अपनी यूरोप यात्रा की योजना बनाते समय मुझे सबसे ज्यादा जिस जगह को देखने की तमन्ना थी वो था क्यूकेनहॉफ का ट्यूलिप उद्यान। फूलों के खेत होते होंगे ऐसा तो बचपन में कभी सोचा ही नहीं था। पहली बार जब सिलसिला के गीत देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए में अमिताभ और रेखा को ट्यूलिप के इन बागों के बीच रोमांस करते देखा तो बाल मन अचरज से डूब गया। वाह ! ऐसी भी दुनिया में कोई जगह है जहाँ दूर दूर तक रंग बिरंगे फूलों के आलावा कुछ भी ना दिखाई दे। वो अस्सी का दशक था। तब तो हवाई जहाज में चढ़ना ही एक सपना था इसलिए इन फूलों तक पहुँचने का ख़्याल फिर मन में नहीं आया।
क्यूकेनहॉफ ट्यूलिप गार्डन : देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए दूर तक निगाह में हैं गुल खिले हुए |
पर कुछ साल पहले से जब यूरोप जाने का ख़्याल आकार लेना लगा तो हालैंड का ये ट्यूलिप गार्डन मेरी सूची में सबसे पहले शामिल हो गया। इस उद्यान को देखने की हसरत रखने वालों के लिए सबसे बड़ी बाधा है इसका सीमित समय में खुलना। ट्यूलिप के खिलने का समय मार्च के मध्य से लेकर मई मध्य तक का है और हमारे यहाँ स्कूलों में गर्मी की छुट्टियाँ मई के महीने में शुरु होती है। मतलब अगर आप परिवार के साथ क्यूकेनहॉफ जाना चाहते हैं तो आपके पास चंद दिन ही बचते हैं। इसी वज़ह से जब अंत समय में थामस कुक ने हमसे अपने कार्यक्रम को बदलने की पेशकश की तो हमें उसे अस्वीकार करना पड़ा था क्यूँकि वैसा करने से हमें ये उद्यान देखने को नहीं मिलता। सच मानिए हमारा वो निर्णय बिल्कुल सही था क्यूँकि जिन चंद घंटों में हम फूलों को इस दुनिया के वासी रहे वो पल हम जीवन पर्यन्त नहीं भुला पाएँगे।
देखो मैंने देखा है ये इक सपना, फूलों के शहर में हो घर अपना |
वैसे जानते हैं आख़िर क्यूकेनहॉफ का मतलब क्या है? क्यूकेनहॉफ यानि किचेन गार्डन। कहते हैं कि हॉलैंड में पन्द्रहवीं शताब्दी में ये शब्द प्रचलन मे आया जब जंगलों से फलों और सब्जियों के पौधे लोग घर के आस पास लगाने लगे। जहाँ तक इस इलाके का सवाल है तो यहाँ क्यूकेनहॉफ कैसल 1641 ई में अस्तित्व में आया और बढ़ते बढ़ते दो सौ हेक्टेयर क्षेत्र में फैल गया।
पर आज जिस रूप में आप इस बागीचे को देख रहे हैं उसकी नींव लैडस्केप
विशेषज्ञों द्वारा तब डाली गयी थी जब हमारा देश आजादी के पहले संग्राम
यानि 1857 के सिपाही विद्रोह में लीन था। चालीस के दशक में नीदरलैंड के
ट्यूलिप उत्पादकों ने फैसला किया कि वो अपने उत्पाद की प्रदर्शनी इस बाग के
माध्यम से लगाएँगे। 1950 से ये जगह आम जनता के लिए खोल दी गयी और तभी से
हर साल लाखों लोग इसकी खूबसूरती का आनंद लेते रहे हैं।
फूलों की बात हो और गीत एवम् कविताएँ ज़हन में ना आएँ ऐसा कैसे हो सकता है? तो आइए कुछ फिल्मी गीतों के साथ इन फूलों की सुंदरता का स्वाद चख लें। वैसे गीतों से याद आया कि प्रसिद्ध वादक हरि प्रसाद चौरसिया जी को इस बाग से खासा लगाव है और इसके करीब ही उन्होंने हालैंड में अपना एक ठिकाना भी बनाया है जहाँ वो अक्सर आते रहते हैं ।
फिर कहीं कोई फूल खिला. . चाहत ना कहो उसको |
जिंदगी फूलों की नहीं फूलों की तरह महकी रहे |
फूलों की तरह लब खोल कभी, खुशबू की जुबाँ में बोल कभी |