मंगलवार, 27 नवंबर 2012

चित्र पहेली 21 : क्या आप हिमालय प्रेमी हैं? तो फिर पहचानिए इस चोटी को !

हिल स्टेशन तो हम सभी कभी ना कभी जाते ही रहते हैं। किसी भी पर्वतीय स्थल में जाइए वहाँ आपको देखने की जगहों की सूची में भांति भांति के View Points जरूर मिल जाते हैं। कम ऊँचाई वाली जगहों में अक्सर इन विशेष बिंदुओं से उस जगह का सूर्योदय (Sunrise Point) या सूर्यास्त (Sunset Point) देखा जा सकता है। 

पर ज्यादा ऊँचाई वाले पर्वतीय स्थलों में हमारी रुचि सूर्योदय या सूर्यास्त देखने के आलावा हिमआच्छादित पर्वतीय शिखरों को देखने की भी होती है। और अगर आपकी जानकारी इतनी हो कि आप बर्फ से ढकी इन चोटियों को देख कर ही पहचान लें तो बात ही क्या ! वैसे हिमालय पर्वत श्रृंखला से सबसे करीबी सामना तो उत्तरी सिक्किम की ओर जाते वक़्त हुआ था। पर पर्वतीय चोटियों को पहचानने का चस्का पिछले साल कौसानी जाने पर हुआ। इसलिए पिछले महिने जब Blogger's Conference के सिलसिले में   मसूरी के निकट कानाताल गया तो इस बार भी ये कोशिश जारी रही। कानाताल (Kanatal) और फिर टिहरी ( Tihri) जाते वक़्त चोटियाँ तो खूब दिखीं पर उनके नाम जानने में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी। कई बार तो स्थानीय लोगों ने एक ही चोटी के अलग अलग नाम बता कर और संशय में डाल दिया।

ख़ैर मैंने चित्र खूब खींचे और वापस लौटकर नेट पर छानबीन की तो एक एक कर सारे खींचे चित्रों में दिख रहे पर्वत शिखरों के नाम के पीछे से पर्दा उठता गया। 

गढ़वाल हिमालय की इन खूबसूरत चोटियों के बारे में तो अगली पोस्ट में आप सबको विस्तार से बताऊँगा पर यदि आप अपने आप को हिमालय प्रेमी मानते हों तो ज़रा ये तो बताइए कि नीचे दिख रहे तीखी ढाल और घुमावदार आकार वाले शिखर का नाम क्या है ? विस्तार से उत्तर जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।


मुसाफिर हूँ यारों हिंदी का एक यात्रा ब्लॉग

बुधवार, 21 नवंबर 2012

Unconference @ Kanatal : कानाताल में बिताया वो अविस्मरणीय दूसरा दिन !

पहले दिन की यात्रा के बाद थकान काफी हो गई थी। अगली सुबह जल्दी उठने का मन नहीं होते हुए भी हिमालय पर्वत श्रृंखला की चोटियों पर पड़ती धूप की पहली किरणों को देखने की उत्सुकता ने हमें छः बजे ही जगा दिया था। मेरे रूम पार्टनर दीपक  भी तैयार थे इस सुबह की सैर के लिए। सो करीब साढ़े छः बजे हम अपने रिसार्ट से बाहर आ गए। सड़क की दूसरी तरफ़ ही एक ट्रैकिंग मार्ग था। हम तेज कदमों से उस पर चल पड़े। थोड़ी दूर चलने के बाद ही पेड़ की झुरमुटों से हिमालय पर्वत श्रृंखला दिखने लगी। 



पर ये क्या ! कैमरे को चालू करते ही उसमें मेमोरी कार्ड एरर (Memory Card Error) दिखने लगा।। रात तक अच्छा भला कैमरा सुबह जल्दी उठाने पर एक बच्चे की तरह नाराज़ हो गया था। मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें देख कर दीपक ने कार्ड को निकाल कर फिर से कैमरा चालू करने की सलाह दी। पर कार्ड किसी भी तरह मानने को तैयार ही नहीं था। नतीजन जॉली ग्रांट से लेकर शाम और फिर रात के कानाताल की तसवीरें कार्ड में ही दफ़न हो गयीं। बेवकूफी ये की थी कि अतिरिक्त कार्ड ले कर भी नहीं चला था। मायूस मन से मैं चुपचाप दीपक के साथ हो लिया। पगडंडी के एक ओर चीड़ और देवदार के वृक्षों से भरा पूरा घना जंगल था।

कभी कभी इनके बीच से बर्फ से ढकी चोटियों की झलक मिल जाती थी। पर एक किमी तक चलने के बाद भी पर्वतश्रृंखला का अबाधित दृश्य हम नहीं देख पा रहे थे। Unconference के लिए तैयार भी होना था इसलिए अगली सुबह फिर इसी मार्ग पर दूर तक जाने का निश्चय कर हम वापस लौट चले।


शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

Conclay @ Kanatal : साथी यात्रा ब्लागरों के साथ बिताया वो खुशनुमा पहला दिन !

पिछली बार सिक्किम में ट्रैवेल ब्लॉगर कांफ्रेस में ना जाने का अफ़सोस था पर जापान की यात्रा ऐसे अवसर पर आ गई थी कि मेरे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं बचा था। पर अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में जब CLAY की ओर से दूसरी बार ऐसी ही एक कांफ्रेस में शामिल होने की गुजारिश की गई तो मेरे मुँह से पहले ना ही निकला क्यूँकि जिन तिथियों पर CONCLAY का आयोजन हो रहा था उस अंतराल में मैं पहले ही दक्षिण महाराष्ट्र के लिए अपना सपरिवार घूमने का कार्यक्रम बना चुका था। 29 को मुंबई से राँची वापसी की टिकट भी हो चुकी थी। पर अचानक ही ये ख्याल आया कि दक्षिण महाराष्ट्र की यात्रा तो 26 रात तक  खत्म हो रही है। बाकी दिन तो रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने के लिए रखे थे। अगर श्रीमतीजी को वापस अकेले लौटने को तैयार कर लिया जाए और क्लब महिंद्रा वाले मुंबई से मुझे पिक अप कर लें तो कानाताल जाना संभव हो सकता है।


जब मैंने घुमक्कड़ ब्लॉगरों की इस कांफ्रेंस के बारे में पत्नी को बताया तो वो अनिच्छा से ही सही राजी हो गयीं। क्लब महिंद्रा वाले मेरे मुंबई से यात्रा करने के लिए पहले ही हामी भर चुके थे। गणपतिपूले, सिंधुदुर्ग, कोल्हापुर, पुणे होते हुए हम 26 अक्टूबर की आधी रात को मुंबई से करीब अपने अड्डे अंबरनाथ पहुँचे। मेल चेक करने पर पता लगा कि मुझे अपने साथियों से 28 की सुबह पाँच बजे मुंबई हवाई अड्डे पर मिलना है। पाँच बजे का मतलब था कि अंबरनाथ से रात तीन बजे ही निकल चलूँ। अब जहाँ छुट्टियों के लिए भाई बहनों के सारे परिवार एक जगह वर्षों बाद इकठ्ठा हों वहाँ रात के बारह एक बजे से पहले कहाँ सोना हो पाता है। रात डेढ़ बजे से एक घंटे के लिए बस आँखें भर बंद कीं। नींद ना आनी थी, ना आई। करीब सवा तीन बजे मैं सबसे विदा ले कर घर से निकल पड़ा। यूँ तो अंबरनाथ (जो कि कल्याण से लगभग दस किमी दूर है) से मुंबई हवाईअड्डे का सफ़र आम तौर पर ट्रैफिक की वज़ह से दो ढाई घंटे में पूरा होता है पर सुबह का वक़्त होने की वज़ह से मैं सवा घंटे में ही पहुँच गया। बीच में अँधेरी में सड़क किनारे गाड़ी रुकवा चाय की चुस्कियाँ भी लीं। सुबह के साढ़े चार बजे जब हवाई अड्डे पर पहुँचा तो वहाँ कोई जाना पहचाना चेहरा दिख नहीं रहा था। वैसे भी मुंबई से जिन चार लोगों को जाना था उनमें से किसी से पहले मैं मिला भी नहीं था। पर ये जरूर था कि अपनी मुखपुस्तिका यानि फेसबुक की बदौलत इनमें से कुछ की शक़्लों का खाका दिमाग में था।