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सोमवार, 24 दिसंबर 2012

टिहरी बाँध : इंजीनियरिंग कार्यकुशलता का अद्भुत नमूना ! (Tehri Dam : An engineering Marvel !)

अगर आपके समक्ष ये प्रश्न करूँ कि टिहरी (Tehri) किस लिए मशहूर है तो शायद दो बातें एक साथ आपके मन में उभरें। एक तो सुंदरलाल बहुगुणा का टिहरी बाँध (Tehri Dam) के खिलाफ़ संघर्ष तो दूसरी ओर कुछ साल पहले बाँध बन जाने के बाद पूरे टिहरी शहर का जलमग्न हो जाना।

टिहरी एक ऐसा शहर था जो अब इतिहास के पन्नों में दफ़न हो गया है। आज उसकी छाती पर भारत का सबसे विशाल बाँध खड़ा है। पर जिसने वो शहर नहीं देखा हो वो क्या उन बाशिंदों का दर्द समझ पाएगा जिन्हें वहाँ से विस्थापित होना पड़ा। एक नवआंगुतक तो टिहरी बाँध पर आकर देशी इंजीनियरिंग कार्यकुशलता की इस अद्भुत मिसाल देखकर दंग रह जाता है। 260.5 मीटर ऊँचे इस भव्य बाँध को पास से देखना अपने आप में एक अनुभव हैं। इससे पहले मैं आपको हीराकुड बाँध  (Hirakud Dam) पर ले जा चुका हूँ पर तकनीकी दृष्टि से  2400 MW बिजली और तीन लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा बड़े इलाके को सिंचित करने वाली ये परियोजना अपेक्षाकृत वृहत और आधुनिक है। पर अगर ये परियोजना इतनी लाभदायक है तो फिर इसका विरोध क्यूँ?



दरअसल बड़े बाँधों के निर्माण में पर्यावरणविदों और इंजीनियरों में शुरु से ही वैचारिक मतभेद रहे हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि हिमालय प्लेट से जुड़े क्षेत्रों में इतने विशाल बाँध बनाना भूकंप को न्योता दे कर बुलाने के समान है। वही इंजीनियर ये कहते हैं कि उन्होंने बाँध का निर्माण इस तरह किया है कि रेक्टर स्केल पर 8.4 तक के जबरदस्त भूकंप के आने पर भी बाँध का बाल भी बाँका  नहीं होगा। जापान के इंजीनियर भी अपने परमाणु संयंत्र के लिए यही कहा करते थे पर सुनामी के बाद हुई फ्यूकीशीमा की दुर्घटना ने वहाँ की जनता का विश्वास अपने  संयंत्रों से ऐसा बैठा कि आज वहाँ के  सारे परमाणु संयंत्र ही  बंद हैं। भगवान करे कि मेरे साथी इंजीनियरों का दावा सच निकले और गंगोत्री और यमुनोत्री को अपनी गोद में समाए इस पवित्र इलाके में विकास की ये बगिया फलती फूलती रहे।

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

आइए चलें गढ़वाल हिमालय की गंगोत्री समूह की चोटियों की सैर पर!

कानाताल में बिताया गया तीसरा दिन सुबह से ही काफी व्यस्त रहा। सवा तीन किमी की मार्निंग वॉक और नाश्ते को निबटाने के बाद हम टिहरी बाँध (Tehri Dam) गए और फिर वहाँ से लौटकर दोपहर में धनौल्टी (Dhanaulti) होते हुए मसूरी के लिए निकल गए।  कानाताल, टिहरी और फिर धनौल्टी जाते समय हमें गढ़वाल हिमालय की अलग अलग चोटियों के दर्शन हुए। इसमें वो चोटी भी शामिल थी जिसे पहचानने के लिए एक प्रश्न आपसे मैंने पिछली पोस्ट में पूछा था। जैसा कि आपको पिछली पोस्ट में बताया था कि मैंने इन चोटियों का नाम पता करने के लिए नेट पर उपलब्ध नक़्शों और चित्रों की मदद ली। दो तीन रातों की मेहनत से मैं अपने कैमरे द्वारा खींचे अधिकांश चित्रों में दिख रही चोटियों को पहचान सका। सच पूछिए तो जैसे जैसे ये अबूझ पहेली परत दर परत खुल रही थी, मन आनंदित हुए बिना नहीं रह पा रहा था।  तो चलिए आज की पोस्ट में आपको ले चलता हूँ गढ़वाल हिमालय  की गंगोत्री समूह की चोटियों के अवलोकन पर ।

कानाताल (Kanatal) के क्लब महिंद्रा रिसार्ट के ठीक सामने जंगल के बीच से जाता ट्रेकिंग मार्ग है। जैसे ही आप जंगलों के बीच चलना शुरु करते हैं लंबे वृक्षों के बीच से गढ़वाल हिमालय की चोटियाँ दिखने लगती हैं। पर घने जंगलों की वजह से आपको क़ैमरे में क़ैद करने के लिए करीब सवा किमी तक चलना पड़ता है। इस जगह पर सामने कोई वृक्ष नहीं हैं। कानाताल से सबसे पहले जिस पर्वत चोटी का दीदार होता है उसका नाम है बंदरपूँछ ! वैसे लोग कहते हैं कि बंदर की पूँछ के आकार का होने के कारण इसका ये नाम पड़ा।  मुझे तो इस चोटी के ऊपरी स्वरूप को देखकर ऐसा नहीं लगा पर वो कहते हैं ना कि सही पहचान करने के लिए वो नज़र होनी चाहिए जो शायद विधाता ने मुझे नहीं बख्शी।:)
 तीन चोटियों के ऊपर गर्व से आसन जमाए बैठी बंदरपूँछ की जुड़वाँ चोटियाँ