जिस तरह हमारे शहर कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होते जा रहे हैं वैसे वैसे हमारा जुड़ाव अपने आस पास की प्रकृति से कम होता जा रहा है। अगर आपका घर किसी बहुमंजिली इमारत का हिस्सा है तो फिर आपके लिए हरियाली घर में लगाए पौधों से ही आ सकती है। महानगरों में ये समस्या काफी बड़ी है पर छोटे शहर, कस्बे और यहाँ तक की गाँव भी घटती हरियाली से अछूते नहीं रहे हैं। और जब पेड़ ही नहीं रहेंगे तो पक्षी दिखेंगे कैसे?
यही वज़ह है कि आज की पीढ़ी के ज्यादातर लोग कौए, कबूतर और अपनी पुरानी गौरैया के आलावा शायद ही दस से ज्यादा पक्षियों के नाम गिना सकें। लेकिन जिन लोगों के घरों के पास थोड़ी बहुत हरियाली है भी वे भी इस बात की शिकायत करते हैं कि हमें तो बिल्कुल पक्षी दिखाई नहीं देते और अगर दिखते हैं तो पहचान ही नहीं पाते। आज का मेरे ये आलेख ऐसे ही लोगों के लिए है जिसमें मैंने तीन दर्जन उन पक्षियों से आपको मिलवाना चाहा है जिसे आप अपनी बॉलकोनी या छत से बैठे बैठे ही देख सकते हैं। मैंने जान बूझ कर पानी के आस पास रहने वाले पक्षियों को इस सूची में शामिल नहीं किया है हालांकि इनमें से कुछ उड़ते हुए घर से भी गाहे बगाहे दिख ही जाते हैं।
नर व मादा कोयल |
तो सबसे पहले बात कोयल की जिसके गाने के चर्चे आपने बचपन से सुन रखे हैं। पक्षियों के संसार से भले परिचित हों ना हों पर कोयल का नाम तो सुना ही होगा। हाँ इसकी नर और मादा में क्या अंतर है ये सब लोग तो नहीं ही जानते। ज्यादातर लोग ये जानते हैं कि कोयल काली होती है और बहुत सुरीला गाती है।
बाकी कौए के घोंसले में अंडे डालने का काम तो नर और मादा मिल कर करते हैं। नर ध्यान हटाता है और तभी मादा चुपके से अपना अंडा डाल कर फुर्र हो जाती है। संदेह ना हो इसलिए कौए का एक अंडा हटाने से भी नहीं चूकती।
महोख / भारद्वाज |
कोयल पपीहे की बिरादरी में एक और लंबा चौड़ा सा पक्षी है जिसे हम सब अपने घरों के इर्द गिर्द अक्सर देखते हैं। अगर आपने इसे ना भी देखा हो तो इसकी पुक पुक पुक करती आवाज़ जरूर सुनी होगी। कोयल की तरह ही इसकी आदत पेड़ों के अंदर छुप कर बैठने की है। वैसे अगर इसे अच्छी तरह देखना हो तो सूर्योदय के तुरंत बाद चौकस रहिए ये जनाब धूप सेंकने तभी किसी पेड़ की फुनगी पर अकेले या अपने जोड़ीदार के साथ विराजमान मिलेंगे।
भूरे नारंगी मिश्रित पीठ और काले पंखों वाला ये पक्षी ऊँची उड़ान भरने में कुशल नहीं है। कोयल पपीहे से उलट आप इसे हमेशा ज़मीन पर उतरते देख सकते हैं। कीड़े मकोड़ों के आलावा पक्षियों के अंडों पर भी इसकी नज़र रहती है। अब इसने भारद्वाज ॠषि का नाम पाया है तो कुछ अच्छे लक्षण भी तो होने चाहिए इसमें। मुझे तो एक अच्छी बात ये दिखी कि अपनी प्रजाति के अन्य बदनाम सदस्यों के विपरीत महोख अपने बच्चों का पालन पोषण ख़ुद करते हैं।
कबूतर, कौए या गौरैया के बाद अगर सबसे ज्यादा आपका परिचय किसी से होगा तो वो है तोता या मैना। वैसे एक डाल पर तोता बैठे एक डाल पर मैना वाला गाना जिसने भी सुना है वो इन्हें भूल कैसे सकता है? भारत में तोते की ढेर सारी प्रजातियाँ मौज़ूद हैंऔर आपको कौन सा तोता ज्यादा दिखता है ये निर्भर करता है कि आप भारत के किस भू भाग में रहते हैं? आम तौर पर जो तोता पूरे भारतवर्ष में दिखता है वो है लाल कंठी तोता जिसे प्यार से हम मिट्ठू के नाम से भी बुलाते हैं। । ऐसा नाम इसके गले के पास की लाल गुलाबी धारी की वजह से है जो काली और नीली धारी से घिरी होती है। मादा में ऐसी धारी नहीं होती। पहाड़ी तोता इससे आकार में बड़ा होता है और उसके उदर के पास एक लाल निशान होता है।
लाल कंठी तोता
आपके घर के आस पास तोता भले एक या दो किस्म का हो पर मैना की आपको अनेक किस्में दिख जाएँगी। देशी मैना (Common Myna) व अबलक मैना (Asian Pied Starling) सबसे ज्यादा दिखती हैं। उसके बाद नंबर आता है भूरे ललाट और काली चोटी वाली ब्राह्मणी (Brahmini Myna) व स्याह रंग की गंगा मैना (Ganga Myna) का। धूसर सिर मैना (Grey Headed Myna) मेरे मोहल्ले में सिर्फ एक बार आई और गुलाबी मैना (Rosy Starling) तो प्रवासी है। दिखेगी तो पूरे दल बल के साथ पर जाड़ों के मौसम में।
अबलक, देशी, गंगा, ब्राह्मणी, धूसर सिर और गुलाबी मैना |
बुलबुल की गायिकी से भी तो आप परिचित होंगे ही। मैं तो डैस कोस सिंगल बुलबुल मास्टर वाले खेल से ही बचपन में इनके नाम से परिचित हो गया था पर इन्हें ढंग से पहचानना काफी दिनों बाद ही आया। पूँछ के नीचे लाल और काले सिर वाली वाली गुलदुम बुलबुल (Red Vented Bulbul) और कानों के पास खूबसूरत लाल निशान से सिपाही बुलबुल (Red Whiskered Bulbul) दूर से ही पहचान ली जाती हैं। पेड़ों की ऊपरी शाखा पर बैठना इन्हें भाता है। पहाड़ों में हिमालयी बुलबुल व काली बुलबुल और उत्तर भारत के मैदानों में सफेद गाल वाली बुलबुल भी आपकों नज़र आएँगी।
सिपाही और गुलदुम बुलबुल |