चीड़ के जंगलों में विचरने के बाद कौसानी का हमारा अगला पड़ा बैजनाथ के मंदिर थे। बैजनाथ के ये मंदिर कौसानी बागेश्वर मार्ग पर कौसानी से 16 किमी दूरी पर स्थित हैं। दोपहर को जब हम कौसानी से चले तो धूप खिली हुई थी। कौन कह सकता था कि सुबह की इतनी गहरी धुंध दिन तक ऐसा रूप ले लेगी? कौसानी से बैजनाथ पहुँचने के ठीक पहले गरुड़ (Garud) नाम का कस्बा आता है जो इस इलाके का मुख्य बाजार है। इस मंदिर के ठीक बगल से यहाँ गोमती नदी बहती है। पर कोसी की तरह ही ये वो गोमती नहीं है जो आपको लखनऊ में दिखाई देती हैं।
मुख्य सड़क से मंदिर की ओर जाता गलियारा कुछ दूर तक इस नदी के समानांतर चलता है। एक ओर फूलों की क्यारियाँ और दूसरी ओर बैजनाथ कस्बे का परिदृश्य मन को मोहता है। गलियारे को पार कर ऊपर की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए बैजनाथ के मंदिर समूह के प्रथम दर्शन होते हैं। एक नज़र में पत्थर से बने छोटे बड़े इन मंदिरों का बाहरी शिल्प एक सा नज़र आता है।