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रविवार, 26 अप्रैल 2015

क्यूँ खास है येरकाड की ये स्काइवॉक Skywalk of GRT Nature Trails Resort, Yercaud

येरकाड या यरकौद में यूँ तो होटलों की कमी नहीं है पर बीसवें हेयरपिन बेंड के ठीक बाद GRT Nature Trails में अगर ना भी रुकें तो यहाँ एक बार भोजन करना तो बनता है सिर्फ इसलिए नहीं कि यहाँ के व्यंजन लजीज़ हैं बल्कि खासतौर से इसलिए कि यहाँ के SKYWALK से आप येरकाड घाटी का अद्भुत नज़ारा देख सकते हैं। येरकॉड की छोटी सी यात्रा में हमने दिन का जलपान यहीं किया। तो आइए आज के इस फोटो फीचर में दिखाते हैं यहाँ के रेस्त्राँ के अंदर और बाहर से दिखते कुछ अद्भुत दृश्य.. 

आकाश के रास्ते वादियों को छू लेने की कोशिश है ये SKYWALK

रेस्त्रां का ऊपरी हिस्सा जिसका थीम कलर है गहरा नीला

इसका नाम है Salem Heights और इसके बाहर दिखते पुल को पार कर आप जा पहुँचते हैं Skywalk पर
दरअसल Skywalk नाम इसे इसलिए मिला है कि ये हिस्सा पहाड़ी से बाहर की ओर लटका प्रतीत होता है।

यहाँ की साज सज्जा तो सुंदर है ही, रात के वक्त इन्हीं सीढ़ियों से ऊपर जाकर आप चाँदनी रात में Bonfire का आनंद भी उठा सकते हैं

Skywalk की Terrace पर लगी इन कुर्सियों पर चाय की चुस्कियाँ लेते हुए येरकाड घाटी के सौंदर्य को घंटों निहार सकते हैं।

हरी भरी घाटी.. खाली कुर्सी .. बस उनके साथ की तलबगार है :)

हम तो यहाँ दोपहर दो के करीब पहुँचे। सुबह और शाम को हरे भरे पेड़ों से भरी पूरी इस घाटी के आलावा आपको यही से सेलम शहर के मैदानों के भी स्पष्ट दर्शन हो जाते हैं।


यहाँ खाना पीना उतना मँहगा नहीं पर रहना जेब को काफी भारी पड़ता है। सीजन के हिसाब से यहाँ के कमरे की दरें प्रति दिन पाँच हजार या उससे भी ज़्यादा हो सकती हैं। इसलिए मेरी सलाह तो यही है कि यहाँ रहें ना रहें पर जलपान के लिए रुक कर इन नज़ारों को देखना ना भूलें..
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

रविवार, 19 अप्रैल 2015

तमिलनाडु का पर्वतीय स्थल येरकाड : क्या आप स्वाद लेना चाहेंगे काली मिर्च और कॉफी का ? Yercaud Hill Station, Tamilnadu

सेलम की चम्पई सुबह का नज़ारा तो आपने पिछले आलेख में देखा ही, आइए आज ले चलते हैं आपको सेलम से सटे पर्वतीय स्थल येरकाड  में जो कॉफी और मसालों के बागानों के लिए जाना जाता रहा है। सेलम शहर से मात्र 28 किमी की दूरी पर स्थित येरकाड, बेंगलूरु (बंगलौर) से भी चार घंटे की दूरी पर है इसलिए अक्सर इन शहरों से सैलानी सप्ताहांत बिताने यहाँ आते हैं। मार्च के प्रथम हफ्ते में दिन के एक बजे जब हम सेलम से निकले तो पारा 35 डिग्री से. को छू रहा था। पर पन्द्रह सौ मीटर की ऊँचाई पर स्थित येरकाड (तमिल उच्चारण के हिसाब से इसे येरकौद भी पुकारा जाता है) तक पहुँचते पहुँचते तापमान दस डिग्री नीचे गिर चुका था। 

 रंग बिरंगी छटा बिखेरती येरकाड (येरकौद) घाटी

1500 मीटर की इस ऊँचाई को छूने में तकरीबन बीस हेयरपिन घुमाव पार करने होते हैं। वैसे हेयरपिन घुमावों के पीछे के नामाकरण को समझना चाहें तो ये ये आलेख पढ़ सकते हैं। शुरुआती कुछ  घुमावों को पार करते ही बाँस के जंगल नज़र आने लगते हैं जो अधिकतम ऊँचाई तक पहुँचने के बाद भी अपने आकार और रंग की वज़ह से अलग झुंड में दूर से ही चिन्हित हो जाते हैं।

घुमावदार रास्तों का साथ देते बाँस के जंगल

पर रास्ते का असली आनंद तब आता है जब आप सात सौ मीटर से ऊपर उठना शुरु करते हैं। येरकाड ( येरकौद ) के इसी इलाके में कॉफी और काली मिर्च के पौधे भारी तादाद में दिखते हैं। इन पौधों को करीब से देखने का सबसे अच्छा उपाय तो ये है कि आप ऊपर तक गाड़ी से जाएँ और फिर बागानों के बीच से ट्रैक करते नीचे उतर आएँ। हमारे पास आधे दिन का ही समय था इसलिए अपनी गाड़ी को बीच बीच में रुकवाते रहे। कालीमिर्च के पौधे को इससे पहले मैंने अपनी केरल यात्रा में दिसंबर के महीने में देखा था। पर इस बार खुशी की बात ये थी कि मार्च में काली मिर्च के पौधे में ढेर सारी कच्ची फलियाँ आई हुई थीं। काली मिर्च यानि ब्लैक पेपर (Black Pepper) की लताएँ Creepers यानि दूसरे पेड़ों पर चढ़ने वाली होती हैं। इसके लिए उन्हें ऐसे तनों की जरूरत होती है जो ख़ुरदुरे हों। चंपा की तरह ही इन्हें भी वही जगहें रास आती हैं जहाँ मिट्टी में जलवाष्प तो हो पर पानी ठहरा या जमा हुआ ना हो। पहाड़ियों की ढलाने इसके लिए उपयुक्त होती हैं।

हरी फलियों से लदी काली मिर्च की लताएँ
गाड़ी से उतर कर हम जंगल में घुसे और इन कच्ची फलियों का स्वाद लिया। खाने में जायक़ा काली मिर्च जैसा ही था पर तीखापन अपेक्षाकृत कम था। ये फलियाँ जब पक जाती हैं तो इन्हें पानी में उबाला जाता है और फिर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद ये सिकुड़ने लगती हैं और इनका रंग काला हो जाता है। शहर में जगह जगह इन्हें बिकता पाया। बाद में घर आकर शिकायत सुनी कि इन्हें खरीद लेते तो फिर हम यहीं सुखा कर खाते :)

अहा क्या स्वाद था इनका भी !