बुधवार, 27 अगस्त 2014

क्योटो के वे दस अविस्मरणीय क्षण .. 10 unforgettable moments of Kyoto !

यूँ तो क्योटो में बिताए दो दिनों में हमारा ज्यादा समय वहाँ के मंदिरों को देखने में बीता पर रात के वक़्त हम मुख्य शहर की गलियों और चौबारों में भी घूमे। हर साल जुलाई के महीने में क्योटो में जापान के सबसे बड़े पर्वों में से एक Gion Festival भी मनाया जाता है। हमारी खुशकिस्मती थी कि हम इस पर्व के बीचो बीच क्योटो पहुँचे और इस त्योहार के साथ होने वाली यात्रा जिसे आप रथ यात्रा सरीखा मान सकते हैं में शिरक़त की।

किसी शहर में जाकर कभी आप कुछ ऐसे लोगों से मिलते हैं, ऐसी चीज़े देखते हैं या ऐसे अनुभव से गुजरते हैं जो वो उस पल को यादगार बना देती हैं। वैसे तो क्योटो क्या जापान का ध्यान आने से मुझे सान जू सान गेनदो
 की याद पहले आती है पर इसके आलावा इस शहर की जिन यादो ने आज तक मेरा पीछा नहीं छोड़ा है उन्हें कुछ चित्रों के माध्यम से आप तक पहुँचा रहा हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि ये छवियाँ आपके दिलों के तार को इस शहर से जोड़ पाएँगी।
  • हीयान शिंतो पूजा स्थल के आहाते में बने  शुभ समझे जाने वाले धार्मिक प्रतीक चिन्ह अपनी खूबसूरती से ठिठक जाने को विवश करते हैं।

Shinto religious symbol at Heian Shrine, Kyoto


  • कियोमिजु मंदिर में स्वास्थ, प्रेम और धन की तीन गिरती जल धाराओं में एक को चुनती एक जापानी युवती। कहना ना होगा कि उसने प्रेम को चुना था :)

A Japanese girl drinking water from her favourite stream at Otawa Na Taki, Kiyomizu Temple

  • Gion Festival में जलते हुए ये खूबसूरत लैंप तरह तरह के रथों (Float) में लगाए जाते हैं और इन रथों के साथ आम जनता वैसे ही चलती है जैसे हमारे यहाँ की रथ यात्राओं में। इस रथ के ठीक सामने Selfie लेता एक जापानी युगल
A couple taking selfie in front of Yamaboko Float at Kyoto Gion Matsuri Festival

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

साफ पानी का मंदिर : कियोमिजू, क्योटो Clear Water Temple : Kiyomizu Dera, Kyoto

क्योटो भ्रमण में अब तक आप मेरे साथ हीयान के शिंतो पूजा स्थल, शिंतो और हिंदू सोच में समानता, सान जू सान गेन के बौद्ध मंदिर में वायु और वरूण जैसे भगवानों को अलग रूप में देख चुके हैं। क्योटो के मंदिरों से जुड़ी इस आख़िरी कड़ी में देखिए क्योटो के प्राचीनतम और बेहद पवित्र समझे जाने वाले कियोमिजू मंदिर की कुछ झलकियाँ। जापानी भाषा में कियोमिजू (Kiyomizu dera)का अर्थ होता है साफ पानी का मंदिर (Clear Water Temple)। ये मंदिर माउंट हिगाशियामा ( Mount Higashiyama ) के आँचल में अपने आप को पसारे हुए है और इसी पहाड़ी से होता हुआ झरना भी मंदिर परिसर से हो के बहता है जिसकी वज़ह से मंदिर का ये नाम पड़ा। वैसे इस मंदिर का इतिहास क्योटो शहर से भी पुराना है। जापानी सम्राट कम्मू (Kammu) द्वारा नारा से क्योटो को राजधानी बनाए जाने के छः वर्ष पूर्व ही सन 788 में इस मंदिर की नींव रखी गई। वैसे इस मंदिर के बनने की कहानी बहुत कुछ हमारे किलों और मंदिरों जैसी ही है।

इस मंदिर के बनने की कहानी सुनते हुए मुझे जोधपुर के मेहरानगढ़ की याद हो आई। किवदंती है कि नारा के एक पुजारी ने सपना देखा कि उसे किसी पहाड़ी पर साफ पानी का झरना मिलेगा और वहीं उसे एक मंदिर का निर्माण करना होगा। जब वो पुजारी इन पहाड़ियों पर पहुँचा तो उसे झरने के आलावा वहाँ एक साधू भी नज़र आया जो उसे देखते ही बोला कि मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा हूँ। अब जबकि तुम यहाँ मंदिर की स्थापना के लिए आ गए हो मैं दूसरी जगह जाता हूँ।

साधू ने पुजारी को लकड़ी का एक टुकड़ा दिया और उस पर बोधिसत्व का रूप गढ़ने को कहा। बाद में वो पुजारी जब पहाड़ी के शिखर पर पहुंचा तो उसे संत की पादुकाएँ मिलीं। वो समझ गया कि संत के रूप में उसकी मुलाकात बोधिसत्व के ही एक रूप से हुई है। पुजारी ने वहाँ प्रतिमा तो स्थापित कर दी पर कालांतर में तत्कालीन सम्राट और उनके सेनापतियों द्वारा दान में दिए अपने महलों की लकड़ी की दीवारों से मंदिर का परिसर बना। जैसा कि जापान के अधिकांश मंदिरों के साथ होता आया है सन 1629 में यहाँ आग लगी जिसकी वज़ह से इसका पुनर्निर्माण करना पड़ा।


क्योटो के इस मंदिर परिसर के बाहर जब हमारी बस ने प्रवेश किया तो दिन के एक बज रहे थे। धूप थी पर बारिश के मौसम वाली उमस नदारद थी। मंदिर परिसर के बाहर उतरने से पता चल गया कि हम जिस मंदिर में आए हैं वो स्थानीय और बाहरी लोगों में कितना लोकप्रिय है। तोक्यो के सेंसो जी के बाद पहली बार इतनी भारी भीड़ देखने को मिली थी। मंदिर तक पहुँचने के लिए आधा पौना किमी हल्की चढ़ाई चढ़नी होती है। संकरी सी वो सड़क Ninnen Zaka और Sannen Zaka कही जाती है। क्योटो से जुड़ी पिछली पोस्ट में आपको बताया था कि जापान में एक, दो, तीन..को इचि, नी और सान कहा जाता है। यहाँ ऐसी धारणा है कि जो Ninnen Zaka पर चलते हुए लड़खड़ाया उसके दो साल बुरे गुजरेंगे वहीं Sannen Zaka पर ये दुर्भाग्य तीन साल तक चलेगा। बहरहाल हमें तो उस सड़क पर चलते हुए ये पता था नहीं सो अपने समूह के साथ तेज कदमों से भीड़ के बीच से अपने गाइड के साथ रास्ता बनाते हुए चल रहे थे।



सड़क के दोनों ओर भाँति भाँति के सोवेनियर और स्थानीय व्यंजन परोसते रेस्त्राँ थे। पर समय कम होने के कारण हम अपना ज्यादा वक़्त वहाँ नहीं दे पाए। पाँच मिनट तक तेजी से चलते हुए हम मंदिर के मुख्य द्वार Nio Mon (Gate of the Deva Kings)  पहुँचे।

मंदिर के द्वार के दोनों तरफ़ एक शेर नुमा जानवर की प्रतिमाएँ थी। चित्र में  दाँयी ओर जो सिंह दिख रहा है उसका मुँह खुला है वहीं दूसरी ओर बंद मुँह वाला शेर विराजमान है। जानते हैं क्यूँ ? बौद्ध ग्रंथों के हिसाब से ये शेर संस्कृत के 'अ' और 'ओम' का उच्चारण कर रहे हैं इसीलिए एक का मुँह खुला और दूसरे का बंद है।

सोमवार, 11 अगस्त 2014

आइए देखें झारखंड की मनमोहक बरसाती छटा... Lovely Jharkhand in rainy season

सावन तो आपने आख़िरी चरण में है पर झारखंड में मूसलाधार बारिश का दौर पिछले हफ्ते से शुरु हुआ है। झारखंड तो वैसे ही जंगलों से परिपूर्ण है पर एक बार बरसाती घटाओ का साया इसके ऊपर हो जाए फिर तो इसकी हरियाली देखते ही बनती है। पिछले हफ्ते दिल्ली से राँची आते वक़्त विमान से झारखंड की हरी भरी धरती देखने का सुख प्राप्त हुआ तो मैंने सोचा क्यूँ ना प्रकृति की इस अद्भुत झांकी को आपके साथ साझा करूँ

किसी और मौसम में झारखंड की पहाड़ी नदियाँ के बगल से अगर गुजरे तो सूखी चट्टानों और बालू के ढेर में महीन सी बहती धारा ही दिखेगी पर बरसात में तो इन नदियों की मस्तानी चाल देखते ही बनती है। पठारी इलाका होने की वजह से नदी के रास्ते आने वाली ढलानों पर ये छोटे छोटे झरनों के माध्यम से उफन उठती हैं।

वैसे नदियाँ क्या  खेत, जंगल और उनके बीच बसे खपरैल घरों वाले छोटे छोटे गाँव सब इस मूसलाधार बारिश  में नहा उठे हैं।


सोचिए तो इस छोटी सी पहाड़ी की चोटी पर बैठ कर रूई के फाहों समान इन बादलों के बीच सर्वत्र फैली इस हरियाली को जज़्ब करना कितना सुकूनदेह होगा ?


झार का मतलब ही होता है वन... इन घने जंगलों का गहरा हरा रंग और बरसात में धान का धानी एक ऐसा रंगों का समायोजन प्रस्तुत करते हैं कि देख के आँखें तृप्त हो जाती हैं।


छोटी छोटी पहाड़ियों की ढलानों पर उगे इन जंगलों के बीच जहाँ भी समतल भूमि मिलती है किसान उसी में अपना गुजारा करते हैं।


ये है राँची की बाहरी रिंग रोड.. सोच रहा हूँ अगली छुट्टी में इसका भी एक चक्कर मार लूँ। क्या ख्याल है आपका?

वैसे ऊपर से मुझे ये समझ नहीं आया कि इतनी समरूपता से लगाए गए ये पेड़ कौन से हैं ?


कुछ जुते खेत,  हरी भरी धरती और उसमें समाया एक छोटा सा गाँव..


धान के खेतों को कैमरे में क़ैद करना मेरा प्रिय शगल रहा है। बुआई से लेकर कटाई तक ये खेत इतने अलग अलग रंगों में सामने आते हैं कि किसी भी प्रकृति प्रेमी का मन हर्षित हो उठे। अब देखिए इस साल धान की बुआई अभी शुरु ही ही हुई है। पानी भरे इन खेतों में पौधों की कोपलें बस फूटना ही चाह रही हैं। पर पानी से भरे ये छोटे छोटे टेढ़े मेढ़े खेत अपने इस बेढ़ब रूप में भी वैसे ही लग रहे हैं जैसे गाँव की कोई अल्हड़ सुंदरी..


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सोमवार, 4 अगस्त 2014

Sanjusangen-do, Kyoto : सान जू सान गेन दो एक ऐसा बौद्ध मंदिर जहाँ भगवान बुद्ध की रक्षा करते हैं हिंदू देवी देवता !

हीयान शिंटो पूजा स्थल देखने के बाद भरी दोपहर में हम क्योटो के सबसे विख्यात मंदिरों में से एक Sanjusangen-do सान जू सान गेनदो पहुँचे। Sanjusangen-do नाम तो आपको बड़ा अटपटा लग रहा होगा। वैसे बोलने में क्लिष्ट ये नाम जापानी की गिनती गिनने के तरीके से आया है जो उतना कठिन भी नहीं हैं। जापानी में 1,2 और 3 के लिए इचि, नी और सान का प्रयोग करते हैं। इसी हिसाब से अगर 'जू' मतलब 'दस' तो 'नी जू' मतलब 'बीस' और 'सान जू' मतलब 'तीस'। यानि सान जू इचि, सान जू नी और सान जू सान का मतलब 31, 32 और 33 होगा। चूंकि ये मंदिर इसमें लगे 34 खंभो द्वारा 33 भागों में बाँटा गया है इसीलिए इसका नाम Sanjusangen-do यानि तैंतीस हिस्सों में बँटा परिसर रखा गया। 


पहली बार ये मंदिर 1164 ई में सम्राट शिराकावा के निर्देश पर बनाया गया।  तब इस परिसर में एक पाँच मंजिला पैगोडा और शिंतो पूजा स्थल भी हुआ करता था। पर दुर्भाग्यवश लकड़ी से बने इस मंदिर में 1249 ई में भीषण आग लगी जिसकी वज़ह से पूरा परिसर जलकर नष्ट हो गया। 1266 में मंदिर का 120 मीटर लंबा मुख्य कक्ष फिर से बनाया गया। इसमें प्राचीन मंदिर से बचा कर लाई गई 124 मूर्तियाँ भी थीं पर बाकी 876 मूर्तियाँ बाद में लगाई गयीं। जापान में इस मंदिर को हजार कैनोन वाले मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पर ये कैनोन अवलोकितेश्वर आख़िर हैं कौन ? दरअसल महायान बौद्ध ग्रंथों का संदर्भ लें तो उनके अनुसार अवलोकितेश्वर,  भगवान बुद्ध के वो तैंतीस रूप हैं जिसमें वे मानव या जानवर का रूप धारण कर सजीव प्राणियों को धर्म का मतलब समझा सकें। इसमें सात स्त्री रूप भी शामिल हैं। इन रूपों के हिसाब से ही इस मंदिर को तैंतीस हिस्सों में बाँटा गया है।

मंदिर का पिछला हिस्सा जहाँ धनुर्धारी आज़माते हैं अपना निशाना
जापान में मैं चालीस दिनों के लिए रहा पर वो पल मैं आज भी नहीं भूल सकता जब मैंने इस मंदिर में प्रवेश किया। आख़िर क्या था ऐसा मंदिर में ? लकड़ी के ऊपर सोने के पानी से चमकते इन अवलोकितेश्वरों (Kannon) को देखकर तो कोई भी हैरत में पड़ जाएगा। पर जिस बात  ने मुझे अचंभे में डाल दिया वो ये कैनोन नहीं बल्कि उनकी रक्षा करते आगे की पंक्ति में खड़े ये प्रहरी थे। मानव या जानवर का मुँह लिए बोधिसत्व की रक्षा का भार सँभालते ये देव प्रहरी यूँ तो जापानी नैन नक़्श के थे पर जब मैंने इनके नाम पढ़ने शुरु किए तो खुशी से मेरी आँखें नम हो गयीं।

हज़ार कैननों से घिरे भगवान बुद्ध Buddha surrounded by 1000 Kannon (Scanned image)
भारत से पाँच हजार किमी से भी ज्यादा दूरी पर स्थित एक मंदिर जहाँ बौद्ध धर्म भारत से ना आकर चीन के रास्ते आया हो वहाँ भी भारतीय  देवी देवताओं की पहुँच हो जाएगी ऐसा मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था। हर देवी देवता के जापानी नाम के साथ वहाँ वो संस्कृत नाम भी लिखे हुए थे जिनसे उनका उद्भव हुआ। वायु, वरुण, इंद्र, गरुड़, लक्ष्मी, विष्णु, ब्रह्मा, शिव सबका वास था वहाँ पर एक अलग ही रूप में। मैं सोच रहा था कि कितनी मजबूत होगी हमारी प्राचीन संस्कृति जिसकी मान्यताएँ धर्म के बदलाव के बाद भी साथ साथ जुड़ती हजारों किमी दूर चली आयीं।