रविवार, 14 अप्रैल 2019

रंग बिरंगी कारों के बीच चलिए आज इटली के इस फेरारी संग्रहालय में Museo Ferrari, Maranello, Italy

कारों का मुझे कभी ऐसा शौक़ नहीं रहा। ये जरूर था कि इंजीनियरिंग में इंजन और आटोमोबाइल से जुड़े तकनीकी विषय बेहद भाते थे। तब ना घर में कार हुआ करती थी और ना ही कभी कॉलेज के दिनों में इच्छा हुई कि किसी दूसरे से कार माँग के थोड़ा गाड़ी चलाने में हाथ साफ कर लिया जाए। लिहाजा गाड़ी चलाने के मामले में तब व्यावहारिक ज्ञान बिल्कुल नहीं था। 

ऐसे में एक बारआटोमोबाइल कंपनी के साक्षात्कर में इसे अपना पसंदीदा विषय बताने की मैं गलती कर बैठा। नब्बे के उस दशक में मारुति देश में छाई हुई थी। साक्षात्कार लेने वाले ने प्रश्न रूपी पहला गोला ये दागा कि मारुति में इस्तेमाल होने वाले ब्रेकिंग सिस्टम को कागज पर बना कर समझाओ। अब मारुति चलाना तो दूर, तब तक उसके अंदर बैठने का भी मौका नहीं मिला था सो इस पहले बाउंसर पर ही हिट विकेट हो गए। वो अलग बात है कि ज़िंदगी की पहली नौकरी बाद में आटोमोबाइल सेक्टर में ही मिली।

फेरारी संग्रहालय के स्वागत कक्ष से आप सबको मेरा प्रणाम
अब अगर आप ये सोच रहे हैं कि आख़िर ये किस्सा आपको मैंने क्यों सुनाया तो वो इसलिए कि जब मैं अपनी यूरोप यात्रा में इटली का कार्यक्रम बना रहा था तो सपने में भी ये नहीं सोचा था कि इस देश की यात्रा की शुरुआत किसी विश्व प्रसिद्ध रेसिंग कार को समर्पित एक संग्रहालय से होगी। दरअसल स्विट्ज़रलैंड के पहाड़ों की खूबसूरती नापने के बाद हमें जाना तो पीसा था पर इस लंबी दूरी को तय करने के लिए भोजन विराम लेना जरूरी था। जब यात्रा संचालक ने फेरारी के इस म्यूजियम की चर्चा की तो लगा कि रास्ते में पड़नेवाले इस संग्रहालय को देखने में भी कोई बुराई नहीं।

बेलिंजोना से मेडोना तक के रास्ते का मानचित्र
अपनी इटली यात्रा शुरु करने से एक रात पहले हम स्विटज़रलैंड के दक्षिणी कस्बे बेलिंजोना में रुके थे। बेलिंजोना कहने को स्विटज़रलैंड में है पर आज भी वहाँ निवास करने वाले अस्सी प्रतिशत से ज्यादा लोगों की भाषा इटालियन है। इतिहास के पन्नों को पलटा तो पाया कि यहाँ रोमन साम्राज्य से लेकर नेपोलियन तक की धमक रह चुकी थी। वहाँ  की सम्मिलित संस्कृति का का एक और नमूना तब दिखा जब मैं एल्पस की तलहटी पर बसे इस कस्बे में  रात को तफरीह पर निकला। सामने की इमारत पर Marche लिखा हुआ था। अंदर गए तो समझ आया कि ये तो छोटा सा बाजार है। बाद में मालूम हुआ कि Marche एक फ्रेंच शब्द है जिसका अर्थ ही बाजार है। 

बहरहाल अगली सुबह सवा आठ बजे हमारा कारवाँ इटली के सफ़र पर था। सीमा से हम साठ किमी की दूरी पर थे। स्विटरज़रलैंड के पहाड़ी हरे भरे रास्ते ने कुछ दूर साथ दिया और फिर सड़क के दोनों ओर समतल मैदान आ गए। पश्चिमी यूरोप में एक देश से दूसरे देश जाने में कोई व्यक्तिगत चेकिंग नहीं होती पर सीमा पर गाड़ी और टूर आपरेटर के कागजात की जरूर  जाँच होती है।

स्विटज़रलैंड और इटली की सीमा पर इटली की पुलिस
हम स्विटज़रलैंड जैसे धनी देश से अपेक्षाकृत गरीब और बदनाम इटली में प्रवेश कर रहे थे। मन में उत्सुकता के साथ एक संशय भी था कि इस देश में अगले दो तीन दिन हमारे कैसे बीतेंगे। उत्तरी इटली के जिस इलाके से हम घुसे वो हमें अपनी ही तरह कृषि प्रधान नज़र आया। ज्यादातर खेतों में फसलें कट चुकी थीं। खेत खलिहानों से निकलते हुए अचानक ही इस खूबसूरत इमारत के दर्शन हुए। तस्वीर तो जल्दी से ले ली पर समझ नहीं आया कि ये संरचना किस उद्देश्य से बनाई गयी है? साथ सफ़र कर रहे यात्रा प्रबंधक ने इसे रेलवे स्टेशन बताया तो एक क्षण विश्वास ही नहीं हुआ। इटली की इंजीनियरिंग क्षमता के इस पहले उदाहरण ने मुझे तो बेहद प्रभावित किया।  

है ना इंजीनियरिंग की खूबसूरत मिसाल
बेलिंजोना से हमने जो राजमार्ग पकड़ा था वो इटली के महानगर मिलान के बगल से होते हुए बोलोनी चला जाता है पर हमें बोलोनी से कुछ पहले ही दाँयी ओर मॉडेना की राह पकड़नी  थी । लगभग तीन सौ किमी की इस यात्रा में तीन साढ़े तीन घंटे का वक़्त लगता है। 

मिलान से होता हुआ ये राजमार्ग बोलोनी तक जाता है
मॉडेना और मारानेल्लो फेरारी कार के जन्म स्थान रहे हैं और इन दोनों जगहों पर कंपनी ने इस ब्रांड से जुड़ी रेसिंग कारों के लिए संग्रहालय बनाए हैं जो ना केवल पिछले सत्तर सालों से कारों के आकार प्रकार और तकनीक में हुए बदलाव की जानकारी देते हैं बल्कि साथ साथ इन कारों को रेसिंग ट्रैक पर विजय देने वाले उन महारथी चालकों के योगदान को भी  उल्लेखित करते हैं। फेरारी की कार देखते देखते किशोर दा का गाया वो गाना याद आ जाता है कि ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा..। यहाँ रखी अधिकांश कारें इस रंग से तो रँगी ही हैं साथ ही इसके परिसर तक पहुँचाने वाली सड़क भी हमें लाल लाल फूलों से सजी मिलीं।



रविवार, 7 अप्रैल 2019

ऐसे आया मेरे घर-आँगन में वसंत.. Colours of Spring

कई बार आपने महसूस किया होगा कि जब आप छुट्टियों पर घूमने निकलते हैं तो प्रकृति के नए नए रंग आपको आकर्षित करते हैं। ये रंग किसी भी रूप में अचानक सामने आ जाते हैं। कभी सूर्यास्त की लाली, कभी पक्षियों का कलरव, कहीं कोई अजीबोगरीब वृक्ष तो कही चटकीले फूलों की बहार। सवाल है कि क्या आपके अपने शहर में ये दृश्य दिखते नहीं या दिखते भी हैं तो आप उनके आस पास पहुँच नहीं पाते? उन्हें देखने के लिए फुर्सत के पल  नहीं निकाल पाते।

काँटों का ताज Christ Thorn 
पिछले दो महीनों से मैंने अपने घर के आस पास  रंग बदलते वसंत के जिन लम्हों को करीब से महसूस किया उनमें से कुछ को चुन कर आज आप के सामने लाया हूँ। आशा है ये छवियाँ आपकी आँखों को तृप्त करेंगी और साथ ही आप कुछ और सजग हो जाएँगे अपने आसपास की इस खूबसूरती को बटोरने।
नीली गुलमोहर Jacaranda (जैकेरेण्डा)
यही वक़्त है नीली गुलमोहर यानी जेकेरेण्डा को खिलते देखने का। दूर से ही इसकी बैंगनी फूल आपका ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं। गुलमोहर की तरह की पत्तियाँ और पूरे पेड़ को फूलों से भर देने की इसकी विशेषता की वज़ह से ही इसका नाम नीली गुलमोहर पड़ा है। वैसे इस पेड़ को मूल रूप से दक्षिण अमेरिका का माना गया है पर अब इसकी पहुँच विश्व के कोने कोने में है।

काँटों का ताज Crown of Thorns
काँटेदार पौधों के फूल बड़े मनमोहक होते हैं। गुलाब अपनी इसी खासियत के लिए जाना जाता है। यीशू के सर पर काँटों का ताज था तो इस फूल का नाम भी उनकी याद दिलाने के लिए वैसा ही रख दिया गया। ये फूल मुझे बेहद पसंद है खासकर तब जब ये अपनी पंखुड़ियाँ खोल रहा होता है।
 पीला  गुड़हल Yellow Hibiscus
क्या आपको पता है कि पीला गुड़हल हवाई द्वीप के राष्ट्रीय फूल का दर्जा रखता है। वहाँ स्त्रियाँ अगर इसे अपने दाएँ कान के ऊपर लगाएँ तो इसका अर्थ होता है कि वो अकेली हैं और अगर बाएँ कान पर तो मतलब वे शादी शुदा हैं या उनका कोई पुरुष मित्र है।

इसकी सुंदरता में चार चाँद इसके मध्य से निकलने वाली पतली सी डंडी लगाती है जिसके आखिरी सिरे को देखने से लगता है कि किसी रूपवती कन्या के माथे की बिंदिया हो। 
सहजन के फूल Drumstick Tree, Sahjan


मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

यादें सुहेलवा की : जब हम जा पहुँचे एक नेपाली गाँव में Birding Trip to Suhelwa, Uttar Pradesh

जंगलों में भटकना किस प्रकृति प्रेमी को अच्छा नहीं लगता? ये प्रसन्नता और भी बढ़ जाती है गर आप वन के बीच बसे हुए किसी गाँव में जा पहुँचते हैं। ऐसा ही एक वाक़या हुआ था जब मैं और मेरे कुछ साथी पिछले साल पक्षियों की खोज में घूमते हुए भारत की सीमा पार कर नेपाल के एक गाँव में जा पहुँचे थे। मौका था अंतरराष्ट्रीय पक्षी महोत्सव का जिसमें पक्षी वैज्ञानिक और चिड़िया प्रेमियों के साथ यात्रा लेखकों को भी आमंत्रण मिला था। 
सुहेलवा वन्य अभ्यारण्य से सटा एक प्यारा सा गाँव

दुधवा के जंगलों की दो दिनों  सुबह से शाम  तक  खाक छानने के बाद हम सुहेलवा की ओर बढ़ रहे थे। दुधवा से सुबह आठ बजे चलकर हम सभी कुछ देर के लिए बहराइच में रुके। 
वन विभाग के अधिकारियों के साथ पक्षीप्रेमियों की जमात


रास्ता बनने की वज़ह से बहराइच के पहले तो धूल फाँकते आए पर उसके बाद हरियाली मिली।  बहराइच से हमारी बस बाँयी ओर जब भिंगा मार्ग पर बढ़ी तो खेत खलिहान कम होते चले गए और उनकी जगह हरे भरे जंगलों ने ले ली। छः घंटों की ये यात्रा आख़िर हमने इन्हीं दरख़्तों के बीच दो दिन घुलने मिलने के लिए तो की थी। चलती बस से हरे भरे खेतों के बीच कहीं सारस जोड़े दिखाई दिए तो कही स्टार्क। जैसे जैसे हम अपने गंतव्य के पास पहुँचने लगे, बादलों के काफिले पूरे आसमान पर काबिज हो गए। कम रोशनी पक्षियों को देखने और तस्वीरें लेने में बाधा उत्पन्न करती है। यही वजह थी कि बाहर की इस फ़िज़ा को देख हम सभी का मन थोड़ा मायूस सा हो गया।

रास्ते में सरसों के हरे भरे खेत

जो लोग सुहेलदेव वन्य अभ्यारण्य से ज्यादा परिचित ना हों उन्हें बता दूँ कि भारत नेपाल सीमा के समानांतर फैले इस हरे भरे जंगलों का कुछ हिस्सा बलरामपुर तो कुछ श्रावस्ती जिले में पड़ता है। वैसे गूगल पर आज भी इस नाम से इसे खोजना आसान नहीं है।  वैसे क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि इस सुहेलदेव या उसका अपभ्रंश सुहेलवा के पीछे आख़िर कौन सी शख़्सियत है?

इस इलाके की प्रचलित दंत कथाओं की मानें तो सुहेलदेव श्रावस्ती पर राज करने वाले एक राजा थे। ऐसा कहा जाता है कि सुहेलदेव ने ग्यारहवीं शताब्दी में महमूद ग़ज़नवी के सेनापति सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को बहराइच में हुई लड़ाई में पराजित कर मार डाला था। इससे पहले सिंधु नदी पार कर सैयद सालार मसूद ने कई भारतीय राजाओं को मात दी थी पर सुहेलदेव के सामने उसकी एक ना चली। सुहेलदेव को कुछ लोग यहाँ बसने वाले थारु और पासी समुदायों से जोड़ कर देखते हैं। यही वज़ह है कि इस इलाके की कई सार्वजनिक स्थलों का नामाकरण सुहेलदेव के नाम पर किया गया है।

मेरा खूबसूरत आशियाना