trajectory of River Niagara

अपने नियाग्रा प्रवास के तीसरे दिन हम शाम को अपने मेज़बान के साथ जलप्रपात से आगे नदी के मुहाने तक के सफ़र पर निकल पड़े। रेनबो ब्रिज से आगे बढ़ने पर नदी एक जगह तेज घुमाव लेती है जिससे एक भयंकर भँवर (Whirlpool) का निर्माण होता है। ये भँवर व्यक्ति को इतनी गहराई तक ले जाता है कि इसमें फँसने के बाद निकल पाना मुश्किल है। इस भँवर के ठीक पहले एक और पुल आता है जिसे व्हर्लपूल रैपिड्स ब्रिज (Whirlpool Rapids Bridge ) का नाम दिया गया है। वहाँ के लोगों ने इन दोनों पुलों के बीच  सौ साल पहले हुई एक ऐसी घटना का जिक्र किया जिसे बताए बिना आप इस भँवर की भयावहता का अंदाजा नहीं लगा सकते। लोगों द्वारा बताई बातों और नियाग्रा के आधिकारिक जालपृष्ठों से जब इस कहानी के सारे सिरों को एक साथ जोड़ने की कोशिश की तो मन बेहद अनमना हो गया। ये कहानी सिर्फ एक हादसे की नहीं है। सच तो ये है कि इसके किरदारों ने जिस प्रेम, कर्तव्यनिष्ठा और त्याग का परिचय दिया वो ना केवल मानव मात्र के प्रति गर्व का अनुभव कराता है पर साथ ही आँखों की कोरों को गीला भी  कर देता है।

ये बात सन 1912 के जाड़ों की है। जाड़ों में  नियाग्रा के आस पास के इलाकों का तापमान  शून्य से नीचे चला जाता है। नतीजन इस नदी पर बर्फ के प्राकृतिक पुल बन जाते हैं जिस पर सैलानी घूमते फिरते और मस्ती करते हैं। उस साल फरवरी के महीने में ऐसा ही एक पुल नियाग्रा नदी पर बन गया था। ये पुल पिछले कुछ दिनों से नियाग्रा नदी द्वारा लाई बर्फ से साठ से अस्सी फीट चौड़ा होकर अपने किनारों से मजबूती से जुड़ चुका था। दो हफ्तों से पर्यटकों की भारी भीड़ इस पुल पर आ जा रही थी। पर चार फरवरी का वो दिन अपने गर्भ में इस अनहोनी को छुपाए बैठा है ये किसे पता था?